< اَلْمَزَامِيرُ 123 >
تَرْنِيمَةُ ٱلْمَصَاعِدِ إِلَيْكَ رَفَعْتُ عَيْنَيَّ يَا سَاكِنًا فِي ٱلسَّمَاوَاتِ. | ١ 1 |
तू जो आसमान पर तख़्तनशीन है, मैं अपनी आँखें तेरी तरफ़ उठाता हूँ!
هُوَذَا كَمَا أَنَّ عُيُونَ ٱلْعَبِيدِ نَحْوَ أَيْدِي سَادَتِهِمْ، كَمَا أَنَّ عَيْنَيِ ٱلْجَارِيَةِ نَحْوَ يَدِ سَيِّدَتِهَا، هَكَذَا عُيُونُنَا نَحْوَ ٱلرَّبِّ إِلَهِنَا حَتَّى يَتَرَأَّفَ عَلَيْنَا. | ٢ 2 |
देख, जिस तरह गुलामों की आँखेंअपने आका के हाथ की तरफ़, और लौंडी की आँखें अपनी बीबी के हाथ की तरफ़ लगी रहती है उसी तरह हमारी आँखे ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ लगी है जब तक वह हम पर रहम न करे।
ٱرْحَمْنَا يَارَبُّ ٱرْحَمْنَا، لِأَنَّنَا كَثِيرًا مَا ٱمْتَلَأْنَا هَوَانًا. | ٣ 3 |
हम पर रहम कर! ऐ ख़ुदावन्द, हम पर रहम कर, क्यूँकि हम ज़िल्लत उठाते उठाते तंग आ गए।
كَثِيرًا مَا شَبِعَتْ أَنْفُسُنَا مِنْ هُزْءِ ٱلْمُسْتَرِيحِينَ وَإِهَانَةِ ٱلْمُسْتَكْبِرِينَ. | ٤ 4 |
आसूदा हालों के तमसख़ुर, और माग़रूरों की हिक़ारत से, हमारी जान सेर हो गई।