< إرْمِيا 15 >

ثُمَّ قَالَ لِيَ الرَّبُّ: «وحَتَّى لَوْ مَثَلَ مُوسَى وَصَمُوئِيلُ أَمَامِي، مِنْ أَجْلِ الشَّعْبِ فَإِنَّ قَلْبِي لَنْ يَلْتَفِتَ إِلَى هَذَا الشَّعْبِ. اطْرَحْهُمْ مِنْ مَحْضَرِي فَيَخْرُجُوا. ١ 1
तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया कि अगरचे मूसा और समुएल मेरे सामने खड़े होते तो मेरा दिल इन लोगों की तरफ़ मुतवज्जिह न होता। इनको मेरे सामने से निकाल दे कि चले जाएँ!
وَعِنْدَمَا يَسْأَلُونَكَ: إِلَى أَيْنَ نَذْهَبُ؟ أَجِبْهُمْ: هَذَا مَا يُعْلِنُهُ الرَّبُّ: مَنْ هُوَ لِلْوَبَأِ فَبِالْوَبَأِ يَمُوتُ، وَمَنْ هُوَ لِلسَّيْفِ فَبِالسَّيْفِ يُقْتَلُ، وَمَنْ هُوَ لِلْمَجَاعَةِ فَبِالْمَجَاعَةِ يَفْنَى، وَمَنْ هُوَ لِلسَّبْيِ فَإِلَى السَّبْيِ يَذْهَبُ. ٢ 2
और जब वह तुझसे कहें कि 'हम किधर जाएँ?' तू उनसे कहना कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि जो मौत के लिए हैं वह मौत की तरफ़ जाएँ, और जो तलवार के लिए हैं वह तलवार की तरफ़, और जो काल के लिए हैं वह काल को, और जो ग़ुलामी के लिए हैं वह ग़ुलामी में।
وَأَعْهَدُ بِهِمْ إِلَى أَرْبَعَةِ أَصْنَافٍ مِنَ الْخَرَابِ يَقُولُ الرَّبُّ: السَّيْفِ لِلذَّبْحِ، وَالْكِلابِ لِلتَّمْزِيقِ، وَطُيُورِ السَّمَاءِ وَوُحُوشِ الأَرْضِ لِلاِفْتِرَاسِ وَالإِهْلاكِ. ٣ 3
और मैं चार चीज़ों' को उन पर मुसल्लत करूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है: तलवार को कि क़त्ल करे, और कुत्तों को कि फाड़ डालें, और आसमानी परिन्दों को, और ज़मीन के दरिन्दों को कि निगल जाएँ और हलाक करें।
وَأَجْعَلُهُمْ مَثَارَ رُعْبِ أُمَمِ الأَرْضِ نَتِيجَةً لِمَا ارْتَكَبَهُ مَنَسَّى بْنُ حَزَقِيَّا فِي أُورُشَلِيمُ. ٤ 4
और मैं उनको शाह — ए — यहूदाह मनस्सी — बिन — हिज़क़ियाह की वजह से, उस काम के ज़रिये' जो उसने येरूशलेम में किया, छोड़ दूँगा कि ज़मीन की सब ममलुकतों में धक्के खाते फिरें।
فَمَنْ يَعْطِفُ عَلَيْكِ يَا أُورُشَلِيمُ، وَمَنْ يَرْثِي لَكِ؟ مَنْ يَتَوَقَّفُ لِيَسْأَلَ عَنْ سَلامَتِكِ؟ ٥ 5
“अब ऐ येरूशलेम, कौन तुझ पर रहम करेगा? कौन तेरा हमदर्द होगा? या कौन तेरी तरफ़ आएगा कि तेरी ख़ैर — ओ — 'आफ़ियत पूछे?
قَدْ رَفَضْتِنِي» يَقُولُ الرَّبُّ، «وَوَاظَبْتِ عَلَى الارْتِدَادِ، لِذَلِكَ مَدَدْتُ يَدِي ضِدَّكِ وَدَمَّرْتُكِ، إِذْ سَئِمْتُ مِنْ كَثْرَةِ الصَّفْحِ عَنْكِ. ٦ 6
ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तूने मुझे छोड़ दिया और नाफ़रमान हो गई, इसलिए मैं तुझ पर अपना हाथ बढ़ाऊँगा और तुझे बर्बाद करूँगा, मैं तो तरस खाते खाते तंग आ गया।
وَأُذَرِّيهِمْ بِالْمِذْرَاةِ فِي أَبْوَابِ مُدُنِ الأَرْضِ؛ وَأُثْكِلُ وَأُهْلِكُ شَعْبِي لأَنَّهُمْ لَمْ يَرْجِعُوا عَنْ طُرُقِهِمِ الأَثِيمَةِ. ٧ 7
और मैंने उनको मुल्क के फाटकों पर छाज से फटका, मैंने उनके बच्चे छीन लिए, मैंने अपने लोगों को हलाक किया, क्यूँकि वह अपनी राहों से न फिरे।
وَأَجْعَلُ عَدَدَ أَرَامِلِهِمْ أَكْثَرَ مِنْ عَدَدِ رَمْلِ الْبَحْرِ، وَأَجْلِبُ فِي الظَّهِيرَةِ مُهْلِكاً عَلَى أُمَّهَاتِ الشُّبَّانِ، وَأُوْقِعُ عَلَيْهِمِ الرُّعْبَ وَالْهَوْلَ بَغْتَةً. ٨ 8
उनकी बेवाएँ मेरे आगे समन्दर की रेत से ज़्यादा हो गईं; मैंने दोपहर के वक़्त जवानों की माँ पर ग़ारतगर को मुसल्लत किया; मैंने उस पर अचानक 'ऐज़ाब — ओ — दहशत को डाल दिया।
ذَبُلَتْ وَالِدَةُ السَّبْعَةِ الأَبْنَاءِ. أَسْلَمَتْ رُوحَهَا وَغَرَبَتْ شَمْسُ حَيَاتِهَا وَالنَّهَارُ لَمْ يَغِبْ بَعْدُ. لَحِقَ بِها الْخِزْيُ وَالْعَارُ. أَمَّا بَقِيَّتُهُمْ فَأَدْفَعُهُمْ إِلَى حَدِّ السَّيْفِ أَمَامَ أَعْدَائِهِمْ»، يَقُولُ الرَّبُّ. ٩ 9
सात बच्चों की वालिदा निढाल हो गई, उसने जान दे दी; दिन ही को उसका सूरज डूब गया, वह पशेमान और शर्मिंदा हो गई है; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं उनके बाक़ी लोगों को उनके दुश्मनों के आगे तलवार के हवाले करूँगा।”
وَيْلٌ لِي يَا أُمِّي لأَنَّكِ أَنْجَبْتِنِي لأَكُونَ إِنْسَانَ خِصَامٍ وَرَجُلَ نِزَاعٍ لِكُلِّ الأَرْضِ. لَمْ أَقْرِضْ وَلَمْ أَقْتَرِضْ. وَمَعَ ذَلِكَ كُلُّ وَاحِدٍ يَلْعَنُنِي. ١٠ 10
ऐ मेरी माँ, मुझ पर अफ़सोस कि मैं तुझ से तमाम दुनिया कि लिए लड़ाका आदमी और झगड़ालू शख़्स पैदा हुआ! मैंने तो न सूद पर क़र्ज़ दिया और न क़र्ज़ लिया, तो भी उनमें से हर एक मुझ पर ला'नत करता है।
دَعْهُمْ يَشْتِمُونَ يَا رَبُّ. أَلَمْ أَتَضَرَّعْ إِلَيْكَ مِنْ أَجْلِ خَيْرِهِمْ؟ إِنِّي أَبْتَهِلُ إِلَيْكَ الآنَ مِنْ أَجْلِ أَعْدَائِي فِي وَقْتِ الضِّيقِ وَالْمِحْنَةِ. ١١ 11
ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, यक़ीनन मैं तुझे ताक़त बख़्शूँगा कि तेरी ख़ैर हो; यक़ीनन मैं मुसीबत और तंगी के वक़्त दुश्मनों से तेरे सामने इल्तिजा कराऊँगा।
«أَيُمْكِنُ لِلْمَرْءِ أَنْ يَكْسِرَ حَدِيداً وَنُحَاساً مِنَ الشِّمَالِ؟ ١٢ 12
क्या कोई लोहे को या'नी उत्तरी फ़ौलाद और पीतल को तोड़ सकता है?
سَأَجْعَلُ ثَرْوَتَكَ وَكُنُوزَكَ نَهْباً بِلا ثَمَنٍ بِسَبَبِ كُلِّ خَطَايَاكَ فِي جَمِيعِ أَرْضِكَ. ١٣ 13
'तेरे माल और तेरे ख़ज़ानों को मुफ़्त लुटवा दूँगा, और यह तेरे सब गुनाहों की वजह से तेरी तमाम सरहदों में होगा।
وَأُصَيِّرُكَ عَبْداً لأَعْدَائِكَ فِي أَرْضٍ لَا تَعْرِفُهَا، لأَنَّ نَاراً قَدِ اضْطَرَمَتْ فِي احْتِدَامِ غَضَبِي، سَوْفَ تُحْرِقُكُمْ». ١٤ 14
और मैं तुझ को तेरे दुश्मनों के साथ ऐसे मुल्क में ले जाऊँगा जिसे तू नहीं जानता, क्यूँकि मेरे ग़ज़ब की आग भड़केगी और तुम को जलाएगी।
يَا رَبُّ، أَنْتَ عَرَفْتَ. اذْكُرْنِي وَارْعَنِي وَانْتَقِمْ لِي مِنْ مُضْطَهِدِيَّ. لَا تَتَمَهَّلْ طَوِيلاً فِي الانْتِقَامِ لِي، فَأَنْتَ تَعْلَمُ أَنِّي مِنْ أَجْلِكَ احْتَمَلْتُ التَّعْيِيرَ. ١٥ 15
ऐ ख़ुदावन्द, तू जानता है; मुझे याद फ़रमा और मुझ पर शफ़क़त कर, और मेरे सतानेवालों से मेरा इन्तक़ाम ले। तू बर्दाश्त करते — करते मुझे न उठा ले, जान रख कि मैंने तेरी ख़ातिर मलामत उठाई है।
حَالَمَا بَلَغَتْنِي كَلِمَاتُكَ أَكَلْتُهَا فَأَصْبَحَتْ لِي بَهْجَةً وَمَسَرَّةً لِقَلْبِي، لأَنِّي دُعِيتُ بِاسْمِكَ أَيُّهَا الرَّبُّ الإِلَهُ الْقَدِيرُ. ١٦ 16
तेरा कलाम मिला और मैंने उसे नोश किया, और तेरी बातें मेरे दिल की ख़ुशी और ख़ुर्रमी थीं; क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द, रब्ब — उल — अफ़वाज मैं तेरे नाम से कहलाता हूँ।
لَمْ أَجْلِسْ فِي مَجَالِسِ الْعَابِثِينَ، وَلَمْ أَشْتَرِكْ فِي لَهْوِهِمْ. اعْتَزَلْتُ وَحْدِي لأَنَّ يَدَكَ كَانَتْ عَلَيَّ، وَقَدْ مَلأْتَنِي سُخْطاً. ١٧ 17
न मैं ख़ुशी मनानेवालों की महफ़िल में बैठा और न ख़ुश हुआ, तेरे हाथ की वजह से मैं तन्हा बैठा, क्यूँकि तूने मुझे क़हर — से — लबरेज़ कर दिया है।
لِمَاذَا لَا يَنْقَطِعُ أَلَمِي، وَجُرْحِي لَا يُشْفَى، وَيَأْبَى الالْتِئَامَ؟ أَتَكُونُ لِي كَجَدْوَلٍ كَاذِبٍ أَوْ مِيَاهٍ سَرِيعَةِ النُّضُوبِ؟ ١٨ 18
मेरा दर्द क्यूँ हमेशा का और मेरा ज़ख़्म क्यूँ ला — 'इलाज है कि सिहत पज़ीर नहीं होता? क्या तू मेरे लिए सरासर धोके की नदी के जैसा हो गया है, उस पानी की तरह जिसको क़याम नहीं?
لِذَلِكَ، هَكَذَا قَالَ الرَّبُّ: «إِنْ رَجَعْتَ أَسْتَرِدَّكَ فَتَمْثُلَ أَمَامِي. إِنْ نَطَقْتَ بِالْقَوْلِ السَّدِيدِ وَنَبَذْتَ الْكَلامَ الْغَثَّ، أَجْعَلْكَ الْمُتَحَدِّثَ بِفَمِي، فَيُقْبِلُونَ إِلَيْكَ مُسْتَرْشِدِينَ، وَأَنْتَ لَا تَلْجَأُ إِلَيْهِمْ طَالِباً نَصِيحَةً. ١٩ 19
इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि अगर तू बाज़ आये तों मैं तुझे फेर लाऊँगा और तू मेरे सामने खड़ा होगा। और अगर तू लतीफ़ को कसीफ़ से जुदा करे, तो तू मेरे मुँह की तरह होगा। वह तेरी तरफ़ फिरें, लेकिन तू उनकी तरफ़ न फिरना।
وَأَجْعَلُكَ سُوراً نُحَاسِيًّا مَنِيعاً لِهَذَا الشَّعْبِ، فَيُحَارِبُونَكَ وَلَكِنَّهُمْ يُخْفِقُونَ، لأَنِّي أَنَا مَعَكَ لأُنْقِذَكَ وَأُخَلِّصَكَ. ٢٠ 20
और मैं तुझे इन लोगों के सामने पीतल की मज़बूत दीवार ठहराऊँगा; और यह तुझ से लड़ेंगे लेकिन तुझ पर ग़ालिब न आएँगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है मैं तेरे साथ हूँ कि तेरी हिफ़ाज़त करूँ और तुझे रिहाई दूँ।
أُنْقِذُكَ مِنْ قَبْضَةِ الأَشْرَارِ، وَأَفْدِيكَ مِنْ أَكُفِّ الْعُتَاةِ». ٢١ 21
हाँ, मैं तुझे शरीरों के हाथ से रिहाई दूँगा और ज़ालिमों के पंजे से तुझे छुड़ाऊँगा।

< إرْمِيا 15 >