< تكوين 41 >
وَبَعْدَ انْقِضَاءِ سَنَتَيْنِ رَأَى فِرْعَوْنُ حُلْماً، وَإذَا بِهِ وَاقِفٌ بِجُوَارِ نَهْرِ النِّيلِ | ١ 1 |
पूरे दो साल के बाद फ़िर'औन ने ख़्वाब में देखा कि वह दरिया-ए-नील के किनारे खड़ा है;
وَإذَا بِسَبْعِ بَقَرَاتٍ حِسَانِ الْمَنْظَرِ وَسَمِينَاتِ الأَبْدَانِ، صَاعِدَاتٍ مِنَ النَّهْرِ أَخَذَتْ تَرْعَى فِي الْمَرْجِ، | ٢ 2 |
और उस दरिया में से सात ख़ूबसूरत और मोटी — मोटी गायें निकल कर सरकंडों के खेत में चरने लगीं।
ثُمَّ إِذَا بِسَبْعِ بَقَرَاتٍ أُخْرَى قَبِيحَاتِ الْمَنْظَرِ وَهَزِيلاتٍ تَصْعَدُ وَرَاءَهَا مِنَ النَّهْرِ وَتَقِفُ إِلَى جُوَارِ الْبَقَرَاتِ الأُولَى عَلَى ضَفَّةِ النَّهْرِ. | ٣ 3 |
उनके बाद और सात बदशक्ल और दुबली — दुबली गायें दरिया से निकलीं और दूसरी गायों के बराबर दरिया के किनारे जा खड़ी हुई।
وَالْتَهَمَتِ الْبَقَرَاتُ الْقَبِيحَاتُ الْبَقَرَاتِ السَّبْعَ الْحَسَنَاتِ الْمَنْظَرِ وَالسَّمِينَاتِ. وَأَفَاقَ فِرْعَوْنُ. | ٤ 4 |
और यह बदशक्ल और दुबली दुबली गायें उन सातों ख़ूबसूरत और मोटी मोटी गायों को खा गई, तब फ़िर'औन जाग उठा।
ثُمَّ نَامَ، فَحَلُمَ ثَانِيَةً، وَإذَا بِسَبْعِ سَنَابِلَ نَابِتَةٍ مِنْ سَاقٍ وَاحِدَةٍ زَاهِيَةٍ وَمُمْتَلِئَةٍ | ٥ 5 |
और वह फिर सो गया और उसने दूसरा ख़्वाब देखा कि एक टहनी में अनाज की सात मोटी और अच्छी — अच्छी बालें निकलीं।
ثُمَّ رَأَى سَبْعَ سَنَابِلَ عَجْفَاءَ قَدْ لَفَحَتْهَا الرِّيحُ الشَّرْقِيَّةُ نَابِتَةً وَرَاءَهَا، | ٦ 6 |
उनके बाद और सात पतली और पूरबी हवा की मारी मुरझाई हुई बालें निकलीं।
فَابْتَلَعَتِ السَّنَابِلُ الْعَجْفَاءُ السَّبْعَ السَّنَابِلَ الزَّاهِيَةَ الْمُمْتَلِئَةَ. وَأَفَاقَ فِرْعَوْنُ، وَأَدْرَكَ أَنَّهُ حُلْمٌ. | ٧ 7 |
यह पतली बालें उन सातों मोटी और भरी हुई बालों को निगल गई। और फ़िर'औन जाग गया और उसे मा'लूम हुआ कि यह ख़्वाब था।
وَلَمَّا كَانَ الصَّبَاحُ اسْتَوْلَى الانْزِعَاجُ عَلَى فِرْعَوْنَ فَأَرْسَلَ وَاسْتَدْعَى جَمِيعَ سَحَرَةِ مِصْرَ وَكُلَّ حُكَمَائِهَا، وَسَرَدَ عَلَيْهِمْ حُلْمَهُ، فَلَمْ يَجِدْ مَنْ يُفَسِّرُهُ لَهُ. | ٨ 8 |
और सुबह को यूँ हुआ कि उसका जी घबराया तब उसने मिस्र के सब जादूगरों और सब अक्लमन्दों को बुलवा भेजा, और अपना ख़्वाब उनको बताया। लेकिन उनमें से कोई फ़िर'औन के आगे उनकी ता'बीर न कर सका।
عِنْدَئِذٍ قَالَ رَئِيسُ السُّقَاةِ لِفِرْعَوْنَ: «إِنِّي أَذْكُرُ الْيَوْمَ ذُنُوبِي. | ٩ 9 |
उस वक़्त सरदार साक़ी ने फ़िर'औन से कहा, मेरी ख़ताएँ आज मुझे याद आईं।
لَقَدْ سَخَطَ فِرْعَوْنُ عَلَى عَبْدَيْهِ، فَزَجَّنِي وَرَئِيسَ الْخَبَّازِينَ فِي مُعْتَقَلِ بَيْتِ رَئِيسِ الْحَرَسِ. | ١٠ 10 |
जब फ़िर'औन अपने ख़ादिमों से नाराज़ था और उसने मुझे और सरदार नानपज़ को जिलौदारों के सरदार के घर में नज़रबन्द करवा दिया।
فَحَلُمَ كُلٌّ مِنَّا حُلْماً فِي نَفْسِ اللَّيْلَةِ، وَكَانَ تَفْسِيرُ كُلِّ حُلْمٍ يَتَّفِقُ مَعَ أَحْوَالِ رَائِيهِ. | ١١ 11 |
तो मैंने और उसने एक ही रात में एक — एक ख़्वाब देखा, यह ख्वाब हम ने अपने अपने होनहार के मुताबिक़ देखे।
وَكَانَ مَعَنَا هُنَاكَ غُلامٌ عِبْرَانِيٌّ، عَبْدٌ لِرَئِيسِ الْحَرَسِ، فَسَرَدْنَا عَلَيْهِ حُلْمَيْنَا فَفَسَّرَهُمَا لِكُلٍّ مِنَّا حَسَبَ تَعْبِيرِ حُلْمِهِ. | ١٢ 12 |
वहाँ एक 'इब्री जवान, जिलौदारों के सरदार का नौकर, हमारे साथ था। हम ने उसे अपने ख़्वाब बताए और उसने उनकी ता'बीर की, और हम में से हर एक को हमारे ख़्वाब के मुताबिक़ उसने ता'बीर बताई।
وَقَدْ تَمَّ مَا فَسَّرَهُ لَنَا. فَرَدَّنِي فِرْعَوْنُ إِلَى وَظِيفَتِي وَأَمَّا ذَاكَ فَعَلَّقَهُ (عَلَى خَشَبَةٍ)». | ١٣ 13 |
और जो ता'बीर उसने बताई थी वैसा ही हुआ, क्यूँकि मुझे तो उसने मेरे मन्सब पर बहाल किया था और उसे फाँसी दी थी।
فَبَعَثَ فِرْعَوْنُ وَاسْتَدْعَى يُوسُفَ، فَأَسْرَعُوا وَأَتَوْا بِهِ مِنَ السِّجْنِ فَحَلَقَ وَاسْتَبْدَلَ ثِيَابَهُ وَمَثَلَ أَمَامَ فِرْعَوْنَ. | ١٤ 14 |
तब फ़िर'औन ने यूसुफ़ को बुलवा भेजा: तब उन्होंने जल्द उसे क़ैद खाने से बाहर निकाला, और उसने हजामत बनवाई और कपड़े बदल कर फ़िर'औन के सामने आया।
فَقَالَ فِرْعَوْنُ لِيُوسُفَ: «لَقَدْ رَأَيْتُ حُلْماً وَلَيْسَ هُنَاكَ مَنْ يُفَسِّرُهُ، وَقَدْ سَمِعْتُ عَنْكَ حَدِيثاً أَنَّكَ إِنْ سَمِعْتَ حُلْماً تَقْدِرُ أَنْ تُفَسِّرَهُ». | ١٥ 15 |
फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा, “मैंने एक ख़्वाब देखा है जिसकी ता'बीर कोई नहीं कर सकता, और मुझ से तेरे बारे में कहते हैं कि तू ख़्वाब को सुन कर उसकी ता'बीर करता है।”
فَأَجَابَ يُوسُفُ: «لا فَضْلَ لِي فِي ذَلِكَ، بَلْ إِنَّ اللهَ هُوَ الَّذِي يُعْطِي فِرْعَوْنَ الْجَوَابَ الصَّائِبَ». | ١٦ 16 |
यूसुफ़ ने फ़िर'औन को जवाब दिया, “मैं कुछ नहीं जानता, ख़ुदा ही फ़िर'औन को सलामती बख़्श जवाब देगा।”
فَقَالَ فِرْعَوْنُ لِيُوسُفَ: «رَأَيْتُ نَفْسِي فِي الْحُلْمِ وَإذَا بِي أَقِفُ عَلَى ضَفَّةِ النَّهْرِ، | ١٧ 17 |
तब फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा, मैंने ख़्वाब में देखा कि मैं दरिया-ए-नील के किनारे खड़ा हूँ।
وَإذَا بِسَبْعِ بَقَرَاتٍ حِسَانِ الْمَنْظَرِ وَسَمِينَاتِ الأَبْدَانِ صَاعِدَاتٍ مِنَ النَّهْرِ تَرْعَى فِي الْمَرْجِ، | ١٨ 18 |
और उस दरिया में से सात मोटी और ख़ूबसूरत गायें निकल कर सरकंडों के खेत में चरने लगीं।
ثُمَّ إِذَا بِسَبْعِ بَقَرَاتٍ أُخَرَ قَبِيحَاتِ الْمَنْظَرِ وَهَزِيلاتٍ تَصْعَدُ وَرَاءَهَا مِنَ النَّهْرِ. لَمْ أَرَ فِي أَرْضِ مِصْرَ كُلِّهَا نَظِيرَهَا فِي الْقَبَاحَةِ. | ١٩ 19 |
उनके बाद और सात ख़राब और निहायत बदशक्ल और दुबली गायें निकलीं, और वह इस क़दर बुरी थीं कि मैंने सारे मुल्क — ए — मिस्र में ऐसी कभी नहीं देखीं।
فَالْتَهَمَتِ الْبَقَرَاتُ الْهَزِيلاتُ الْقَبِيحَاتُ السَّبْعَ الْبَقَرَاتِ الأُولَى السَّمِينَاتِ. | ٢٠ 20 |
और वह दुबली और बदशक्ल गायें उन पहली सातों मोटी गायों को खा गई;
وَمَعَ أَنَّهَا ابْتَلَعَتْهَا ظَلَّتْ عَجْفَاءَ وَكَأَنَّهَا لَمْ تَبْتَلِعْهَا وَبَقِيَ مَنْظَرُهَا قَبِيحاً كَمَا كَانَتْ. وَاسْتَيْقَظْتُ. | ٢١ 21 |
और उनके खा जाने के बाद यह मा'लूम भी नहीं होता था कि उन्होंने उनको खा लिया है, बल्कि वह पहले की तरह जैसी की तैसी बदशक्ल रहीं। तब मैं जाग गया।
ثُمَّ رَأَيْتُ فِي حُلْمِي وَإذَا بِسَبْعِ سَنَابِلَ زَاهِيَةٍ وَمُمْتَلِئَةٍ نَابِتَةٍ مِنْ سَاقٍ وَاحِدَةٍ، | ٢٢ 22 |
और फिर ख़्वाब में देखा कि एक टहनी में सात भरी और अच्छी — अच्छी बालें निकलीं।
ثُمَّ إِذَا بِسَبْعِ سَنَابِلَ يَابِسَةٍ عَجْفَاءَ قَدْ لَفَحَتْهَا الرِّيحُ الشَّرْقِيَّةُ نَابِتَةٍ وَرَاءَهَا، | ٢٣ 23 |
और उनके बाद और सात सूखी और पतली और पूरबी हवा की मारी मुरझाई हुई बालें निकलीं।
فَابْتَلَعَتِ السَّنَابِلُ الْعَجْفَاءُ السَّبْعَ الزَّاهِيَةَ. وَلَقَدْ سَرَدْتُ عَلَى السَّحَرَةِ هَذَيْنِ الْحُلْمَيْنِ، فَلَمْ أَجِدْ بَيْنَهُمْ مَنْ يُفَسِّرُهُمَا لِي». | ٢٤ 24 |
और यह पतली बाले उन सातों अच्छी — अच्छी बालों को निगल गई। और मैंने इन जादूगरों से इसका बयान किया लेकिन ऐसा कोई न निकला जो मुझे इसका मतलब बताता।
فَقَالَ يُوسُفُ لِفِرْعَوْنَ: «حُلْمَا فِرْعَوْنَ هُمَا حُلْمٌ وَاحِدٌ. وَقَدْ أَطْلَعَ اللهُ فِرْعَوْنَ عَمَّا هُوَ فَاعِلٌ. | ٢٥ 25 |
तब यूसुफ़ ने फ़िर'औन से कहा कि फ़िर'औन का ख़्वाब एक ही है, जो कुछ ख़ुदा करने को है उसे उसने फ़िर'औन पर ज़ाहिर किया है।
السَّبْعُ الْبَقَرَاتُ الْحِسَانُ هِيَ سَبْعُ سَنَوَاتٍ. وَالسَّبْعُ السَّنَابِلُ الزَّاهِيَاتُ هِيَ أَيْضاً سَبْعُ سَنَوَاتٍ. فَالْحُلْمَانِ هُمَا حُلْمٌ وَاحِدٌ. | ٢٦ 26 |
वह सात अच्छी — अच्छी गायें सात साल हैं, और वह सात अच्छी अच्छी बालें भी सात साल हैं; ख़्वाब एक ही है।
وَالسَّبْعُ الْبَقَرَاتُ الْقَبِيحَاتُ الْهَزِيلاتُ الَّتِي صَعِدَتْ وَرَاءَهَا هِيَ سَبْعُ سَنَوَاتٍ. وَالسَّبْعُ السَّنَابِلُ الْفَارِغَاتُ الْمَلْفُوحَاتُ بِالرِّيحِ الشَّرْقِيَّةِ سَتَكُونُ سَبْعَ سَنَوَاتِ جُوعٍ | ٢٧ 27 |
और वह सात बदशक्ल और दुबली गायें जो उनके बाद निकलीं, और वह सात ख़ाली और पूरबी हवा की मारी मुरझाई हुई बालें भी सात साल ही हैं; मगर काल के सात बरस।
وَالأَمْرُ هُوَ كَمَا أَخْبَرْتُ بِهِ فِرْعَوْنَ: فَقَدْ أَطْلَعَ اللهُ فِرْعَوْنَ عَمَّا هُوَ صَانِعٌ | ٢٨ 28 |
यह वही बात है जो मैं फ़िर'औन से कह चुका हूँ कि जो कुछ ख़ुदा करने को है उसे उसने फ़िर'औन पर ज़ाहिर किया है।
هُوَذَا سَبْعُ سِنِينَ رَخَاءٍ عَظِيمٍ قَادِمَةٌ عَلَى كُلِّ أَرْضِ مِصْرَ، | ٢٩ 29 |
देख! सारे मुल्क — ए — मिस्र में सात साल तो पैदावार ज़्यादा के होंगे।
تَعْقُبُهَا سَبْعُ سَنَوَاتِ جُوعٍ، حَتَّى يَنْسَى النَّاسُ كُلَّ الرَّخَاءِ الَّذِي عَمَّ أَرْضَ مِصْرَ، وَيُتْلِفُ الْجُوعُ الأَرْضَ، | ٣٠ 30 |
उनके बाद सात साल काल के आएँगे और तमाम मुल्क ए — मिस्र में लोग इस सारी पैदावार को भूल जाएँगे और यह काल मुल्क को तबाह कर देगा।
وَيَخْتَفِي كُلُّ أَثَرٍ لِلرَّخَاءِ فِي الْبِلادِ مِنْ جَرَّاءِ الْمَجَاعَةِ الَّتِي تَعْقُبُهُ، لأَنَّهَا سَتَكُونُ قَاسِيَةً جِدّاً | ٣١ 31 |
और अज़ानी मुल्क में याद भी नहीं रहेगी, क्यूँकि जो काल बाद में पड़ेगा वह निहायत ही सख़्त होगा।
أَمَّا تَكْرَارُ الْحُلْمِ عَلَى فِرْعَوْنَ مَرَّتَيْنِ فَلَأَنَّ الأَمْرَ قَدْ قَرَّرَهُ اللهُ، وَلابُدَّ أَنْ يُجْرِيَهُ سَرِيعاً. | ٣٢ 32 |
और फ़िर'औन ने जो यह ख़्वाब दो दफ़ा' देखा तो इसकी वजह यह है कि यह बात ख़ुदा की तरफ़ से मुक़र्रर हो चुकी है, और ख़ुदा इसे जल्द पूरा करेगा।
وَالآنَ لِيَبْحَثْ فِرْعَوْنُ عَنْ رَجُلٍ بَصِيرٍ حَكِيمٍ يُوَلِّيهِ عَلَى الْبِلادِ، | ٣٣ 33 |
इसलिए फ़िर'औन को चाहिए कि एक समझदार और 'अक़्लमन्द आदमी को तलाश कर ले और उसे मुल्क — ए — मिस्र पर मुख़्तार बनाए।
وَلْيُقِمْ فِرْعَوْنُ نُظَّاراً عَلَى أَرْضِ مِصْرَ يَجْبُونَ خُمْسَ غَلَّتِهَا فِي سَنَوَاتِ الرَّخَاءِ السَّبْعِ. | ٣٤ 34 |
फ़िर'औन यह करे ताकि उस आदमी को इख़्तियार हो कि वह मुल्क में नाज़िरों को मुक़र्रर कर दे, और अज़ानी के सात बरसों में सारे मुल्क — ए — मिस्र की पैदावार का पाँचवा हिस्सा ले ले।
وَلِيَجْمَعُوا كُلَّ طَعَامِ سَنَوَاتِ الْخَيْرِ الْمُقْبِلَةِ، وَيَخْزِنُوا الْقَمْحَ بِتَفْوِيضٍ مِنْ فِرْعَوْنَ وَيَحْفَظُوهُ فِي الْمُدُنِ لِيَكُونَ طَعَاماً، | ٣٥ 35 |
और वह उन अच्छे बरसों में जो आते हैं सब खाने की चीजें जमा' करें और शहर — शहर में गल्ला जो फ़िर'औन के इख़्तियार में हो, ख़ुराक के लिए फ़राहम करके उसकी हिफ़ाज़त करें।
وَمَؤُونَةً لأَهْلِ الأَرْضِ فِي سَنَوَاتِ الْمَجَاعَةِ السَّبْعِ الَّتِي سَتَسُودُ أَرْضَ مِصْرَ فَلا يَهْلِكُونَ جُوعاً». | ٣٦ 36 |
यही ग़ल्ला मुल्क के लिए ज़ख़ीरा होगा, और सातों साल के लिए जब तक मुल्क में काल रहेगा काफ़ी होगा, ताकि काल की वजह से मुल्क बर्बाद न हो जाए।
فَاسْتَحْسَنَ فِرْعَوْنُ وَرِجَالُهُ جَمِيعاً هَذَا الْكَلامَ، | ٣٧ 37 |
य बात फ़िर'औन और उसके सब ख़ादिमों को पसंद आई।
وَقَالَ فِرْعَوْنُ لِعَبِيدِهِ: «هَلْ نَجِدُ نَظِيرَ هَذَا رَجُلاً فِيهِ رُوحُ اللهِ؟» | ٣٨ 38 |
तब फ़िर'औन ने अपने ख़ादिमों से कहा कि क्या हम को ऐसा आदमी जैसा यह है, जिसमें ख़ुदा का रूह है मिल सकता है?
ثُمَّ قَالَ فِرْعَوْنُ لِيُوسُفَ: «مِنْ حَيْثُ إِنَّ اللهَ قَدْ أَطْلَعَكَ عَلَى كُلِّ هَذَا، فَلَيْسَ هُنَاكَ بَصِيرٌ وَحَكِيمٌ نَظِيرَكَ. | ٣٩ 39 |
और फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा, चूँकि ख़ुदा ने तुझे यह सब कुछ समझा दिया है, इसलिए तेरी तरह समझदार और अक़्लमन्द कोई नहीं।
لِذَلِكَ أُوَلِّيكَ عَلَى بَيْتِي، وَيُذْعِنُ شَعْبِي لِكُلِّ أَمْرٍ تُصْدِرُهُ، وَلَنْ يَكُونَ أَعْظَمَ مِنْكَ سِوَايَ أَنَا صَاحِبِ الْعَرْشِ». | ٤٠ 40 |
इसलिए तू मेरे घर का मुख़्तार होगा और मेरी सारी रि'आया तेरे हुक्म पर चलेगी, सिर्फ़ तख़्त का मालिक होने की वजह से मैं बुज़ुर्गतर हूँगा।
ثُمَّ قَالَ فِرْعَوْنُ لِيُوسُفَ: «هَا أَنَا قَدْ وَلَّيْتُكَ عَلَى كُلِّ أَرْضِ مِصْرَ». | ٤١ 41 |
और फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा कि देख, मैं तुझे सारे मुल्क — ए — मिस्र का हाकिम बनाता हूँ
وَنَزَعَ فِرْعَوْنُ خَاتَمَهُ مِنْ يَدِهِ وَوَضَعَهُ فِي يَدِ يُوسُفَ، وَأَلْبَسَهُ ثِيَابَ كَتَّانٍ فَاخِرَةً وَطَوَّقَ عُنُقَهُ بِطَوْقٍ مِنْ ذَهَبٍ، | ٤٢ 42 |
और फ़िर'औन ने अपनी अंगूठी अपने हाथ से निकाल कर यूसुफ़ के हाथ में पहना दी, और उसे बारीक कतान के लिबास में आरास्ता करवा कर सोने का हार उसके गले में पहनाया।
وَأَرْكَبَهُ فِي مَرْكَبَتِهِ الثَّانِيَةِ، وَنَادُوا: «ارْكَعُوا أَمَامَهُ». وَأَقَامَهُ وَالِياً عَلَى كُلِّ أَرْضِ مِصْرَ. | ٤٣ 43 |
और उसने उसे अपने दूसरे रथ में सवार करा कर उसके आगे — आगे यह 'ऐलान करवा दिया, कि घुटने टेको और उसने उसे सारे मुल्क — ए — मिस्र का हाकिम बना दिया।
وَقَالَ فِرْعَوْنُ لِيُوسُفَ: «أَنَا فِرْعَوْنُ، وَلا أَحَدَ يُمْكِنُ أَنْ يُحَرِّكَ سَاكِناً فِي كُلِّ أَرْضِ مِصْرَ مِنْ غَيْرِ إِذْنِكَ». | ٤٤ 44 |
और फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा, “मैं फ़िर'औन हूँ और तेरे हुक्म के बग़ैर कोई आदमी इस सारे मुल्क — ए — मिस्र में अपना हाथ या पाँव हिलाने न पाएगा।”
وَدَعَا فِرْعَوْنُ اسْمَ يُوسُفَ صَفْنَاتَ فَعْنِيحَ (وَمَعْنَاهُ بِالْمِصْرِيَّةِ الْقَدِيمَةِ مُخَلِّصُ الْعَالَمِ أَوْ حَافِظُ الْحَيَاةِ). وَزَوَّجَهُ مِنْ أَسْنَاتَ بِنْتِ فُوطِيفَارَعَ كَاهِنِ أُونَ، فَذَاعَ اسْمُ يُوسُفَ فِي جَمِيعِ أَرْجَاءِ مِصْرَ. | ٤٥ 45 |
और फ़िर'औन ने यूसुफ़ का नाम सिफ़्नात फ़ा'नेह रख्खा, और उसने ओन के पुजारी फ़ोतीफ़िरा' की बेटी आसिनाथ को उससे ब्याह दिया, और यूसुफ़ मुल्क — ए — मिस्र में दौरा करने लगा।
وَكَانَ يُوسُفُ فِي الثَّلاثِينَ مِنْ عُمْرِهِ عِنْدَمَا مَثَلَ أَمَامَ فِرْعَوْنَ مَلِكِ مِصْرَ. وَبَعْدَ أَنْ خَرَجَ مِنْ حَضْرَةِ فِرْعَوْنَ شَرَعَ يَجُولُ فِي جَمِيعِ أَرْجَاءِ الْبِلادِ. | ٤٦ 46 |
और यूसुफ़ तीस साल का था जब वह मिस्र के बादशाह फ़िर'औन के सामने गया, और उसने फ़िर'औन के पास से रुख़्सत हो कर सारे मुल्क — ए — मिस्र का दौरा किया।
وَفِي سَنَوَاتِ الْخِصْبِ السَّبْعِ غَلَّتِ الأَرْضُ بِوَفْرَةٍ، | ٤٧ 47 |
और अज़ानी के सात बरसों में इफ़्रात से फ़स्ल हुई।
فَجَمَعَ كُلَّ طَعَامِ السَّبْعِ سَنَوَاتٍ الْمُتَوَافِرِ فِي أَرْضِ مِصْرَ وَخَزَنَهُ فِي الْمُدُنِ، فَاخْتَزَنَ فِي كُلِّ مَدِينَةٍ غَلَّاتِ مَا حَوْلَهَا مِنْ حُقُولٍ. | ٤٨ 48 |
और वह लगातार सातों साल हर क़िस्म की ख़ुराक, जो मुल्क — ए — मिस्र में पैदा होती थी, जमा' कर करके शहरों में उसका ज़ख़ीरा करता गया। हर शहर की चारों तरफ़ो की ख़ुराक वह उसी शहर में रखता गया।
وَادَّخَرَ يُوسُفُ كَمِّيَّاتٍ هَائِلَةً مِنَ الْقَمْحِ حَتَّى كَفَّ عَنْ إِحْصَائِهَا لِوَفْرَتِهَا الْعَظِيمَةِ. | ٤٩ 49 |
और यूसुफ़ ने ग़ल्ला समुन्दर की रेत की तरह निहायत कसरत से ज़ख़ीरा किया, यहाँ तक कि हिसाब रखना भी छोड़ दिया क्यूँ कि वह बे — हिसाब था।
وَأَنْجَبَتْ أَسْنَاتُ بِنْتُ فُوطِي فَارَعَ كَاهِنِ أُونَ لِيُوسُفَ ابْنَيْنِ قَبْلَ حُلُولِ سَنَوَاتِ الْجُوعِ. | ٥٠ 50 |
और काल से पहले ओन के पुजारी फ़ोतीफ़िरा' की बेटी आसिनाथ के यूसुफ़ से दो बेटे पैदा हुए।
فَدَعَا يُوسُفُ اسْمَ الْبِكْرِ مَنَسَّى (وَمَعْنَاهُ: مَنْ يَنْسَى أَوْ الْمَنْسِيُّ) وَقَالَ: «لأَنَّ اللهَ أَنْسَانِي كُلَّ مَشَقَّتِي وَكُلَّ بَيْتِ أَبِي». | ٥١ 51 |
और यूसुफ़ ने पहलौठे का नाम मनस्सी यह कह कर रख्खा, कि 'ख़ुदा ने मेरी और मेरे बाप के घर की सब मुसीबत मुझ से भुला दी।
أَمَّا الثَّانِي فَدَعَا اسْمَهُ أَفْرَايِمَ (وَمَعْنَاهُ: الْمُثْمِرُ مُضَاعَفاً) وَقَالَ: «لأَنَّ اللهَ جَعَلَنِي مُثْمِراً فِي أَرْضِ مَذَلَّتِي». | ٥٢ 52 |
और दूसरे का नाम इफ़्राईम यह कह कर रख्खा, कि 'ख़ुदा ने मुझे मेरी मुसीबत के मुल्क में फलदार किया।
ثُمَّ انْتَهَتْ سَبْعُ سَنَوَاتِ الرَّخَاءِ الَّذِي عَمَّ أَرْضَ مِصْرَ. | ٥٣ 53 |
और अज़ानी के वह सात साल जो मुल्क — ए — मिस्र में हुए तमाम हो गए, और यूसुफ़ के कहने के मुताबिक़ काल के सात साल शुरू' हुए।
وَحَلَّتْ سَبْعُ سَنَوَاتِ الْمَجَاعَةِ كَمَا أَنْبَأَ يُوسُفُ. فَحَدَثَتْ مَجَاعَةٌ فِي جَمِيعِ الْبُلْدَانِ. أَمَّا أَرْضُ مِصْرَ فَقَدْ تَوَافَرَ فِيهَا الْخُبْزُ. | ٥٤ 54 |
और सब मुल्कों में तो काल था लेकिन मुल्क — ए — मिस्र में हर जगह खुराक मौजूद थी।
وَعِنْدَمَا عَمَّتِ الْمَجَاعَةُ جَمِيعَ أَرْضِ مِصْرَ صَرَخَ الشَّعْبُ إِلَى فِرْعَوْنَ طَالِبِينَ الْخُبْزَ، فَقَالَ فِرْعَوْنُ لِكُلِّ الْمِصْرِيِّينَ: «اذْهَبُوا إِلَى يُوسُفَ وَافْعَلُوا كَمَا يَقُولُ لَكُمْ». | ٥٥ 55 |
और जब मुल्क — ए — मिस्र में लोग भूकों मरने लगे तो रोटी के लिए फ़िर'औन के आगे चिल्लाए। फ़िर'औन ने मिस्रियों से कहा कि यूसुफ़ के पास जाओ, जो कुछ वह तुम से कहे वह करो।
وَطَغَتِ الْمَجَاعَةُ عَلَى كُلِّ أَرْجَاءِ الْبِلادِ فَفَتَحَ يُوسُفُ الْمَخَازِنَ وَبَاعَ الطَّعَامَ لِلْمِصْرِيِّينَ. وَلَكِنَّ وَطْأَةَ الْجُوعِ اشْتَدَّتْ فِي أَرْضِ مِصْرَ. | ٥٦ 56 |
और तमाम रू — ए — ज़मीन पर काल था; और यूसुफ़ अनाज के ज़खीरह को खुलवा कर मिस्रियों के हाथ बेचने लगा, और मुल्क — ए — मिस्र में सख़्त काल हो गया।
وَأَقْبَلَ أَهْلُ الْبُلْدَانِ الأُخْرَى إِلَى مِصْرَ، إِلَى يُوسُفَ، لِيَبْتَاعُوا قَمْحاً لأَنَّ الْمَجَاعَةَ كَانَتْ شَدِيدَةً فِي كُلِّ الأَرْضِ. | ٥٧ 57 |
और सब मुल्कों के लोग अनाज मोल लेने के लिए यूसुफ़ के पास मिस्र में आने लगे, क्यूँकि सारी ज़मीन पर सख़्त काल पड़ा था।