< تكوين 6 >

وَحَدَثَ لَمَّا ابْتَدَأَ النَّاسُ يَتَكَاثَرُونَ عَلَى سَطْحِ الأَرْضِ وَوُلِدَ لَهُمْ بَنَاتٌ، ١ 1
जब रु — ए — ज़मीन पर आदमी बहुत बढ़ने लगे और उनके बेटियाँ पैदा हुई।
انْجَذَبَتْ أَنْظَارُ أَبْنَاءِ اللهِ إِلَى بَنَاتِ النَّاسِ فَرَأَوْا أَنَّهُنَّ جَمِيلاتٌ فَاتَّخَذُوا لأَنْفُسِهِمْ مِنْهُنَّ زَوْجَاتٍ كَمَا طَابَ لَهُمْ. ٢ 2
तो ख़ुदा के बेटों ने आदमी की बेटियों को देखा कि वह ख़ूबसूरत हैं; और जिनको उन्होंने चुना उनसे ब्याह कर लिया।
فَقَالَ الرَّبُّ: «لَنْ يَمْكُثَ رُوحِي مُجَاهِداً فِي الإِنْسَانِ إِلَى الأَبَدِ. هُوَ بَشَرِيٌّ زَائِغٌ، لِذَلِكَ لَنْ تَطُولَ أَيَّامُهُ أَكْثَرَ مِنْ مِئَةٍ وَعِشْرِينَ سَنَةً فَقَطْ». ٣ 3
तब ख़ुदावन्द ने कहा कि मेरी रूह इंसान के साथ हमेशा मुज़ाहमत न करती रहेगी। क्यूँकि वह भी तो इंसान है; तो भी उसकी उम्र एक सौ बीस साल की होगी।
وَفِي تِلْكَ الْحِقَبِ، كَانَ فِي الأَرْضِ جَبَابِرَةٌ، وَبَعْدَ أَنْ دَخَلَ أَبْنَاءُ اللهِ عَلَى بَنَاتِ النَّاسِ وَلَدْنَ لَهُمْ أَبْنَاءً، صَارَ هَؤُلَاءِ الأَبْنَاءُ أَنْفُسُهُمُ الْجَبَابِرَةَ الْمَشْهُورِينَ مُنْذُ الْقِدَمِ. ٤ 4
उन दिनों में ज़मीन पर जब्बार थे, और बाद में जब ख़ुदा के बेटे इंसान की बेटियों के पास गए, तो उनके लिए उनसे औलाद हुई। यही पुराने ज़माने के सूर्मा हैं, जो बड़े नामवर हुए हैं।
وَرَأَى الرَّبُّ أَنَّ شَرَّ الإِنْسَانِ قَدْ كَثُرَ فِي الأَرْضِ، وَأَنَّ كُلَّ تَصَوُّرِ فِكْرِ قَلْبِهِ يَتَّسِمُ دَائِماً بِالإِثْمِ، ٥ 5
और ख़ुदावन्द ने देखा कि ज़मीन पर इंसान की बदी बहुत बढ़ गई, और उसके दिल के तसव्वुर और ख़याल हमेशा बुरे ही होते हैं।
فَمَلأَ قَلبَهُ الأَسَفُ وَالْحُزْنُ لأَنَّهُ خَلَقَ الإِنْسَانَ. ٦ 6
तब ख़ुदावन्द ज़मीन पर इंसान के पैदा करने से दुखी हुआ और दिल में ग़म किया।
وَقَالَ الرَّبُّ: «أَمْحُو الإِنْسَانَ الَّذِي خَلَقْتُهُ عَنْ وَجْهِ الأَرْضِ مَعَ سَائِرِ النَّاسِ وَالْحَيَوَانَاتِ وَالزَّوَاحِفِ وَطُيُورِ السَّمَاءِ، لأَنِّي حَزِنْتُ أَنِّي خَلَقْتُهُ». ٧ 7
और ख़ुदावन्द ने कहा कि मैं इंसान को जिसे मैंने पैदा किया, रू — ए — ज़मीन पर से मिटा डालूँगा; इंसान से लेकर हैवान और रेंगनेवाले जानदार और हवा के परिन्दों तक; क्यूँकि मैं उनके बनाने से दुखी हूँ।
أَمَّا نُوحٌ فَقَدْ حَظِيَ بِرِضَى الرَّبِ. ٨ 8
मगर नूह ख़ुदावन्द की नज़र में मक़्बूल हुआ।
وَهَذَا سِجِلُّ مَوَالِيدِ نُوحٍ: كَانَ نُوحٌ صَالِحاً كَامِلاً فِي زَمَانِهِ، وَسَارَ نُوحٌ مَعَ اللهِ. ٩ 9
नूह का नसबनामा यह है: नूह मर्द — ए — रास्तबाज़ और अपने ज़माने के लोगों में बे'ऐब था, और नूह ख़ुदा के साथ — साथ चलता रहा।
وَأَنْجَبَ نُوحٌ ثَلَاثَةَ أَبْنَاءٍ هُمْ سَامٌ وَحَامٌ وَيَافَثُ. ١٠ 10
और उससे तीन बेटे सिम, हाम और याफ़त पैदा हुए।
وَإِذْ سَادَ الشَّرُّ الأَرْضَ أَمَامَ اللهِ وَعَمَّهَا الظُّلْمُ، ١١ 11
लेकिन ज़मीन ख़ुदा के आगे नापाक हो गई थी, और वह ज़ुल्म से भरी थी।
نَظَرَ اللهُ وَإذَا بِها فَاسِدَةٌ لأَنَّ كُلَّ بَشَرٍ عَلَى الأَرْضِ قَدْ سَلَكَ فِي طَرِيقِ الإِثْمِ. ١٢ 12
और ख़ुदा ने ज़मीन पर नज़र की और देखा, कि वह नापाक हो गई है; क्यूँकि हर इंसान ने ज़मीन पर अपना तरीक़ा बिगाड़ लिया था।
فَقَالَ اللهُ لِنُوحٍ: «قَدْ أَزِفَتْ نِهَايَةُ الْبَشَرِ جَمِيعاً أَمَامِي، لأَنَّهُمْ مَلَأُوا الأَرْضَ ظُلْماً. لِذَلِكَ سَأُبِيدُهُمْ مَعَ الأَرْضِ. ١٣ 13
और ख़ुदा ने नूह से कहा कि पूरे इंसान का ख़ातिमा मेरे सामने आ पहुँचा है; क्यूँकि उनकी वजह से ज़मीन जुल्म से भर गई, इसलिए देख, मैं ज़मीन के साथ उनको हलाक करूँगा।
ابْنِ لَكَ فُلْكاً مِنْ خَشَبِ السَّرْوِ، وَاجْعَلْ فِيهِ غُرَفاً تَطْلِيهَا بِالزِّفْتِ مِنَ الدَّاخِلِ وَالْخَارِجِ. ١٤ 14
तू गोफर की लकड़ी की एक कश्ती अपने लिए बना; उस कश्ती में कोठरियाँ तैयार करना और उसके अन्दर और बाहर राल लगाना।
اصْنَعْهُ عَلَى هَذَا الْمِثَالِ: لِيَكُنْ طُولُهُ ثَلَاثَ مِئَةِ ذِرَاعٍ (نَحْوَ مِئَةٍ وَخَمْسَةٍ وَثَلَاثِينَ مِتْراً)، وَعَرْضُهُ خَمْسِينَ ذِرَاعاً (نَحْوَ اثْنَيْنِ وَعِشْرِينَ مِتْراً وَنِصْفِ الْمِتْرِ) وَارْتِفَاعُهُ ثَلَاثِينَ ذِرَاعاً (نَحْوَ ثَلَاثَةَ عَشَرَ مِتْراً وَنِصْفِ الْمِتْرِ). ١٥ 15
और ऐसा करना कि कश्ती की लम्बाई तीन सौ हाथ, उसकी चौड़ाई पचास हाथ और उसकी ऊँचाई तीस हाथ हो।
وَاجْعَلْ لَهُ نَافِذَةً عَلَى انْخِفَاضِ ذِرَاعٍ (نَحْوَ خَمْسَةٍ وَأَرْبَعِينَ سَنْتِمِتْراً) مِنَ السَّقْفِ، وَبَاباً تُقِيمُهُ فِي جَانِبِهِ. وَلْيَكُنْ لِلْفُلْكِ طَوَابِقُ سُفْلِيَّةٌ وَمُتَوَسِّطَةٌ وَعُلْوِيَّةٌ. ١٦ 16
और उस कश्ती में एक रौशनदान बनाना, और ऊपर से हाथ भर छोड़ कर उसे ख़त्म कर देना; और उस कश्ती का दरवाज़ा उसके पहलू में रखना; और उसमें तीन हिस्से बनाना निचला, दूसरा और तीसरा।
فَهَا أَنَا أُغْرِقُ الأَرْضَ بِطُوفَانٍ مِنَ الْمِيَاهِ لأُبِيدَ كُلَّ كَائِنٍ حَيٍّ فِيهَا مِمَّنْ تَحْتَ السَّمَاءِ. كُلُّ مَا عَلَى الأَرْضِ لَابُدَّ أَنْ يَمُوتَ. ١٧ 17
और देख, मैं ख़ुद ज़मीन पर पानी का तूफ़ान लानेवाला हूँ, ताकि हर इंसान को जिसमें जिन्दगी की साँस है, दुनिया से हलाक कर डालूँ, और सब जो ज़मीन पर हैं मर जाएँगे।
وَلَكِنِّي سَأُقِيمُ مَعَكَ عَهْداً، فَتَدْخُلُ أَنْتَ مَعَ بَنِيكَ وَامْرَأَتِكَ وَنِسَاءِ بَنِيكَ إِلَى الْفُلْكِ. ١٨ 18
लेकिन तेरे साथ मैं अपना 'अहद क़ाईम करूँगा; और तू कश्ती में जाना — तू और तेरे साथ तेरे बेटे और तेरी बीवी और तेरे बेटों की बीवियाँ।
وَتَأْخُذُ مَعَكَ فِي الْفُلْكِ زَوْجَيْنِ، ذَكَراً وَأُنْثَى، مِنْ كُلِّ كَائِنٍ حَيٍّ ذِي جَسَدٍ، لاسْتِبْقَائِهَا مَعَكَ. ١٩ 19
और जानवरों की हर क़िस्म में से दो — दो अपने साथ कश्ती में ले लेना, कि वह तेरे साथ जीते बचें, वह नर — ओ — मादा हों।
تُدْخِلُ مَعَكَ اثْنَيْنِ مِنْ كُلِّ صَنْفٍ مِنْ أَصْنَافِ الطُّيُورِ وَالْبَهَائِمِ وَالزَّوَاحِفِ عَلَى الأَرْضِ، حِفَاظاً عَلَى اسْتِمْرَارِ بَقَائِهَا. ٢٠ 20
और परिन्दों की हर क़िस्म में से, और चरिन्दों की हर क़िस्म में से, और ज़मीन पर रेंगने वालों की हर क़िस्म में से दो दो तेरे पास आएँ, ताकि वह जीते बचें।
وَتَدَّخِرُ لِنَفْسِكَ مِنْ كُلِّ طَعَامٍ يُؤْكَلُ وَتَخْزُنُهُ عِنْدَكَ لِيَكُونَ لَكَ وَلَهَا غِذَاءً». ٢١ 21
और तू हर तरह की खाने की चीज़ लेकर अपने पास जमा' कर लेना, क्यूँकि यही तेरे और उनके खाने को होगा।
وَفَعَلَ نُوحٌ تَمَاماً حَسَبَ كُلِّ مَا أَمَرَ الرَّبُّ بِهِ. ٢٢ 22
और नूह ने ऐसा ही किया; जैसा ख़ुदा ने उसे हुक्म दिया था, वैसा ही 'अमल किया।

< تكوين 6 >

The World is Destroyed by Water
The World is Destroyed by Water