< إرْمِيا 30 >
ثُمَّ أَوْحَى الرَّبُّ بِهَذِهِ النُّبُوءَةِ إِلَى إِرْمِيَا قَائِلاً: | ١ 1 |
वह कलाम जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ
هَذَا مَا يُعْلِنُهُ الرَّبُّ إِلَهُ إِسْرَائِيلَ: «دَوِّنْ فِي كِتَابٍ كُلَّ مَا أَمْلَيْتُهُ عَلَيْكَ، | ٢ 2 |
“ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि: यह सब बातें जो मैंने तुझ से कहीं किताब में लिख।
هَا أَيَّامٌ مُقْبِلَةٌ أَرُدُّ فِيهَا سَبْيَ شَعْبِي إِسْرَائِيلَ وَيَهُوذَا، وَأُعِيدُهُمْ إِلَى الأَرْضِ الَّتِي أَعْطَيْتُهَا لِآبَائِهِمْ فَيَرِثُونَهَا». | ٣ 3 |
क्यूँकि देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं अपनी क़ौम इस्राईल और यहूदाह की ग़ुलामी को ख़त्म कराऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और मैं उनको उस मुल्क में वापस लाऊँगा, जो मैंने उनके बाप — दादा को दिया, और वह उसके मालिक होंगे।”
ثُمَّ خَاطَبَ الرَّبُّ إِسْرَائِيلَ وَيَهُوذَا: بِهَذَا الْكَلامِ: | ٤ 4 |
और वह बातें जो ख़ुदावन्द ने इस्राईल और यहूदाह के बारे में फ़रमाईं यह हैं:
«هَذَا مَا يُعْلِنُهُ الرَّبُّ: سَمِعْنَا صُرَاخَ رُعْبٍ. عَمَّ الْفَزَعُ وَانْقَرَضَ السَّلامُ. | ٥ 5 |
कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: हम ने हड़बड़ी की आवाज़ सुनी, ख़ौफ़ है और सलामती नहीं।
اسْأَلُوا وَتَأَمَّلُوا: أَيُمْكِنُ لِلرَّجُلِ أَنْ يَحْمِلَ؟ إِذاً مَالِي أَرَى كُلَّ رَجُلٍ يَضَعُ يَدَيْهِ عَلَى حَقْوَيْهِ كَامْرَأَةٍ تُقَاسِي مِنَ الْمَخَاضِ، وَقَدِ اكْتَسَى كُلُّ وَجْهٍ بِالشُّحُوبِ؟ | ٦ 6 |
अब पूछो और देखो, क्या कभी किसी मर्द को पैदाइश का दर्द लगा? क्या वजह है कि मैं हर एक मर्द को ज़च्चा की तरह अपने हाथ कमर पर रख्खे देखता हूँ और सबके चेहरे ज़र्द हो गए हैं?
مَا أَرْهَبَ ذَلِكَ الْيَوْمَ إِذْ لَا مَثِيلَ لَهُ! هُوَ زَمَنُ ضِيقٍ عَلَى ذُرِّيَّةِ يَعْقُوبَ، وَلَكِنَّهَا سَتَنْجُو مِنْهُ. | ٧ 7 |
अफ़सोस! वह दिन बड़ा है, उसकी मिसाल नहीं; वह या'क़ूब की मुसीबत का वक़्त है, लेकिन वह उससे रिहाई पाएगा।
فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ، يَقُولُ الرَّبُّ الْقَدِيرُ، أُحَطِّمُ أَنْيَارَ أَعْنَاقِهِمْ، وَأَقْطَعُ رُبُطَهُمْ، فَلا يَسْتَعْبِدُهُمْ غَرِيبٌ فِيمَا بَعْدُ. | ٨ 8 |
और उस रोज़ यूँ होगा, रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है, कि मैं उसका जूआ तेरी गर्दन पर से तोड़ूँगा और तेरे बन्धनों को खोल डालूँगा; और बेगाने तुझ से फिर ख़िदमत न कराएँगे।
بَلْ يَخْدِمُونَ الرَّبَّ إِلَهَهُمْ، وَدَاوُدَ مَلِكَهُمُ الَّذِي أُقِيمُهُ لَهُمْ. | ٩ 9 |
लेकिन वह ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की और अपने बादशाह दाऊद की, जिसे मैं उनके लिए खड़ा करूँगा, ख़िदमत करेंगे।
فَلا تَفْزَعْ يَا عَبْدِي يَعْقُوبَ، وَلا تَجْزَعْ يَا إِسْرَائِيلُ، فَإِنِّي أُخَلِّصُكَ مِنَ الْغُرْبَةِ، وَأُنْقِذُ ذُرِّيَّتَكَ مِنْ أَرْضِ سَبْيِهِمْ، فَيَرْجِعُ نَسْلُ إِسْرَائيلَ وَيَطْمَئِنُّ وَيَسْتَرِيحُ مِنْ غَيْرِ أَنْ يُضَايِقَهُ أَحَدٌ. | ١٠ 10 |
इसलिए ऐ मेरे ख़ादिम या'क़ूब, हिरासान न हो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और ऐ इस्राईल, घबरा न जा; क्यूँकि देख, मैं तुझे दूर से और तेरी औलाद को ग़ुलामी की सरज़मीन से छुड़ाऊँगा; और या'क़ूब वापस आएगा और आराम — ओ — राहत से रहेगा और कोई उसे न डराएगा।
لأَنِّي مَعَكَ لأُخَلِّصَكَ، يَقُولُ الرَّبُّ، فَأُبِيدُ جَمِيعَ الأُمَمِ الَّتِي شَتَّتُّكَ بَيْنَهَا. أَمَّا أَنْتَ فَلَنْ أُفْنِيَكَ بَلْ أُؤَدِّبَكَ بِالْحَقِّ وَلا أُبَرِّئَكَ تَبْرِئَةً كَامِلَةً». | ١١ 11 |
क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ताकि तुझे बचाऊँ: अगरचे मैं सब क़ौमों को जिनमें मैंने तुझे तितर — बितर किया तमाम कर डालूँगा तोभी तुझे तमाम न करूँगा; बल्कि तुझे मुनासिब तम्बीह करूँगा और हरगिज़ बे सज़ा न छोड़ूँगा।
لأَنَّ هَذَا مَا يُعْلِنُهُ الَّربُّ: «إِنَّ جُرْحَكِ لَا شِفَاءَ لَهُ وَضَرْبَتَكِ لَا عِلاجَ لَهَا. | ١٢ 12 |
क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तेरी ख़स्तगी ला — इलाज और तेरा ज़ख़्म सख़्त दर्दनाक है।
إِذْ لَا يُوْجَدُ مَنْ يُدَافِعُ عَنْ دَعْوَاكِ، وَلا دَوَاءَ لِجُرْحِكِ، وَلا دَوَاءَ لَكِ. | ١٣ 13 |
तेरा हिमायती कोई नहीं जो तेरी मरहम पट्टी करे तेरे पास कोई शिफ़ा बख़्श दवा नहीं।
قَدْ نَسِيَكِ مُحِبُّوكِ، وَأَهْمَلُوكِ إِهْمَالاً، لأَنِّي ضَرَبْتُكِ كَمَا يَضْرِبُ عَدُوٌّ، وَعَاقَبْتُكِ عِقَابَ مُبْغِضٍ قَاسٍ، لأَنَّ إِثْمَكِ عَظِيمٌ وَخَطَايَاكِ مُتَكَاثِرَةٌ. | ١٤ 14 |
तेरे सब चाहने वाले तुझे भूल गए, वह तेरे तालिब नहीं हैं, हक़ीक़त में मैंने तुझे दुश्मन की तरह घायल किया और संग दिल की तरह तादीब की; इसलिए कि तेरी बदकिरदारी बढ़ गई और तेरे गुनाह ज़्यादा हो गए।
لِمَاذَا تَنُوحِينَ مِنْ ضَرْبَتِكِ؟ إِنَّ جُرْحَكِ مُسْتَعْصٍ مِنْ جَرَّاءِ إِثْمِكِ الْعَظِيمِ وَخَطَايَاكِ الْمُتَكَاثِرَةِ، لِهَذَا أَوْقَعْتُ بِكِ الْمِحَنَ. | ١٥ 15 |
तू अपनी ख़स्तगी की वजह से क्यूँ चिल्लाती है, तेरा दर्द ला — इलाज है; इसलिए कि तेरी बदकिरदारी बहुत बढ़ गई और तेरे गुनाह ज़्यादा हो गए, मैंने तुझसे ऐसा किया।
وَلَكِنْ سَيَأْتِي يَوْمٌ يُفْتَرَسُ فِيهِ جَمِيعُ مُفْتَرِسِيكِ وَيَذْهَبُ جَمِيعُ مَضَايِقِيكِ إِلَى السَّبْي، وَيُصْبِحُ نَاهِبُوكِ مَنْهُوبِينَ، | ١٦ 16 |
तो भी वह सब जो तुझे निगलते हैं, निगले जाएँगे, और तेरे सब दुश्मन ग़ुलामी में जाएँगे, और जो तुझे ग़ारत करते हैं, ख़ुद ग़ारत होंगे; और मैं उन सबको जो तुझे लूटते हैं लुटा दूँगा।
لأَنِّي أَرُدُّ لَكِ عَافِيَتَكِ وَأُبْرِئُ جِرَاحَكِ، يَقُولُ الرَّبُّ، لأَنَّكِ دُعِيتِ مَنْبُوذَةً، صِهْيَوْنَ الَّتِي لَا يَعْبَأُ بِها أَحَدٌ». | ١٧ 17 |
क्यूँकि मैं फिर तुझे तंदुरुस्ती और तेरे ज़ख्मों से शिफ़ा बख़्शूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है क्यूँकि उन्होंने तेरा मरदूदा रख्खा कि यह सिय्यून है, जिसे कोई नहीं पूछता
وَهَذَا مَا يُعْلِنُهُ الرَّبُّ: «هَا أَنَا أَرُدُّ سَبْيَ ذُرِّيَّةِ يَعْقُوبَ إِلَى مَنَازِلِهِمْ، وَأَرْحَمُ مَسَاكِنَهُمْ، فَتُبْنَى الْمَدِينَةُ عَلَى رَابِيَتِهَا، وَيَنْتَصِبُ الْقَصْرُ كَالْعَهْدِ بِهِ. | ١٨ 18 |
“ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं या'क़ूब के ख़ेमों की ग़ुलामी को ख़त्म कराऊँगा, और उसके घरों पर रहमत करूँगा; और शहर अपने ही पहाड़ पर बनाया जाएगा और क़स्र अपने ही मक़ाम पर आबाद हो जाएगा।
وَتَصْدُرُ عَنْهُمْ تَرَانِيمُ الشُّكْرِ مَعَ أَهَازِيجِ أَصْوَاتِ الْمُطْرِبِينَ، وَأُكَثِّرُهُمْ فَلا يَكُونُونَ قِلَّةً، وَأُكْرِمُهُمْ فَلا يَسْتَذِلُّونَ. | ١٩ 19 |
और उनमें से शुक्रगुज़ारी और ख़ुशी करने वालों की आवाज़ आएगी; और मैं उनको अफ़ज़ाइश बख़्शूँगा, और वह थोड़े न होंगे; मैं उनको शौकत बख़्शूँगा और वह हक़ीर न होंगे।
وَيَكُونُ أَبْنَاؤُهُمْ مُفْلِحِينَ كَمَا فِي الْعَهْدِ الْغَابِرِ، وَيَثْبُتُ جُمْهُورُهُمْ أَمَامِي، وَأُعَاقِبُ جَمِيعَ مُضَايِقِيهِمْ. | ٢٠ 20 |
और उनकी औलाद ऐसी होगी जैसी पहले थी, और उनकी जमा'अत मेरे हुज़ूर में क़ाईम होगी, और मैं उन सबको जो उन पर ज़ुल्म करें सज़ा दूँगा।
وَيَكُونُ قَائِدُهُمْ مِنْهُمْ، وَيَخْرُجُ حَاكِمُهُمْ مِنْ وَسَطِهِمْ فَأَسْتَدْنِيهِ فَيَدْنُو مِنِّي، إِذْ مَنْ يَجْرُؤُ عَلَى الاقْتِرَابِ مِنِّي مِنْ نَفْسِهِ؟ | ٢١ 21 |
और उनका हाकिम उन्हीं में से होगा, और उनका फ़रमॉरवाँ उन्हीं के बीच से पैदा होगा और मैं उसे क़ुर्बत बख़्शूँगा, और वह मेरे नज़दीक आएगा; क्यूँकि कौन है जिसने ये जुर'अत की हो कि मेरे पास आए? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
وَتَكُونُونَ لِي شَعْباً وَأَكُونُ لَكُمْ إِلَهاً». | ٢٢ 22 |
और तुम मेरे लोग होगे, और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँगा।”
انْظُرُوا، هَا عَاصِفَةُ غَضَبِ الَّربِّ قَدْ تَفَجَّرَتْ، زَوْبَعَةٌ هَائِجَةٌ تَثُورُ فَوْقَ رُؤُوسِ الأَشْرَارِ. | ٢٣ 23 |
देख, ख़ुदावन्द के ग़ज़बनाक ग़ुस्से की आँधी चलती है! यह तेज़ तूफ़ान शरीरों के सिर पर टूट पड़ेगा।
لَنْ يَرْتَدَّ غَضَبُ الرَّبِّ الْمُحْتَدِمُ حَتَّى يُنْجِزَ وَيُنَفِّذَ مَقَاصِدَ فِكْرِهِ. وَهَذَا مَا سَتَفْهَمُونَهُ فِي آخِرِ الأَيَّامِ. | ٢٤ 24 |
जब तक यह सब कुछ न हो ले, और ख़ुदावन्द अपने दिल के मक़सद पूरे न कर ले, उसका ग़ज़बनाक ग़ुस्सा ख़त्म न होगा; तुम आख़िरी दिनों में इसे समझोगे।