< اَلْمَزَامِيرُ 6 >
لِإِمَامِ ٱلْمُغَنِّينَ عَلَى «ذَوَاتِ ٱلْأَوْتَارِ» عَلَى «ٱلْقَرَارِ». مَزْمُورٌ لِدَاوُدَ يَارَبُّ، لَا تُوَبِّخْنِي بِغَضَبِكَ، وَلَا تُؤَدِّبْنِي بِغَيْظِكَ. | ١ 1 |
ऐ ख़ुदा तू मुझे अपने क़हर में न झिड़क, और अपने ग़ज़बनाक ग़ुस्से में मुझे तम्बीह न दे।
ٱرْحَمْنِي يَارَبُّ لِأَنِّي ضَعِيفٌ. ٱشْفِنِي يَارَبُّ لِأَنَّ عِظَامِي قَدْ رَجَفَتْ، | ٢ 2 |
ऐ ख़ुदावन्द, मुझ पर रहम कर, क्यूँकि मैं अधमरा हो गया हूँ। ऐ ख़ुदवन्द, मुझे शिफ़ा दे, क्यूँकि मेरी हडिडयों में बेक़रारी है।
وَنَفْسِي قَدِ ٱرْتَاعَتْ جِدًّا. وَأَنْتَ يَارَبُّ، فَحَتَّى مَتَى؟ | ٣ 3 |
मेरी जान भी बहुत ही बेक़रार है; और तू ऐ ख़ुदावन्द, कब तक?
عُدْ يَارَبُّ. نَجِّ نَفْسِي. خَلِّصْنِي مِنْ أَجْلِ رَحْمَتِكَ. | ٤ 4 |
लौट ऐ ख़ुदावन्द, मेरी जान को छुड़ा। अपनी शफ़क़त की ख़ातिर मुझे बचा ले।
لِأَنَّهُ لَيْسَ فِي ٱلْمَوْتِ ذِكْرُكَ. فِي ٱلْهَاوِيَةِ مَنْ يَحْمَدُكَ؟ (Sheol ) | ٥ 5 |
क्यूँकि मौत के बाद तेरी याद नहीं होती, क़ब्र में कौन तेरी शुक्रगुज़ारी करेगा? (Sheol )
تَعِبْتُ فِي تَنَهُّدِي. أُعَوِّمُ فِي كُلِّ لَيْلَةٍ سَرِيرِي بِدُمُوعِي. أُذَوِّبُ فِرَاشِي. | ٦ 6 |
मैं कराहते कराहते थक गया, मैं अपना पलंग आँसुओं से भिगोता हूँ हर रात मेरा बिस्तर तैरता है।
سَاخَتْ مِنَ ٱلْغَمِّ عَيْنِي. شَاخَتْ مِنْ كُلِّ مُضَايِقِيَّ. | ٧ 7 |
मेरी आँख ग़म के मारे बैठी जाती हैं, और मेरे सब मुख़ालिफ़ों की वजह से धुंधलाने लगीं।
اُبْعُدُوا عَنِّي يَا جَمِيعَ فَاعِلِي ٱلْإِثْمِ، لِأَنَّ ٱلرَّبَّ قَدْ سَمِعَ صَوْتَ بُكَائِي. | ٨ 8 |
ऐ सब बदकिरदारो, मेरे पास से दूर हो; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मेरे रोने की आवाज़ सुन ली है।
سَمِعَ ٱلرَّبُّ تَضَرُّعِي. ٱلرَّبُّ يَقْبَلُ صَلَاتِي. | ٩ 9 |
खूदावन्द ने मेरी मिन्नत सुन ली; ख़ुदावन्द मेरी दुआ क़ुबूल करेगा।
جَمِيعُ أَعْدَائِي يُخْزَوْنَ وَيَرْتَاعُونَ جِدًّا. يَعُودُونَ وَيُخْزَوْنَ بَغْتَةً. | ١٠ 10 |
मेरे सब दुश्मन शर्मिन्दा और बहुत ही बेक़रार होंगे; वह लौट जाएँगे, वह अचानक शर्मिन्दा होंगे।