< اَلْمَزَامِيرُ 4 >
لِإِمَامِ ٱلْمُغَنِّينَ عَلَى «ذَوَاتِ ٱلْأَوْتَارِ». مَزْمُورٌ لِدَاوُدَ عِنْدَ دُعَائِيَ ٱسْتَجِبْ لِي يَا إِلَهَ بِرِّي. فِي ٱلضِّيقِ رَحَّبْتَ لِي. تَرَاءَفْ عَلَيَّ وَٱسْمَعْ صَلَاتِي. | ١ 1 |
जब मै पुकारूँ तो मुझे जबाब दे ऐ मेरी सदाक़त के ख़ुदा! तंगी में तूने मुझे कुशादगी बख़्शी, मुझ पर रहम कर और मेरी दुआ सुन ले।
يَا بَنِي ٱلْبَشَرِ، حَتَّى مَتَى يَكُونُ مَجْدِي عَارًا؟ حَتَّى مَتَى تُحِبُّونَ ٱلْبَاطِلَ وَتَبْتَغُونَ ٱلْكَذِبَ؟ سِلَاهْ. | ٢ 2 |
ऐ बनी आदम! कब तक मेरी 'इज़्ज़त के बदले रुस्वाई होगी? तुम कब तक बकवास से मुहब्बत रखोगे और झूट के दर पे रहोगे?
فَٱعْلَمُوا أَنَّ ٱلرَّبَّ قَدْ مَيَّزَ تَقِيَّهُ. ٱلرَّبُّ يَسْمَعُ عِنْدَ مَا أَدْعُوهُ. | ٣ 3 |
जान लो कि ख़ुदावन्द ने दीनदार को अपने लिए अलग कर रखा है; जब मैं ख़ुदावन्द को पुकारूँगा तो वह सुन लेगा।
اِرْتَعِدُوا وَلَا تُخْطِئُوا. تَكَلَّمُوا فِي قُلُوبِكُمْ عَلَى مَضَاجِعِكُمْ وَٱسْكُتُوا. سِلَاهْ. | ٤ 4 |
थरथराओ और गुनाह न करो; अपने अपने बिस्तर पर दिल में सोचो और ख़ामोश रहो।
اِذْبَحُوا ذَبَائِحَ ٱلْبِرِّ، وَتَوَكَّلُوا عَلَى ٱلرَّبِّ. | ٥ 5 |
सदाक़त की कु़र्बानियाँ पेश करो, और ख़ुदावन्द पर भरोसा करो।
كَثِيرُونَ يَقُولُونَ: «مَنْ يُرِينَا خَيْرًا؟». ٱرْفَعْ عَلَيْنَا نُورَ وَجْهِكَ يَارَبُّ. | ٦ 6 |
बहुत से कहते हैं कौन हम को कुछ भलाई दिखाएगा? ऐ ख़ुदावन्द तू अपने चेहरे का नूर हम पर जलवह गर फ़रमा।
جَعَلْتَ سُرُورًا فِي قَلْبِي أَعْظَمَ مِنْ سُرُورِهِمْ إِذْ كَثُرَتْ حِنْطَتُهُمْ وَخَمْرُهُمْ. | ٧ 7 |
तूने मेरे दिल को उससे ज़्यादा खु़शी बख़्शी है, जो उनको ग़ल्ले और मय की बहुतायत से होती थी।
بِسَلَامَةٍ أَضْطَجِعُ بَلْ أَيْضًا أَنَامُ، لِأَنَّكَ أَنْتَ يَارَبُّ مُنْفَرِدًا فِي طُمَأْنِينَةٍ تُسَكِّنُنِي. | ٨ 8 |
मैं सलामती से लेट जाऊँगा और सो रहूँगाः क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द! सिर्फ़ तू ही मुझे मुत्मईन रखता है!