< إرْمِيا 10 >
أَنْصِتُوا إِلَى الْقَضَاءِ الَّذِي تَكَلَّمَ بِهِ الرَّبُّ عَلَيْكُمْ يَا ذُرِّيَّةَ إِسْرَائِيلَ. | ١ 1 |
ऐ इस्राईल के घराने, वह कलाम जो ख़ुदावन्द तुम से करता है सुनो।
هَكَذَا قَالَ الرَّبُّ: «لا تَتَعَلَّمُوا طَرِيقَ الأُمَمِ، وَلا تَرْتَعِبُوا مِنْ آيَاتِ السَّمَاءِ الَّتِي تَرْتَعِبُ مِنْهَا الشُّعُوبُ. | ٢ 2 |
ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: “तुम दीगर क़ौमों के चाल चलन न सीखो, और आसमानी 'अलामात और निशान और से हिरासान न हो; अगरचे दीगर क़ौमें उनसे हिरासान होती हैं।
لأَنَّ عَادَاتِ الأُمَمِ بَاطِلَةٌ، إِذْ تُقْطَعُ الشَّجَرَةُ مِنَ الْغَابَةِ ثُمَّ تُشَذِّبُهَا وَتَنْحَتُهَا يَدَا صَانِعٍ بِفَأْسٍ. | ٣ 3 |
क्यूँकि उनके क़ानून बेकार हैं। चुनाँचे कोई जंगल में कुल्हाड़ी से दरख़्त काटता है, जो बढ़ई के हाथ का काम है।
ثُمَّ يُزَيِّنُونَهَا بِالْفِضَّةِ وَالذَّهَبِ وَتُثَبَّتُ بِالْمَسَامِيرِ وَالْمَطَارِقِ لِئَلَّا تَتَحَرَّكَ. | ٤ 4 |
वह उसे चाँदी और सोने से आरास्ता करते हैं, और उसमें हथोड़ों से मेखे़ं लगाकर उसे मज़बूत करते हैं ताकि क़ाईम रहे।
فَتَكُونُ كَفَزَّاعَةٍ فِي حَقْلِ قِثَّاءٍ لَا تَنْطِقُ، بَلْ تُحْمَلُ لأَنَّهَا عَاجِزَةٌ عَنِ الْمَشْيِ. فَلا تَخَافُوهَا لأَنَّهَا لَا تَضُرُّ وَلا تَنْفَعُ». | ٥ 5 |
वह खजूर की तरह मख़रूती सुतून हैं पर बोलते नहीं, उनको उठा कर ले जाना पड़ता है क्यूँकि वह चल नहीं सकते; उनसे न डरो क्यूँकि वह नुक़सान नहीं पहुँचा सकते, और उनसे फ़ायदा भी नहीं पहुँच सकता।”
أَنْتَ لَا نَظِيرَ لَكَ يَا رَبُّ. عَظِيمٌ أَنْتَ، وَاسْمُكَ عَظِيمٌ فِي الْجَبَرُوتِ. | ٦ 6 |
ऐ ख़ुदावन्द, तेरा कोई नज़ीर नहीं, तू 'अज़ीम है और क़ुदरत की वजह से तेरा नाम बुज़ुर्ग है।
مَنْ لَا يَتَّقِيكَ يَا مَلِكَ الأُمَمِ؟ فَالْخَوْفُ يَلِيقُ بِكَ، إِذْ لَا يُوْجَدُ بَيْنَ حُكَمَاءِ الشُّعُوبِ وَفِي جَمِيعِ مَمَالِكِهِمْ مَنْ هُوَ نَظِيرُكَ. | ٧ 7 |
ऐ क़ौमों के बादशाह, कौन है जो तुझ से न डरे? यक़ीनन यह तुझ ही को ज़ेबा है; क्यूँकि क़ौमों के सब हकीमों में, और उनकी तमाम ममलुकतों में तेरा जैसा कोई नहीं।
جَمِيعُهُمْ بُلَدَاءُ وَحَمْقَى، يَتَلَقَّفُونَ الْعِلْمَ مِنْ أَصْنَامٍ خَشَبِيَّةٍ. | ٨ 8 |
मगर वह सब हैवान ख़सलत और बेवक़ूफ़ हैं; बुतों की ता'लीम क्या, वह तो लकड़ी हैं।
يُحْضِرُونَ لِصُنْعِهَا الْفِضَّةَ الْمُطَرَّقَةَ مِنْ تَرْشِيشَ، وَالذَّهَبَ مِنْ أُوفَازَ، فَهِيَ عَمَلُ صَانِعٍ مَاهِرٍ وَصَوْغُ يَدَيْ صَائِغٍ، وَتُكْسَى بِثِيَابٍ زَرْقَاءَ وَأُرْجُوَانِيَّةٍ. كُلُّهَا صَنْعَةُ صُنَّاعٍ مَهَرَةٍ. | ٩ 9 |
तरसीस से चाँदी का पीटा हुआ पत्तर, और ऊफ़ाज़ से सोना आता है जो कारीगर की कारीगरी और सुनार की दस्तकारी है; उनका लिबास नीला और अर्ग़वानी है, और ये सब कुछ माहिर उस्तादों की दस्तकारी है।
أَمَّا الرَّبُّ فَهُوَ الإِلَهُ الْحَقُّ، الإِلَهُ الْحَيُّ وَالْمَلِكُ السَّرْمَدِيُّ. تَرْتَعِدُ الأَرْضُ أَمَامَ غَضَبِهِ وَلا تَتَحَمَّلُ الأُمَمُ فَرْطَ سُخْطِهِ. | ١٠ 10 |
लेकिन ख़ुदावन्द सच्चा ख़ुदा है, वह ज़िन्दा ख़ुदा और हमेशा का बादशाह है; उसके क़हर से ज़मीन थरथराती है और क़ौमों में उसके क़हर की ताब नहीं।
«وَهَذَا مَا تَقُولُونَهُ لَهُمْ: إِنَّ الآلِهَةَ الَّتِي لَمْ تَصْنَعِ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ يَجِبُ أَنْ تُسْتَأْصَلَ مِنَ الأَرْضِ وَمِنْ تَحْتِ السَّمَاءِ». | ١١ 11 |
तुम उनसे यूँ कहना कि “यह मा'बूद जिन्होंने आसमान और ज़मीन को नहीं बनाया, ज़मीन पर से और आसमान के नीचे से हलाक हो जाएँगे।”
فَالرَّبُّ هُوَ الَّذِي صَنَعَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ بِقُدْرَتِهِ، وَأَسَّسَ الدُّنْيَا بِحِكْمَتِهِ وَمَدَّ السَّمَاوَاتِ بِفِطْنَتِهِ. | ١٢ 12 |
उसी ने अपनी क़ुदरत से ज़मीन को बनाया, उसी ने अपनी हिकमत से जहान को क़ाईम किया और अपनी 'अक़्ल से आसमान को तान दिया है।
مَا إِنْ يَنْطِقُ بِصَوْتِهِ حَتَّى تَتَجَمَّعَ غِمَارُ الْمِيَاهِ فِي السَّمَاوَاتِ، وَتَصْعَدَ السُّحُبُ مِنْ أَقَاصِي الأَرْضِ. يَجْعَلُ لِلْمَطَرِ بُرُوقاً، وَيُطْلِقُ الرِّيحَ مِنْ خَزَائِنِهِ. | ١٣ 13 |
उसकी आवाज़ से आसमान में पानी की बहुतायत होती है, और वह ज़मीन की इन्तिहा से बुख़ारात उठाता है। वह बारिश के लिए बिजली चमकाता है और अपने ख़ज़ानों से हवा चलाता है।
كُلُّ إِنْسَانٍ خَامِلٌ وَعَدِيمُ الْمَعْرِفَةِ، وَكُلُّ صَائِغٍ أَخْزَاهُ تِمْثَالُهُ لأَنَّ صَنَمَهُ الْمَسْبُوكَ كَاذِبٌ وَلا حَيَاةَ فِيهِ. | ١٤ 14 |
हर आदमी हैवान ख़सलत और बे — 'इल्म हो गया है; हर एक सुनार अपनी खोदी हुई मूरत से रुस्वा है क्यूँकि उसकी ढाली हुई मूरत बेकार है, उनमें दम नहीं।
جَمِيعُ الأَصْنَامِ بَاطِلَةٌ، صَنْعَةُ ضَلالٍ، وَفِي زَمَنِ عِقَابِهَا تَبِيدُ. | ١٥ 15 |
वह बेकार, फ़े'ल — ए — फ़रेब हैं, सज़ा के वक़्त बर्बाद हो जाएँगी।
أَمَّا نَصِيبُ يَعْقُوبَ فَلَيْسَ مِثْلَ هَذِهِ الأَوْثَانِ، بَلْ هُوَ جَابِلُ كُلِّ الأَشْيَاءِ، وَشَعْبُ إِسْرَائِيلَ هُوَ شَعْبُ مِيرَاثِهِ، وَاسْمُهُ الرَّبُّ الْقَدِيرُ. | ١٦ 16 |
या'क़ूब का हिस्सा उनकी तरह नहीं, क्यूँकि वह सब चीज़ों का ख़ालिक़ है और इस्राईल उसकी मीरास का 'असा है; रब्बउल — अफ़वाज उसका नाम है।
اجْمَعِي مِنَ الأَرْضِ حِزَمَكِ أَيَّتُهَا الْمُقِيمَةُ تَحْتَ الْحِصَارِ. | ١٧ 17 |
ऐ घिराव में रहने वाली, ज़मीन पर से अपनी गठरी उठा ले!
لأَنَّ هَذَا مَا يُعْلِنُهُ الرَّبُّ: «هَا أَنَا أَقْذِفُ بِمِقْلاعٍ سُكَّانَ الأَرْضِ فِي هَذِهِ الْمَرَّةِ، وَأُعَرِّضُهُمْ لِلضِّيقِ حَتَّى يَعْرِفُوا مُعَانَاتَهُ». | ١٨ 18 |
क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: “देख, मैं इस मुल्क के बाशिन्दों को अब की बार जैसे फ़लाख़न में रख कर फेंक दूँगा, और उनको ऐसा तंग करूँगा कि जान लें।”
وَيْلٌ لِي مِنْ أَجْلِ انْسِحَاقِي، فَجُرْحِي لَا شِفَاءَ مِنْهُ، وَلَكِنِّي قُلْتُ: «حَقّاً هَذِهِ بَلِيَّةٌ وَعَلَيَّ أَنْ أَتَحَمَّلَهَا». | ١٩ 19 |
हाय मेरी ख़स्तगी! मेरा ज़ख़्म दर्दनाक है और मैंने समझ लिया, यक़ीनन मुझे यह दुख बरदाश्त करना है।
قَدْ تَهَدَّمَ خِبَائِي وَتَقَطَّعَتْ حِبَالِي، وَهَجَرَنِي أَبْنَائِي وَلَمْ يَعُدْ لَهُمْ وُجُودٌ. لَيْسَ مَنْ يُقِيمُ خِبَائِي ثَانِيَةً وَيَبْسُطُ سُجُوفِي. | ٢٠ 20 |
मेरा ख़ेमा बर्बाद किया गया, और मेरी सब तनाबें तोड़ दी गईं, मेरे बच्चे मेरे पास से चले गए, और वह हैं नहीं, अब कोई न रहा जो मेरा ख़ेमा खड़ा करे और मेरे पर्दे लगाए।
فَرُعَاةُ شَعْبِي بُلَدَاءُ لَمْ يَلْتَمِسُوا الرَّبَّ، لِذَلِكَ لَمْ يُفْلِحُوا وَتَشَتَّتَتْ جَمِيعُ رَعِيَّتِهِمْ. | ٢١ 21 |
क्यूँकि चरवाहे हैवान बन गए और ख़ुदावन्द के तालिब न हुए, इसलिए वह कामयाब न हुए और उनके सब गल्ले तितर — बितर हो गए।
اسْمَعُوا، هَا أَخْبَارٌ تَتَوَاتَرُ عَنْ جَيْشٍ عَظِيمٍ مُقْبِلٍ مِنَ الشِّمَالِ لِيُحَوِّلَ مُدُنَ يَهُوذَا إِلَى خَرَائِبَ وَمَأْوَى لِبَنَاتِ آوَى. | ٢٢ 22 |
देख, उत्तर के मुल्क से बड़े ग़ौग़ा और हंगामे की आवाज़ आती है ताकि यहूदाह के शहरों को उजाड़ कर गीदड़ों का घर बनाए।
أَدْرَكْتُ يَا رَبُّ أَنَّ الإِنْسَانَ لَا يَمْلِكُ زِمَامَ طَرِيقِهِ، وَلَيْسَ فِي وُسْعِ الإِنْسَانِ أَنْ يُوَجِّهَ خُطَى نَفْسِهِ. | ٢٣ 23 |
ऐ ख़ुदावन्द, मैं जानता हूँ कि इंसान की राह उसके इख़्तियार में नहीं; इंसान अपने चाल चलन में अपने क़दमों की रहनुमाई नहीं कर सकता।
قَوِّمْنِي يَا رَبُّ بِحَقِّكَ لَا بِغَضَبِكَ، لِئَلَّا تُلاشِيَنِي. | ٢٤ 24 |
ऐ ख़ुदावन्द, मुझे हिदायत कर लेकिन अन्दाज़े से; अपने क़हर से नहीं, न हो कि तू मुझे हलाक कर दे'।
لِيَنْصَبَّ سُخْطُكَ عَلَى الأُمَمِ الَّتِي لَمْ تَعْرِفْكَ، وَعَلَى الشُّعُوبِ الَّتِي لَا تَدْعُو بِاسْمِكَ، لأَنَّهُمْ قَدِ افْتَرَسُوا ذُرِّيَّةَ يَعْقُوبَ وَالْتَهَمُوهَا وَخَرَّبُوا مَسْكَنَهَا. | ٢٥ 25 |
ऐ ख़ुदावन्द, उन क़ौमों पर जो तुझे नहीं जानतीं, और उन घरानों पर जो तेरा नाम नहीं लेते, अपना क़हर उँडेल दे; क्यूँकि वह या'क़ूब को खा गए, वह उसे निगल गए और चट कर गए, और उसके घर को उजाड़ दिया।