< تكوين 27 >
وَلَمَّا شَاخَ إِسْحاقُ وَضَعُفَ بَصَرُهُ اسْتَدْعَى ابْنَهُ الأَكْبَرَ عِيسُو وَقَالَ لَهُ: «يَا بُنَيَّ، | ١ 1 |
जब इस्हाक़ ज़ईफ़ हो गया, और उसकी आँखें ऐसी धुन्धला गई कि उसे दिखाई न देता था तो उसने अपने बड़े बेटे 'ऐसौ को बुलाया और कहा, ऐ मेरे बेटे! “उसने कहा, मैं हाज़िर हूँ।”
هَا أَنَا قَدْ شِخْتُ وَلَسْتُ أَعْرِفُ مَتَى يَحِينُ يَوْمُ وَفَاتِي. | ٢ 2 |
तब उसने कहा, देख! मैं तो ज़ईफ़ हो गया और मुझे अपनी मौत का दिन मा'लूम नहीं।
فَالآنَ خُذْ عُدَّتَكَ: جُعْبَتَكَ وَقَوْسَكَ، وَامْضِ إِلَى الْبَرِّيَّةِ وَاقْتَنِصْ لِي صَيْداً. | ٣ 3 |
इसलिए अब तू ज़रा अपना हथियार, अपना तरकश और अपनी कमान लेकर जंगल को निकल जा और मेरे लिए शिकार मार ला।
وَجَهِّزْ لِي طَعَاماً شَهِيًّا كَمَا أُحِبُّ وَائْتِنِي بِهِ لِآكُلَ، لِتُبَارِكَكَ نَفْسِي قَبْلَ أَنْ أَمُوتَ». | ٤ 4 |
और मेरी हस्ब — ए पसन्द लज़ीज़ खाना मेरे लिए तैयार करके मेरे आगे ले आ, ताकि मैं खाऊँ और अपने मरने से पहले दिल से तुझे दुआ दूँ।
وَسَمِعَتْ رِفْقَةُ حَدِيثَ إِسْحاقَ لابْنِهِ عِيسُو. فَعِنْدَمَا انْطَلَقَ عِيسُو إِلَى الْبَرِّيَّةِ لِيَصْطَادَ صَيْداً وَيَأْتِيَ بِهِ. | ٥ 5 |
और जब इस्हाक़ अपने बेटे 'ऐसौ से बातें कर रहा था तो रिब्क़ा सुन रही थी, और 'ऐसौ जंगल को निकल गया कि शिकार मार कर लाए।
قَالَتْ رِفْقَةُ لابْنِهَا يَعْقُوبَ: «سَمِعْتُ أَبَاكَ يَقُولُ لِعِيسُو أَخِيكَ: | ٦ 6 |
तब रिब्क़ा ने अपने बेटे या'क़ूब से कहा, कि देख, मैंने तेरे बाप को तेरे भाई 'ऐसौ से यह कहते सुना कि।
اقْتَنِصْ لِي صَيْداً، وَجَهِّزْ لِي أَطْعِمَةً شَهِيَّةً لِآكُلَ وَأُبَارِكَكَ أَمَامَ الرَّبِّ قَبْلَ مَوْتِي. | ٧ 7 |
'मेरे लिए शिकार मार कर लज़ीज़ खाना मेरे लिए तैयार कर ताकि मैं खाऊँ और अपने मरने से पहले ख़ुदावन्द के आगे तुझे दुआ दूँ।
وَالآنَ يَا بُنَيَّ أَطِعْ قَوْلِي فِي مَا آمُرُكَ بِهِ، | ٨ 8 |
इसलिए ऐ मेरे बेटे, इस हुक़्म के मुताबिक़ जो मैं तुझे देती हूँ मेरी बात को मान।
وَاذْهَبْ إِلَى قَطِيعِ الْمَاشِيَةِ، وَاخْتَرْ جَدْيَيْنِ لأُجَهِّزَ لأَبِيكَ أَطْعِمَةً شَهِيَّةً كَمَا يُحِبُّ، | ٩ 9 |
और जाकर रेवड़ में से बकरी के दो अच्छे — अच्छे बच्चे मुझे ला दे, और मैं उनको लेकर तेरे बाप के लिए उसकी हस्ब — ए — पसन्द लज़ीज़ खाना तैयार कर दूँगी।
تُقَدِّمُهَا لأَبِيكَ لِيَأْكُلَ، فَيُبَارِكَكَ قَبْلَ وَفَاتِهِ». | ١٠ 10 |
और तू उसे अपने बाप के आगे ले जाना, ताकि वह खाए और अपने मरने से पहले तुझे दुआ दे।
فَقَالَ يَعْقُوبُ لِرِفْقَةَ أُمِّهِ: «أَخِي عِيسُو رَجُلٌ أَشْعَرُ، وَأَنَا رَجُلٌ أَمْلَسُ. | ١١ 11 |
तब या'क़ूब ने अपनी माँ रिब्क़ा से कहा, “देख, मेरे भाई 'ऐसौ के जिस्म पर बाल हैं और मेरा जिस्म साफ़ है।
وَقَدْ يَجُسُّنِي أَبِي فَيَتَبَيَّنُ خِدَاعِي، وَأَسْتَجْلِبُ عَلَى نَفْسِي لَعْنَةً لَا بَرَكَةً». | ١٢ 12 |
शायद मेरा बाप मुझे टटोले, तो मैं उसकी नज़र में दग़ाबाज़ ठहरूंगा; और बरकत नहीं बल्कि ला'नत कमाऊँगा।”
فَقَالَتْ لَهُ أُمُّهُ: «لَعْنَتُكَ عَلَيَّ يَا بُنَيَّ، فَأَطِعْ قَوْلِي فَقَطْ، وَاذْهَبْ وَأَحْضِرِ الْجَدْيَيْنِ لِي». | ١٣ 13 |
उसकी माँ ने उसे कहा, “ऐ मेरे बेटे! तेरी ला'नत मुझ पर आए; तू सिर्फ़ मेरी बात मान और जाकर वह बच्चे मुझे ला दे।”
فَذَهَبَ وَاخْتَارَهُمَا وَأَحْضَرَهُمَا لأُمِّهِ، فَأَعَدَّتْ رِفْقَةُ الأَطْعِمَةَ الْمُطَيَّبَةَ كَمَا يُحِبُّ أَبُوهُ | ١٤ 14 |
तब वह गया और उनको लाकर अपनी माँ को दिया, और उसकी माँ ने उसके बाप की हस्ब — ए — पसन्द लज़ीज़ खाना तैयार किया।
وَتَنَاوَلَتْ ثِيَابَ بِكْرِهَا عِيسُو الْفَاخِرَةَ الْمَوْجُودَةَ عِنْدَهَا فِي الْبَيْتِ وَأَلْبَسَتْ يَعْقُوبَ ابْنَهَا الأَصْغَرَ، | ١٥ 15 |
और रिब्क़ा ने अपने बड़े बेटे 'ऐसौ के नफ़ीस लिबास, जो उसके पास घर में थे लेकर उनकी अपने छोटे बेटे या'क़ूब को पहनाया।
وَكَذَلِكَ غَطَّتْ يَدَيْهِ وَمَلاسَةَ عُنُقِهِ بِجِلْدِ الْجَدْيَيْنِ. | ١٦ 16 |
और बकरी के बच्चों की खालें उसके हाथो और उसकी गर्दन पर जहाँ बाल न थे लपेट दीं।
وَأَعْطَتْهُ مَا أَعَدَّتْهُ مِنَ الأَطْعِمَةِ الشَّهِيَّةِ وَالْخُبْزِ. | ١٧ 17 |
और वह लज़ीज़ खाना और रोटी जो उसने तैयार की थी, अपने बेटे या'क़ूब के हाथ में दे दी।
فَأَقْبَلَ عَلَى أَبِيهِ وَقَالَ: «يَا أَبِي». فَأَجَابَهُ: «نَعَمْ يَا ابْنِي، مَنْ أَنْتَ؟» | ١٨ 18 |
तब उसने बाप के पास आ कर कहा, ऐ मेरे बाप! “उसने कहा, मैं हाज़िर हूँ, तू कौन है मेरे बेटे?”
فَقَالَ يَعْقُوبُ: «أَنَا عِيسُو بِكْرُكَ. وَقَدْ فَعَلْتُ كَمَا طَلَبْتَ، وَالآنَ قُمْ وَاجْلِسْ وَكُلْ مِنْ صَيْدِي حَتَّى تُبَارِكَنِي». | ١٩ 19 |
या'क़ूब ने अपने बाप से कहा, “मैं तेरा पहलौठा बेटा 'ऐसौ हूँ। मैंने तेरे कहने के मुताबिक़ किया है; इसलिए ज़रा उठ और बैठ कर मेरे शिकार का गोश्त खा, ताकि तू दिल से मुझे दुआ दे।”
فَقَالَ إِسْحَاقُ: «كَيْفَ اسْتَطَعْتَ أَنْ تَجِدَ صَيْداً بِمِثْلِ هَذِهِ السُّرْعَةِ يَا وَلَدِي؟» فَأَجَابَهُ: «لأَنَّ الرَّبَّ إِلَهَكَ قَدْ يَسَّرَ لِي ذَلِكَ». | ٢٠ 20 |
तब इस्हाक़ ने अपने बेटे से कहा, “बेटा! तुझे यह इस क़दर जल्द कैसे मिल गया?” उसने कहा, “इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने मेरा काम बना दिया।”
وَقَالَ إِسْحاقُ: «اقْتَرِبْ مِنِّي لأَجُسَّكَ يَا ابْنِي لأَرَى إِنْ كُنْتَ حَقّاً ابْنِي عِيسُو أَمْ لا». | ٢١ 21 |
तब इस्हाक़ ने या'क़ूब से कहा, “ऐ मेरे बेटे, ज़रा नज़दीक आ कि मैं तुझे टटोलूँ कि तू मेरा ही बेटा 'ऐसौ है या नहीं।”
فَدَنَا يَعْقُوبُ مِنْ أَبِيهِ إِسْحاقَ فَجَسَّهُ وَقَالَ: «الصَّوْتُ صَوْتُ يَعْقُوبَ، أَمَّا الْيَدَانِ فَهُمَا يَدَا عِيسُو». | ٢٢ 22 |
और या'क़ूब अपने बाप इस्हाक़ के नज़दीक गया; और उसने उसे टटोलकर कहा, “आवाज़ तो या'क़ूब की है लेकिन हाथ 'ऐसौ के हैं।”
وَلَمْ يَعْرِفْهُ لأَنَّ يَدَيْهِ كَانَتَا مُشْعِرَتَيْنِ كَيَدَيْ أَخِيهِ عِيسُو، فَبَارَكَهُ، | ٢٣ 23 |
और उसने उसे न पहचाना, इसलिए कि उसके हाथों पर उसके भाई 'ऐसौ के हाथों की तरह बाल थे; इसलिए उसने उसे दुआ दी।
وَسَأَلَ: «هَلْ أَنْتَ ابْنِي عِيسُو؟» فَأَجَابَ: «أَنَا هُوَ». | ٢٤ 24 |
और उसने पूछा कि क्या तू मेरा बेटा “ऐसौ ही है?” उसने कहा, “मैं वही हूँ।”
ثُمَّ قَالَ: «قَدِّمْ لِي مِنْ صَيْدِكَ حَتَّى آكُلَ وَأُبَارِكَكَ». فَأَحْضَرَ يَعْقُوبُ إِلَيْهِ الطَّعَامَ فَأَكَلَ ثُمَّ قَدَّمَ لَهُ خَمْراً فَشَرِبَ، | ٢٥ 25 |
तब उसने कहा, “खाना मेरे आगे ले आ, और मैं अपने बेटे के शिकार का गोश्त खाऊँगा, ताकि दिल से तुझे दुआ दूँ।” तब वह उसे उसके नज़दीक ले आया, और उसने खाया; और वह उसके लिए मय लाया और उसने पी।
فَقَالَ لَهُ إِسْحاقُ أَبُوهُ: «تَعَالَ وَقَبِّلْنِي يَا وَلَدِي». | ٢٦ 26 |
फिर उसके बाप इस्हाक़ ने उससे कहा, “ऐ मेरे बेटे! अब पास आकर मुझे चूम।”
فَاقْتَرَبَ مِنْهُ وَقَبَّلَهُ، فَتَنَسَّمَ رَائِحَةَ ثِيَابِهِ وَبَارَكَهُ قَائِلاً: «هَا إِنَّ رَائِحَةَ ابْنِي كَرَائِحَةِ حَقْلٍ بَارَكَهُ الرَّبُّ، | ٢٧ 27 |
उसने पास जाकर उसे चूमा। तब उसने उसके लिबास की ख़शबू पाई और उसे दुआ दे कर कहा, “देखो! मेरे बेटे की महक उस खेत की महक की तरह है जिसे ख़ुदावन्द ने बरकत दी हो।
فَلْيُنْعِمْ عَلَيْكَ الرَّبُّ مِنْ نَدَى السَّمَاءِ وَمِنْ خَيْرَاتِ الأَرْضِ، فَيُكَثِّرُ لَكَ الْحِنْطَةَ وَالْخَمْرَ. | ٢٨ 28 |
ख़ुदा आसमान की ओस और ज़मीन की फ़र्बही, और बहुत सा अनाज और मय तुझे बख़्शे।
لِتَخْدُمْكَ الشُّعُوبُ، وَتَسْجُدْ لَكَ الْقَبَائِلُ، لِتَكُنْ سَيِّداً عَلَى إِخْوَتِكَ. وَبَنُو أُمِّكِ لَكَ يَنْحَنُونَ. وَلْيَكُنْ لاعِنُوكَ مَلْعُونِينَ، وَمُبَارِكُوكَ مُبَارَكِينَ». | ٢٩ 29 |
कौमें तेरी खिदमत करें, और क़बीले तेरे सामने झुकें। तू अपने भाइयों का सरदार हो, और तेरी माँ के बेटे तेरे आगे झुकें, जो तुझ पर ला'नत करे वह खुद ला'नती हो, और जो तुझे दुआ दे वह बरकत पाए।”
وَلَمَّا فَرَغَ إِسْحاقُ مِنْ مُبَارَكَةِ يَعْقُوبَ، وَخَرَجَ يَعْقُوبُ مِنْ عِنْدِ أَبِيهِ، رَجَعَ عِيسُو مِنْ صَيْدِهِ، | ٣٠ 30 |
जब इस्हाक़ या'क़ूब को दुआ दे चुका, और या'क़ूब अपने बाप इस्हाक़ के पास से निकला ही था कि उसका भाई 'ऐसौ अपने शिकार से लौटा।
فَجَهَّزَ هُوَ أَيْضاً أَطْعِمَةً طَيِّبَةً وَأَحْضَرَهَا إِلَى أَبِيهِ وَقَالَ: «لِيَقُمْ أَبِي وَيَأْكُلْ مِنْ صَيْدِ ابْنِهِ فَتُبَارِكَنِي نَفْسُكَ». | ٣١ 31 |
वह भी लज़ीज़ खाना पका कर अपने बाप के पास लाया, और उसने अपने बाप से कहा, मेरा बाप उठ कर अपने बेटे के शिकार का गोश्त खाए, ताकि दिल से मुझे दुआ दे।
فَقَالَ إِسْحاقُ: «مَنْ أَنْتَ؟» فَأَجَابَهُ: «أَنَا ابْنُكَ بِكْرُكَ عِيسُو». | ٣٢ 32 |
उसके बाप इस्हाक़ ने उससे पूछा कि तू कौन है? उसने कहा, मैं तेरा पहलौठा बेटा “ऐसौ हूँ।”
فَارْتَعَدَ إِسْحاقُ بِعُنْفٍ وَقَالَ: «مَنْ هُوَ إِذاً الَّذِي اصْطَادَ صَيْداً وَأَحْضَرَهُ إِلَيَّ فَأَكَلْتُ مِنَ الْكُلِّ قَبْلَ أَنْ تَجِيءَ، وَبَارَكْتُهُ؟ وَحَقّاً يَكُونُ مُبَارَكاً». | ٣٣ 33 |
तब तो इस्हाक़ शिद्दत से काँपने लगा और उसने कहा, “फिर वह कौन था जो शिकार मार कर मेरे पास ले आया, और मैंने तेरे आने से पहले सबमें से थोड़ा — थोड़ा खाया और उसे दुआ दी? और मुबारक भी वही होगा।”
فَمَا إِنْ سَمِعَ عِيسُو كَلامَ أَبِيهِ حَتَّى أَطْلَقَ صَرْخَةً هَائِلَةً وَمُرَّةً جِدّاً وَقَالَ: «بَارِكْنِي أَنَا أَيْضاً يَا أَبِي». | ٣٤ 34 |
ऐसौ अपने बाप की बातें सुनते ही बड़ी बुलन्दी और हसरतनाक आवाज़ से चिल्ला उठा, और अपने बाप से कहा, “मुझ को भी दुआ दे, ऐ मेरे बाप! मुझ को भी।”
فَأَجَابَ: «لَقَدْ مَكَرَ بِي أَخُوكَ وَسَلَبَ بَرَكَتَكَ». | ٣٥ 35 |
उसने कहा, “तेरा भाई दग़ा से आया, और तेरी बरकत ले गया।”
فَقَالَ: «أَلَمْ يُدْعَ اسْمُهُ يَعْقُوبَ؟ لَقَدْ تَعَقَّبَنِي مَرَّتَيْنِ: أَخَذَ بَكُورِيَّتِي، وَهَا هُوَ يَسْلُبُنِي الآنَ بَرَكَتِي». ثُمَّ قَالَ: «أَمَا احْتَفَظْتَ لِي بِبَرَكَةٍ؟» | ٣٦ 36 |
तब उसने कहा, “क्या उसका नाम या'क़ूब ठीक नहीं रख्खा गया? क्यूँकि उसने दोबारा मुझे धोखा दिया। उसने मेरा पहलौठे का हक़ तो ले ही लिया था, और देख, अब वह मेरी बरकत भी ले गया।” फिर उसने कहा, “क्या तूने मेरे लिए कोई बरकत नहीं रख छोड़ी है?”
فَأَجَابَ إِسْحاقُ: «لَقَدْ جَعَلْتُهُ سَيِّداً لَكَ، وَصَيَّرْتُ جَمِيعَ إِخْوَتِهِ لَهْ خُدَّاماً، وَبِالْحِنْطَةِ وَالْخَمْرِ أَمْدَدْتُهُ. فَمَاذَا أَفْعَلُ لَكَ الآنَ يَا وَلَدِي؟». | ٣٧ 37 |
इस्हाक़ ने 'ऐसौ को जवाब दिया, कि देख, मैंने उसे तेरा सरदार ठहराया, और उसके सब भाइयों को उसके सुपर्द किया कि ख़ादिम हों, और अनाज और मय उसकी परवरिश के लिए बताई। अब ऐ मेरे बेटे, तेरे लिए मैं क्या करूँ?
فَقَالَ عِيسُو: «أَلَكَ بَرَكَةٌ وَاحِدَةٌ فَقَطْ يَا أَبِي؟ بَارِكْنِي أَنَا أَيْضاً يَا أَبِي». وَأَجْهَشَ عِيسُو بِالْبُكَاءِ بِصَوْتٍ عَالٍ. | ٣٨ 38 |
तब 'ऐसौ ने अपने बाप से कहा, “क्या तेरे पास एक ही बरकत है, ऐ मेरे बाप? मुझे भी दुआ दे, ऐ मेरे बाप, मुझे भी।” और 'ऐसौ ज़ोर — ज़ोर से रोया।
فَأَجَابَهُ أَبُوهُ: «هَا مَسْكَنُكَ يَكُونُ فِي أَرْضٍ جَدْبَاءَ لَا يَهْطِلُ عَلَيْهَا نَدَى السَّمَاءِ. | ٣٩ 39 |
तब उसके बाप इस्हाक़ ने उससे कहा, “देख ज़रख्खेज़ ज़मीन में तेरा घर हो, और ऊपर से आसमान की शबनम उस पर पड़े।
بِسَيْفِكَ تَعِيشُ وَلأَخِيكَ تَكُونُ عَبْداً، وَلَكِنْ حِينَ تَجْمَحُ تُحَطِّمُ نِيرَهُ عَنْ عُنْقِكَ». | ٤٠ 40 |
तेरी औकात — बसरी तेरी तलवार से हो, और तू अपने भाई की ख़िदमत करे, और जब तू आज़ाद हो; तो अपने भाई का जुआ अपनी गर्दन पर से उतार फेंके।”
وَحَقَدَ عِيسُو عَلَى يَعْقُوبَ مِنْ أَجْلِ مَا نَالَهُ مِنْ بَرَكَةِ أَبِيهِ. فَنَاجَى نَفْسَهُ: «قَرِيباً يَمُوتُ أَبِي، وَبَعْدَئِذٍ أَقْتُلُ أَخِي يَعْقُوبَ». | ٤١ 41 |
और 'ऐसौ ने या'क़ूब से, उस बरकत की वजह से जो उसके बाप ने उसे बख्शी, कीना रख्खा; और 'ऐसौ ने अपने दिल में कहा, कि “मेरे बाप के मातम के दिन नज़दीक हैं, फिर मैं अपने भाई या'क़ूब को मार डालूँगा।”
فَبَلَغَ رِفْقَةَ وَعِيدُ عِيسُو ابْنِهَا الأَكْبَرِ، فَأَرْسَلَتْ وَاسْتَدْعَتْ يَعْقُوبَ ابْنَهَا الأَصْغَرَ وَقَالَتْ لَهُ: «عِيسُو يُخَطِّطُ لِقَتْلِكَ. | ٤٢ 42 |
और रिब्क़ा को उसके बड़े बेटे 'ऐसौ की यह बातें बताई गई; तब उसने अपने छोटे बेटे या'क़ूब को बुलवा कर उससे कहा, “देख, तेरा भाई 'ऐसौ तुझे मार डालने पर है, और यही सोच — सोचकर अपने को तसल्ली दे रहा है।
وَالآنَ يَا ابْنِي أَصْغِ لِقَوْلِي، وَقُمِ اهْرُبْ إِلَى أَخِي لابَانَ إِلَى حَارَانَ، | ٤٣ 43 |
इसलिए ऐ मेरे बेटे, तू मेरी बात मान, और उठकर हारान को मेरे भाई लाबन के पास भाग जा;
وَامْكُثْ عِنْدَهُ أَيَّاماً قَلائِلَ رَيْثَمَا يَهْدَأُ سُخْطُ أَخِيكَ. | ٤٤ 44 |
और थोड़े दिन उसके साथ रह, जब तक तेरे भाई की नाराज़गी उतर न जाए।
وَمَتَى سَكَنَ غَضَبُهُ وَنَسِيَ مَا صَنَعْتَ بِهِ، عِنْدَئِذٍ أَبْعَثُ إِلَيْكَ لِتَعُودَ مِنْ هُنَاكَ. فَلِمَاذَا أُحْرَمُ مِنْكُمَا كِلَيْكُمَا فِي يَوْمٍ وَاحِدٍ؟». | ٤٥ 45 |
या'नी जब तक तेरे भाई का क़हर तेरी तरफ़ से ठंडा न हो, और वह उस बात को जो तूने उससे की है भूल न जाए; तब मैं तुझे वहाँ से बुलवा भेजूँगी। मैं एक ही दिन में तुम दोनों को क्यूँ खो बैठूँ?”
ثُمَّ قَالَتْ رِفْقَةُ لإِسْحاقَ: «قَدْ كَرِهْتُ حَيَاتِي مِنْ جَرَّاءِ الْبَنَاتِ الْحِثِّيَّاتِ، فَإِنْ تَزَوَّجَ يَعْقُوبُ مِنِ الْحِثِّيَّاتِ بَنَاتِ هَذِهِ الأَرْضِ الْمُمَاثِلاتِ لِزَوْجَتَيْ عِيسُو، فَإِنَّ مَوْتِي خَيْرٌ مِنْ حَيَاتِي». | ٤٦ 46 |
और रिब्क़ा ने इस्हाक़ से कहा, 'मैं हिती लड़कियों की वजह से अपनी ज़िन्दगी से तंग हूँ, इसलिए अगर या'क़ूब हिती लड़कियों में से, जैसी इस मुल्क की लड़कियाँ हैं, किसी से ब्याह कर ले तो मेरी ज़िन्दगी में क्या लुत्फ़ रहेगा?'