< نَحَمْيَا 9 >
وَفِي ٱلْيَوْمِ ٱلرَّابِعِ وَٱلْعِشْرِينَ مِنْ هَذَا ٱلشَّهْرِ ٱجْتَمَعَ بَنُو إِسْرَائِيلَ بِٱلصَّوْمِ، وَعَلَيْهِمْ مُسُوحٌ وَتُرَابٌ. | ١ 1 |
फिर इसी महीने की चौबीसवीं तारीख़ को बनी — इस्राईल रोज़ा रखकर और टाट ओढ़कर और मिट्टी अपने सिर पर डालकर इकट्ठे हुए।
وَٱنْفَصَلَ نَسْلُ إِسْرَائِيلَ مِنْ جَمِيعِ بَنِي ٱلْغُرَبَاءِ، وَوَقَفُوا وَٱعْتَرَفُوا بِخَطَايَاهُمْ وَذُنُوبِ آبَائِهِمْ. | ٢ 2 |
और इस्राईल की नसल के लोग सब परदेसियों से अलग हो गए, और खड़े होकर अपने गुनाहों और अपने बाप — दादा की ख़ताओं का इक़रार किया।
وَأَقَامُوا فِي مَكَانِهِمْ وَقَرَأُوا فِي سِفْرِ شَرِيعَةِ ٱلرَّبِّ إِلَهِهِمْ رُبْعَ ٱلنَّهَارِ، وَفِي ٱلرُّبْعِ ٱلْآخَرِ كَانُوا يَحْمَدُونَ وَيَسْجُدُونَ لِلرَّبِّ إِلَهِهِمْ. | ٣ 3 |
और उन्होंने अपनी अपनी जगह पर खड़े होकर एक पहर तक ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की किताब पढ़ी; और दूसरे पहर में, इक़रार करके ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को सिज्दा करते रहे।
وَوَقَفَ عَلَى دَرَجِ ٱللَّاَوِيِّينَ: يَشُوعُ وَبَانِي وَقَدْمِيئِيلُ وَشَبَنْيَا وَبُنِّي وَشَرَبْيَا وَبَانِي وَكَنَانِي، وَصَرَخُوا بِصَوْتٍ عَظِيمٍ إِلَى ٱلرَّبِّ إِلَهِهِمْ. | ٤ 4 |
तब क़दमीएल, यशू'अ, और बानी, और सबनियाह, बुन्नी और सरीबियाह, और बानी, और कना'नी ने लावियों की सीढ़ियों पर खड़े होकर बलन्द आवाज़ से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से फ़रियाद की।
وَقَالَ ٱللَّاوِيُّونَ: يَشُوعُ وَقَدْمِيئِيلُ وَبَانِي وَحَشَبْنِيَا وَشَرَبْيَا وَهُودِيَّا وَشَبَنْيَا وَفَتَحْيَا: «قُومُوا بَارِكُوا ٱلرَّبَّ إِلَهَكُمْ مِنَ ٱلْأَزَلِ إِلَى ٱلْأَبَدِ، وَلْيَتَبَارَكِ ٱسْمُ جَلَالِكَ ٱلْمُتَعَالِي عَلَى كُلِّ بَرَكَةٍ وَتَسْبِيحٍ. | ٥ 5 |
फिर यशू'अ, और क़दमिएल और बानी और हसबनियाह और सरीबियाह और हूदियाह, और सबनियाह, और फ़तहियाह लावियों ने कहा, खड़े हो जाओ, और कहो, ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा इब्तिदा से हमेशा तक मुबारक है; तेरा जलाली नाम मुबारक हो, जो सब हम्द — ओ — ता'रीफ़ से बाला है।
أَنْتَ هُوَ ٱلرَّبُّ وَحْدَكَ. أَنْتَ صَنَعْتَ ٱلسَّمَاوَاتِ وَسَمَاءَ ٱلسَّمَاوَاتِ وَكُلَّ جُنْدِهَا، وَٱلْأَرْضَ وَكُلَّ مَا عَلَيْهَا، وَٱلْبِحَارَ وَكُلَّ مَا فِيهَا، وَأَنْتَ تُحْيِيهَا كُلَّهَا. وَجُنْدُ ٱلسَّمَاءِ لَكَ يَسْجُدُ. | ٦ 6 |
तू ही अकेला ख़ुदावन्द है; तूने आसमान और आसमानों के आसमान को और उनके सारे लश्कर को, और ज़मीन को और जो कुछ उसपर है, और समन्दरों को और जो कुछ उनमें है बनाया और तू उन सभों का परवरदिगार है; और आसमान का लश्कर तुझे सिज्दा करता है।
أَنْتَ هُوَ ٱلرَّبُّ ٱلْإِلَهُ ٱلَّذِي ٱخْتَرْتَ أَبْرَامَ وَأَخْرَجْتَهُ مِنْ أُورِ ٱلْكَلْدَانِيِّينَ وَجَعَلْتَ ٱسْمَهُ إِبْرَاهِيمَ. | ٧ 7 |
तू वह ख़ुदावन्द ख़ुदा है जिसने इब्रहाम को चुन लिया, और उसे कसदियों के ऊर से निकाल लाया, और उसका नाम अब्रहाम रख्खा;
وَوَجَدْتَ قَلْبَهُ أَمِينًا أَمَامَكَ، وَقَطَعْتَ مَعَهُ ٱلْعَهْدَ أَنْ تُعْطِيَهُ أَرْضَ ٱلْكَنْعَانِيِّينَ وَٱلْحِثِّيِّينَ وَٱلْأَمُورِيِّينَ وَٱلْفَرِزِّيِّينَ وَٱلْيَبُوسِيِّينَ وَٱلْجِرْجَاشِيِّينَ وَتُعْطِيَهَا لِنَسْلِهِ. وَقَدْ أَنْجَزْتَ وَعْدَكَ لِأَنَّكَ صَادِقٌ. | ٨ 8 |
तूने उसका दिल अपने सामने वफ़ादार पाया, और कना'नियों हित्तियों और अमोरियों फ़रिज़्ज़ियों और यबूसियों और जिरजासियों का मुल्क देने का 'अहद उससे बाँधा ताकि उसे उसकी नसल को दे; और तूने अपने सुख़न पूरे किए क्यूँकि तू सादिक़ है।
وَرَأَيْتَ ذُلَّ آبَائِنَا فِي مِصْرَ، وَسَمِعْتَ صُرَاخَهُمْ عِنْدَ بَحْرِ سُوفٍ، | ٩ 9 |
और तूने मिस्र में हमारे बाप — दादा की मुसीबत पर नज़र की, और बहर — ए — कु़लजु़म के किनारे उनकी फ़रियाद सुनी।
وَأَظْهَرْتَ آيَاتٍ وَعَجَائِبَ عَلَى فَرْعَوْنَ وَعَلَى جَمِيعِ عَبِيدِهِ وَعَلَى كُلِّ شَعْبِ أَرْضِهِ، لِأَنَّكَ عَلِمْتَ أَنَّهُمْ بَغَوْا عَلَيْهِمْ، وَعَمِلْتَ لِنَفْسِكَ ٱسْمًا كَهَذَا ٱلْيَوْمِ. | ١٠ 10 |
और फ़िर'औन और उसके सब नौकरों, और उसके मुल्क की सब र'इयत पर निशान और 'अजायब कर दिखाए; क्यूँकि तू जानता था कि वह ग़ुरूर के साथ उनसे पेश आए। इसलिए तेरा बड़ा नाम हुआ, जैसा आज है।
وَفَلَقْتَ ٱلْيَمَّ أَمَامَهُمْ، وَعَبَرُوا فِي وَسَطِ ٱلْبَحْرِ عَلَى ٱلْيَابِسَةِ، وَطَرَحْتَ مُطَارِدِيهِمْ فِي ٱلْأَعْمَاقِ كَحَجَرٍ فِي مِيَاهٍ قَوِيَّةٍ. | ١١ 11 |
और तूने उनके आगे समन्दर को दो हिस्से किया, ऐसा कि वह समन्दर के बीच सूखी ज़मीन पर होकर चले; और तूने उनका पीछा करनेवालों को गहराओ में डाला, जैसा पत्थर समन्दर में फेंका जाता है।
وَهَدَيْتَهُمْ بِعَمُودِ سَحَابٍ نَهَارًا، وَبِعَمُودِ نَارٍ لَيْلًا لِتَضِيءَ لَهُمْ فِي ٱلطَّرِيقِ ٱلَّتِي يَسِيرُونَ فِيهَا. | ١٢ 12 |
और तूने दिन को बादल के सुतून में होकर उनकी रहनुमाई की और रात को आग के सुतून में, ताकि जिस रास्ते उनको चलना था उसमें उनको रोशनी मिले।
وَنَزَلْتَ عَلَى جَبَلِ سِينَاءَ، وَكَلَّمْتَهُمْ مِنَ ٱلسَّمَاءِ، وَأَعْطَيْتَهُمْ أَحْكَامًا مُسْتَقِيمَةً وَشَرَائِعَ صَادِقَةً، فَرَائِضَ وَوَصَايَا صَالِحَةً. | ١٣ 13 |
और तू कोह-ए-सीना पर उतर आया, और तूने आसमान पर से उनके साथ बातें कीं, और रास्त अहकाम और सच्चे क़ानून और अच्छे आईन — ओ — फ़रमान उनको दिए,
وَعَرَّفْتَهُمْ سَبْتَكَ ٱلْمُقَدَّسَ، وَأَمَرْتَهُمْ بِوَصَايَا وَفَرَائِضَ وَشَرَائِعَ عَنْ يَدِ مُوسَى عَبْدِكَ. | ١٤ 14 |
और उनको अपने पाक सबत से वाक़िफ़ किया, और अपने बन्दे मूसा के ज़रिए' उनको अहकाम और आईन और शरी'अत दी।
وَأَعْطَيْتَهُمْ خُبْزًا مِنَ ٱلسَّمَاءِ لِجُوعِهِمْ، وَأَخْرَجْتَ لَهُمْ مَاءً مِنَ ٱلصَّخْرَةِ لِعَطَشِهِمْ، وَقُلْتَ لَهُمْ أَنْ يَدْخُلُوا وَيَرِثُوا ٱلْأَرْضَ ٱلَّتِي رَفَعْتَ يَدَكَ أَنْ تُعْطِيَهُمْ إِيَّاهَا. | ١٥ 15 |
और तूने उनकी भूक मिटाने को आसमान पर से रोटी दी, और उनकी प्यास बुझाने को चट्टान में से उनके लिए पानी निकाला, और उनको फ़रमाया कि वह जाकर उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करें जिसको उनको देने की तूने क़सम खाई थी।
«وَلَكِنَّهُمْ بَغَوْا هُمْ وَآبَاؤُنَا، وَصَلَّبُوا رِقَابَهُمْ وَلَمْ يَسْمَعُوا لِوَصَايَاكَ، | ١٦ 16 |
लेकिन उन्होंने और हमारे बाप — दादा ने ग़ुरूर किया, और बाग़ी बने और तेरे हुक्मों को न माना;
وَأَبَوْا ٱلِٱسْتِمَاعَ، وَلَمْ يَذْكُرُوا عَجَائِبَكَ ٱلَّتِي صَنَعْتَ مَعَهُمْ، وَصَلَّبُوا رِقَابَهُمْ. وَعِنْدَ تَمَرُّدِهِمْ أَقَامُوا رَئِيسًا لِيَرْجِعُوا إِلَى عُبُودِيَّتِهِمْ. وَأَنْتَ إِلَهٌ غَفُورٌ وَحَنَّانٌ وَرَحِيمٌ، طَوِيلُ ٱلرُّوحِ وَكَثِيرُ ٱلرَّحْمَةِ، فَلَمْ تَتْرُكْهُمْ. | ١٧ 17 |
और फ़रमाँबरदारी से इन्कार किया, और तेरे 'अजायब को जो तूने उनके बीच किए याद न रख्खा; बल्कि बाग़ी बने और अपनी बग़ावत में अपने लिए एक सरदार मुक़र्रर किया, ताकि अपनी ग़ुलामी की तरफ़ लौट जाएँ। लेकिन तू वह ख़ुदा है जो रहीम — ओ — करीम मु'आफ़ करने को तैयार, और क़हर करने में धीमा, और शफ़क़त में ग़नी है, इसलिए तूने उनको छोड़ न दिया।
مَعَ أَنَّهُمْ عَمِلُوا لِأَنْفُسِهِمْ عِجْلًا مَسْبُوكًا وَقَالُوا: هَذَا إِلَهُكَ ٱلَّذِي أَخْرَجَكَ مِنْ مِصْرَ، وَعَمِلُوا إِهَانَةً عَظِيمَةً. | ١٨ 18 |
लेकिन जब उन्होंने अपने लिए ढाला हुआ बछड़ा बनाकर कहा, 'ये तेरा ख़ुदा है, जो तुझे मुल्क — ए — मिस्र से निकाल लाया, और यूँ ग़ुस्सा दिलाने के बड़े बड़े काम किए;
أَنْتَ بِرَحْمَتِكَ ٱلْكَثِيرَةِ لَمْ تَتْرُكْهُمْ فِي ٱلْبَرِّيَّةِ، وَلَمْ يَزُلْ عَنْهُمْ عَمُودُ ٱلسَّحَابِ نَهَارًا لِهِدَايَتِهِمْ فِي ٱلطَّرِيقِ، وَلَا عَمُودُ ٱلنَّارِ لَيْلًا لِيُضِيءَ لَهُمْ فِي ٱلطَّرِيقِ ٱلَّتِي يَسِيرُونَ فِيهَا. | ١٩ 19 |
तो भी तूने अपनी गूँनागूँ रहमतों से उनको वीराने में छोड़ न दिया; दिन को बादल का सुतून उनके ऊपर से दूर न हुआ, ताकि रास्ते में उनकी रहनुमाई करे, और न रात को आग का सुतून दूर हुआ, ताकि वह उनको रोशनी और वह रास्ता दिखाए जिससे उनको चलना था।
وَأَعْطَيْتَهُمْ رُوحَكَ ٱلصَّالِحَ لِتَعْلِيمِهِمْ، وَلَمْ تَمْنَعْ مَنَّكَ عَنْ أَفْوَاهِهِمْ، وَأَعْطَيْتَهُمْ مَاءً لِعَطَشِهِمْ. | ٢٠ 20 |
और तूने अपनी नेक रूह भी उनकी तरबियत के लिए बख़्शी, और मन को उनके मुँह से न रोका, और उनको प्यास को बुझाने को पानी दिया।
وَعُلْتَهُمْ أَرْبَعِينَ سَنَةً فِي ٱلْبَرِّيَّةِ فَلَمْ يَحْتَاجُوا. لَمْ تَبْلَ ثِيَابُهُمْ، وَلَمْ تَتَوَرَّمْ أَرْجُلُهُمْ. | ٢١ 21 |
चालीस बरस तक तू वीराने में उनकी परवरिश करता रहा; वह किसी चीज़ के मुहताज न हुए, न तो उनके कपड़े पुराने हुए और न उनके पाँव सूजे।
وَأَعْطَيْتَهُمْ مَمَالِكَ وَشُعُوبًا، وَفَرَّقْتَهُمْ إِلَى جِهَاتٍ، فَٱمْتَلَكُوا أَرْضَ سِيحُونَ، وَأَرْضَ مَلِكِ حَشْبُونَ، وَأَرْضَ عُوجٍ مَلِكِ بَاشَانَ. | ٢٢ 22 |
इसके सिवा तूने उनको ममलुकतें और उम्मतें बख़्शीं, जिनको तूने उनके हिस्सों के मुताबिक़ उनको बाँट दिया; चुनाँचे वह सीहोन के मुल्क, और शाह — ए — हस्बोन के मुल्क, और बसन के बादशाह 'ओज के मुल्क पर क़ाबिज़ हुए।
وَأَكْثَرْتَ بَنِيهِمْ كَنُجُومِ ٱلسَّمَاءِ، وَأَتَيْتَ بِهِمْ إِلَى ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي قُلْتَ لِآبَائِهِمْ أَنْ يَدْخُلُوا وَيَرِثُوهَا. | ٢٣ 23 |
तूने उनकी औलाद को बढ़ाकर आसमान के सितारों की तरह कर दिया, और उनको उस मुल्क में लाया जिसके बारे में तूने उनके बाप — दादा से कहा था कि वह जाकर उसपर क़ब्ज़ा करें।
فَدَخَلَ ٱلْبَنُونَ وَوَرِثُوا ٱلْأَرْضَ، وَأَخْضَعْتَ لَهُمْ سُكَّانَ أَرْضِ ٱلْكَنْعَانِيِّينَ، وَدَفَعْتَهُمْ لِيَدِهِمْ مَعَ مُلُوكِهِمْ وَشُعُوبِ ٱلْأَرْضِ لِيَعْمَلُوا بِهِمْ حَسَبَ إِرَادَتِهِمْ. | ٢٤ 24 |
तब उनकी औलाद ने आकर इस मुल्क पर क़ब्ज़ा किया, और तूने उनके आगे इस मुल्क के बाशिन्दों या'नी कना'नियों को मग़लूब किया, और उनको उनके बादशाहों और इस मुल्क के लोगों के साथ उनके हाथ में कर दिया कि जैसा चाहें वैसा उनसे करें।
وَأَخَذُوا مُدُنًا حَصِينَةً وَأَرْضًا سَمِينَةً، وَوَرِثُوا بُيُوتًا مَلآنَةً كُلَّ خَيْرٍ، وَآبَارًا مَحْفُورَةً وَكُرُومًا وَزَيْتُونًا وَأَشْجَارًا مُثْمِرَةً بِكَثْرَةٍ، فَأَكَلُوا وَشَبِعُوا وَسَمِنُوا وَتَلَذَّذُوا بِخَيْرِكَ ٱلْعَظِيمِ. | ٢٥ 25 |
तब उन्होंने फ़सीलदार शहरों और ज़रख़ेज़ मुल्क को ले लिया, और वह सब तरह के अच्छे माल से भरे हुए घरों और खोदे हुए कुँवों, और बहुत से अंगूरिस्तानों और ज़ैतून के बाग़ों और फलदार दरख़्तों के मालिक हुए; फिर वह खा कर सेर हुए और मोटे ताज़े हो गए, और तेरे बड़े एहसान से बहुत हज़ उठाया।
وَعَصَوْا وَتَمَرَّدُوا عَلَيْكَ، وَطَرَحُوا شَرِيعَتَكَ وَرَاءَ ظُهُورِهِمْ، وَقَتَلُوا أَنْبِيَاءَكَ ٱلَّذِينَ أَشْهَدُوا عَلَيْهِمْ لِيَرُدُّوهُمْ إِلَيْكَ، وَعَمِلُوا إِهَانَةً عَظِيمَةً. | ٢٦ 26 |
तो भी वह ना — फ़रमान होकर तुझ से बाग़ी हुए, और उन्होंने तेरी शरी'अत को पीठ पीछे फेंका, और तेरे नबियों को जो उनके ख़िलाफ़ गवाही देते थे ताकि उनको तेरी तरफ़ फिरा लायें क़त्ल किया और उन्होंने ग़ुस्सा दिलाने के बड़े — बड़े काम किए।
فَدَفَعْتَهُمْ لِيَدِ مُضَايِقِيهِمْ فَضَايَقُوهُمْ. وَفِي وَقْتِ ضِيقِهِمْ صَرَخُوا إِلَيْكَ، وَأَنْتَ مِنَ ٱلسَّمَاءِ سَمِعْتَ، وَحَسَبَ مَرَاحِمِكَ ٱلْكَثِيرَةِ أَعْطَيْتَهُمْ مُخَلِّصِينَ خَلَّصُوهُمْ مِنْ يَدِ مُضَايِقِيهِمْ. | ٢٧ 27 |
इसलिए तूने उनको उनके दुश्मनों के हाथ में कर दिया, जिन्होंने उनको सताया; और अपने दुख के वक़्त में जब उन्होंने तुझ से फ़रियाद की, तो तूने आसमान पर से सुन लिया और अपनी गूँनागूँ रहमतों के मुताबिक़ उनको छुड़ाने वाले दिए जिन्होंने उनको उनके दुश्मनों के हाथ से छुड़ाया।
وَلَكِنْ لَمَّا ٱسْتَرَاحُوا رَجَعُوا إِلَى عَمَلِ ٱلشَّرِّ قُدَّامَكَ، فَتَرَكْتَهُمْ بِيَدِ أَعْدَائِهِمْ، فَتَسَلَّطُوا عَلَيْهِمْ ثُمَّ رَجَعُوا وَصَرَخُوا إِلَيْكَ، وَأَنْتَ مِنَ ٱلسَّمَاءِ سَمِعْتَ وَأَنْقَذْتَهُمْ حَسَبَ مَرَاحِمِكَ ٱلْكَثِيرَةِ أَحْيَانًا كَثِيرَةً. | ٢٨ 28 |
लेकिन जब उनको आराम मिला तो उन्होंने फिर तेरे आगे बदकारी की, इसलिए तूने उनको उनके दुश्मनों के क़ब्ज़े में छोड़ दिया इसलिए वह उन पर मुसल्लत रहे; तो भी जब वह रुजू' लाए और तुझ से फ़रियाद की, तो तूने आसमान पर से सुन लिया और अपनी रहमतों के मुताबिक़ उनको बार — बार छुड़ाया;
وَأَشْهَدْتَ عَلَيْهِمْ لِتَرُدَّهُمْ إِلَى شَرِيعَتِكَ، وَأَمَّا هُمْ فَبَغَوْا وَلَمْ يَسْمَعُوا لِوَصَايَاكَ وَأَخْطَأُوا ضِدَّ أَحْكَامِكَ، ٱلَّتِي إِذَا عَمِلَهَا إِنْسَانٌ يَحْيَا بِهَا. وَأَعْطَوْا كَتِفًا مُعَانِدَةً، وَصَلَّبُوا رِقَابَهُمْ وَلَمْ يَسْمَعُوا. | ٢٩ 29 |
और तूने उनके ख़िलाफ़ गवाही दी, ताकि अपनी शरी'अत की तरफ़ उनको फेर लाए। लेकिन उन्होंने ग़ुरूर किया और तेरे फ़रमान न माने, बल्कि तेरे अहकाम के बरख़िलाफ़ गुनाह किया जिनको अगर कोई माने, तो उनकी वजह से जीता रहेगा, और अपने कन्धे को हटाकर बाग़ी बन गए और न सुना।
فَٱحْتَمَلْتَهُمْ سِنِينَ كَثِيرَةً، وَأَشْهَدْتَ عَلَيْهِمْ بِرُوحِكَ عَنْ يَدِ أَنْبِيَائِكَ فَلَمْ يُصْغُوا، فَدَفَعْتَهُمْ لِيَدِ شُعُوبِ ٱلْأَرَاضِي. | ٣٠ 30 |
तो भी तू बहुत बरसों तक उनकी बर्दाश्त करता रहा, और अपनी रूह से अपने नबियों के ज़रिए' उनके ख़िलाफ़ गवाही देता रहा; तो भी उन्होंने कान न लगाया, इसलिए तूने उनको और मुल्को के लोगों के हाथ में कर दिया।
وَلَكِنْ لِأَجْلِ مَرَاحِمِكَ ٱلْكَثِيرَةِ لَمْ تُفْنِهِمْ وَلَمْ تَتْرُكْهُمْ، لِأَنَّكَ إِلَهٌ حَنَّانٌ وَرَحِيمٌ. | ٣١ 31 |
बावजूद इसके तूने अपनी गूँनागूँ रहमतों के ज़रिए' उनको नाबूद न कर दिया और न उनको छोड़ा, क्यूँकि तू रहीम — ओ — करीम ख़ुदा है।
«وَٱلْآنَ يَا إِلَهَنَا، ٱلْإِلَهَ ٱلْعَظِيمَ ٱلْجَبَّارَ ٱلْمَخُوفَ، حَافِظَ ٱلْعَهْدِ وَٱلرَّحْمَةِ، لَا تَصْغُرْ لَدَيْكَ كُلُّ ٱلْمَشَقَّاتِ ٱلَّتِي أَصَابَتْنَا نَحْنُ وَمُلُوكَنَا وَرُؤَسَاءَنَا وَكَهَنَتَنَا وَأَنْبِيَاءَنَا وَآبَاءَنَا وَكُلَّ شَعْبِكَ، مِنْ أَيَّامِ مُلُوكِ أَشُّورَ إِلَى هَذَا ٱلْيَوْمِ. | ٣٢ 32 |
“इसलिए अब, ऐ हमारे ख़ुदा, बुज़ुर्ग, और क़ादिर — ओ — मुहीब ख़ुदा जो 'अहद — ओ — रहमत को क़ाईम रखता है। वह दुख जो हम पर और हमारे बादशाहों पर, और हमारे सरदारों और हमारे काहिनों पर, और हमारे नबियों और हमारे बाप — दादा पर, और तेरे सब लोगों पर असूर के बादशाहों के ज़माने से आज तक पड़ा है, इसलिए तेरे सामने हल्का न मा'लूम हो;
وَأَنْتَ بَارٌّ فِي كُلِّ مَا أَتَى عَلَيْنَا لِأَنَّكَ عَمِلْتَ بِٱلْحَقِّ، وَنَحْنُ أَذْنَبْنَا. | ٣٣ 33 |
तो भी जो कुछ हम पर आया है उस सब में तू 'आदिल है क्यूँकि तू सच्चाई से पेश आया, लेकिन हम ने शरारत की।
وَمُلُوكُنَا وَرُؤَسَاؤُنَا وَكَهَنَتُنَا وَآبَاؤُنَا لَمْ يَعْمَلُوا شَرِيعَتَكَ، وَلَا أَصْغَوْا إِلَى وَصَايَاكَ وَشَهَادَاتِكَ ٱلَّتِي أَشْهَدْتَهَا عَلَيْهِمْ. | ٣٤ 34 |
और हमारे बादशाहों और सरदारों और हमारे काहिनों और बाप — दादा ने न तो तेरी शरी'अत पर 'अमल किया और न तेरे अहकाम और शहादतों को माना, जिनसे तू उनके ख़िलाफ़ गवाही देता रहा।
وَهُمْ لَمْ يَعْبُدُوكَ فِي مَمْلَكَتِهِمْ وَفِي خَيْرِكَ ٱلْكَثِيرِ ٱلَّذِي أَعْطَيْتَهُمْ، وَفِي ٱلْأَرْضِ ٱلْوَاسِعَةِ ٱلسَّمِينَةِ ٱلَّتِي جَعَلْتَهَا أَمَامَهُمْ، وَلَمْ يَرْجِعُوا عَنْ أَعْمَالِهِمِ ٱلرَّدِيَّةِ. | ٣٥ 35 |
क्यूँकि उन्होंने अपनी ममलुकत में, और तेरे बड़े एहसान के वक़्त जो तूने उन पर किया, और इस वसी' और ज़रख़ेज़ मुल्क में जो तूने उनके हवाले कर दिया, तेरी इबादत न की और न वह अपनी बदकारियों से बाज़ आए।
هَا نَحْنُ ٱلْيَوْمَ عَبِيدٌ، وَٱلْأَرْضَ ٱلَّتِي أَعْطَيْتَ لِآبَائِنَا لِيَأْكُلُوا أَثْمَارَهَا وَخَيْرَهَا، هَا نَحْنُ عَبِيدٌ فِيهَا. | ٣٦ 36 |
देख, आज हम ग़ुलाम हैं, बल्कि उसी मुल्क में जो तूने हमारे बाप — दादा को दिया कि उसका फल और पैदावार खाएँ; इसलिए देख, हम उसी में ग़ुलाम हैं।
وَغَلَّاتُهَا كَثِيرَةٌ لِلْمُلُوكِ ٱلَّذِينَ جَعَلْتَهُمْ عَلَيْنَا لِأَجْلِ خَطَايَانَا، وَهُمْ يَتَسَلَّطُونَ عَلَى أَجْسَادِنَا وَعَلَى بَهَائِمِنَا حَسَبَ إِرَادَتِهِمْ، وَنَحْنُ فِي كَرْبٍ عَظِيمٍ. | ٣٧ 37 |
वह अपनी कसीर पैदावार उन बादशाहों को देता है, जिनको तूने हमारे गुनाहों की वजह से हम पर मुसल्लत किया है; वह हमारे जिस्मों और हमारी मवाशी पर भी जैसा चाहते हैं इख़्तियार रखते हैं, और हम सख़्त मुसीबत में हैं।”
«وَمِنْ أَجْلِ كُلِّ ذَلِكَ نَحْنُ نَقْطَعُ مِيثَاقًا وَنَكْتُبُهُ. وَرُؤَسَاؤُنَا وَلَاوِيُّونَا وَكَهَنَتُنَا يَخْتِمُونَ». | ٣٨ 38 |
“इन सब बातों की वजह से हम सच्चा 'अहद करते और लिख भी देते हैं, और हमारे हाकिम, और हमारे लावी, और हमारे काहिन उसपर मुहर करते हैं।”