< خرُوج 36 >
وَهَكَذَا يَقُومُ بَصَلْئِيلُ وَأَهُولِيَآبُ وَكُلُّ صَانِعٍ حَاذِقٍ وَهَبَهُ الرَّبُّ مَقْدِرَةً فِي تَنْفِيذِ بِنَاءِ خَيْمَةِ الْاِجْتِمَاعِ، بِإِنْجَازِ الْعَمَلِ، بِحَسَبِ كُلِّ مَا أَمَرَ بِهِ الرَّبُّ. | ١ 1 |
फिर बज़लीएल और अहलियाब और सब रोशन ज़मीर आदमी काम करें, जिनको ख़ुदावन्द ने हिकमत और समझ से मालामाल किया है ताकि वह मक़दिस की' इबादत के सब काम को ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ अन्जाम दें।
ثُمَّ اسْتَدْعَى مُوسَى بَصَلْئِيلَ وَأَهُولِيآبَ وَكُلَّ صَانِعٍ مَاهِرٍ وَهَبَهُ الرَّبُّ حَذَاقَةً، وَكُلَّ مَنْ حَثَّهُ قَلْبُهُ عَلَى الْمُسَاهَمَةِ فِي إِنْجَازِ عَمَلٍ مَّا. | ٢ 2 |
तब मूसा ने बज़लीएल और अहलियाब और सब रोशन ज़मीर आदमियों को बुलाया, जिनके दिल में ख़ुदावन्द ने हिकमत भर दी थी, या'नी जिनके दिल में तहरीक हुई कि जाकर काम करें।
وَتَسَلَّمُوا مِنْ مُوسَى جَمِيعَ تَقْدِمَاتِ بَنِي إِسْرَائِيلَ، الَّتِي تَبَرَّعُوا بِها لِبنَاءِ الْمَقْدِسِ. وَظَلَّ الشَّعْبُ يَأْتُونَ كُلَّ صَبَاحٍ بِمَزِيدٍ مِنَ التَّبَرُّعَاتِ. | ٣ 3 |
और जो — जो हदिये बनी — इस्राईल लाए थे कि उनसे मक़दिस की इबादत की चीज़ें बनाई जाएँ, वह सब उन्होंने मूसा से ले लिए, और लोग फिर भी अपनी खु़शी से हर सुबह उसके पास हदिये लाते रहे।
فَأَقْبَلَ الصُّنَّاعُ الْمَهَرَةُ الْقَائِمُونَ بِأَعْمَالِ الْمَقْدِسِ، مِنْ مَهَامِّهِمْ، | ٤ 4 |
तब वह सब 'अक़्लमन्द कारीगर जो मक़दिस के सब काम बना रहे थे, अपने — अपने काम को छोड़कर मूसा के पास आए,
وَقَالُوا لِمُوسَى: «إِنَّ الشَّعْبَ يَأْتِي بِمَا يَفِيضُ عَمَّا نَحْتَاجُ إِلَيْهِ لإِنْجَازِ الْعَمَلِ الَّذِي أَمَرَ بِهِ الرَّبُّ». | ٥ 5 |
और वह मूसा से कहने लगे, “कि लोग इस काम के सरअन्जाम के लिए, जिसके बनाने का हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया है, ज़रूरत से बहुत ज़्यादा ले आए हैं।”
فَأَمَرَ مُوسَى أَنْ يُذِيعُوا فِي الْمُخَيَّمِ بِالامْتِنَاعِ عَنْ تَقْدِيمِ تَبَرُّعَاتٍ. فَكَفَّ الشَّعْبُ عَنْ ذَلِكَ. | ٦ 6 |
तब मूसा ने जो हुक्म दिया उसका 'ऐलान उन्होंने तमाम लश्करगाह में करा दिया: “कि कोई मर्द या 'औरत अब से मक़दिस के लिए हदिया देने की ग़र्ज़ से कुछ और काम न बनाएँ।” यूँ वह लोग और लाने से रोक दिए गए।
لأَنَّ مَا لَدَيْهِمْ، كَانَ كَافِياً لِتَنْفِيذِ الْعَمَلِ كُلِّهِ، وَأَكْثَرَ. | ٧ 7 |
क्यूँकि जो सामान उनके पास पहुँच चुका था वह सारे काम को तैयार करने के लिए न सिर्फ़ काफ़ी बल्कि ज़्यादा था।
أَمَّا الصُّنَّاعُ الْحَاذِقُونَ بَيْنَ الْحِرَفِيِّينَ فَقَدْ صَنَعُوا سَقْفَ الْمَسْكَنِ مِنْ عَشْرِ قِطَعٍ مِنْ كَتَّانٍ مَبْرُومٍ، ذَاتِ أَلْوَانٍ زَرْقَاءَ وَبَنَفْسَجِيَّةٍ وَحَمْرَاءَ، طَرَّزَ عَلَيْهَا حَائِكٌ مَاهِرٌ رَسْمَ الْكَرُوبِيمِ. | ٨ 8 |
और काम करनेवालों में जितने रोशन ज़मीर थे, उन्होंने मक़दिस के लिए बारीक बटे हुए कतान के और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों के दस पर्दे बनाए, जिन पर माहिर उस्ताद के हाथ के कढ़े हुए करूबी थे।
وَكَانَ طُولُ كُلِّ قِطْعِةٍ ثَمانِي وَعِشْرِينَ ذِرَاعاً (نَحْوَ أَرْبَعَةَ عَشَرَ مِتْراً) وَعَرْضُهُ أَرْبَعَ أَذْرُعٍ (نَحْوَ مِتْرَيْنِ). فَكَانَتْ جَمِيعُهَا ذَاتَ قِيَاسٍ وَاحِدٍ. | ٩ 9 |
हर पर्दे की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ थी और वह सब पर्दे एक ही नाप के थे।
وَوَصَلُوا خَمْسَ قِطَعٍ مِنْهَا بَعْضَهَا بِبَعْضٍ، وَكَذَلِكَ وُصِلَتِ الْقِطَعُ الْخَمْسُ الأُخْرَى | ١٠ 10 |
और उसने पाँच पर्दे एक दूसरे के साथ जोड़ दिए और दूसरे पाँच पर्दे भी एक दूसरे के साथ जोड़ दिए।
وَصَنَعُوا عُرىً مِنْ قُمَاشٍ عَلَى حَاشِيَةِ الطَّرَفِ الْوَاحِدِ مِنَ الْقِطَعِ الْمَوْصُولَةِ الأُولَى، وَكَذَلِكَ فَعَلُوا أَيْضاً فِي حَاشِيَةِ الطَّرَفِ الأَخِيرِ مِنَ الْقِطَعِ الأُخْرَى الْمَوْصُولَةِ | ١١ 11 |
और उसने एक बड़े पर्दे के हाशिये में उसके मिलाने के रुख़ पर आसमानी रंग के तुकमे बनाए। ऐसे ही तुकमे उसने दूसरे बड़े पर्दे की उस तरफ़ के हाशिये में बनाए जिधर मिलाने का रुख़ था।
فَكَانَ فِي الطَّرَفِ الأَخِيرِ مِنَ الْمَجْمُوعَةِ الأُولَى خَمْسُونَ عُرْوَةً، وَخَمْسُونَ عُرْوَةً فِي طَرَفِ الْمَجْمُوعَةِ الثَّانِيَةِ، الْوَاحِدَةُ مُقَابِلَ الأُخْرَى. | ١٢ 12 |
पचास तुकमे उसने एक पर्दे में और पचास ही दूसरे पर्दे के हाशिये में उसके मिलाने के रुख़ पर बनाए, यह तुकमे आपस में एक दूसरे के सामने थे।
وَصَنَعُوا خَمْسِينَ مِشْبَكاً مِنْ ذَهَبٍ وُصِلَتْ بِها عُرَى الْمَجْمُوعَتَيْنِ، فَأَصْبَحَتَا سَقْفاً وَاحِداً لِلْمَسْكِنِ. | ١٣ 13 |
और उसने सोने की पचास घुन्डियाँ बनाई और उन्हीं घुन्डियों से पर्दों को आपस में ऐसा जोड़ दिया कि घर मिलकर एक हो गया।
وَحَاكُوا أَيْضاً سَقْفاً ثَانِياً لِلْمَسْكَنِ مِنْ إِحْدَى عَشْرَةَ قِطْعَةً، مَصْنُوعةً مِنْ نَسِيجِ شَعْرِ الْمِعْزَى. | ١٤ 14 |
और बकरी के बालों से ग्यारह पर्दे घर के ऊपर के ख़ेमे के लिए बनाए।
طُولُ الْقِطْعَةِ الْوَاحِدَةِ ثَلاثُونَ ذِرَاعاً (نَحْوَ خَمْسَةَ عَشَرَ مِتْراً) وَعَرْضُهَا أَرْبَعُ أَذْرُعٍ (نَحْوَ مِتْرَيْنِ). فَكَانَتْ جَمِيعُهَا ذَاتَ مِقْيَاسٍ وَاحِدٍ. | ١٥ 15 |
हर पर्दे की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ थी, और वह ग्यारह पर्दे एक ही नाप के थे।
وَوَصَلُوا خَمْسَ قِطَعٍ مَعاً لِتَكُونَ قِطْعَةً وَاحِدَةً، وَكَذَلِكَ فَعَلُوا بِالْقِطَعِ السِّتِّ الأُخْرَى | ١٦ 16 |
और उसने पाँच पर्दे तो एक साथ जोड़े और छ: एक साथ।
وَصَنَعُوا خَمْسِينَ عُرْوَةً عَلَى حَاشِيَةِ طَرَفٍ وَاحِدٍ لِلْمَجْمُوعَةِ الأُولَى، وَثَبَّتُوا خَمْسِينَ عُرْوَةً أُخْرَى عَلَى حَاشِيَةِ طَرَفٍ وَاحِدٍ مِنَ الْمَجْمُوعَةِ الثَّانِيَةِ. | ١٧ 17 |
और पचास तुकमे उन जुड़े हुए पर्दों में से किनारे के पर्दे के हाशिये में बनाए और पचास ही तुकमे उन दूसरे जुड़े हुए पर्दों में से किनारे के पर्दे के हाशिये में बनाए।
وَصَنَعُوا خَمْسِينَ مِشْبَكاً مِنْ نُحَاسٍ لِتَصِلَ عُرَى الْمَجْمُوعَتَيْنِ مَعاً لِتُصْبِحَا سَقْفاً ثَانِياً لِلْمَسْكَنِ. | ١٨ 18 |
और उसने पीतल की पचास घुन्डियाँ भी बनाई ताकि उनसे उस ख़ेमे को ऐसा जोड़ दे कि वह एक हो जाए।
وَعَمِلُوا غِطَاءً لِلْخَيْمَةِ مِنْ جُلُودِ كِبَاشٍ مَدْبُوغَةٍ بِاللَّوْنِ الأَحْمَرِ، وَنَصَبُوا فَوْقَهُ سَقْفاً آخَرَ مِنْ جُلُودٍ بَنَفْسَجِيَّةٍ. | ١٩ 19 |
और ख़ेमे के लिए एक ग़िलाफ़ मेंढों की सुर्ख़ रंगी हुई खालों का और उसके लिए ग़िलाफ़ तुख़स की खालों का बनाया।
وَصَنَعُوا جُدْرَانَ الْمَسْكَنِ مِنْ أَلْوَاحٍ قَائِمَةٍ مِنْ خَشَبِ السَّنْطِ. | ٢٠ 20 |
और उसने घर के लिए कीकर की लकड़ी के तख़्ते बनाए कि खड़े किए जाएँ।
طُولُ اللَّوْحِ مِنْهَا عَشْرُ أَذْرُعٍ (نَحْوَ خَمْسَةِ أَمْتَارٍ) وَعَرْضُهُ ذِرَاعٌ وَنِصْفٌ (نَحْوَ خَمْسَةٍ وَسَبْعِينَ سَنْتِيمِتْراً). | ٢١ 21 |
हर तख़्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ थी।
وَلِكُلِّ لَوْحٍ رِجْلانِ مُتَقَابِلَتَانِ، إِحْدَاهُمَا بِإِزَاءِ الأُخْرَى. هَكَذَا بَنَوْا جَمِيعَ أَلْوَاحِ الْمَسْكَنِ. | ٢٢ 22 |
और उसने एक एक तख़्ते के लिए दो — दो जुड़ी हुई चूलें बनाई, घर के सब तख़्तों की चूलें ऐसी ही बनाई।
وَجَعَلُوا الْجَانِبَ الْجَنُوبِيَّ لِلْمَسْكَنِ مُكَوَّناً مِنْ عِشْرِينَ لَوْحاً. | ٢٣ 23 |
और घर के लिए जो तख़्ते बने थे उनमें से बीस तख़्ते दाख्खिनी रुख़ में लगाए।
وَصَنَعُوا أَرْبَعِينَ قَاعِدَةً مِنْ فِضَّةٍ تَحْتَ الْعِشْرِينَ لَوْحاً. فَكَانَ لِكُلِّ لَوْحٍ مُنْفَرِدٍ قَاعِدَتَانِ لِرِجْلَيْهِ. | ٢٤ 24 |
और उसने उन बीसों तख़्तों के नीचे चाँदी के चालीस ख़ाने बनाए, या'नी हर तख़्ते की दोनों चूलों के लिए दो — दो ख़ाने।
أَمَّا جَانِبُ الْمَسْكَنِ الثَّانِي الشِّمَالِيُّ، فَكَانَ لَهُ أَيْضاً عِشْرُونَ لَوْحاً، | ٢٥ 25 |
और घर की दूसरी तरफ़ या'नी उत्तरी रुख़ के लिए बीस तख़्ते बनाए।
وَأَرْبَعُونَ قَاعِدَةً مِنْ فِضَّةٍ، فَكَانَ لِكُلِّ لَوْحٍ مُنْفَرِدٍ قَاعِدَتَانِ لِرِجْلَيْهِ. | ٢٦ 26 |
और उनके लिए भी चाँदी के चालीस ही ख़ाने बनाए, या'नी एक — एक तख़्ते के नीचे दो — दो ख़ाने।
وَبَنَوْا جِدَارَ مُؤَخَّرِ الْمَسْكَنِ الْغَرْبِيَّ مِنْ سِتَّةِ أَلْوَاحٍ. | ٢٧ 27 |
और घर के पिछले हिस्से या'नी पश्चिमी रुख़ के लिए छ: तख़्ते बनाए।
وَصَنَعُوا لَوْحَيْنِ لِزَاوِيَتَيِ الْمَسْكَنِ فِي الْمُؤَخَّرِ. | ٢٨ 28 |
और दो तख़्ते घर के दोनों कोनों के लिए पिछले हिस्से में बनाए।
فَكَانَ كُلٌّ مِنْهُمَا مُزْدَوِجاً مِنْ أَسْفَلِهِ إِلَى أَعْلاهُ، حَيْثُ تُثَبَّتُ فِي رَأْسِ كُلِّ مُزْدَوِجٍ حَلَقَةٌ وَاحِدَةٌ. هَكَذَا يَكُونُ كُلٌّ مِنْهُمَا لِلزَّاوِيَتَيْنِ. | ٢٩ 29 |
यह नीचे से दोहरे थे और इसी तरह ऊपर के सिरे तक आकर एक ही हल्के में मिला दिए गए थे, उसने दोनों कोनों के दोनों तख़्ते इसी ढब के बनाए।
فَكَانَتْ فِي مَجْمُوعِهَا ثَمَانِيَةَ أَلْوَاحٍ وَسِتَّ عَشْرَةَ قَاعِدَةً مِنْ فِضَّةِ، قَاعِدَتَيْنِ لِكُلِّ لَوْحٍ مُنْفَرِدٍ. | ٣٠ 30 |
वह, आठ तख़्ते थे और उनके लिए चाँदी के सोलह ख़ाने, या'नी एक — एक तख़्ते के लिए दो — दो ख़ाने।
وَصَنَعُوا عَوَارِضَ مِنْ خَشَبِ السَّنْطِ، خَمْساً لأَلْوَاحِ جَانِبِ الْمَسْكَنِ الْجَنُوبِيِّ، | ٣١ 31 |
और उसने कीकर की लकड़ी के बेन्डे बनाये पाँच बेन्डे घर के एक तरफ़ के तख़्तों के लिए,
وَخَمْساً لأَلْوَاحِ جَانِبِ الْمَسْكَنِ الشِّمَالِيِّ، وَخَمْسَ عَوَارِضَ لأَلْوَاحِ مُؤَخَّرِ الْمَسْكَنِ الْغَرْبِيِّ، | ٣٢ 32 |
और पाँच बेन्डे घर के दूसरी तरफ़ के तख़्तों के लिए, और पाँच बेन्डे घर के पिछले हिस्से में पश्चिम की तरफ़ के तख़्तों के लिए बनाए।
وَجَعَلُوا الْعَارِضَةَ الْوُسْطَى تَنْفُذُ فِي وَسَطِ الأَلْوَاحِ مِنْ طَرَفٍ إِلَى طَرَفٍ | ٣٣ 33 |
और उसने वस्ती बेन्डे को ऐसा बनाया कि तख़्तों के बीच में से होकर एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचे।
وَغَشَّوْا الأَلْوَاحَ بِرَقَائِقَ مِنْ ذَهَبٍ. وَصَنَعُوا لَهَا حَلَقَاتٍ مِنْ ذَهَبٍ لِتَكُونَ بُيُوتاً لِلْعَوَارِضِ. وَكَذَلِكَ غَشَّوْا الْعَوَارِضَ بِالذَّهَبِ. | ٣٤ 34 |
और तख़्तों को सोने से मंढ़ा और सोने के कड़े बनाए, ताकि बेन्डों के लिए ख़ानों का काम दें और बेन्डों को सोने से मंढ़ा।
وَصَنَعُوا الْحِجَابَ مِنْ كَتَّانٍ مَبْرُومٍ ذِي أَلْوَانٍ زَرْقَاءَ وَبَنَفْسَجِيَّةٍ وَحَمْرَاءَ، بَعْدَ أَنْ حَاكَ عَلَيْهِ حَائِكٌ مَاهِرٌ رَسْمَ الْكَرُوبِيمِ. | ٣٥ 35 |
और उसने बीच का पर्दा आसमानी, अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बनाया जिस पर माहिर उस्ताद के हाथ के करूबी कढ़े हुए थे।
وَصَنَعُوا لَهُ أَرْبَعَةَ أَعْمِدَةٍ مِنْ خَشَبِ السَّنْطِ مُغَشَّاةً بِذَهَبٍ، لَهَا أَرْبَعَةُ خَطَاطِيفَ مِنْ ذَهَبٍ، وَقَائِمَةً عَلَى أَرْبَعِ قَوَاعِدَ مِنْ فِضَّةٍ. | ٣٦ 36 |
और उसके लिए कीकर के चार सुतून बनाए और उनको सोने से मंढ़ा, उनके कुन्डे सोने के थे और उसने उनके लिए चाँदी के चार ख़ाने ढाल कर बनाए।
وَنَسَجُوا سِتَاراً لِمَدْخَلِ الْمَسْكَنِ ذَا أَلْوَانٍ زَرْقَاءَ وَبَنَفْسَجِيَّةٍ وَحَمْرَاءَ، وَخُيُوطِ كَتَّانٍ مَبْرُومٍ مِنْ تَطْرِيزِ حَائِكٍ مَاهِرٍ. | ٣٧ 37 |
और उसने ख़ेमे के दरवाज़े के लिए एक पर्दा आसमानी, अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बनाया, वह बेल — बूटेदार था।
لَهُ خَمْسَةُ أَعْمِدَةٍ، ذَاتِ خَطَاطِيفَ وَغَشَّوْا رُؤُوسَهَا وَقُضْبَانَهَا بِذَهَبٍ وَسَبَكُوا لَهَا خَمْسَ قَوَاعِدَ مِنْ نُحَاسٍ. | ٣٨ 38 |
और उसके लिए पाँच सुतून कुन्डों समेत बनाए और उनके सिरों और पट्टियों को सोने से मंढ़ा, उनके लिए जो पाँच ख़ाने थे वह पीतल के बने हुए थे।