< إشَعْياء 50 >
هَذَا مَا يَقُولُهُ الرَّبُّ: أَيْنَ كِتَابُ طَلاقِ أُمِّكُمُ الَّذِي طَلَّقْتُهَا بِهِ؟ لِمَنْ مِنْ دَائِنِيَّ بِعْتُكُمْ؟ إِنَّمَا مِنْ أَجْلِ ذُنُوبِكُمْ قَدْ تَمَّ بَيْعُكُمْ، وَمِنْ جَرَّاءِ خَطَايَاكُمْ قَدْ طُلِّقَتْ أُمُّكُمْ. | ١ 1 |
ख़ुदावन्दयूँ फ़रमाता है कि तेरी माँ का तलाक़ नामा जिसे लिख कर मैंने उसे छोड़ दिया कहाँ है? या अपने क़र्ज़ ख़्वाहों में से किसके हाथ मैंने तुम को बेचा? देखो, तुम अपनी शरारतों की वजह से बिक गए, और तुम्हारी ख़ताओं के ज़रिए' तुम्हारी माँ को तलाक़ दी गई।
فَمَالِي إِذاً حِينَ أَتَيْتُ لَمْ أَجِدْ أَحَداً؟ نَادَيْتُ وَلا مِنْ مُجِيبٍ؟ هَلْ قَصَرَتْ يَدِي عَنِ الْفِدَاءِ؟ أَمْ لَمْ تَعُدْ لِي طَاقَةٌ عَلَى الإِنْقَاذِ؟ هَا أَنَا بِزَجْرَتِي أُجَفِّفُ الْبَحْرَ وَأُحَوِّلُ الأَنْهَارَ إِلَى صَحْرَاءَ يُنْتِنُ سَمَكُهَا لِخُلُوِّهَا مِنَ الْمَاءِ، فَيَمُوتُ مِنَ الْعَطَشِ. | ٢ 2 |
फ़िर किस लिए, जब मैं आया तो कोई आदमी न था? और जब मैंने पुकारा, तो कोई जवाब देनेवाला न हुआ? क्या मेरा हाथ ऐसा कोताह हो गया है कि छुड़ा नहीं सकता? और क्या मुझ में नजात देने की क़ुदरत नहीं? देखो, मैं अपनी एक धमकी से समन्दर को सुखा देता हूँ, और नहरों को सहरा कर डालता हूँ, उनमें की मछलियाँ पानी के न होने से बदबू हो जाती हैं और प्यास से मर जाती हैं।
أُغَلِّفُ السَّمَاوَاتِ بالظُّلْمَةِ وَأَجْعَلُ الْمِسْحَ غِطَاءً لَهَا. | ٣ 3 |
मैं आसमान को सियाह पोश करता हूँ और उसको टाट उढाता हूँ
السَّيِّدُ الرَّبُّ وَهَبَنِي مَنْطِقَ الْعُلَمَاءِ لأَعْرِفَ كَيْفَ أُغِيثُ الْمُتْعَبَ بِكَلِمَةٍ، يُنَبِّهُنِي فِي كُلِّ صَبَاحٍ، وَيُرْهِفُ أُذُنِي حَتَّى أَسْمَعَ بِانْتِبَاهِ الْمُتَعَلِّمِينَ. | ٤ 4 |
ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मुझ को शागिर्द की ज़बान बख़्शी, ताकि मैं जानूँ कि कलाम के वसीले से किस तरह थके माँदे की मदद करूँ। वह मुझे हर सुबह जगाता है, और मेरा कान लगाता है ताकि शागिदों की तरह सुनूँ।
قَدْ فَتَحَ السَّيِّدُ الرَّبُّ أُذُنِي فَلَمْ أُعَانِدْ أَوْ أَتَرَاجَعْ إِلَى الْوَرَاءِ | ٥ 5 |
ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मेरे कान खोल दिए, और मैं बाग़ी — ओ — बरगश्ता न हुआ।
بَذَلْتُ ظَهْرِي لِلضَّارِبِينَ، وَخَدَّيَّ لِلنَّاتِفِينَ، وَلَمْ أَحْجُبْ وَجْهِي عَنِ الإِهَانَةِ وَالْبَصْقِ. | ٦ 6 |
मैंने अपनी पीठ पीटने वालों के और अपनी दाढ़ी नोचने वालों के हवाले की, मैंने अपना मुँह रुस्वाई और थूक से नहीं छिपाया।
لأَنَّ السَّيِّدَ الرَّبَّ يُغِيثُنِي فَلا أَخْزَى، لِذَلِكَ جَعَلْتُ وَجْهِي كَالصَّوَّانِ، لأَنِّي عَالِمٌ أَنَّنِي لَنْ أَخْزَى. | ٧ 7 |
लेकिन ख़ुदावन्द ख़ुदा मेरी हिमायत करेगा, और इसलिए मैं शर्मिन्दा न हूँगा; और इसीलिए मैंने अपना मुँह संग — ए — ख़ारा की तरह बनाया और मुझे यक़ीन है कि मैं शर्मसार न हूँगा।
إِنَّ مُنْصِفِي قَرِيبٌ، فَمَنْ إِذاً يُخَاصِمُنِي؟ فَلْنَمْثُلْ مَعاً. مَنْ هُوَ خَصْمِي؟ فَلْيَتَقَدَّمْ مِنِّي. | ٨ 8 |
मुझे रास्तबाज़ ठहरानेवाला नज़दीक है। कौन मुझ से झगड़ा करेगा? आओ, हम आमने — सामने खड़े हों, मेरा मुख़ालिफ़ कौन है? वह मेरे पास आए।
انْظُرُوا، هَا السَّيِّدُ الرَّبُّ يُغِيثُنِي فَمَنْ يَسْتَذْنِبُنِي؟ هَا هُمْ جَمِيعاً كَثَوْبٍ يَبْلَوْنَ وَيَأْكُلُهُمُ الْعُثُّ. | ٩ 9 |
देखो, ख़ुदावन्द ख़ुदा मेरी हिमायत करेगा; कौन मुझे मुजरिम ठहराएगा? देख, वह सब कपड़े की तरह पुराने हो जाएँगे, उनको कीड़े खा जाएँगे।
مَنْ مِنْكُمْ يَتَّقِي الرَّبَّ وَيُطِيعُ صَوْتَ خَادِمِهِ؟ مَنِ الَّذِي يَسْلُكُ فِي الظُّلْمَةِ مِنْ غَيْرِ نُورٍ؟ فَلْيَتَّكِلْ عَلَى اسْمِ الرَّبِّ وَيَعْتَمِدْ عَلَى إِلَهِهِ. | ١٠ 10 |
तुम्हारे बीच कौन है जो ख़ुदावन्द से डरता और उसके ख़ादिम की बातें सुनता है? जो अन्धेरे में चलता और रोशनी नहीं पाता, वह ख़ुदावन्द के नाम पर तवक्कुल करे और अपने ख़ुदा पर भरोसा रख्खे।
انْظُرُوا، يَا جَمِيعَ مُوْقِدِي النَّارِ، الَّذِينَ يُضِيئُونَ لأَنْفُسِهِمْ مَشَاعِلَ، سِيرُوا فِي نُورِ نِيرَانِكُمْ، وَعَلَى وَهْجِ مَشَاعِلِكُمُ الَّتِي أَوْقَدْتُمُوهَا، وَهَذَا مَا تَنَالُونَهُ مِنْ يَدِي؛ تَضْطَجِعُونَ وَأَنْتُمْ تَتَضَوَّرُونَ مِنَ الأَلَمِ. | ١١ 11 |
देखो, तुम सब जो आग सुलगाते हो और अपने आपको अँगारों से घेर लेते हो, अपनी ही आग के शोलों में और अपने सुलगाए हुए अंगारों में चलो। तुम मेरे हाथ से यही पाओगे, तुम 'ऐज़ाब में लेट रहोगे।