< الجامِعَة 6 >
رَأَيْتُ شَرّاً تَحْتَ الشَّمْسِ خَيَّمَ بِثِقْلِهِ عَلَى النَّاسِ: | ١ 1 |
मैंने सूरज के नीचे एक बुरी बात देखी जो मनुष्य पर बहुत अधिक हावी है.
إِنْسَانٌ رَزَقَهُ اللهُ غِنىً وَمُمْتَلَكَاتٍ وَكَرَامَةً، فَلَمْ تَفْتَقِرْ نَفْسُهُ إِلَى شَيْءٍ رَغِبَتْ فِيهِ. وَلَكِنَّ اللهَ لَمْ يُنْعِمْ عَلَيْهِ بِالْقُدْرَةِ عَلَى التَّمَتُّعِ بِها، وَإِنَّمَا تَكُونُ مِنْ حَظِّ الْغَرِيبِ. هَذَا بَاطِلٌ، وَدَاءٌ خَبِيثٌ. | ٢ 2 |
एक व्यक्ति जिसे परमेश्वर ने धन-संपत्ति और सम्मान दिया है जिससे उसे उस किसी भी वस्तु की कमी न हो जिसे उसका मन चाहता है; मगर परमेश्वर ने उसे उनको इस्तेमाल करने की समझ नहीं दी, उनका आनंद तो एक विदेशी लेता है. यह बेकार और बड़ी ही बुरी बात है.
رُبَّ رَجُلٍ يُنْجِبُ مِئَةَ وَلَدٍ وَيَعِيشُ عُمْراً طَوِيلاً حَتَّى تَكْثُرَ سِنُو حَيَاتِهِ، لَكِنَّهُ لَا يَتَمَتَّعُ بِخَيْرَاتِ الْحَيَاةِ وَلا يَثْوِي فِي قَبْرٍ. أَقُولُ إِنَّ السِّقْطَ خَيْرٌ مِنْهُ! | ٣ 3 |
यदि एक व्यक्ति सौ पुत्रों का पिता है और वह बहुत साल जीवित रहता है, चाहे उसकी आयु के साल बहुत हों, पर अगर वह अपने जीवन भर में अच्छी वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं करता और उसे क्रिया-कर्म ही नहीं किया गया तो मेरा कहना तो यही है कि एक मरा हुआ जन्मा बच्चा उस व्यक्ति से बेहतर है,
لأَنَّهُ يُقْبِلُ إِلَى الدُّنْيَا بِالْبَاطِلِ، وَيُفَارِقُ فِي الظَّلامِ وَيحْتَجِبُ اسْمُهُ بِالظُّلْمَةِ. | ٤ 4 |
क्योंकि वह बच्चा बेकार में आता है और अंधेरे में चला जाता है. अंधेरे में उसका नाम छिपा लिया जाता है.
وَمَعَ أَنَّهُ لَمْ يَرَ الدُّنْيَا وَلا عَرَفَ شَيْئاً، فَإِنَّهُ يَنَالُ رَاحَةً أَكْثَرَ | ٥ 5 |
उस बच्चे ने सूरज को नहीं देखा और न ही उसे कुछ मालूम ही हुआ था. वह बच्चा उस व्यक्ति से कहीं अधिक बेहतर है.
مِنَ الَّذِي يَعِيشُ أَلْفَيْ سَنَةٍ، وَلَكِنَّهُ يُخْفِقُ فِي الاسْتِمْتَاعِ بِالْخَيْرَاتِ. أَلّا يَذْهَبُ كِلاهُمَا، فِي نِهَايَةِ الْمُطَافِ، إِلَى مَوْضِعٍ وَاحِدٍ؟ | ٦ 6 |
दो बार जिसका जीवन दो हज़ार साल का हो मगर उस व्यक्ति ने किसी अच्छी वस्तु का इस्तेमाल न किया हो, क्या सभी लोग एक ही जगह पर नहीं जाते?
إِنَّ كُلَّ جَهْدِ الإِنْسَانِ يَلْتَهِمُهُ فَمُهُ، أَمَّا شَهِيَّتُهُ فَلا تَشْبَعُ. | ٧ 7 |
मनुष्य की सारी मेहनत उसके भोजन के लिए ही होती है, मगर उसका मन कभी संतुष्ट नहीं होता.
لأَنَّهُ مَا فَضْلُ الْحَكِيمِ عَلَى الْجَاهِلِ؟ وَأَيُّ شَيْءٍ لِلْفَقِيرِ الَّذِي يُحْسِنُ التَّصَرُّفَ أَمَامَ الأَحْيَاءِ؟ | ٨ 8 |
बुद्धिमान को निर्बुद्धि से क्या लाभ? और गरीब को यह मालूम होने से क्या लाभ कि उसे बुद्धिमानों के सामने कैसा व्यवहार करना है?
إِنَّ مَا تَرَاهُ الْعَيْنُ خَيْرٌ مِمَّا تَشْتَهِيهِ النَّفْسُ. وَهَذَا أَيْضاً بَاطِلٌ كَمُلاحَقَةِ الرِّيحِ. | ٩ 9 |
आंखों से देख लेना इच्छा रखने से कहीं अधिक बेहतर है. मगर यह भी बेकार ही है, सिर्फ हवा को पकड़ने की कोशिश.
كُلُّ مَا هُوَ كَائِنٌ أَمْرٌ مُقَرَّرٌ مُنْذُ زَمَنٍ قَدِيمٍ وَمَا جُبِلَ عَلَيْهِ الإِنْسَانُ مِنْ طَبْعٍ مَعْرُوفٌ يَتَعَذَّرُ تَغْيِيرُهُ لأَنَّهُ لَا يَقْدِرُ عَلَى مُخَاصَمَةِ مَنْ هُوَ أَقْوَى مِنْهُ (أَيْ صَانِعِهِ). | ١٠ 10 |
जो हो चुका है उसका नाम भी रखा जा चुका है, और यह भी मालूम हो चुका है कि मनुष्य क्या है? मनुष्य उस व्यक्ति पर हावी नहीं हो सकता जो उससे बलवान है.
فِي كَثْرَةِ الْكَلامِ كَثْرَةُ الْبَاطِلِ، فَأَيُّ جَدْوَى مِنْهُ لِلإِنْسَانِ؟ | ١١ 11 |
शब्द जितना अधिक है, अर्थ उतना कम होता है. इससे मनुष्य को क्या फायदा?
إِذْ مَنْ يَدْرِي مَا هُوَ خَيْرٌ لِلإِنْسَانِ فِي الْحَيَاةِ الَّتِي يَقْضِي فِيهَا أَيَّاماً قَلِيلَةً بَاطِلَةً كَالظِّلِّ؟ وَمَنْ يَقْدِرُ أَنْ يُطْلِعَ الإِنْسَانَ عَلَى مَا سَيَحْدُثُ تَحْتَ الشَّمْسِ مِنْ بَعْدِهِ؟ | ١٢ 12 |
जिसे यह मालूम है कि उसके पूरे जीवन में मनुष्य के लिए क्या अच्छा है, अपने उस व्यर्थ जीवन के थोड़े से सालों में. वह एक परछाई के समान उन्हें बिता देगा. मनुष्य को कौन बता सकता है कि सूरज के नीचे उसके बाद क्या होगा?