< تَثنِيَة 23 >

لَا يَدْخُلْ ذُو الْخِصْيَتَيْنِ الْمَرْضُوضَتَيْنِ أَوِ الْمَجْبُوبُ فِي جَمَاعَةِ الرَّبِّ. ١ 1
जिसके ख़ुसिये कुचले गए हों या आलत काट डाली गई हो, वह ख़ुदावन्द की जमा'अत में आने न पाए।
لَا يَدْخُلِ ابْنُ زِنىً وَلا أَحَدٌ مِنْ ذُرِّيَّتِهِ حَتَّى الْجِيلِ الْعَاشِرِ فِي جَمَاعَةِ الرَّبِّ. ٢ 2
कोई हरामज़ादा ख़ुदावन्द की जमा'अत में दाख़िल न हो, दसवीं नसल तक उसकी नसल में से कोई ख़ुदावन्द की जमा'अत में आने न पाए।
لَا يَدْخُلْ عَمُّونِيٌّ وَلا مُوآبِيٌّ فِي جَمَاعَةِ الرَّبِّ، وَلا أَحَدٌ مِنْ ذُرِّيَّتِهِمْ حَتَّى بَعْدَ الْجِيلِ الْعَاشِرِ فِي جَمَاعَةِ الرَّبِّ وَإِلَى الأَبَدِ، ٣ 3
कोई 'अम्मोनी या मोआबी ख़ुदावन्द की जमा'अत में दाख़िल न हो, दसवीं नसल तक उनकी नसल में से कोई ख़ुदावन्द की जमा'अत में कभी आने न पाए;
لأَنَّهُمْ لَمْ يَسْتَقْبِلُوكُمْ بِالْخُبْزِ وَالْمَاءِ فِي الطَّرِيقِ عِنْدَ خُرُوجِكُمْ مِنْ مِصْرَ، وَلأَنَّهُمُ اسْتَأْجَرُوا بَلْعَامَ بْنَ بَعُورَ مِنْ فَتُورِ أَرَامِ النَّهْرَيْنِ لِيَلْعَنَكُمْ ٤ 4
इसलिए कि जब तुम मिस्र से निकल कर आ रहे थे तो उन्होंने रोटी और पानी लेकर रास्ते में तुम्हारा इस्तक़बाल नहीं किया, बल्कि ब'ओर के बेटे बल'आम को मसोपतामिया के फ़तोर से उजरत पर बुलवाया ताकि वह तुझ पर ला'नत करे।
وَلَكِنَّ الرَّبَّ إِلَهَكُمْ لَمْ يَشَأْ أَنْ يَسْتَجِيبَ لِبَلْعَامَ، بَلْ حَوَّلَ لأَجْلِكُمُ اللَّعْنَةَ إِلَى بَرَكَةٍ، لأَنَّ الرَّبَّ إِلَهَكُمْ قَدْ أَحَبَّكُمْ. ٥ 5
लेकिन ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने बल'आम की न सुनी, बल्कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तेरे लिए उस ला'नत को बरकत से बदल दिया इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा को तुझसे मुहब्बत थी।
لَا تَسْعَوْا فِي سَبِيلِ مُسَالَمَتِهِمْ وَخَيْرِهِمْ إِلَى الأَبَدِ. ٦ 6
तू अपनी ज़िन्दगी भर कभी उनकी सलामती या स'आदत की चाहत न रखना।
لَا تَمْقُتُوا الأَدُومِيِّينَ لأَنَّهُمْ إِخْوَتُكُمْ، وَلا تَكْرَهُوا الْمِصْرِيِّينَ لأَنَّكُمْ كُنْتُمْ ضُيُوفاً فِي دِيَارِهِمْ ٧ 7
तू किसी अदोमी से नफ़रत न रखना, क्यूँकि वह तेरा भाई है; तू किसी मिस्री से भी नफ़रत न रखना, क्यूँकि तू उसके मुल्क में परदेसी हो कर रहा था।
وَمَنْ يُوْلَدُ مِنْ ذُرِّيَّتِهِمْ فِي الْجِيلِ الثَّالِثِ يَدْخُلُ فِي جَمَاعَةِ الرَّبِّ. ٨ 8
उनकी तीसरी नसल के जो लड़के पैदा हों वह ख़ुदावन्द की जमा'अत में आने पाएँ।
إِذَا خَرَجْتُمْ لِمُحَارَبَةِ أَعْدَائِكُمْ فَامْتَنِعُوا عَنْ كُلِّ شَيْءٍ قَبِيحٍ ٩ 9
जब तू अपने दुश्मनों से लड़ने के लिए दल बाँध कर निकले तो अपने को हर बुरी चीज़ से बचाए रखना।
فَإِنْ كَانَ بَيْنَكُمْ رَجُلٌ غَيْرَ طَاهِرٍ عَلَى أَثَرِ اسْتِحْلامٍ فَلْيَمْضِ إِلَى خَارِجِ الْمُعَسْكَرِ. لَا يَدْخُلُ إِلَيْهِ. ١٠ 10
अगर तुम्हारे बीच कोई ऐसा आदमी हो जो रात को एहतिलाम की वजह से नापाक हो गया हो, तो वह खे़मागाह से बाहर निकल जाए और खे़मागाह के अन्दर न आए;
وَعِنْدَ حُلُولِ الْمَسَاءِ يَسْتَحِمُّ بِمَاءٍ، ثُمَّ يَدْخُلُ إِلَى الْمُعَسْكَرِ عِنْدَ غُرُوبِ الشَّمْسِ. ١١ 11
लेकिन जब शाम होने लगे तो वह पानी से गु़स्ल करे, और जब आफ़ताब गु़रूब हो जाए तो ख़ेमागाह में आए।
وَعَلَيْكُمْ أَنْ تُحَدِّدُوا مَوْضِعاً لِقَضَاءِ الْحَاجَةِ خَارِجَ الْمُعَسْكَرِ. ١٢ 12
और ख़ेमागाह के बाहर तू कोई जगह ऐसी ठहरा देना, जहाँ तू अपनी हाजत के लिए जा सके;
وَلْيَكُنْ مَعَ كُلِّ وَاحِدٍ مِنْكُمْ وَتَدٌ بَيْنَ عَتَادِهِ لِيَحْفُرَ بِهِ حُفْرَةً يَقْضِي فِيهَا حَاجَتَهُ، ثُمَّ يُغَطِّي بِرَازَهُ بِالتُّرَابِ، ١٣ 13
और अपने साथ अपने हथियारों में एक मेख़ भी रखना, ताकि जब बाहर तुझे हाजत के लिए बैठना हो तो उससे जगह खोद लिया करे और लौटते वक़्त अपने फुज़ले को ढाँक दिया करे।
لأَنَّ الرَّبَّ إِلَهَكُمْ سَائِرٌ فِي وَسَطِ مُعَسْكَرِكُمْ لِيُنْقِذَكُمْ وَيُظْفِرَكُمْ بِأَعْدَائِكُمْ. فَلْيَكُنْ مُعَسْكَرُكُمْ مُقَدَّساً لِئَلّا يَشْهَدَ فِيهِ أَقْذَاراً فَيَتَحَوَّلَ عَنْكُمْ. ١٤ 14
इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरी ख़ेमागाह में फिरा करता है ताकि तुझको बचाए, और तेरे दुश्मनों को तेरे हाथ में कर दे; इसलिए तेरी ख़ेमागाह पाक रहे, ऐसा न हो कि वह तुझमें नजासत को देख कर तुझ से फिर जाए।
إِذَا لَجَأَ إِلَيْكُمْ عَبْدٌ هَارِبٌ مِنْ مَوْلاهُ، لَا تُسَلِّمُوهُ إِلَى مَوْلاهُ، ١٥ 15
अगर किसी का ग़ुलाम अपने आक़ा के पास से भाग कर तेरे पास पनाह ले, तो तू उसे उसके आक़ा के हवाले न कर देना;
بَلْ يُقِيمُ حَيْثُ يَطِيبُ لَهُ فِي الْمَوْضِعِ الَّذِي يَخْتَارُهُ فِي إِحْدَى مُدُنِكُمْ وَلا تَظْلِمُوهُ. ١٦ 16
बल्कि वह तेरे साथ तेरे ही बीच तेरी बस्तियों में से, जो उसे अच्छी लगे उसे चुन कर उसी जगह रहे; इसलिए तू उसे हरगिज़ न सताना।
لَا يَكُنْ مِنْ بَنَاتِ إِسْرَائِيلَ وَلا مِنْ أَبْنَاءِ إِسْرَائِيلَ زَانِيَاتٌ وَمَأْبُونُو مَعَابِدَ. ١٧ 17
इस्राईली लड़कियों में कोई फ़ाहिशा न हो, और न इस्राईली लड़कों में कोई लूती हो।
لَا تَأْتُوا بِتَقْدِمَةِ نَذْرٍ مَا إِلَى بَيْتِ الرَّبِّ إِلَهِكُمْ مِنْ مَكْسَبِ زَانِيَةٍ أَوْ مَأْبُونٍ، لأَنَّ كِلَيْهِمَا رِجْسٌ أَمَامَ الرَّبِّ. ١٨ 18
तू किसी फ़ाहिशा की ख़र्ची या कुत्ते की मज़दूरी, किसी मिन्नत के लिए ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर में न लाना; क्यूँकि ये दोनों ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के नज़दीक मकरूह हैं।
لَا تَتَقَاضَوْا فَوَائِدَ عَمَّا تُقْرِضُونَهُ لإِخْوَتِكُمْ مِنْ بَنِي إِسْرَائِيلَ، سَوَاءٌ كَانَتِ الْقُرُوضُ فِضَّةً أَوْ أَطْعِمَةً أَوْ أَيَّ شَيْءٍ آخَرَ. ١٩ 19
तू अपने भाई को सूद पर क़र्ज़ न देना, चाहे वह रुपये का सूद हो या अनाज का सूद या किसी ऐसी चीज़ का सूद हो जो ब्याज पर दी जाया करती है।
أَمَّا الأَجْنَبِيُّ فَأَقْرِضُوهُ بِرِباً. إِنَّمَا إِيَّاكُمْ إِقْرَاضَ أَخِيكُمْ بِفَائِدَةٍ، لِيُبَارِكَكُمُ الرَّبُّ إِلَهُكُمْ فِي كُلِّ مَا تُنْتِجُهُ أَيْدِيكُمْ فِي الأَرْضِ الَّتِي أَنْتُمْ مَاضُونَ لاِمْتِلاكِهَا. ٢٠ 20
तू परदेसी को सूद पर क़र्ज़ दे तो दे, लेकिन अपने भाई को सूद पर क़र्ज़ न देना; ताकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उस मुल्क में जिस पर तू क़ब्ज़ा करने जा रहा है, तेरे सब कामों में जिनको तू हाथ लगाए तुझको बरकत दे।
إِذَا نَذَرْتُمْ نَذْراً لِلرَّبِّ فَلا تُمَاطِلُوا فِي الْوَفَاءِ بِهِ، لأَنَّ إِلَهَكُمْ يُطَالِبُكُمْ بِهِ وَيَحْسَبُ ذَلِكَ عَلَيْكُمْ ذَنْباً ٢١ 21
जब तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की ख़ातिर मिन्नत माने तो उसके पूरा करने में देर न करना, इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ज़रूर उसको तुझसे तलब करेगा तब तू गुनाहगार ठहरेगा।
وَإِنْ لَمْ تَنْذِرُوا لَا تَكُونُ عَلَيْكُمْ خَطِيئَةٌ. ٢٢ 22
लेकिन अगर तू मिन्नत न माने तो तेरा कोई गुनाह नहीं।
أَمَّا مَا تَعَهَّدَتْ بِهِ شَفَتَاكَ فَذَاكَ احْفَظْهُ وَأَوْفِهِ، كَمَا نَذَرْتَ طَوَاعِيَةً لِلرَّبِّ إِلَهِكَ، وَكَمَا تَعَهَّدَ بِهِ فَمُكَ. ٢٣ 23
जो कुछ तेरे मुँह से निकले उसे ध्यान कर के पूरा करना, और जैसी मिन्नत तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए मानी हो, उसके मुताबिक़ रज़ा की क़ुर्बानी जिसका वा'दा तेरी ज़बान से हुआ अदा करना।
إِذَا دَخَلْتَ كَرْمَ عِنَبِ جَارِكَ فَكُلْ مِنْهُ بِقَدْرِ مَا تَشْتَهِي نَفْسُكَ حَتَّى الشَّبْعِ، وَلَكِنْ لَا تَقْطِفْ مِنْ عِنَبِهِ وَتَضَعْهُ فِي وِعَائِكَ. ٢٤ 24
जब तू अपने पड़ोसी के ताकिस्तान में जाए, तो जितने अंगूर चाहे पेट भर कर खाना, लेकिन कुछ अपने बर्तन में न रख लेना।
إِذَا دَخَلْتَ حَقْلَ قَمْحِ صَاحِبِكَ فَاقْطِفْ مِنْ سَنَابِلِهِ، وَلَكِنْ لَا تَحْصُدْ مِنْهُ بِمِنْجَلِكَ. ٢٥ 25
जब तू अपने पड़ोसी के खड़े खेत में जाए, तो अपने हाथ से बालें तोड़ सकता है लेकिन अपने पड़ोसी के खड़े खेत को हँसुआ न लगाना।

< تَثنِيَة 23 >