< تَثنِيَة 27 >

وَأَوْصَى مُوسَى وَشُيُوخُ إِسْرَائِيلَ الشَّعْبَ قَائِلِينَ: «أَطِيعُوا جَمِيعَ الْوَصَايَا الَّتِي أَنَا آمُرُكُمْ بِها الْيَوْمَ. ١ 1
फिर मूसा ने बनी — इस्राईल के बुज़ुर्गों के साथ हो कर लोगों से कहा कि “जितने हुक्म आज के दिन मैं तुमको देता हूँ उन सब को मानना।
فَعِنْدَمَا تَجْتَازُونَ نَهْرَ الأُرْدُنِّ إِلَى الأَرْضِ الَّتِي يَهَبُهَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ لَكُمْ، تَنْصِبُونَ لأَنْفُسِكُمْ حِجَارَةً كَبِيرَةً وَتَطْلُونَهَا بِالْكِلْسِ، ٢ 2
और जिस दिन तुम यरदन पार हो कर उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है पहुँचो, तो तू बड़े — बड़े पत्थर खड़े करके उन पर चूने की अस्तरकारी करना;
وَتَكْتُبُونَ عَلَيْهَا جَمِيعَ كَلِمَاتِ هَذِهِ الشَّرِيعَةِ لَدَى عُبُورِكُمُ الأُرْدُنَّ لِدُخُولِ الأَرْضِ الَّتِي تَفِيضُ لَبَناً وَعَسَلاً، الَّتِي يَهَبُهَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ لَكُمْ، كَمَا وَعَدَكُمُ الرَّبُّ إِلَهُ آبَائِكُمْ. ٣ 3
और पार हो जाने के बाद इस शरी'अत की सब बातें उन पर लिखना, ताकि उस वा'दे के मुताबिक़ जो ख़ुदावन्द तेरे बाप — दादा के ख़ुदा ने तुझ से किया, उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है या'नी उस मुल्क में जहाँ दूध और शहद बहता है तू पहुँच जाये।
وَمَا إِنْ تَعْبُرُوا نَهْرَ الأُرْدُنِّ حَتَّى تَنْصِبُوا هَذِهِ الْحِجَارَةَ الَّتِي أَنَا أُوصِيكُمْ بِها الْيَوْمَ عَلَى جَبَلِ عِيبَالَ وَتَطْلُوهَا بِالْكِلْسِ. ٤ 4
इसलिए तुम यरदन के पार हो कर उन पत्थरों को जिनके बारे में मैं तुमको आज के दिन हुक्म देता हूँ, कोह — ए — 'ऐबाल पर नस्ब करके उन पर चूने की अस्तरकारी करना।
وَتَبْنُونَ هُنَاكَ مَذْبَحاً لِلرَّبِّ إِلَهِكُمْ، مِنْ حِجَارَةٍ غَيْرِ مَنْحُوتَةٍ بِحَدِيدٍ، ٥ 5
और वहीं तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए पत्थरों का एक मज़बह बनाना, और लोहे का कोई औज़ार उन पर न लगाना।
بَلْ مِنْ حِجَارَةِ الْحَقْلِ الْخَشِنَةِ لِتُقَدِّمُوا عَلَيْهَا مُحْرَقَاتٍ لِلرَّبِّ إِلَهِكُمْ. ٦ 6
और तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का मज़बह बे तराशे पत्थरों से बनाना, और उस पर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करना।
وَهُنَاكَ تُقَرِّبُونَ ذَبَائِحَ سَلامٍ، وَتَأْكُلُونَ وَتَحْتَفِلُونَ فِي حَضْرَةِ الرَّبِّ إِلَهِكُمْ. ٧ 7
और वहीं सलामती की क़ुर्बानियाँ अदा करना और उनको खाना और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने ख़ुशी मनाना।
وَتَنْقُشُونَ عَلَى الْحِجَارَةِ نَقْشاً دَقِيقاً كَلِمَاتِ هَذِهِ الشَّرِيعَةِ جَمِيعَهَا». ٨ 8
और उन पत्थरों पर इस शरी'अत की सब बातें साफ़ — साफ़ लिखना।”
ثُمَّ قَالَ مُوسَى وَالْكَهَنَةُ وَاللّاوِيُّونَ لِجَمِيعِ شَعْبِ إِسْرَائِيلَ: «أَنْصِتُوا وَأَصْغُوا يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ، الْيَوْمَ أَصْبَحْتُمْ شَعْباً لِلرَّبِّ إِلَهِكُمْ. ٩ 9
फिर मूसा और लावी काहिनों ने सब बनी — इस्राईल से कहा, ऐ इस्राईल, ख़ामोश हो जा और सुन, तू आज के दिन ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की क़ौम बन गया है।
فَاسْمَعُوا لِصَوْتِ الرَّبِّ إِلَهِكُمْ وَطَبِّقُوا وَصَايَاهُ وَفَرَائِضَهُ الَّتِي أَنَا آمُرُكُمُ الْيَوْمَ بِها». ١٠ 10
इसलिए तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात सुनना और उसके सब आईन और अहकाम पर जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ 'अमल करना।”
وَأَوْصَى مُوسَى الشَّعْبَ فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ نَفْسِهِ قَائِلاً: ١١ 11
और मूसा ने उसी दिन लोगों से ताकीद करके कहा कि;
«هَذِهِ هِيَ الأَسْبَاطُ الَّتِي تَقِفُ عَلَى جَبَلِ جِرِزِّيمَ لِيُبَارِكُوا الشَّعْبَ بَعْدَ عُبُورِكُمْ نَهْرَ الأُرْدُنِّ: أَسْبَاطُ شِمْعُونَ وَلاوِي وَيَهُوذَا وَيَسَّاكَرَ وَيُوسُفَ وَبَنْيَامِينَ. ١٢ 12
“जब तुम यरदन पार हो जाओ, तो कोह — ए — गरिज़ीम पर शमौन, और लावी, और यहूदाह, और इश्कार, और यूसुफ़, और बिनयमीन खड़े हों और लोगों को बरकत सुनाएँ।
أَمَّا الأَسْبَاطُ الَّتِي تَقِفُ عَلَى جَبَلِ عِيبَالَ لإِعْلانِ اللَّعْنَةِ فَهِيَ أَسْبَاطُ رَأُوبَيْنَ وَجَادٍ وَأَشِيرَ وَزَبُولُونَ وَدَانٍ وَنَفْتَالِي. ١٣ 13
और रूबिन, और जद्द, और आशर, और ज़बूलून, और दान, और नफ़्ताली कोह — ए — 'ऐबाल पर खड़े होकर ला'नत सुनाएँ।
فَيَقُولُ اللّاوِيُّونَ بِصَوْتٍ عَالٍ لِجَمِيعِ شَعْبِ إِسْرَائِيلَ: ١٤ 14
और लावी बलन्द आवाज़ से सब इस्राईली आदमियों से कहें कि:
مَلْعُونٌ الإِنْسَانُ الَّذِي يَصْنَعُ تِمْثَالاً مَنْحُوتاً أَوْ مَسْبُوكاً مِمَّا تَصْنَعُهُ يَدَا نَحَّاتٍ، وَتَنْصِبُهُ لِلْعِبَادَةِ فِي الْخَفَاءِ، لأَنَّ ذَلِكَ رِجْسٌ لَدَى الرَّبِّ. وَيُجِيبُ جَمِيعُ الشَّعْبِ قَائِلِينَ: آمِينَ. ١٥ 15
'ला'नत उस आदमी पर जो कारीगरी की सन'अत की तरह खोदी हुई या ढाली हुई मूरत बना कर जो ख़ुदावन्द के नज़दीक मकरूह है, उसको किसी पोशीदा जगह में नस्ब करे। और सब लोग जवाब दें और कहें, 'आमीन।
مَلْعُونٌ كُلُّ مَنْ يَسْتَخِفُّ بِأَبِيهِ وَأُمِّهِ. وَيَقُولُ جَمِيعُ الشَّعْبِ: آمِين. ١٦ 16
'ला'नत उस पर जो अपने बाप या माँ को हक़ीर जाने। और सब लोग कहें, 'आमीन।
مَلْعُونٌ كُلُّ مَنْ يَعْبَثُ بِحُدُودِ أَرْضِ جَارِهِ. وَيَقُولُ جَمِيعُ الشَّعْبِ: آمِين. ١٧ 17
'ला'नत उस पर जो अपने पड़ोसी की हद के निशान को हटाये। और सब लोग कहें, 'आमीन।
مَلْعُونٌ كُلُّ مَنْ يُضِلُّ الْكَفِيفَ عَنْ طَرِيقِهِ. وَيَقُولُ جَمِيعُ الشَّعْبِ: آمِين. ١٨ 18
'ला'नत उस पर जो अन्धे को रास्ते से गुमराह करे। और सब लोग कहें, 'आमीन।
مَلْعُونٌ كُلُّ مَنْ يَجُورُ عَلَى حَقِّ الْغَرِيبِ وَالْيَتِيمِ وَالأَرْمَلَةِ. وَيَقُولُ جَمِيعُ الشَّعْبِ: آمِين. ١٩ 19
'ला'नत उस पर जो परदेसी और यतीम और बेवा के मुक़द्दमे को बिगाड़े।” और सब लोग कहें, 'आमीन।
مَلْعُونٌ كُلُّ مَنْ يُضَاجِعُ امْرَأَةَ أَبِيهِ، لأَنَّهُ يَكْشِفُ سِتْرَ أَبِيهِ. وَيَقُولُ جَمِيعُ الشَّعْبِ: آمِين. ٢٠ 20
'ला'नत उस पर जो अपने बाप की बीवी से मुबाश्रत करे, क्यूँकि वह अपने बाप के दामन को बेपर्दा करता है। और सब लोग कहें, 'आमीन।
مَلْعُونٌ كُلُّ مَنْ يُضَاجِعُ بَهِيمَةً مَا. وَيَقُولُ جَمِيعُ الشَّعْبِ: آمِين. ٢١ 21
'ला'नत उस पर जो किसी चौपाए के साथ जिमा'अ करे। और सब लोग कहें, 'आमीन।
مَلْعُونٌ كُلُّ مَنْ يُضَاجِعُ أُخْتَهُ ابْنَةَ أُمِّهِ أَوِ ابْنَةَ أَبِيهِ. وَيَقُولُ جَمِيعُ الشَّعْبِ: آمِين. ٢٢ 22
'ला'नत उस पर जो अपनी बहन से मुबाश्रत करे, चाहे वह उसके बाप की बेटी हो चाहे माँ की। और सब लोग कहें, 'आमीन।
مَلْعُونٌ كُلُّ مَنْ يُضَاجِعُ حَمَاتَهُ. فَيَقُولُ جَمِيعُ الشَّعْبِ: آمِين. ٢٣ 23
'ला'नत उस पर जो अपनी सास से मुबाश्रत करे। और सब लोग कहें, 'आमीन।
مَلْعُونٌ كُلُّ مَنْ يَقْتُلُ صَاحِبَهُ فِي الْخَفَاءِ. فَيَقُولُ جَمِيعُ الشَّعْبِ: آمِين. ٢٤ 24
'ला'नत उस पर जो अपने पड़ोसी को पोशीदगी में मारे। और सब लोग कहें, 'आमीन।
مَلْعُونٌ كُلُّ مَنْ يَأْخُذُ رِشْوَةً لِيَقْتُلَ نَفْساً بَرِيئَةً. فَيَقُولُ جَمِيعُ الشَّعْبِ: آمِين. ٢٥ 25
'लानत उस पर जो बे — गुनाह को क़त्ल करने के लिए इनाम ले। और सब लोग कहें, 'आमीन।
مَلْعُونٌ كُلُّ مَنْ لَا يُطِيعُ كَلِمَاتِ هَذِهِ الشَّرِيعَةِ وَلا يَعْمَلُ بِها. فَيَقُولُ جَمِيعُ الشَّعْبِ: آمِين. ٢٦ 26
'ला'नत उस पर जो इस शरी'अत की बातों पर 'अमल करने के लिए उन पर क़ाईम न रहे।” और सब लोग कहें, 'आमीन।

< تَثنِيَة 27 >