< اَلْعَدَد 22 >
وَٱرْتَحَلَ بَنُو إِسْرَائِيلَ وَنَزَلُوا فِي عَرَبَاتِ مُوآبَ مِنْ عَبْرِ أُرْدُنِّ أَرِيحَا. | ١ 1 |
फिर बनी — इस्राईल रवाना हुए और दरिया — ए — यरदन के पार मोआब के मैदानों में यरीहू के सामने ख़ेमे खड़े किए।
وَلَمَّا رَأَى بَالَاقُ بْنُ صِفُّورَ جَمِيعَ مَا فَعَلَ إِسْرَائِيلُ بِٱلْأَمُورِيِّينَ، | ٢ 2 |
और जो कुछ बनी — इस्राईल ने अमोरियों के साथ किया था वह सब बलक़ बिन सफ़ोर ने देखा था।
فَزِعَ مُوآبُ مِنَ ٱلشَّعْبِ جِدًّا لِأَنَّهُ كَثِيرٌ، وَضَجِرَ مُوآبُ مِنْ قِبَلَ بَنِي إِسْرَائِيلَ. | ٣ 3 |
इसलिए मोआबियों को इन लोगों से बड़ा ख़ौफ़ आया, क्यूँकि यह बहुत से थे; ग़र्ज़ मोआबी बनी — इस्राईल की वजह से परेशान हुए।
فَقَالَ مُوآبُ لِشُيُوخِ مِدْيَانَ: «ٱلْآنَ يَلْحَسُ ٱلْجُمْهُورُ كُلَّ مَا حَوْلَنَا كَمَا يَلْحَسُ ٱلثَّوْرُ خُضْرَةَ ٱلْحَقْلِ». وَكَانَ بَالَاقُ بْنُ صِفُّورَ مَلِكًا لِمُوآبَ فِي ذَلِكَ ٱلزَّمَانِ. | ٤ 4 |
तब मोआबियों ने मिदियानी बुज़ुर्गों से कहा, “जो कुछ हमारे आस पास है उसे यह लश्कर ऐसा चट कर जाएगा जैसे बैल मैदान की घास को चट कर जाता है।” उस वक़्त बलक़ बिन सफ़ोर मोआबियों का बादशाह था।
فَأَرْسَلَ رُسُلًا إِلَى بَلْعَامَ بْنِ بَعُورَ، إِلَى فَتُورَ ٱلَّتِي عَلَى ٱلنَّهْرِ فِي أَرْضِ بَنِي شَعْبِهِ لِيَدْعُوَهُ قَائِلًا: «هُوَذَا شَعْبٌ قَدْ خَرَجَ مِنْ مِصْرَ. هُوَذَا قَدْ غَشَّى وَجْهَ ٱلْأَرْضِ، وَهُوَ مُقِيمٌ مُقَابِلِي. | ٥ 5 |
इसलिए उस ने ब'ओर के बेटे बल'आम के पास फ़तोर को, जो बड़े दरिया कि किनारे उसकी क़ौम के लोगों का मुल्क था, क़ासिद रवाना किए कि उसे बुला लाएँ और यह कहला भेजा, “देख, एक क़ौम मिस्र से निकलकर आई है, उनसे ज़मीन की सतह छिप गई है; अब वह मेरे सामने ही आकर जम गए हैं।
فَٱلْآنَ تَعَالَ وَٱلْعَنْ لِي هَذَا ٱلشَّعْبَ، لِأَنَّهُ أَعْظَمُ مِنِّي، لَعَلَّهُ يُمْكِنُنَا أَنْ نَكْسِرَهُ فَأَطْرُدَهُ مِنَ ٱلْأَرْضِ، لِأَنِّي عَرَفْتُ أَنَّ ٱلَّذِي تُبَارِكُهُ مُبَارَكٌ وَٱلَّذِي تَلْعَنُهُ مَلْعُونٌ». | ٦ 6 |
इसलिए अब तू आकर मेरी ख़ातिर इन लोगों पर ला'नत कर, क्यूँकि यह मुझ से बहुत क़वी हैं; फिर मुम्किन है कि मैं ग़ालिब आऊँ, और हम सब इनको मार कर इस मुल्क से निकाल दें; क्यूँकि यह मैं जानता हूँ कि जिसे तू बरकत देता है उसे बरकत मिलती है, और जिस पर तू ला'नत करता है वह मला'ऊन होता है।”
فَٱنْطَلَقَ شُيُوخُ مُوآبَ وَشُيُوخُ مِدْيَانَ، وَحُلْوَانُ ٱلْعِرَافَةِ فِي أَيْدِيهِمْ، وَأَتَوْا إِلَى بَلْعَامَ وَكَلَّمُوهُ بِكَلَامِ بَالَاقَ. | ٧ 7 |
तब मोआब के बुज़ुर्ग और मिदियान के बुज़ुर्ग फ़ाल खोलने का इनाम साथ लेकर रवाना हुए और बल'आम के पास पहुँचे और बलक़ का पैग़ाम उसे दिया।
فَقَالَ لَهُمْ: «بِيتُوا هُنَا ٱللَّيْلَةَ فَأَرُدَّ عَلَيْكُمْ جَوَابًا كَمَا يُكَلِّمُنِي ٱلرَّبُّ». فَمَكَثَ رُؤَسَاءُ مُوآبَ عِنْدَ بَلْعَامَ. | ٨ 8 |
उसने उनसे कहा, “आज रात यहीं ठहरो और जो कुछ ख़ुदावन्द मुझ से कहेगा, उसके मुताबिक़ मैं तुम को जवाब दूँगा।” चुनाँचे मोआब के हाकिम बल'आम के साथ ठहर गए।
فَأَتَى ٱللهُ إِلَى بَلْعَامَ وَقَالَ: «مَنْ هُمْ هَؤُلَاءِ ٱلرِّجَالُ ٱلَّذِينَ عِنْدَكَ؟» | ٩ 9 |
और ख़ुदा ने बल'आम के पास आकर कहा, “तेरे यहाँ यह कौन आदमी हैं?”
فَقَالَ بَلْعَامُ لِلهِ: «بَالَاقُ بْنُ صِفُّورَ مَلِكُ مُوآبَ قَدْ أَرْسَلَ إِلَيَّ يَقُولُ: | ١٠ 10 |
बल'आम ने ख़ुदा से कहा, “मोआब के बादशाह बलक़ बिन सफ़ोर ने मेरे पास कहला भेजा है, कि
هُوَذَا ٱلشَّعْبُ ٱلْخَارِجُ مِنْ مِصْرَ قَدْ غَشَّى وَجْهَ ٱلْأَرْضِ. تَعَالَ ٱلْآنَ ٱلْعَنْ لِي إِيَّاهُ، لَعَلِّي أَقْدِرُ أَنْ أُحَارِبَهُ وَأَطْرُدَهُ». | ١١ 11 |
जो कौम मिस्र से निकल कर आई है उससे ज़मीन की सतह छिप गई है, इसलिए तू अब आकर मेरी ख़ातिर उन पर ला'नत कर, फिर मुम्किन है कि मैं उनसे लड़ सकूँ और उनको निकाल दूँ।”
فَقَالَ ٱللهُ لِبَلْعَامَ: «لَا تَذْهَبْ مَعَهُمْ وَلَا تَلْعَنِ ٱلشَّعْبَ، لِأَنَّهُ مُبَارَكٌ». | ١٢ 12 |
ख़ुदा ने बल'आम से कहा, “तू इनके साथ मत जाना, तू उन लोगों पर ला'नत न करना, इसलिए कि वह मुबारक हैं।”
فَقَامَ بَلْعَامُ صَبَاحًا وَقَالَ لِرُؤَسَاءِ بَالَاقَ: «ٱنْطَلِقُوا إِلَى أَرْضِكُمْ لِأَنَّ ٱلرَّبَّ أَبَى أَنْ يَسْمَحَ لِي بِٱلذَّهَابِ مَعَكُمْ». | ١٣ 13 |
बल'आम ने सुबह को उठ कर बलक़ के हाकिमों से कहा, “तुम अपने मुल्क को लौट जाओ, क्यूँकि ख़ुदावन्द मुझे तुम्हारे साथ जाने की इजाज़त नहीं देता।”
فَقَامَ رُؤَسَاءُ مُوآبَ وَأَتَوْا إِلَى بَالَاقَ وَقَالُوا: «أَبَى بَلْعَامُ أَنْ يَأْتِيَ مَعَنَا». | ١٤ 14 |
और मोआब के हाकिम चले गए और जाकर बलक़ से कहा, “बल'आम हमारे साथ आने से इंकार करता है।”
فَعَادَ بَالَاقُ وَأَرْسَلَ أَيْضًا رُؤَسَاءَ أَكْثَرَ وَأَعْظَمَ مِنْ أُولَئِكَ. | ١٥ 15 |
तब दूसरी दफ़ा' बलक़ ने और हाकिमों को भेजा, जो पहलों से बढ़ कर मु'अज़िज़ और शुमार में भी ज़्यादा थे।
فَأَتَوْا إِلَى بَلْعَامَ وَقَالُوا لَهُ: «هَكَذَا قَالَ بَالَاقُ بْنُ صِفُّورَ: لَا تَمْتَنِعْ مِنَ ٱلْإِتْيَانِ إِلَيَّ، | ١٦ 16 |
उन्होंने बल'आम के पास जाकर उस से कहा, “बलक़ बिन सफ़ोर ने यूँ कहा है, कि मेरे पास आने में तेरे लिए कोई रुकावट न हो;
لِأَنِّي أُكْرِمُكَ إِكْرَامًا عَظِيمًا، وَكُلَّ مَا تَقُولُ لِي أَفْعَلُهُ. فَتَعَالَ ٱلْآنَ ٱلْعَنْ لِي هَذَا ٱلشَّعْبَ». | ١٧ 17 |
क्यूँकि मैं बहुत 'आला मन्सब पर तुझे मुम्ताज़ करूँगा, और जो कुछ तू मुझ से कहे मैं वही करूँगा; इसलिए तू आ जा और मेरी ख़ातिर इन लोगों पर ला'नत कर।”
فَأَجَابَ بَلْعَامُ وَقَالَ لِعَبِيدِ بَالَاقَ: «وَلَوْ أَعْطَانِي بَالَاقُ مِلْءَ بَيْتِهِ فِضَّةً وَذَهَبًا لَا أَقْدِرُ أَنْ أَتَجَاوَزَ قَوْلَ ٱلرَّبِّ إِلَهِي لِأَعْمَلَ صَغِيرًا أَوْ كَبِيرًا. | ١٨ 18 |
बल'आम ने बलक़ के ख़ादिमों को जवाब दिया, “अगर बलक़ अपना घर भी चाँदी और सोने से भर कर मुझे दे, तो भी मैं ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म से तजावुज़ नहीं कर सकता, कि उसे घटाकर या बढ़ा कर मानूँ।
فَٱلْآنَ ٱمْكُثُوا هُنَا أَنْتُمْ أَيْضًا هَذِهِ ٱللَّيْلَةَ لِأَعْلَمَ مَاذَا يَعُودُ ٱلرَّبُّ يُكَلِّمُنِي بِهِ». | ١٩ 19 |
इसलिए अब तुम भी आज रात यहीं ठहरो, ताकि मैं देखूँ कि ख़ुदावन्द मुझ से और क्या कहता है।”
فَأَتَى ٱللهُ إِلَى بَلْعَامَ لَيْلًا وَقَالَ لَهُ: «إِنْ أَتَى ٱلرِّجَالُ لِيَدْعُوكَ فَقُمِ ٱذْهَبْ مَعَهُمْ، إِنَّمَا تَعْمَلُ ٱلْأَمْرَ ٱلَّذِي أُكَلِّمُكَ بِهِ فَقَطْ». | ٢٠ 20 |
और ख़ुदा ने रात को बल'आम के पास आ कर उससे कहा, “अगर यह आदमी तुझे बुलाने को आए हुए हैं तो तू उठ कर उनके साथ जा; मगर जो बात मैं तुझ से कहूँ उसी पर 'अमल करना।”
فَقَامَ بَلْعَامُ صَبَاحًا وَشَدَّ عَلَى أَتَانِهِ وَٱنْطَلَقَ مَعَ رُؤَسَاءِ مُوآبَ. | ٢١ 21 |
तब बल'आम सुबह को उठा, और अपनी गधी पर ज़ीन रख कर मोआब के हाकिमों के साथ चला।
فَحَمِيَ غَضَبُ ٱللهِ لِأَنَّهُ مُنْطَلِقٌ، وَوَقَفَ مَلَاكُ ٱلرَّبِّ فِي ٱلطَّرِيقِ لِيُقَاوِمَهُ وَهُوَ رَاكِبٌ عَلَى أَتَانِهِ وَغُلَامَاهُ مَعَهُ. | ٢٢ 22 |
और उसके जाने की वजह से ख़ुदा का ग़ज़ब भड़का, और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उससे मुज़ाहमत करने के लिए रास्ता रोक कर खड़ा हो गया। वह तो अपनी गधी पर सवार था और उसके साथ उसके दो मुलाज़िम थे।
فَأَبْصَرَتِ ٱلْأَتَانُ مَلَاكَ ٱلرَّبِّ وَاقِفًا فِي ٱلطَّرِيقِ وَسَيْفُهُ مَسْلُولٌ فِي يَدِهِ، فَمَالَتِ ٱلْأَتَانُ عَنِ ٱلطَّرِيقِ وَمَشَتْ فِي ٱلْحَقْلِ. فَضَرَبَ بَلْعَامُ ٱلْأَتَانَ لِيَرُدَّهَا إِلَى ٱلطَّرِيقِ. | ٢٣ 23 |
और उस गधी ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देखा, कि वह अपने हाथ में नंगी तलवार लिए हुए रास्ता रोके खड़ा है; तब गधी रास्ता छोड़कर एक तरफ़ हो गई और खेत में चली गई। तब बल'आम ने गधी को मारा ताकि उसे रास्ते पर ले आए।
ثُمَّ وَقَفَ مَلَاكُ ٱلرَّبِّ فِي خَنْدَقٍ لِلْكُرُومِ، لَهُ حَائِطٌ مِنْ هُنَا وَحَائِطٌ مِنْ هُنَاكَ. | ٢٤ 24 |
तब ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता एक नीची राह में जा खड़ा हुआ, जो ताकिस्तानों के बीच से होकर निकलती थी और उसकी दोनों तरफ़ दीवारें थीं।
فَلَمَّا أَبْصَرَتِ ٱلْأَتَانُ مَلَاكَ ٱلرَّبِّ زَحَمَتِ ٱلْحَائِطَ، وَضَغَطَتْ رِجْلَ بَلْعَامَ بِٱلْحَائِطِ، فَضَرَبَهَا أَيْضًا. | ٢٥ 25 |
गधी ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देख कर दीवार से जा लगी और बल'आम का पाँव दीवार से पिचा दिया, इसलिए उसने फिर उसे मारा।
ثُمَّ ٱجْتَازَ مَلَاكُ ٱلرَّبِّ أَيْضًا وَوَقَفَ فِي مَكَانٍ ضَيِّقٍ حَيْثُ لَيْسَ سَبِيلٌ لِلنُّكُوبِ يَمِينًا أَوْ شِمَالًا. | ٢٦ 26 |
तब ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता आगे बढ़ कर एक ऐसे तंग मक़ाम में खड़ा हो गया, जहाँ दहनी या बाई तरफ़ मुड़ने की जगह न थी।
فَلَمَّا أَبْصَرَتِ ٱلْأَتَانُ مَلَاكَ ٱلرَّبِّ، رَبَضَتْ تَحْتَ بَلْعَامَ. فَحَمِيَ غَضَبُ بَلْعَامَ وَضَرَبَ ٱلْأَتَانَ بِٱلْقَضِيبِ. | ٢٧ 27 |
फिर जो गधी ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देखा तो बल'आम को लिए हुए बैठ गई; फिर तो बल'आम झल्ला उठा और उसने गधी को अपनी लाठी से मारा।
فَفَتَحَ ٱلرَّبُّ فَمَ ٱلْأَتَانِ، فَقَالَتْ لِبَلْعَامَ: «مَاذَا صَنَعْتُ بِكَ حَتَّى ضَرَبْتَنِي ٱلْآنَ ثَلَاثَ دَفَعَاتٍ؟». | ٢٨ 28 |
तब ख़ुदावन्द ने गधी की ज़बान खोल दी और उसने बल'आम से कहा, “मैंने तेरे साथ क्या किया है कि तूने मुझे तीन बार मारा?”
فَقَالَ بَلْعَامُ لِلْأَتَانِ: «لِأَنَّكِ ٱزْدَرَيْتِ بِي. لَوْ كَانَ فِي يَدِي سَيْفٌ لَكُنْتُ ٱلْآنَ قَدْ قَتَلْتُكِ». | ٢٩ 29 |
बल'आम ने गधी से कहा, “इसलिए कि तूने मुझे चिढ़ाया; काश मेरे हाथ में तलवार होती, तो मैं तुझे अभी मार डालता।”
فَقَالَتِ ٱلْأَتَانُ لِبَلْعَامَ: «أَلَسْتُ أَنَا أَتَانَكَ ٱلَّتِي رَكِبْتَ عَلَيْهَا مُنْذُ وُجُودِكَ إِلَى هَذَا ٱلْيَوْمِ؟ هَلْ تَعَوَّدْتُ أَنْ أَفْعَلَ بِكَ هَكَذَا؟» فَقَالَ: «لَا». | ٣٠ 30 |
गधी ने बल'आम से कहा, “क्या मैं तेरी वही गधी नहीं हूँ जिस पर तू अपनी सारी उम्र आज तक सवार होता आया है? क्या मैं तेरे साथ पहले कभी ऐसा करती थी?” उसने कहा, “नहीं।”
ثُمَّ كَشَفَ ٱلرَّبُّ عَنْ عَيْنَيْ بَلْعَامَ، فَأَبْصَرَ مَلَاكَ ٱلرَّبِّ وَاقِفًا فِي ٱلطَّرِيقِ وَسَيْفُهُ مَسْلُولٌ فِي يَدِهِ، فَخَرَّ سَاجِدًا عَلَى وَجْهِهِ. | ٣١ 31 |
तब ख़ुदावन्द ने बल'आम की आँखें खोलीं, और उसने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देखा कि वह अपने हाथ में नंगी तलवार लिए हुए रास्ता रोके खड़ा है, तब उसने अपना सिर झुका लिया और औंधा हो गया।
فَقَالَ لَهُ مَلَاكُ ٱلرَّبِّ: «لِمَاذَا ضَرَبْتَ أَتَانَكَ ٱلْآنَ ثَلَاثَ دَفَعَاتٍ؟ هَأَنَذَا قَدْ خَرَجْتُ لِلْمُقَاوَمَةِ لِأَنَّ ٱلطَّرِيقَ وَرْطَةٌ أَمَامِي، | ٣٢ 32 |
ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उसे कहा, “तू ने अपनी गधी को तीन बार क्यूँ मारा? देख, मैं तुझ से मुज़ाहमत करने को आया हूँ, इसलिए कि तेरी चाल मेरी नज़र में टेढ़ी है।
فَأَبْصَرَتْنِي ٱلْأَتَانُ وَمَالَتْ مِنْ قُدَّامِي ٱلْآنَ ثَلَاثَ دَفَعَاتٍ. وَلَوْ لَمْ تَمِلْ مِنْ قُدَّامِي لَكُنْتُ ٱلْآنَ قَدْ قَتَلْتُكَ وَٱسْتَبْقَيْتُهَا». | ٣٣ 33 |
और गधी ने मुझ को देखा, और वह तीन बार मेरे सामने से मुड़ गई। अगर वह मेरे सामने से न हटती तो मैं ज़रूर तुझ को मार ही डालता, और उसको ज़िन्दा छोड़ देता।”
فَقَالَ بَلْعَامُ لِمَلَاكِ ٱلرَّبِّ: «أَخْطَأْتُ. إِنِّي لَمْ أَعْلَمْ أَنَّكَ وَاقِفٌ تِلْقَائِي فِي ٱلطَّرِيقِ. وَٱلْآنَ إِنْ قَبُحَ فِي عَيْنَيْكَ فَإِنِّي أَرْجِعُ». | ٣٤ 34 |
बल'आम ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते से कहा, “मुझ से ख़ता हुई, क्यूँकि मुझे मा'लूम न था कि तू मेरा रास्ता रोके खड़ा है। इसलिए अगर अब तुझे बुरा लगता है तो मैं लौट जाता हूँ।”
فَقَالَ مَلَاكُ ٱلرَّبِّ لِبَلْعَامَ: «ٱذْهَبْ مَعَ ٱلرِّجَالِ، وَإِنَّمَا تَتَكَلَّمُ بِٱلْكَلَامِ ٱلَّذِي أُكَلِّمُكَ بِهِ فَقَطْ». فَٱنْطَلَقَ بَلْعَامُ مَعَ رُؤَسَاءِ بَالَاقَ. | ٣٥ 35 |
ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने बल'आम से कहा, “तू इन आदमियों के साथ चला ही जा, लेकिन सिर्फ़ वही बात कहना जो मैं तुझ से कहूँ।” तब बल'आम बलक़ के हाकिमों के साथ गया।
فَلَمَّا سَمِعَ بَالَاقُ أَنَّ بَلْعَامَ جَاءَ، خَرَجَ لِٱسْتِقْبَالِهِ إِلَى مَدِينَةِ مُوآبَ ٱلَّتِي عَلَى تَخْمِ أَرْنُونَ ٱلَّذِي فِي أَقْصَى ٱلتُّخُومِ. | ٣٦ 36 |
जब बलक़ ने सुना कि बल'आम आ रहा है, तो वह उसके इस्तक़बाल के लिए मोआब के उस शहर तक गया जो अरनोन की सरहद पर उसकी हदों के इन्तिहाई हिस्से में वाक़े' था।
فَقَالَ بَالَاقُ لِبَلْعَامَ: «أَلَمْ أُرْسِلْ إِلَيْكَ لِأَدْعُوَكَ؟ لِمَاذَا لَمْ تَأْتِ إِلَيَّ؟ أَحَقًّا لَا أَقْدِرُ أَنْ أُكْرِمَكَ؟» | ٣٧ 37 |
तब बलक़ ने बल'आम से कहा, “क्या मैंने बड़ी उम्मीद के साथ तुझे नहीं बुलवा भेजा था? फिर तू मेरे पास क्यूँ न चला आया? क्या मैं इस क़ाबिल नहीं कि तुझे 'आला मन्सब पर मुम्ताज़ करूँ?”
فَقَالَ بَلْعَامُ لِبَالَاقَ: «هَأَنَذَا قَدْ جِئْتُ إِلَيْكَ. أَلَعَلِّي ٱلْآنَ أَسْتَطِيعُ أَنْ أَتَكَلَّمَ بِشَيْءٍ؟ اَلْكَلَامُ ٱلَّذِي يَضَعُهُ ٱللهُ فِي فَمِي بِهِ أَتَكَلَّمُ». | ٣٨ 38 |
बल'आम ने बलक़ को जवाब दिया, “देख, मैं तेरे पास आ तो गया हूँ लेकिन क्या मेरी इतनी मजाल है कि मैं कुछ बोलूँ? जो बात ख़ुदा मेरे मुँह में डालेगा, वही मैं कहूँगा।”
فَٱنْطَلَقَ بَلْعَامُ مَعَ بَالَاقَ وَأَتَيَا إِلَى قَرْيَةِ حَصُوتَ. | ٣٩ 39 |
और बल'आम बलक़ के साथ — साथ चला और वह करयत हुसात में पहुँचे।
فَذَبَحَ بَالَاقُ بَقَرًا وَغَنَمًا، وَأَرْسَلَ إِلَى بَلْعَامَ وَإِلَى ٱلرُّؤَسَاءِ ٱلَّذِينَ مَعَهُ. | ٤٠ 40 |
बलक़ ने बैल और भेड़ों की क़ुर्बानी पेश कीं, और बल'आम और उन हाकिमों के पास जो उसके साथ थे क़ुर्बानी का गोश्त भेजा।
وَفِي ٱلصَّبَاحِ أَخَذَ بَالَاقُ بَلْعَامَ وَأَصْعَدَهُ إِلَى مُرْتَفَعَاتِ بَعْلٍ، فَرَأَى مِنْ هُنَاكَ أَقْصَى ٱلشَّعْبِ. | ٤١ 41 |
दूसरे दिन सुबह को बलक़ बल'आम को साथ लेकर उसे बा'ल के बुलन्द मक़ामों पर ले गया। वहाँ से उसने दूर दूर के इस्राईलियों को देखा।