< إشَعْياء 58 >
نَادِ بِأَعْلَى صَوْتِكَ، لَا تَصْمُتْ. اهْتُفْ بِصَوْتِكَ كَنَفِيرِ بُوقٍ، وَأَخْبِرْ شَعْبِي بِإِثْمِهِمْ، وَذُرِّيَّةَ يَعْقُوبَ بِخَطَايَاهُمْ. | ١ 1 |
“ऊंचे स्वर में नारा लगाओ बिना किसी रोक के. नरसिंगों का शब्द ऊंचा करो, मेरी प्रजा को उनकी गलती, तथा याकोब वंश पर उसके पाप की घोषणा करो.
وَمَعَ ذَلِكَ، فَإِنَّهُمْ يَلْتَمِسُونَنِي يَوْمِيًّا، وَيُسَرُّونَ بِمَعْرِفَةِ طُرُقِي وَكَأَنَّهُمْ أُمَّةٌ تَصْنَعُ بِرّاً، وَكَأَنَّهُمْ لَمْ يُهْمِلُوا أَحْكَامَ إِلَهِهِمْ، يَطْلُبُونَ مِنِّي أَحْكَامَ بِرٍّ، وَيَغْتَبِطُونَ بِالتَّقَرُّبِ مِنَ اللهِ. | ٢ 2 |
यह सब होने पर भी वे दिन-प्रतिदिन मेरे पास आते; तथा प्रसन्नतापूर्वक मेरी आज्ञाओं को मानते हैं. मानो वे धर्मी हैं, जिसने अपने परमेश्वर के नियम को नहीं टाला. वे मुझसे धर्म के बारे में पूछते और परमेश्वर के पास आने की इच्छा रखते हैं.
وَيَسْأَلُونَ: مَا بَالُنَا صُمْنَا وَأَنْتَ لَمْ تُلاحِظْ، وَتَذَلَّلْنَا وَلَمْ تَحْفِلْ بِذَلِكَ؟ إِنَّكُمْ فِي يَوْمِ صَوْمِكُمْ تَلْتَمِسُونَ مَسَرَّةَ أَنْفُسِكُمْ وَتُسَخِّرُونَ جَمِيعَ عُمَّالِكُمْ. | ٣ 3 |
‘ऐसा क्यों हुआ कि हमने उपवास किया, किंतु हमारी ओर आपका ध्यान ही नहीं गया? हमने दुःख उठाया, किंतु आपको दिखाई ही नहीं दिया?’ “इसका कारण यह है कि जब तुम उपवास करते हो, तब तुम अपनी अभिलाषाओं पर नियंत्रण नहीं रखते, तुम उस समय अपने सेवकों को कष्ट देते हो.
وَهَا أَنْتُمْ تَصُومُونَ لِكَيْ تَتَخَاصَمُوا وَتَتَشَاجَرُوا فَقَطْ، وَتَتَضَارَبُوا بِكَلِمَاتٍ أَثِيمَةٍ. إِنَّ مِثْلَ صَوْمِكُمُ الْيَوْمَ لَا يَجْعَلُ أَصْوَاتَكُمْ مَسْمُوعَةً فِي الْعَلاءِ. | ٤ 4 |
तुम यह समझ लो कि तुम उपवास भी करते हो तथा इसके साथ साथ वाद-विवाद, तथा कलह भी करते हो और लड़ते झगड़ते हो. उस प्रकार के उपवास से यह संभव ही नहीं कि तुम्हारी पुकार सुनी जाएगी.
أَيَكُونُ الصَّوْمُ الَّذِي أَخْتَارُهُ فِي إِذْلالِ الْمَرْءِ نَفْسَهُ يَوْماً، أَوْ فِي إِحْنَاءِ رَأْسِهِ كَالْقَصَبَةِ، أَوِ افْتِرَاشِ الْمِسْحِ وَالرَّمَادِ؟ أَتَدْعُو هَذَا صَوْماً مَقْبُولاً لَدَى الرَّبِّ؟ | ٥ 5 |
क्या ऐसा होता है उपवास, जो कोई स्वयं को दीन बनाए? या कोई सिर झुकाए या टाट एवं राख फैलाकर बैठे? क्या इसे ही तुम उपवास कहोगे, क्या ऐसा उपवास याहवेह ग्रहण करेंगे?
أَلَيْسَ الصَّوْمُ الَّذِي أَخْتَارُهُ يَكُونُ فِي فَكِّ قُيُودِ الشَّرِّ، وَحَلِّ عُقَدِ النِّيرِ، وَإِطْلاقِ سَرَاحِ الْمُتَضَايِقِينَ، وَتَحْطِيمِ كُلِّ نِيرٍ؟ | ٦ 6 |
“क्या यही वह उपवास नहीं, जो मुझे खुशी देता है: वह अंधेर सहने के बंधन को तोड़ दे, जूए उतार फेंके और उनको छुड़ा लिया जाए?
أَلا يَكُونُ فِي مُشَاطَرَةِ خُبْزِكَ مَعَ الْجَائِعِ، وَإِيْوَاءِ الْفَقِيرِ الْمُتَشَرِّدِ فِي بَيْتِكَ، وَكُسْوَةِ الْعُرْيَانِ الَّذِي تَلْتَقِيهِ، وَعَدَمِ التَّغَاضِي عَنْ قَرِيبِكَ الْبَائِسِ؟ | ٧ 7 |
क्या इसका मतलब यह नहीं कि तुम भूखों को अपना भोजन बांटा करो तथा अनाथों को अपने घर में लाओ— जब किसी को वस्त्रों के बिना देखो, तो उन्हें वस्त्र दो, स्वयं को अपने सगे संबंधियों से दूर न रखो?
عِنْدَئِذٍ يَشِعُّ نُورُكَ كَالصَّبَاحِ، وَتُزْهِرُ عَافِيَتُكَ سَرِيعاً، وَيَتَقَدَّمُكَ بِرُّكَ، وَيَحْرُسُ مَجْدُ الرَّبِّ مُؤَخَّرَةَ سَاقَتِكَ. | ٨ 8 |
जब तुम यह सब करने लगोगे तब तुम्हारा प्रकाश चमकेगा, और तू जल्दी ठीक हो जायेगा; और तेरा धर्म तेरे आगे-आगे चलेगा, तथा याहवेह का तेज तेरे पीछे तुम्हारी रक्षा करेगा.
عِنْدَئِذٍ تَدْعُو فَيَسْتَجِيبُ الرَّبُّ. تَسْتَغِيثُ فَيَقُولُ هَا أَنَا. إِنْ أَزَلْتَ مِنْ وَسَطِ بَيْتِكَ النِّيرَ، وَالإِيمَاءَ بِالأُصْبُعِ احْتِقَاراً، وَالنُّطْقَ بِالشَّرِّ، | ٩ 9 |
उस समय जब तुम याहवेह की दोहाई दोगे, तो वह उसका उत्तर देंगे; तुम पुकारोगे, तब वह कहेंगे: मैं यहां हूं. “यदि तुम अपने बीच से दुःख का जूआ हटा दोगे, जब उंगली से इशारा करेंगे तब दुष्ट बातें करना छोड़ देंगे,
إِن بَذَلْتَ نَفْسَكَ لِلْجَائِعِ، وَأَشْبَعْتَ حَاجَةَ الذَّلِيلِ، فَإِنَّ نُورَكَ يُشْرِقُ فِي الظُّلْمَةِ، وَلَيْلَكَ الدَّامِسَ يُصْبِحُ كَالظُّهْرِ، | ١٠ 10 |
जब तुम भूखे की सहायता करोगे तथा दुखियों की मदद करोगे, तब अंधकार में तेरा प्रकाश चमकेगा, तथा घोर अंधकार दोपहर समान उजियाला देगा.
وَيَهْدِيكَ الرَّبُّ دَائِماً وَيَسُدُّ حَاجَتَكَ حَتَّى فِي زَمَنِ الْقَحْطِ وَالأَرْضِ الْمُجْدِبَةِ، فَيُقَوِّي عِظَامَكَ فَتُصْبِحُ كَرَوْضَةٍ مَرْوِيَّةٍ، وَكَجَدْوَلِ مَاءٍ لَا يَنْقَطِعُ، | ١١ 11 |
याहवेह तुझे लगातार लिये चलेगा; और सूखे में तुझे तृप्त करेगा वह तुम्हारी हड्डियों में बल देगा. तुम सींची हुई बारी के समान हो जाओगे, तथा उस सोते का जल कभी न सूखेगा.
وَيَبْنِي أَوْلادُكَ الْخَرَائِبَ الْقَدِيمَةَ وَيُقِيمُونَ أَسَاسَاتِهَا، وَيُسَمُّونَ بَعْدَ ذَلِكَ الشَّعْبَ الَّذِي بَنَى أَسْوَارَهُ وَرَمَّمَ أَحْيَاءَ مُدُنِهِ. | ١٢ 12 |
खंडहर को तेरे वंश के लिये फिर से बसायेंगे और पीढ़ियों से पड़ी हुई नींव पर घर बनाएगा; टूटे हुए बाड़े और सड़क को, ठीक करनेवाला कहलायेगा.
إِنْ كَفَفْتَ قَدَمَكَ عَنْ نَقْضِ يَوْمِ السَّبْتِ، وَعَنِ السَّعْيِ وَرَاءَ مَرَامِكَ فِي يَوْمِي الْمُقَدَّسِ، وَدَعَوْتَ يَوْمَ السَّبْتِ يَوْمَ مَسَرَّةٍ لِلرَّبِّ، وَجَعَلْتَهُ يَوْماً مُكَرَّماً لِلهِ. إِنْ أَكْرَمْتَهُ وَلَمْ تَسْلُكْ حَسَبَ أَهْوَائِكَ أَوْ تَلْتَمِسْ قَضَاءَ مَصَالِحِكَ، أَوْ تُنْفِقْهُ فِي لَغْوِ الْكَلامِ، | ١٣ 13 |
“यदि तुम शब्बाथ दिन को अशुद्ध न करोगे, अर्थात् मेरे पवित्र दिन के हित में अपनी इच्छा को छोड़ देते हो, शब्बाथ दिन को आनंद का दिन मानकर और याहवेह के पवित्र दिन का सम्मान करते हो, अपनी इच्छाओं को छोड़कर अपनी बातें न बोले,
عِنْدَئِذٍ تَبْتَهِجُ بِالرَّبِّ، وَأَجْعَلُكَ تَمْتَطِي مُرْتَفَعَاتِ الأَرْضِ، وَأُنْعِمُ عَلَيْكَ بِمِيرَاثِ يَعْقُوبَ أَبِيكَ، لأَنَّ فَمَ الرَّبِّ قَدْ تَكَلَّمَ. | ١٤ 14 |
तू याहवेह के कारण आनंदित होगा, मैं तुम्हें पृथ्वी की ऊंचाइयों तक ले जाऊंगा और तुम्हारे पिता याकोब के भाग की उपज से खायेगा.” क्योंकि यह याहवेह के मुंह से निकला वचन है.