< إشَعْياء 44 >
أَمَّا الآنَ فَاسْمَعْ يَا يَعْقُوبُ عَبْدِي، وَيَا إِسْرَائِيلُ الَّذِي اصْطَفَيْتُهُ. | ١ 1 |
“परंतु अब हे मेरे दास याकोब, हे मेरे चुने हुए इस्राएल, सुन लो.
أَنَا خَالِقُكُمْ مِنَ الرَّحِمِ وَمُعِينُكُمْ، لَا تَخَفْ يَا عَبْدِي يَعْقُوبُ وَلا تَجْزَعِي يَا أُورُشَلِيمُ الَّتِي اخْتَرْتُهَا. | ٢ 2 |
याहवेह, जो तुम्हारे सहायक हैं, जिन्होंने गर्भ में ही तुम्हारी रचना कर दी थी, वे यों कहते हैं: हे मेरे दास याकोब, हे मेरे चुने हुए यशुरून मत डर, तुम भी, जो मेरे मनोनीत हो.
لأَنِّي سَأَسْكُبُ مَاءً عَلَى الأَرْضِ الْظَّمْأَى، وَأُجْرِي السُّيُولَ عَلَى التُّرْبَةِ الْيَابِسَةِ، وَأَفِيضُ بِرُوحِي عَلَى ذُرِّيَّتِكَ، وَبَرَكَاتِي عَلَى نَسْلِكَ. | ٣ 3 |
क्योंकि मैं प्यासी भूमि पर जल, तथा सूखी भूमि पर नदियां बहाऊंगा; मैं अपना आत्मा तथा अपनी आशीषें, तुम्हारी संतान पर उंडेल दूंगा.
فَيَنْبُتُونَ بَيْنَ الْعُشْبِ مُزْهِرِينَ كَالْصَّفْصَافِ عِنْدَ مَجَارِي الْمِيَاهِ. | ٤ 4 |
वे घास के बीच अंकुरित होने लगेंगे, और बहती जलधारा के किनारे लगाए गए वृक्ष के समान होंगे.
وَيَقُولُونَ بِمِلْءِ أَفْوَاهِهِمْ: «أَنَا عَبْدُ الرَّبِّ. أَنَا ابْنُ يَعْقُوبَ». وَيَكْتُبُ عَلَى يَدِهِ اسْمَ اللهِ، وَبِاسْمِ إِسْرَائِيلَ يُلَقَّبُ. | ٥ 5 |
कोई कहेगा, ‘मैं तो याहवेह का हूं’; और याकोब के नाम की दोहाई देगा; और कोई अपनी हथेली पर, ‘मैं याहवेह का’ लिख लेगा, वह इस्राएल का नाम अपना लेगा.
هَذَا مَا يَقُولُهُ الرَّبُّ الْقَدِيرُ مَلِكُ إِسْرَائِيلَ وَفَادِيهِ: «أَنَا هُوَ الأَوَّلُ وَالآخِرُ، وَلا إِلَهَ غَيْرِي. | ٦ 6 |
“वह जो याहवेह हैं, सर्वशक्तिमान याहवेह इस्राएल के राजा, अर्थात् उसको छुड़ाने वाला है: वह यों कहता है, मैं ही पहला हूं और मैं ही अंत तक रहूंगा; मेरे सिवाय कोई और परमेश्वर है ही नहीं.
مَنْ مِثْلِي فَلْيُخْبِرْ بِذَلِكِ، وَيُعْلِنْهُ وَيَعْرِضْ أَمَامِي أَحْدَاثَ الأَيَّامِ الْغَابِرَةِ مُنْذُ أَنْ أَنْشَأْتُ شَعْبِي الْقَدِيمَ، وَمَا سَيَجِيءُ بِهِ الْغَدُ، وَلْيَكْشِفْ عَنْ حَوَادِثِ الزَّمَنِ الْمُقْبِلِ. | ٧ 7 |
मेरे समान है कौन? जब से मैंने मनुष्यों को ठहराया तब से किसने मेरे समान प्रचार किया? या वह बताये, मेरी बातों को पहले ही से प्रकट करें.
لَا تَجْزَعُوا وَلا تَفْزَعُوا، أَلَمْ أُخْبِرْكُمْ بِهَذَا وَأُنْبِئْكُمْ بِهِ مُنْذُ زَمَنٍ بَعِيدٍ؟ أَنْتُمْ شُهُودِي. هَلْ هُنَاكَ إِلْهٌ غَيْرِي؟ هَلْ هُنَاكَ صَخْرَةٌ أُخْرَى لَا عِلْمَ لِي بِوُجُودِهَا؟» | ٨ 8 |
तुम डरो मत, क्या मैंने बहुत पहले बता न दिया था. क्या मैंने उसकी घोषणा न कर दी थी? याद रखो, तुम मेरे गवाह हो. क्या मेरे सिवाय कोई और परमेश्वर है? या क्या कोई और चट्टान है? नहीं, मैं किसी और को नहीं जानता.”
كُلُّ صَانِعِي التَّمَاثِيلِ لَا جَدْوَى مِنْهُمْ، وَمُشْتَهَيَاتُهُمْ لَا طَائِلَ مِنْهَا. وَهُمْ شُهُودٌ عَلَيْهَا أَنَّهَا لَا تُبْصِرُ وَلا تَعْلَمُ لِكَيْ يَخْزَوْا. | ٩ 9 |
वे सभी जो मूर्तियां बनाते हैं वे व्यर्थ हैं, उनसे कोई लाभ नहीं. उनके साक्षी न कुछ देखते न कुछ जानते हैं; उन्हें लज्जित होना पड़ेगा.
مَنْ يُصَوِّرُ صَنَماً أَوْ يَسْبِكُ تِمْثَالاً لَا تُرْتَجَى مِنْهُ فَائِدَةٌ؟ | ١٠ 10 |
कौन है ऐसा निर्बुद्धि जिसने ऐसे देवता की रचना की या ऐसी मूर्ति बनाई, जो निर्जीव और निष्फल है?
هَذَا وَأَمْثَالُهُ يَلْحَقُ بِهِمِ الْعَارُ لأَنَّ الصُّنَّاعَ لَيْسُوا سِوَى بَشَرٍ. فَلْيَجْتَمِعُوا إِذاً وَيَمْثُلُوا أَمَامِي، فَيَنْتَابَهُمْ رُعْبٌ وَيَخْزَوْا مَعاً. | ١١ 11 |
देख उसके सभी साथियों को लज्जा का सामना करना पड़ेगा; क्योंकि शिल्पकार स्वयं मनुष्य है. अच्छा होगा कि वे सभी एक साथ खड़े हो जाएं तो डर जाएंगे; वे सभी एक साथ लज्जित किए जाएं.
يَصْنَعُ الْحَدَّادُ فَأْساً بَعْدَ أَنْ يُقَلِّبَهَا فِي جَمَرَاتِ الْكُورِ وَيَطْرُقَهَا، وَيُشَكِّلَهَا بِذِرَاعِهِ الْقَوِيَّةِ. لَا يَعْبَأُ بِالْجُوعِ وَلا بِنُضُوبِ قُوَّتِهِ، وَلا بِالْعَطَشِ وَالإِعْيَاءِ. | ١٢ 12 |
लोहार लोहे को अंगारों से गर्म करके हथौड़ों से मारकर कोई रूप देता है; अपने हाथों के बल से उस मूर्ति को बनाता है, फिर वह भूखा हो जाता है, उसकी ताकत कम हो जाती है; वह थक जाता है, वह पानी नहीं पीता और कमजोर होने लगता है.
ثُمَّ يَأْتِي نَجَّارٌ فَيَتَنَاوَلُ قِطْعَةَ خَشَبٍ وَيَمُدُّ عَلَيْهَا الْخَيْطَ وَيُعَلِّمُهَا وَيُنَعِّمُهَا وَيَحْفُرُ عَلَيْهَا بِالبِرْكَارِ صُورَةَ إِنْسَانٍ سَاحِرِ الْجَمَالِ لِيَنْصُبَهُ صَنَماً فِي مَنْزِلٍ. | ١٣ 13 |
एक और शिल्पकार वह काठ को रूप देता है वह माप का प्रयोग करके काठ पर निशान लगाता है; वह काठ पर रन्दे चलाता है तथा परकार से रेखा खींचता है, तथा उसे एक सुंदर व्यक्ति का रूप देता है.
يَقْطَعُ شَجَرَةَ أَرْزٍ أَوْ يَخْتَارُ سِنْدِيَاناً أَوْ بَلُّوطاً. يَتْرُكُهَا تَنْمُو بَيْنَ أَشْجَارِ الْغَابَةِ. أَوْ يَزْرَعُ شَجَرَةَ صَنُوبَرٍ فَيُنْمِيهَا الْمَطَرُ. | ١٤ 14 |
वह देवदार वृक्षों को अपने लिए काटता है, वह जंगलों से सनौवर तथा बांज को भी बढ़ाता है. वह देवदार पौधा उगाता है, और बारिश उसे बढ़ाती है.
ثُمَّ تُصْبِحُ وَقُوداً لِنِيرَانِ النَّاسِ: يَأْخُذُ بَعْضاً مِنْهَا لِيُدْفِئَ نَفْسَهُ، أَوْ يُوْقِدَهُ لِيَخْبِزَ خُبْزَهُ، أَوْ يَنْحَتَ مِنْهُ إِلَهاً يَعْبُدُهُ، يَصْنَعُ مِنْهُ تِمْثَالاً يَخُرُّ أَمَامَهُ سَاجِداً. | ١٥ 15 |
फिर इसे मनुष्य आग जलाने के लिए काम में लेता है; आग से वह अपने लिए रोटी भी बनाता है, और उसी से वह अपने लिए एक देवता भी गढ़ लेता है. वह इसके काठ को गढ़ते हुए उसे मूर्ति का रूप देता है; और फिर इसी के समक्ष दंडवत भी करता है.
يُوْقِدُ نِصْفَهُ فِي النَّارِ وَعَلَى نِصْفِهِ الآخَرِ يَأْكُلُ لَحْماً، يَشْوِي شِوَاءً وَيَشْبَعُ، وَيُدْفِئُ نَفْسَهُ قَائِلاً: آهِ، أَنَا مُسْتَدْفِئٌ، وَأَرَى نَاراً. | ١٦ 16 |
इसका आधा तो जला देता है; जिस आधे पर उसने अपना भोजन बनाया, मांस को पकाता, जिससे उसकी भूख मिटाये. “इसी आग से उसने अपने लिए गर्मी भी पायी.”
وَيَصْنَعُ مَا تَبَقَّى مِنْهُ إِلَهاً، صَنَماً يَخُرُّ أَمَامَهُ سَاجِداً مُبْتَهِلاً إِلَيْهِ قَائِلاً: أَنْقِذْنِي. أَنْتَ إِلَهِي. | ١٧ 17 |
बचे हुए काठ से वह एक देवता का निर्माण कर लेता है, उस देवता की गढ़ी गई मूर्ति; वह इसी के समक्ष दंडवत करता है. और प्रार्थना करके कहता है, “मेरी रक्षा कीजिए! आप तो मेरे देवता हैं!”
إِنَّهُمْ لَا يَفْقَهُونَ وَلا يُدْرِكُونَ، إِذْ غُشِيَ عَلَى عُيُونِهِمْ فَلا يُبْصِرُونَ، وَأُغْلِقَ عَلَى قُلُوبِهِمْ فَلا يَفْهَمُونَ. | ١٨ 18 |
वे न तो कुछ जानते हैं और न ही कुछ समझते हैं; क्योंकि परमेश्वर ने उनकी आंखों को अंधा कर दिया है, तथा उनके हृदय से समझने की शक्ति छीन ली है.
لَيْسَ مِنْ مُتَأَمِّلٍ أَوْ ذِي مَعْرِفَةٍ أَوْ إِدْرَاكٍ يَقُولُ: قَدْ أَحْرَقْتُ نِصْفَ الشَّجْرَةِ بِالنَّارِ وَخَبَزْتُ خُبْزِي عَلَى جَمْرَاتِهَا، شَوَيْتُ لَحْماً عَلَيْهَا وَأَكَلْتُهُ. أَفَأَصْنَعُ مِنْ بَقِيَّتِهَا رِجْساً وَأَسْجُدُ أَمَامَ قِطْعَةِ خَشَبٍ؟ | ١٩ 19 |
उनमें से किसी को भी यह बात उदास नहीं करती, न कोई समझता है, “मैंने आधे वृक्ष को तो जला दिया है; उसी के कोयलों पर मैंने भोजन तैयार किया, अपना मांस को भूंजता, अब उसके बचे हुए से गलत काम किया.”
لَكَأَنَّهُ يَأْكُلُ الرَّمَادَ! يَجْرِي وَرَاءَ سَرَابٍ وَيعْجَزُ عَنْ إِنْقَاذِ نَفْسِهِ أَوْ الاعْتِرَافِ أَنَّ الصَّنَمَ الَّذِي يُمْسِكُهُ بِيَدِهِ هُوَ مَحْضُ ضَلالٍ! | ٢٠ 20 |
उसने तो राख को अपना भोजन बना लिया है; उसे एक ऐसे दिल ने बहका दिया है, जो स्वयं भटक चुका है; स्वयं को तो वह मुक्त कर नहीं सकता, “जो वस्तु मैंने अपने दाएं हाथ में पकड़ रखी है, क्या वह सच नहीं?”
اذْكُرْ هَذِهِ الأُمُورَ يَا يَعْقُوبُ، لأَنَّكَ أَنْتَ عَبْدِي يَا إِسْرَائِيلُ، قَدْ جَبَلْتُكَ فَأَنْتَ عَبْدِي، وَأَنَا لَا أَنْسَاكَ يَا إِسْرَائِيلُ. | ٢١ 21 |
“हे याकोब, हे इस्राएल, इन सब बातों को याद कर, क्योंकि तुम तो मेरे सेवक हो. मैंने तुम्हारी रचना की है; हे इस्राएल, यह हो नहीं सकता कि मैं तुम्हें भूल जाऊं.
قَدْ مَحَوْتُ كَغَيْمَةٍ عَابِرَةٍ ذُنُوبَكَ، وَكَسَحَابَةٍ خَطَايَاكَ. ارْجِعْ تَائِباً إِلَيَّ لأَنِّي قَدْ فَدَيْتُكَ. | ٢٢ 22 |
तुम्हारे अपराधों को मैंने मिटा दिया है जैसे आकाश से बादल, तथा तुम्हारे पापों को गहरे कोहरे के समान दूर कर दिया है. तुम मेरे पास आ जाओ, क्योंकि मैंने तुम्हें छुड़ा लिया है.”
تَرَنَّمِي أَيَّتُهَا السَّمَاوَاتُ لأَنَّ الرَّبَّ قَدْ أَنْجَزَ فِعْلَهُ. اهْتِفِي يَا أَعْمَاقَ الأَرْضِ، وَتَفَجَّرِي غِنَاءً يَا جِبَالُ وَيَا غَابَاتُ وَكُلُّ مَا فِيهَا مِنْ شَجَرٍ، لأَنَّ الرَّبَّ قَدِ افْتَدَى يَعْقُوبَ وَتَمَجَّدَ فِي إِسْرَائِيلَ. | ٢٣ 23 |
हे आकाश, आनंदित हो, क्योंकि याहवेह ने यह कर दिखाया है; हे अधोलोक के पाताल भी खुश हो. हे पहाड़ों, आनंद से गाओ, क्योंकि याहवेह ने याकोब को छुड़ा लिया है, तथा इस्राएल में उन्होंने अपनी महिमा प्रकट की है.
هَذَا مَا يَقُولُهُ الرَّبُّ فَادِيكَ وَجَابِلُكَ مِنَ الرَّحْمِ: «أَنَا هُوَ الرَّبُّ صَانِعُ كُلِّ الأَشْيَاءِ، الَّذِي نَشَرَ السَّمَاوَاتِ وَحْدَهُ، وَبَسَطَ الأَرْضَ بِنَفْسِهِ. مَنْ كَانَ مَعِي حِينَذَاكَ؟ | ٢٤ 24 |
“याहवेह तुम्हें उद्धार देनेवाले हैं, जिन्होंने गर्भ में ही तुम्हें रूप दिया था, वह यों कहता है: “मैं ही वह याहवेह हूं, सबको बनानेवाला, मैंने आकाश को बनाया, तथा मैंने ही पृथ्वी को अपनी शक्ति से फैलाया,
يَكْشِفُ نِفَاقَ الْمُخَادِعِينَ، وَيَفْضَحُ حُمْقَ الْعَرَّافِينَ، وَيُبْطِلُ مَشُورَةَ الْحُكَمَاءِ تَسْفِيهاً لِعِلْمِهِمْ. | ٢٥ 25 |
मैं झूठे लोगों की बात को व्यर्थ कर देता हूं और भविष्य कहने वालों को खोखला कर देता हूं, बुद्धिमान को पीछे हटा देता और पंडितों को मूर्ख बनाता हूं.
أَنَا هُوَ مُتَمِّمُ كَلامِ عَبْدِهِ، وَمُحَقِّقُ مَشُورَةِ رُسُلِهِ، الْقَائِلُ عَنْ أُورُشَلِيمَ: لابُدَّ أَنْ تَعُودَ عَامِرَةً وَعَنْ مُدُنِ يَهُوذَا: لابُدَّ أَنْ تُبْنَى، وَأَنَا أُعِيدُ تَشْيِيدَ خِرَبِهَا. | ٢٦ 26 |
इस प्रकार याहवेह अपने दास के वचन को पूरा करता हैं, तथा अपने दूतों की युक्ति को सफल करता है वह मैं ही था, “जिसने येरूशलेम के विषय में यह कहा था कि, ‘येरूशलेम नगर फिर बसाया जाएगा,’ तथा यहूदिया के नगरों के लिए, ‘उनका निर्माण फिर किया जाएगा,’ मैं उनके खंडहरों को ठीक करूंगा,
الْقَائِلُ لِلُّجَّةِ: جِفِّي وَأَنَا أُنَشِّفُ أَنْهَارَكِ. | ٢٧ 27 |
मैं ही हूं, जो सागर की गहराई को आज्ञा देता हूं, ‘सूख जाओ, मैं तुम्हारी नदियों को सूखा दूंगा,’
الْقَائِلُ عَنْ كُورُشَ: هُوَ رَاعِيَّ الَّذِي يُلَبِّي كُلَّ رَغْبَاتِي وَالْقَائِلُ عَنْ أُورُشَلِيمَ: لابُدَّ أَنْ تُبْنَى وَعَنِ الْهَيْكَلِ: لابُدَّ أَنْ يُؤَسَّسَ». | ٢٨ 28 |
मैं ही हूं वह, जिसने कोरेश के बारे में कहा था कि, ‘वह मेरा ठहराया हुआ चरवाहा है जो मेरी इच्छा पूरी करेगा; येरूशलेम के बारे में उसने कहा, “उसको फिर से बसाया जायेगा,” मंदिर के बारे में यह आश्वासन देगा, “तुम्हारी नींव डाली जाएगी.”’”