< أَمْثَالٌ 5 >
يَا ٱبْنِي، أَصْغِ إِلَى حِكْمَتِي. أَمِلْ أُذُنَكَ إِلَى فَهْمِي، | ١ 1 |
ऐ मेरे बेटे! मेरी हिकमत पर तवज्जुह कर, मेरे समझ पर कान लगा;
لِحِفْظِ ٱلتَّدَابِيرِ، وَلْتَحْفَظَ شَفَتَاكَ مَعْرِفَةً. | ٢ 2 |
ताकि तू तमीज़ को महफ़ूज़ रख्खें, और तेरे लब 'इल्म के निगहबान हों:
لِأَنَّ شَفَتَيِ ٱلْمَرْأَةِ ٱلْأَجْنَبِيَّةِ تَقْطُرَانِ عَسَلًا، وَحَنَكُهَا أَنْعَمُ مِنَ ٱلزَّيْتِ، | ٣ 3 |
क्यूँकि बेगाना 'औरत के होटों से शहद टपकता है, और उसका मुँह तेल से ज़्यादा चिकना है;
لَكِنَّ عَاقِبَتَهَا مُرَّةٌ كَٱلْأَفْسَنْتِينِ، حَادَّةٌ كَسَيْفٍ ذِي حَدَّيْنِ. | ٤ 4 |
लेकिन उसका अन्जाम अज़दहे की तरह तल्ख़, और दो धारी तलवार की तरह तेज़ है।
قَدَمَاهَا تَنْحَدِرَانِ إِلَى ٱلْمَوْتِ. خَطَوَاتُهَا تَتَمَسَّكُ بِٱلْهَاوِيَةِ. (Sheol ) | ٥ 5 |
उसके पाँव मौत की तरफ़ जाते हैं, उसके क़दम पाताल तक पहुँचते हैं। (Sheol )
لِئَلَّا تَتَأَمَّلَ طَرِيقَ ٱلْحَيَاةِ، تَمَايَلَتْ خَطَوَاتُهَا وَلَا تَشْعُرُ. | ٦ 6 |
इसलिए उसे ज़िन्दगी का हमवार रास्ता नहीं मिलता; उसकी राहें बेठिकाना हैं, पर वह बेख़बर है।
وَٱلْآنَ أَيُّهَا ٱلْبَنُونَ ٱسْمَعُوا لِي، وَلَا تَرْتَدُّوا عَنْ كَلِمَاتِ فَمِي. | ٧ 7 |
इसलिए ऐ मेरे बेटो, मेरी सुनो, और मेरे मुँह की बातों से नाफ़रमान न हो।
أَبْعِدْ طَرِيقَكَ عَنْهَا، وَلَا تَقْرَبْ إِلَى بَابِ بَيْتِهَا، | ٨ 8 |
उस 'औरत से अपनी राह दूर रख, और उसके घर के दरवाज़े के पास भी न जा;
لِئَلَّا تُعْطِيَ زَهْرَكَ لِآخَرِينَ، وَسِنِينَكَ لِلْقَاسِي. | ٩ 9 |
ऐसा न हो कि तू अपनी आबरू किसी गै़र के, और अपनी उम्र बेरहम के हवाले करे।
لِئَلَّا تَشْبَعَ ٱلْأَجَانِبُ مِنْ قُوَّتِكَ، وَتَكُونَ أَتْعَابُكَ فِي بَيْتِ غَرِيبٍ. | ١٠ 10 |
ऐसा न हो कि बेगाने तेरी कु़व्वत से सेर हों, और तेरी कमाई किसी गै़र के घर जाए;
فَتَنُوحَ فِي أَوَاخِرِكَ، عِنْدَ فَنَاءِ لَحْمِكَ وَجِسْمِكَ، | ١١ 11 |
और जब तेरा गोश्त और तेरा जिस्म घुल जाये तो तू अपने अन्जाम पर नोहा करे;
فَتَقُولَ: «كَيْفَ أَنِّي أَبْغَضْتُ ٱلْأَدَبَ، وَرَذَلَ قَلْبِي ٱلتَّوْبِيخَ! | ١٢ 12 |
और कहे, “मैंने तरबियत से कैसी 'अदावत रख्खी, और मेरे दिल ने मलामत को हक़ीर जाना।
وَلَمْ أَسْمَعْ لِصَوْتِ مُرْشِدِيَّ، وَلَمْ أَمِلْ أُذُنِي إِلَى مُعَلِّمِيَّ. | ١٣ 13 |
न मैंने अपने उस्तादों का कहा माना, न अपने तरबियत करने वालों की सुनी।
لَوْلَا قَلِيلٌ لَكُنْتُ فِي كُلِّ شَرٍّ، فِي وَسَطِ ٱلزُّمْرَةِ وَٱلْجَمَاعَةِ». | ١٤ 14 |
मैं जमा'अत और मजलिस के बीच, क़रीबन सब बुराइयों में मुब्तिला हुआ।”
اِشْرَبْ مِيَاهًا مِنْ جُبِّكَ، وَمِيَاهًا جَارِيَةً مِنْ بِئْرِكَ. | ١٥ 15 |
तू पानी अपने ही हौज़ से और बहता पानी अपने ही चश्मे से पीना
لَا تَفِضْ يَنَابِيعُكَ إِلَى ٱلْخَارِجِ، سَوَاقِيَ مِيَاهٍ فِي ٱلشَّوَارِعِ. | ١٦ 16 |
क्या तेरे चश्मे बाहर बह जाएँ, और पानी की नदियाँ कूचों में?
لِتَكُنْ لَكَ وَحْدَكَ، وَلَيْسَ لِأَجَانِبَ مَعَكَ. | ١٧ 17 |
वह सिर्फ़ तेरे ही लिए हों, न तेरे साथ गै़रों के लिए भी।
لِيَكُنْ يَنْبُوعُكَ مُبَارَكًا، وَٱفْرَحْ بِٱمْرَأَةِ شَبَابِكَ، | ١٨ 18 |
तेरा सोता मुबारक हो और तू अपनी जवानी की बीवी के साथ ख़ुश रह।
ٱلظَّبْيَةِ ٱلْمَحْبُوبَةِ وَٱلْوَعْلَةِ ٱلزَّهِيَّةِ. لِيُرْوِكَ ثَدْيَاهَا فِي كُلِّ وَقْتٍ، وَبِمَحَبَّتِهَا ٱسْكَرْ دَائِمًا. | ١٩ 19 |
प्यारी हिरनी और दिल फ़रेब गजाला की तरह उसकी छातियाँ तुझे हर वक़्त आसूदह करें और उसकी मुहब्बत तुझे हमेशा फ़रेफ्ता रखे।
فَلِمَ تُفْتَنُ يَا ٱبْنِي بِأَجْنَبِيَّةٍ، وَتَحْتَضِنُ غَرِيبَةً؟ | ٢٠ 20 |
ऐ मेरे बेटे, तुझे बेगाना 'औरत क्यों फ़रेफ्ता करे और तू ग़ैर 'औरत से क्यों हम आग़ोश हो?
لِأَنَّ طُرُقَ ٱلْإِنْسَانِ أَمَامَ عَيْنَيِ ٱلرَّبِّ، وَهُوَ يَزِنُ كُلَّ سُبُلِهِ. | ٢١ 21 |
क्यूँकि इंसान की राहें ख़ुदावन्द कीआँखों के सामने हैं और वही सब रास्तों को हमवार बनाता है।
ٱلشِّرِّيرُ تَأْخُذُهُ آثَامُهُ وَبِحِبَالِ خَطِيَّتِهِ يُمْسَكُ. | ٢٢ 22 |
शरीर को उसी की बदकारी पकड़ेगी, और वह अपने ही गुनाह की रस्सियों से जकड़ा जाएगा।
إِنَّهُ يَمُوتُ مِنْ عَدَمِ ٱلْأَدَبِ، وَبِفَرْطِ حُمْقِهِ يَتَهَوَّرُ. | ٢٣ 23 |
वह तरबियत न पाने की वजह से मर जायेगा और अपनी सख़्त बेवक़ूफ़ी की वजह से गुमराह हो जायेगा।