< اَلْمَزَامِيرُ 43 >
اِقْضِ لِي يَا ٱللهُ، وَخَاصِمْ مُخَاصَمَتِي مَعَ أُمَّةٍ غَيْرِ رَاحِمَةٍ، وَمِنْ إِنْسَانِ غِشٍّ وَظُلْمٍ نَجِّنِي. | ١ 1 |
१हे परमेश्वर, मेरा न्याय चुका और विधर्मी जाति से मेरा मुकद्दमा लड़; मुझ को छली और कुटिल पुरुष से बचा।
لِأَنَّكَ أَنْتَ إِلَهُ حِصْنِي. لِمَاذَا رَفَضْتَنِي؟ لِمَاذَا أَتَمَشَّى حَزِينًا مِنْ مُضَايَقَةِ ٱلْعَدُوِّ؟ | ٢ 2 |
२क्योंकि तू मेरा सामर्थी परमेश्वर है, तूने क्यों मुझे त्याग दिया है? मैं शत्रु के अत्याचार के मारे शोक का पहरावा पहने हुए क्यों फिरता रहूँ?
أَرْسِلْ نُورَكَ وَحَقَّكَ، هُمَا يَهْدِيَانِنِي وَيَأْتِيَانِبِي إِلَى جَبَلِ قُدْسِكَ وَإِلَى مَسَاكِنِكَ. | ٣ 3 |
३अपने प्रकाश और अपनी सच्चाई को भेज; वे मेरी अगुआई करें, वे ही मुझ को तेरे पवित्र पर्वत पर और तेरे निवास-स्थान में पहुँचाए!
فَآتِي إِلَى مَذْبَحِ ٱللهِ، إِلَى ٱللهِ بَهْجَةِ فَرَحِي، وَأَحْمَدُكَ بِٱلْعُودِ يَا ٱللهُ إِلَهِي. | ٤ 4 |
४तब मैं परमेश्वर की वेदी के पास जाऊँगा, उस परमेश्वर के पास जो मेरे अति आनन्द का कुण्ड है; और हे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, मैं वीणा बजा-बजाकर तेरा धन्यवाद करूँगा।
لِمَاذَا أَنْتِ مُنْحَنِيَةٌ يَا نَفْسِي؟ وَلِمَاذَا تَئِنِّينَ فِيَّ؟ تَرَجَّيِ ٱللهَ، لِأَنِّي بَعْدُ أَحْمَدُهُ، خَلَاصَ وَجْهِي وَإِلَهِي. | ٥ 5 |
५हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर आशा रख, क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है; मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा।