< اَلْمَزَامِيرُ 129 >
تَرْنِيمَةُ ٱلْمَصَاعِدِ «كَثِيرًا مَا ضَايَقُونِي مُنْذُ شَبَابِي». لِيَقُلْ إِسْرَائِيلُ: | ١ 1 |
१यात्रा का गीत इस्राएल अब यह कहे, “मेरे बचपन से लोग मुझे बार बार क्लेश देते आए हैं,
«كَثِيرًا مَا ضَايَقُونِي مُنْذُ شَبَابِي، لَكِنْ لَمْ يَقْدِرُوا عَلَيَّ. | ٢ 2 |
२मेरे बचपन से वे मुझ को बार बार क्लेश देते तो आए हैं, परन्तु मुझ पर प्रबल नहीं हुए।
عَلَى ظَهْرِي حَرَثَ ٱلْحُرَّاثُ. طَوَّلُوا أَتْلَامَهُمْ». | ٣ 3 |
३हलवाहों ने मेरी पीठ के ऊपर हल चलाया, और लम्बी-लम्बी रेखाएँ की।”
ٱلرَّبُّ صِدِّيقٌ. قَطَعَ رُبُطَ ٱلْأَشْرَارِ. | ٤ 4 |
४यहोवा धर्मी है; उसने दुष्टों के फंदों को काट डाला है;
فَلْيَخْزَ وَلْيَرْتَدَّ إِلَى ٱلْوَرَاءِ كُلُّ مُبْغِضِي صِهْيَوْنَ. | ٥ 5 |
५जितने सिय्योन से बैर रखते हैं, वे सब लज्जित हों, और पराजित होकर पीछे हट जाए!
لِيَكُونُوا كَعُشْبِ ٱلسُّطُوحِ ٱلَّذِي يَيْبَسُ قَبْلَ أَنْ يُقْلَعَ، | ٦ 6 |
६वे छत पर की घास के समान हों, जो बढ़ने से पहले सूख जाती है;
ٱلَّذِي لَا يَمْلَأُ ٱلْحَاصِدُ كَفَّهُ مِنْهُ وَلَا ٱلْمُحَزِّمُ حِضْنَهُ. | ٧ 7 |
७जिससे कोई लवनेवाला अपनी मुट्ठी नहीं भरता, न पूलियों का कोई बाँधनेवाला अपनी अँकवार भर पाता है,
وَلَا يَقُولُ ٱلْعَابِرُونَ: «بَرَكَةُ ٱلرَّبِّ عَلَيْكُمْ. بَارَكْنَاكُمْ بِٱسْمِ ٱلرَّبِّ». | ٨ 8 |
८और न आने-जानेवाले यह कहते हैं, “यहोवा की आशीष तुम पर होवे! हम तुम को यहोवा के नाम से आशीर्वाद देते हैं!”