< خرُوج 22 >
وَإذَا سَرَقَ إِنْسَانٌ ثَوْراً أَوْ خَرُوفاً وَذَبَحَهُ أَوْ بَاعَهُ، فَعَلَيْهِ أَنْ يُعَوِّضَ صَاحِبَ الثَّوْرِ بِخَمْسَةِ ثِيرَانٍ، وَصَاحِبَ الْخَرُوفِ بِأَرْبَعَةٍ مِنَ الْغَنَمِ. | ١ 1 |
“अगर कोई आदमी बैल या भेड़ चुरा ले और उसे ज़बह कर दे या बेच डाले, तो वह एक बैल के बदले पाँच बैल और एक भेड़ के बदले चार भेड़े भरे।
إِذَا ضُبِطَ السَّارِقُ وَهُوَ يَنْقُبُ لَيْلاً وَضُرِبَ فَمَاتَ، يَذْهَبُ دَمُهُ هَدْراً. | ٢ 2 |
अगर चोर सेंध मारते हुए पकड़ा जाए और उस पर ऐसी मार पड़े कि वह मर जाए तो उसके ख़ून का कोई जुर्म नहीं।
وَلَكِنْ إِنْ ضُبِطَ بَعْدَ شُرُوقِ الشَّمْسِ وَهُوَ يَنْقُبُ وَضُرِبَ حَتَّى قُتِلَ، يَكُونُ الضَّارِبُ مُطَالَباً بِدَمِهِ. عَلَى اللِّصِّ أَنْ يَدْفَعَ تَعْوِيضاً. إِنْ كَانَ مُعْدَماً، يُبَاعُ بِسَرِقَتِهِ. | ٣ 3 |
अगर सूरज निकल चुके तो उसका ख़ून जुर्म होगा; बल्कि उसे नुक़्सान भरना पड़ेगा और अगर उसके पास कुछ न हो तो वह चोरी के लिए बेचा जाए।
وَإذَا وُجِدَ الْحَيَوَانُ الْمَسْرُوقُ حَيًّا فِي حَوْزَتِهِ، ثَوْراً كَانَ أَمْ حِمَاراً أَمْ خَرُوفاً، يُعَوِّضُ السَّارِقُ بِمِثْلَيْنِ. | ٤ 4 |
अगर चोरी का माल उसके पास जीता मिले चाहे वह बैल हो या गधा या भेड़ तो वह उसका दूना भर दे।
إِذَا سَرَّحَ إِنْسَانٌ بَهَائِمَهُ لِتَرْعَى فِي حَقْلِ جَارِهِ أَوِ كَرْمِهِ، فَعَلَيْهِ أَنْ يُعَوِّضَ صَاحِبَ الْحَقْلِ أَوِ الْكَرْمِ مِنْ أَجْوَدِ نِتَاجِ حَقْلِهِ أَوْ كَرْمِهِ. | ٥ 5 |
'अगर कोई आदमी किसी खेत या ताकिस्तान को खिलवा दे और अपने जानवर को छोड़ दे कि वह दूसरे के खेत को चर लें, तो अपने खेत या ताकिस्तान की अच्छी से अच्छी पैदावार में से उसका मु'आवज़ा दे।
إذَا انْدَلَعَتْ نَارٌ وَامْتَدَّتْ مِنَ الشَّوْكِ إِلَى أَكْدَاسِ الْقَمْحِ أَوِ السَّنَابِلِ النَّامِيَةِ أَوْ مَزْرُوعَاتِ الْحُقُولِ، فَعَلَى مَنْ أَوْقَدَ النَّارَ أَنْ يُعَوِّضَ الْخَسَارَةَ. | ٦ 6 |
'अगर आग भड़के और काँटों में लग जाए और अनाज के ढेर या खड़ी फ़सल या खेत को जला कर भस्म कर दे, तो जिस ने आग जलाई हो वह ज़रूर मु'आवज़ा दे।
إذَا أَوْدَعَ إِنْسَانٌ صَاحِبَهُ فِضَّةً أَوْ أَمْتِعَةً أَمَانَةً، ثُمَّ سُرِقَتْ مِنْ بَيْتِ صَاحِبِهِ، فَعَلَى السَّارِقِ إِذَا اكْتُشِفَ أَمْرُهُ أَنْ يَدْفَعَ ضِعْفَيْ قِيمَةِ الْمَسْرُوقِ كَتَعْوِيضٍ. | ٧ 7 |
“अगर कोई अपने पड़ोसी की नक़द या जिन्स रखने को दे और वह उस शख़्स के घर से चोरी हो जाए, तो अगर चोर पकड़ा जाए तो दूना उसको भरना पड़ेगा।
وَلَكِنْ إِذَا لَمْ يُقْبَضْ عَلَى اللِّصِّ، يَمْثُلُ صَاحِبُ الْبَيْتِ أَمَامَ الْقُضَاةِ لِيُقَرِّرُوا إنْ كَانَ هُوَ الَّذِي امْتَدَّتْ يَدُهُ إِلَى أَمْتِعَةِ صَاحِبِهِ. | ٨ 8 |
लेकिन अगर चोर पकड़ा न जाए तो उस घर का मालिक ख़ुदा के आगे लाया जाए, ताकि मालूम हो जाए कि उसने अपने पड़ोसी के माल को हाथ नहीं लगाया।
فِي كُلِّ قَضِيَّةِ حِيَازَةٍ غَيْرِ شَرْعِيَّةٍ سَوَاءَ أَكَانَتْ مُتَعَلِّقَةً بِثَوْبٍ أَمْ حِمَارٍ أَمْ خَرُوفٍ أَمْ ثَوْرٍ أَمْ أَيِّ شَيْءٍ مَفْقُودٍ، يَدَّعِي شَخْصٌ مَا أَنَّهُ يمْلِكُهُ، يَمْثُلُ الطَّرَفَانِ الْمُتَنَازِعَانِ أَمَامَ الْقُضَاةِ، وَمَنْ يَحْكُمُ عَلَيْهِ الْقُضَاةُ بِالذَّنْبِ يُعَوِّضُ صَاحِبَهُ بِمِثْلَيْنِ. | ٩ 9 |
हर क़िस्म की ख़ियानत के मु'आमिले में चाहे बैल का चाहे गधे या भेड़ या कपड़े या किसी और खोई हुई चीज़ का हो, जिसकी निस्बत कोई बोल उठे कि वह चीज़ यह है तो फ़रीक़ीन का मुक़द्दमा ख़ुदा के सामने लाया जाए और जिसे ख़ुदा मुजरिम ठहराए वह अपने पड़ोसी को दूना भर दे।
إِذَا أَوْدَعَ إِنْسَانٌ ثَوْراً أَوْ حِمَاراً أَوْ بَهِيمَةً أَمَانَةً، فَمَاتَ أَوْ تَأَذَّى أَوْ سُرِقَ فِي غَفْلَةٍ. | ١٠ 10 |
'अगर कोई अपने पड़ोसी के पास गधा या बैल या भेड़ या कोई और जानवर अमानत रख्खे और वह बगै़र किसी के देखे मर जाए या चोट खाए या हंका दिया जाए,
يَحْلِفُ صَاحِبُ الْبَيْتِ بِالرَّبِّ أَنَّهُ لَمْ يَمُدَّ يَدَهُ إِلَى مِلْكِ جَارِهِ، فَيَقْبَلُ مِنْهُ صَاحِبُهُ الْيَمِينَ وَلا يَأْخُذُ تَعْوِيضاً. | ١١ 11 |
तो उन दोनों के बीच ख़ुदावन्द की क़सम हो कि उसने अपने हमसाये के माल को हाथ नहीं लगाया, और मालिक इसे सच माने और दूसरा उसका मु'आवज़ा न दे।
وَلَكِنْ إِنْ سُرِقَ مِنْهُ بِفِعْلِ الْإِهْمَالِ فَعَلَيْهِ أَنْ يُعَوِّضَ صَاحِبَهُ. | ١٢ 12 |
लेकिन अगर वह उसके पास से चोरी हो जाए तो वह उसके मालिक को मु'आवज़ा दे।
أَمَّا إِذَا افْتُرِسَ فَعَلَيْهِ أَنْ يَأْتِيَ بِأَشْلائِهِ شَهَادَةً عَلَى ذَلِكَ، وَلا يُطَالَبُ بِالتَّعْوِيضِ عَنِ الْحَيَوَانِ الْمُفْتَرَسِ. | ١٣ 13 |
और अगर उसको किसी दरिन्दे ने फाड़ डाला हो तो वह उसको गवाही के तौर पर पेश कर दे और फाड़े हुए का नुक़्सान न भरे।
إِذَا اسْتَعَارَ إِنْسَانٌ مِنْ صَاحِبِهِ شَيْئاً فَانْكَسَرَ أَوْ مَاتَ فِي غِيَابِ صَاحِبِهِ، يَدْفَعُ المُسْتَعِيرُ تَعْوِيضاً. | ١٤ 14 |
'अगर कोई शख़्स अपने पड़ोसी से कोई जानवर 'आरियत ले और वह ज़ख़्मी हो जाए या मर जाए, और मालिक वहाँ मौजूद न हो तो वह ज़रूर उसका मु'आवज़ा दे।
لَكِنْ إِنْ كَانَ صَاحِبُ الْحَيَوَانِ حَاضِراً، فَلا يَدْفَعُ الْمُسْتَعِيرُ تَعْوِيضاً. أَمَّا إِذَا كَانَ الْحَيَوَانُ أَوِ الشَّيْءُ مُسْتَأْجَراً، فَتُغَطِّي الأُجْرَةُ الْمَدْفُوعَةُ قِيمَةَ الْخَسَارَةِ. | ١٥ 15 |
लेकिन अगर मालिक साथ हो तो उसका नुक़्सान न भरे और अगर किराया की हुई चीज़ हो तो उसका नुक़्सान उसके किराये में आ गया।
إِذَا رَاوَدَ رَجُلٌ عَذْرَاءَ غَيْرَ مَخْطُوبَةٍ، وَعَاشَرَهَا، يَدْفَعُ مَهْرَهَا وَيَتَزَوَّجُهَا، | ١٦ 16 |
“अगर कोई आदमी किसी कुँवारी को जिसकी निस्बत न हुई हो, फुसला कर उससे मुबाश्रत करे तो वह ज़रूर ही उसे महर देकर उससे शादी करे।
وَإِنْ أَبَى وَالِدُهَا قَطْعِيًّا أَنْ يُزَوِّجَهَا مِنْهُ، يَتَحَتَّمْ عَلَيْهِ أَيْضاً أَنْ يَدْفَعَ لَهُ مَهْرَ العَذَارَى. | ١٧ 17 |
लेकिन अगर उसका बाप हरगिज़ राज़ी न हो कि उस लड़की को उसे दे, तो वह कुँवारियों के महर के मुवाफ़िक़ उसे नक़दी दे।
لَا تَدَعْ سَاحِرَةً تَعِيشُ. | ١٨ 18 |
“तू जादूगरनी को जीने न देना।
كُلُّ مَنْ ضَاجَعَ بَهِيمَةً حَتْماً يُقْتَلُ. | ١٩ 19 |
“जो कोई किसी जानवर से मुबाश्रत करे वह क़तई' जान से मारा जाए।
مَنْ يُقَرِّبْ ذَبَائِحَ لِآلِهَةٍ غَيْرِ الرَّبِّ وَحْدَهُ، يُبَدْ. | ٢٠ 20 |
“जो कोई एक ख़ुदावन्द को छोड़ कर किसी और मा'बूद के आगे क़ुर्बानी चढ़ाए वह बिल्कुल नाबूद कर दिया जाए।
لَا تَضْطَهِدْ غَرِيباً وَلا تُضَايِقْهُ، فَقَدْ كُنْتُمْ غُرَبَاءَ فِي دِيَارِ مِصْرَ. | ٢١ 21 |
“और तू मुसाफ़िर को न तो सताना न उस पर सितम करना, इस लिए के तुम भी मुल्क — ए — मिस्र में मुसाफ़िर थे।
لَا تُسِئْ إِلَى أَرْمَلَةٍ أَوْ يَتِيمٍ، | ٢٢ 22 |
तुम किसी बेवा या यतीम लड़के को दुख न देना।
لأَنَّكَ إِنْ أَسَأْتَ إِلَيْهِمَا وَصَرَخَا إِلَيَّ أَسْمَعْ صُرَاخَهُمَا، | ٢٣ 23 |
अगर तू उनको किसी तरह से दुख दे और वह मुझ से फ़रियाद करें तो मैं ज़रूर उनकी फ़रियाद सुनूँगा।
فَيَحْتَدِمُ غَضَبِي وَأَقْتُلُكُمْ بِالسَّيْفِ، فَتُصْبِحُ زَوْجَاتُكُمْ أَرَامِلَ وَأَوْلادُكُمْ يَتَامَى. | ٢٤ 24 |
और मेरा क़हर भड़केगा और मैं तुम को तलवार से मार डालूँगा और तुम्हारी बीवियाँ बेवा और तुम्हारे बच्चे यतीम हो जाएँगे।
إِنْ أَقْرَضْتَ فَقِيراً مِنْ شَعْبِيَ الْمُقِيمِ عِنْدَكَ فَلا تُعَامِلْهُ كَالْمُرَابيِ، وَلا تَتَقَاضَ مِنْهُ فَائِدَةً. | ٢٥ 25 |
“अगर तू मेरे लोगों में से किसी मोहताज को जो तेरे पास रहता हो कुछ क़र्ज़ दे तो उससे क़र्ज़दार की तरह सुलूक न करना और न उससे सूद लेना।
إِذَا اسْتَرْهَنْتَ ثَوْبَ صَاحِبِكَ لِقَاءَ دَيْنٍ، فَرُدَّهُ إِلَيْهِ عِنْدَ مَغِيبِ الشَّمْسِ، | ٢٦ 26 |
अगर तू किसी वक़्त अपने पड़ोसी के कपड़े गिरवी रख भी ले तो सूरज के डूबने तक उसको वापस कर देना।
لأَنَّ ذَلِكَ الثَّوْبَ هُوَ ثَوْبُهُ الَّذِي يَقِي بِهِ بَدَنَهُ، وَإلَّا فَبِأَيِّ شَيْءٍ يَنَامُ؟ إِذَا صَرَخَ إِلَيَّ أَسْمَعُهُ لأَنِّي رَحِيمٌ. | ٢٧ 27 |
क्यूँकि सिर्फ़ वही उसका एक ओढ़ना है, उसके जिस्म का वही लिबास है फिर वह क्या ओढ़ कर सोएगा? फिर जब वह फ़रियाद करेगा तो मैं उसकी सुनूँगा क्यूँकि मैं मेहरबान हूँ।
لَا تَشْتِمِ الْقُضَاةَ وَلا تَلْعَنْ رُؤَسَاءَ شَعْبِكَ. | ٢٨ 28 |
“तू ख़ुदा को न कोसना और न अपनी क़ौम के सरदार पर ला'नत भेजना।
لَا تُؤَخِّرْ تَقْدِيمَ بَاكُورَةِ مَحْصُولِ بَيْدَرِكَ وَمَعْصَرَتِكَ، وَأَعْطِنِي أَبْكَارَ بَنِيكَ. | ٢٩ 29 |
“तू अपनी ज़्यादा पैदावार और अपने कोल्हू के रस में से मुझे नज़्र — ओ — नियाज़ देने में देर न करना और अपने बेटों में से पहलौठे को मुझे देना।
وَكَذَلِكَ تَفْعَلُ بِبَقَرِكَ وَغَنَمِكَ. سَبْعَةَ أَيَّامٍ تُبْقِي الْبِكْرَ مَعَ أُمِّهِ، وَفِي يَوْمِهِ الثَّامِنِ تُقَدِّمُهُ لِي. | ٣٠ 30 |
अपनी गायों और भेड़ों से भी ऐसा ही करना; सात दिन तक तो बच्चा अपनी माँ के साथ रहे, आठवें दिन तू उसे मुझ को देना।
وَتَكُونُونَ لِي شَعْباً مُقَدَّساً. لَا تَأْكُلُوا لَحْمَ فَرِيسَةٍ فِي الصَّحْرَاءِ، بَلِ اطْرَحُوهُ طَعَاماً لِلْكِلابِ. | ٣١ 31 |
“और तू मेरे लिए पाक आदमी होना, इसी वजह से दरिन्दों के फाड़े हुए जानवर का गोश्त जो मैदान में पड़ा हुआ मिले मत खाना; तुम उसे कुत्तों के आगे फेंक देना।