< خرُوج 20 >
ثُمَّ نَطَقَ اللهُ بِجَمِيعِ هَذِهِ الأَقْوَالِ: | ١ 1 |
और ख़ुदा ने यह सब बातें फ़रमाई कि
«أَنَا هُوَ الرَّبُّ إِلَهُكَ الَّذِي أَخْرَجَكَ مِنْ أَرْضِ مِصْرَ دِيَارِ عُبُودِيَّتِكَ. | ٢ 2 |
“ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा जो तुझे मुल्क — ए — मिस्र से और ग़ुलामी के घर से निकाल लाया मैं हूँ।
لَا يَكُنْ لَكَ آلِهَةٌ أُخْرَى سِوَايَ. | ٣ 3 |
“मेरे सामने तू गै़र मा'बूदों को न मानना।
لَا تَنْحَتْ لَكَ تِمْثَالاً، وَلا تَصْنَعْ صُورَةً مَّا مِمَّا فِي السَّمَاءِ مِنْ فَوْقُ، وَمَا فِي الأَرْضِ مِنْ تَحْتُ، وَمَا فِي الْمَاءِ مِنْ أَسْفَلِ الأَرْضِ. | ٤ 4 |
“तू अपने लिए कोई तराशी हुई मूरत न बनाना, न किसी चीज़ की सूरत बनाना जो ऊपर आसमान में या नीचे ज़मीन पर या ज़मीन के नीचे पानी में है।
لَا تَسْجُدْ لَهُنَّ وَلا تَعْبُدْهُنَّ، لأَنِّي أَنَا الرَّبَّ إِلَهَكَ، إِلَهٌ غَيُورٌ، أَفْتَقِدُ آثَامَ الآبَاءِ فِي البَنِينَ حَتَّى الْجِيلِ الثَّالِثِ وَالرَّابِعِ مِنْ مُبْغِضِيَّ، | ٥ 5 |
तू उनके आगे सिज्दा न करना और न उनकी इबादत करना, क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ग़य्यूर ख़ुदा हूँ और जो मुझ से 'अदावत रखते हैं उनकी औलाद को तीसरी और चौथी नसल तक बाप दादा की बदकारी की सज़ा देता हूँ।
وَأَبْدِي إحْسَاناً نَحْوَ أُلُوفٍ مِنْ مُحِبِّيَّ الَّذِينَ يُطِيعُونَ وَصَايَايَ. | ٦ 6 |
और हज़ारों पर जो मुझ से मुहब्बत रखते और मेरे हुक्मों को मानते हैं। रहम करता हूँ।
لَا تَنْطِقْ بِاسْمِ الرَّبِّ إِلَهِكَ بَاطِلاً، لأَنَّ الرَّبَّ يُعَاقِبُ مَنْ نَطَقَ بِاسْمِهِ بَاطِلاً. | ٧ 7 |
“तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का नाम बेफ़ाइदा न लेना, क्यूँकि जो उसका नाम बेफ़ायदा लेता है ख़ुदावन्द उसे बेगुनाह न ठहराएगा।
اذْكُرْ يَوْمَ السَّبْتِ لِتُقَدِّسَهُ، | ٨ 8 |
“याद कर कि तू सबत का दिन पाक मानना।
سِتَّةَ أَيَّامٍ تَعْمَلُ وَتَقُومُ بِجَمِيعِ مَشَاغِلِكَ، | ٩ 9 |
छ: दिन तक तू मेहनत करके अपना सारा काम — काज करना।
أَمَّا الْيَوْمُ السَّابِعُ فَتَجْعَلُهُ سَبْتاً لِلرَّبِّ إِلَهِكَ، فَلا تَقُمْ فِيهِ بِأَيِّ عَمَلٍ أَنْتَ أَوِ ابْنُكَ أَوْ ابْنَتُكَ أَوِ عَبْدُكَ أَوْ أَمَتُكَ أَوْ بَهِيمَتُكَ أَوِ النَّزِيلُ الْمُقِيمُ دَاخِلَ أَبْوَابِكَ. | ١٠ 10 |
लेकिन सातवाँ दिन ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा का सबत है; उसमें न तू कोई काम करे न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा गु़लाम, न तेरी लोंडी, न तेरा चौपाया, न कोई मुसाफ़िर जो तेरे यहाँ तेरे फाटकों के अन्दर हो
لأَنَّ الرَّبَّ قَدْ صَنَعَ السَّمَاءَ وَالأَرْضَ وَالْبَحْرَ وَكُلَّ مَا فِيهَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ، ثُمَّ اسْتَراحَ فِي الْيَوْمِ الْسَّابِعِ. لِهَذَا بَارَكَ الرَّبُّ يَوْمَ السَّبْتِ وَجَعَلَهُ مُقَدَّساً. | ١١ 11 |
क्यूँकि ख़ुदावन्द ने छ: दिन में आसमान और ज़मीन और समन्दर और जो कुछ उनमें है वह सब बनाया, और सातवें दिन आराम किया; इसलिए ख़ुदावन्द ने सबत के दिन को बरकत दी और उसे पाक ठहराया।
أَكْرِمْ أَبَاكَ وَأُمَّكَ لِكَيْ يَطُولَ عُمْرُكَ فِي الأَرْضِ الَّتِي يَهَبُكَ إِيَّاهَا الرَّبُّ إِلَهُكَ. | ١٢ 12 |
“तू अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना ताकि तेरी उम्र उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझे देता है दराज़ हो।
لَا تَشْهَدْ زُوراً عَلَى جَارِكَ. | ١٦ 16 |
“तू अपने पड़ोसी के खिलाफ़ झूटी गवाही न देना।
لَا تَشْتَهِ بَيْتَ جَارِكَ، وَلا زَوْجَتَهُ، وَلا عَبْدَهُ، وَلا أَمَتَهُ، وَلا ثَوْرَهُ، وَلا حِمَارَهُ، وَلا شَيْئاً مِمَّا لَهُ». | ١٧ 17 |
“तू अपने पड़ोसी के घर का लालच न करना; तू अपने पड़ोसी की बीवी का लालच न करना, और न उसके ग़ुलाम और उसकी लौंडी और उसके बैल और उसके गधे का, और न अपने पड़ोसी की किसी और चीज़ का लालच करना।”
وَعِنْدَمَا عَايَنَ الشَّعْبُ كُلُّهُ الرُّعُودَ وَالْبُرُوقَ، وَسَمِعُوا دَوِيَّ صَوْتِ الْبُوقِ، وَرَأَوْا الجَبَلَ يُدَخِّنُ ارْتَجَفُوا خَوْفاً وَوَقَفُوا مِنْ بَعِيدٍ، | ١٨ 18 |
और सब लोगों ने बादल गरजते और बिजली चमकते और करना की आवाज़ होते और पहाड़ से धुआँ उठते देखा, और जब लोगों ने यह देखा तो काँप उठे और दूर खड़े हो गए;
وَقَالُوا لِمُوسَى: «كَلِّمْنَا أَنْتَ بِنَفْسِكَ فَنَسْمَعَ، لِئَلّا نَمُوتَ إذَا ظَلَّ اللهُ يُخَاطِبُنَا». | ١٩ 19 |
और मूसा से कहने लगे, “तू ही हम से बातें किया कर और हम सुन लिया करेंगे; लेकिन ख़ुदा हम से बातें न करे, ऐसा न हो कि हम मर जाएँ।”
فَأَجَابَ مُوسَى: «لا تَخَافُوا. إِنَّمَا الرَّبُّ قَدْ جَاءَ لِيَمْتَحِنَكُمْ حَتَّى تَظَلَّ مَخَافَةُ الرَّبِّ تُلازِمُكُمْ فَلا تُخْطِئُوا». | ٢٠ 20 |
मूसा ने लोगों से कहा, “तुम डरो मत, क्यूँकि ख़ुदा इसलिए आया है कि तुम्हारा इम्तिहान करे और तुम को उसका ख़ौफ़ हो ताकि तुम गुनाह न करो।”
وَبَيْنَمَا كَانَ الشَّعْبُ وَاقِفاً مِنْ بَعِيدٍ، اقْتَرَبَ مُوسَى مِنَ الظَّلامِ المُتَكَاثِفِ حَيْثُ كَانَ اللهُ. | ٢١ 21 |
और वह लोग दूर ही खड़े रहे और मूसा उस गहरी तारीकी के नज़दीक गया जहाँ ख़ुदा था।
فَقَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى: «تَقُولُ لِبَنِي إِسْرَائِيلَ: أَنْتُمْ رَأَيْتُمْ بِأَنْفُسِكُمْ كَيْفَ كَلَّمْتُكُمْ مِنَ السَّمَاءِ. | ٢٢ 22 |
और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, तू बनी — इस्राईल से यह कहना कि 'तुम ने ख़ुद देखा कि मैंने आसमान पर से तुम्हारे साथ बातें कीं।
فَامْتَنِعُوا عَنْ صُنْعِ آلِهَةِ فِضَّةٍ أَوْ آلِهَةِ ذَهَبٍ لَكُمْ لِتُشْرِكُوهَا مَعِي. | ٢٣ 23 |
तुम मेरे साथ किसी को शरीक न करना, या'नी चाँदी या सोने के देवता अपने लिए न गढ़ लेना।
أَقِمْ لِي مَذْبَحاً مِنْ تُرَابٍ تُقَدِّمُ عَلَيْهِ مُحْرَقَاتِكَ وَقَرَابِينَ سَلامَتِكَ مِنْ غَنَمِكَ وَبَقَرِكَ. وَآتِي إِلَيْكَ وَأُبَارِكُكَ فِي جَمِيعِ الأَمَاكِنِ الَّتِي أُقِيمُ فِيهَا لاِسْمِي ذِكْراً. | ٢٤ 24 |
और तू मिट्टी की एक क़ुर्बानगाह मेरे लिए बनाया करना, और उस पर अपनी भेंड़ बकरियों और गाय — बैल की सोख़्तनी कु़र्बानियाँ और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश करना और जहाँ — जहाँ मैं अपने नाम की यादगारी कराऊँगा वहाँ मैं तेरे पास आकर तुझे बरकत दूँगा।
وَإِنْ بَنَيْتَ لِي مَذْبَحاً مِنْ حِجَارَةٍ، فَلا تَبْنِهِ مِنْ حِجَارَةٍ مَنْحُوتَةٍ، لأَنَّ اسْتِعْمَالَكَ لِلإِزْمِيلِ يُدَنِّسُهَا | ٢٥ 25 |
और अगर तू मेरे लिए पत्थर की क़ुर्बानगाह बनाए तो तराशे हुए पत्थर से न बनाना, क्यूँकि अगर तू उस पर अपने औज़ार लगाए तो तू उसे नापाक कर देगा।
وَلا تَرْتَقِ إِلَى مَذْبَحِي بِدَرَجٍ لِئَلّا تَنْكَشِفَ عَوْرَتُكَ عَلَيْهِ». | ٢٦ 26 |
और तू मेरी क़ुर्बानगाह पर सीढ़ियों से हरगिज़ न चढ़ना ऐसा न हो कि तेरा नंगापन उस पर ज़ाहिर हो।