< مَتَّى 7 >
«لَا تَدِينُوا لِكَيْ لَا تُدَانُوا، | ١ 1 |
“दोष मत लगावो कि तुम्हरो पर भी दोष नहीं लगायो जाये,
لِأَنَّكُمْ بِٱلدَّيْنُونَةِ ٱلَّتِي بِهَا تَدِينُونَ تُدَانُونَ، وَبِالْكَيْلِ ٱلَّذِي بِهِ تَكِيلُونَ يُكَالُ لَكُمْ. | ٢ 2 |
कहालीकि जो तरह तुम दोष लगावय हय, उच तरह सी तुम पर भी दोष लगायो जायेंन; अऊर जो नाप सी तुम नापय हय, उच नाप सी तुम्हरो लायी भी नाप्यो जायेंन।”
وَلِمَاذَا تَنْظُرُ ٱلْقَذَى ٱلَّذِي فِي عَيْنِ أَخِيكَ، وَأَمَّا ٱلْخَشَبَةُ ٱلَّتِي فِي عَيْنِكَ فَلَا تَفْطَنُ لَهَا؟ | ٣ 3 |
“तय कहाली अपनो भाऊ की आंखी को तिनका ख देखय हय, अऊर अपनी आंखी को लट्ठा तोख नहीं सूझय?
أَمْ كَيْفَ تَقُولُ لِأَخِيكَ: دَعْنِي أُخْرِجِ ٱلْقَذَى مِنْ عَيْنِكَ، وَهَا ٱلْخَشَبَةُ فِي عَيْنِكَ؟ | ٤ 4 |
जब तोरीच आंखी म लट्ठा हय, त तय अपनो भाऊ सी कसो कह्य सकय हय, ‘लाव मय तोरी आंखी सी तिनका निकाल देऊ?’
يَا مُرَائِي، أَخْرِجْ أَوَّلًا ٱلْخَشَبَةَ مِنْ عَيْنِكَ، وَحِينَئِذٍ تُبْصِرُ جَيِّدًا أَنْ تُخْرِجَ ٱلْقَذَى مِنْ عَيْنِ أَخِيكَ! | ٥ 5 |
हे कपटी, पहिले अपनी आंखी म सी लट्ठा निकाल ले, तब तय अपनो भाऊ की आंखी को तिनका अच्छो सी देख क निकाल सकजो।”
لَا تُعْطُوا ٱلْقُدْسَ لِلْكِلَابِ، وَلَا تَطْرَحُوا دُرَرَكُمْ قُدَّامَ ٱلْخَنَازِيرِ، لِئَلَّا تَدُوسَهَا بِأَرْجُلِهَا وَتَلْتَفِتَ فَتُمَزِّقَكُمْ. | ٦ 6 |
“पवित्र चिज कुत्ता ख मत दे, अऊर अपनो मोती डुक्करों को आगु मत डालो; असो न होय कि हि उन्ख पाय खल्लो खुंदेन अऊर पलट क तुम ख फाड़ डालेंन।
«اِسْأَلُوا تُعْطَوْا. اُطْلُبُوا تَجِدُوا. اِقْرَعُوا يُفْتَحْ لَكُمْ. | ٧ 7 |
“मांगो, त तुम्ख दियो जायेंन; ढूंढो त तुम पावों; खटखटावों, त तुम्हरो लायी खोल्यो जायेंन।
لِأَنَّ كُلَّ مَنْ يَسْأَلُ يَأْخُذُ، وَمَنْ يَطْلُبُ يَجِدُ، وَمَنْ يَقْرَعُ يُفْتَحُ لَهُ. | ٨ 8 |
कहालीकि जो कोयी मांगय हय, ओख मिलय हय; अऊर जो ढूंढय हय, ऊ पावय हय; अऊर जो खटखटावय हय, ओको लायी खोल्यो जायेंन।
أَمْ أَيُّ إِنْسَانٍ مِنْكُمْ إِذَا سَأَلَهُ ٱبْنُهُ خُبْزًا، يُعْطِيهِ حَجَرًا؟ | ٩ 9 |
तुम म सी असो कौन आदमी हय, कि यदि ओको बेटा ओको सी रोटी मांगेंन, त ऊ ओख गोटा देयेंन?
وَإِنْ سَأَلَهُ سَمَكَةً، يُعْطِيهِ حَيَّةً؟ | ١٠ 10 |
यां मच्छी मांगेंन, त ओख सांप देयेंन?
فَإِنْ كُنْتُمْ وَأَنْتُمْ أَشْرَارٌ تَعْرِفُونَ أَنْ تُعْطُوا أَوْلَادَكُمْ عَطَايَا جَيِّدَةً، فَكَمْ بِٱلْحَرِيِّ أَبُوكُمُ ٱلَّذِي فِي ٱلسَّمَاوَاتِ، يَهَبُ خَيْرَاتٍ لِلَّذِينَ يَسْأَلُونَهُ! | ١١ 11 |
येकोलायी जब तुम बुरो होय क, अपनो बच्चां ख अच्छी चिजे देनो जानय हय, त तुम्हरो स्वर्गीय पिता अपनो मांगन वालो ख अच्छी चिजे कहाली नहीं देयेंन?
فَكُلُّ مَا تُرِيدُونَ أَنْ يَفْعَلَ ٱلنَّاسُ بِكُمُ ٱفْعَلُوا هَكَذَا أَنْتُمْ أَيْضًا بِهِمْ، لِأَنَّ هَذَا هُوَ ٱلنَّامُوسُ وَٱلْأَنْبِيَاءُ. | ١٢ 12 |
“यो वजह जो कुछ तुम चाहवय हय कि लोग तुम्हरो संग करे, तुम भी उन्को संग वसोच करो; कहालीकि मूसा की व्यवस्था अऊर भविष्यवक्तावों की शिक्षा याच आय।
«اُدْخُلُوا مِنَ ٱلْبَابِ ٱلضَّيِّقِ، لِأَنَّهُ وَاسِعٌ ٱلْبَابُ وَرَحْبٌ ٱلطَّرِيقُ ٱلَّذِي يُؤَدِّي إِلَى ٱلْهَلَاكِ، وَكَثِيرُونَ هُمُ ٱلَّذِينَ يَدْخُلُونَ مِنْهُ! | ١٣ 13 |
“निरून्द द्वार सी सिरो, कहालीकि चौड़ो हय ऊ फाटक अऊर सरल हय ऊ रस्ता जो नाश को तरफ लिजावय हय; अऊर बहुत सो हंय जो ओको सी सिरय हंय।
مَا أَضْيَقَ ٱلْبَابَ وَأَكْرَبَ ٱلطَّرِيقَ ٱلَّذِي يُؤَدِّي إِلَى ٱلْحَيَاةِ، وَقَلِيلُونَ هُمُ ٱلَّذِينَ يَجِدُونَهُ! | ١٤ 14 |
कहालीकि निरून्द हय ऊ फाटक अऊर कठिन हय ऊ रस्ता जो जीवन को तरफ लिजावय हय; अऊर थोड़ो हंय जो ओख पावय हंय।
«اِحْتَرِزُوا مِنَ ٱلْأَنْبِيَاءِ ٱلْكَذَبَةِ ٱلَّذِينَ يَأْتُونَكُمْ بِثِيَابِ ٱلْحُمْلَانِ، وَلَكِنَّهُمْ مِنْ دَاخِلٍ ذِئَابٌ خَاطِفَةٌ! | ١٥ 15 |
“झूठो भविष्यवक्तावों सी चौकस रहो, जो मेंढीं को रूप म तुम्हरो जवर आवय हंय, पर आखरी म हि फाड़न वालो भेड़िया आय।
مِنْ ثِمَارِهِمْ تَعْرِفُونَهُمْ. هَلْ يَجْتَنُونَ مِنَ ٱلشَّوْكِ عِنَبًا، أَوْ مِنَ ٱلْحَسَكِ تِينًا؟ | ١٦ 16 |
उन्को फर सी तुम उन्ख जान जावो। का लोग झाड़ियों सी अंगूर, यां काटा को झुड़ूपो सी अंजीर तोड़य हंय?
هَكَذَا كُلُّ شَجَرَةٍ جَيِّدَةٍ تَصْنَعُ أَثْمَارًا جَيِّدَةً، وَأَمَّا ٱلشَّجَرَةُ ٱلرَّدِيَّةُ فَتَصْنَعُ أَثْمَارًا رَدِيَّةً، | ١٧ 17 |
असो तरह हर एक अच्छो झाड़ अच्छो फर लावय हय अऊर बुरो झाड़ बुरो फर लावय हय।
لَا تَقْدِرُ شَجَرَةٌ جَيِّدَةٌ أَنْ تَصْنَعَ أَثْمَارًا رَدِيَّةً، وَلَا شَجَرَةٌ رَدِيَّةٌ أَنْ تَصْنَعَ أَثْمَارًا جَيِّدَةً. | ١٨ 18 |
अच्छो झाड़ बुरो फर नहीं लाय सकय, अऊर न बुरो झाड़ अच्छो फर लाय सकय हय।
كُلُّ شَجَرَةٍ لَا تَصْنَعُ ثَمَرًا جَيِّدًا تُقْطَعُ وَتُلْقَى فِي ٱلنَّارِ. | ١٩ 19 |
जो जो झाड़ अच्छो फर नहीं लावय, ऊ काट क आगी म डाल दियो जावय हय।
فَإِذًا مِنْ ثِمَارِهِمْ تَعْرِفُونَهُمْ. | ٢٠ 20 |
यो तरह उन्को फर सी तुम भविष्यवक्तावों ख जान लेवो।
«لَيْسَ كُلُّ مَنْ يَقُولُ لِي: يَارَبُّ، يَارَبُّ! يَدْخُلُ مَلَكُوتَ ٱلسَّمَاوَاتِ. بَلِ ٱلَّذِي يَفْعَلُ إِرَادَةَ أَبِي ٱلَّذِي فِي ٱلسَّمَاوَاتِ. | ٢١ 21 |
“जो मोरो सी, ‘हे प्रभु! हे प्रभु!’ कह्य हय, उन्म सी हर एक स्वर्ग को राज्य म सिर नहीं सकेंन, पर उच जो मोरो स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलय हय।
كَثِيرُونَ سَيَقُولُونَ لِي فِي ذَلِكَ ٱلْيَوْمِ: يَارَبُّ، يَارَبُّ! أَلَيْسَ بِٱسْمِكَ تَنَبَّأْنَا، وَبِٱسْمِكَ أَخْرَجْنَا شَيَاطِينَ، وَبِٱسْمِكَ صَنَعْنَا قُوَّاتٍ كَثِيرَةً؟ | ٢٢ 22 |
न्याय को दिन बहुत सो लोग मोरो सी कहेंन, ‘हे प्रभु, हे प्रभु, का हम्न तोरो नाम सी भविष्यवानी नहीं करी, अऊर तोरो नाम सी दुष्ट आत्मावों ख नहीं निकाल्यो, अऊर तोरो नाम सी सामर्थ को काम नहीं करयो?’
فَحِينَئِذٍ أُصَرِّحُ لَهُمْ: إِنِّي لَمْ أَعْرِفْكُمْ قَطُّ! ٱذْهَبُوا عَنِّي يافَاعِلِي ٱلْإِثْمِ! | ٢٣ 23 |
तब मय उन्को सी खुल क कह्य देऊं, ‘मय न तुम्ख कभी नहीं जान्यो। हे कुकर्मियों मोरो जवर सी चली जावो।’
«فَكُلُّ مَنْ يَسْمَعُ أَقْوَالِي هَذِهِ وَيَعْمَلُ بِهَا، أُشَبِّهُهُ بِرَجُلٍ عَاقِلٍ، بَنَى بَيْتَهُ عَلَى ٱلصَّخْرِ. | ٢٤ 24 |
“येकोलायी जो कोयी मोरी या बाते सुन क उन्ख मानय हय, ऊ उन बुद्धिमान आदमी को जसो ठहरेंन जेन अपनो घर चट्टान पर बनायो।
فَنَزَلَ ٱلْمَطَرُ، وَجَاءَتِ ٱلْأَنْهَارُ، وَهَبَّتِ ٱلرِّيَاحُ، وَوَقَعَتْ عَلَى ذَلِكَ ٱلْبَيْتِ فَلَمْ يَسْقُطْ، لِأَنَّهُ كَانَ مُؤَسَّسًا عَلَى ٱلصَّخْرِ. | ٢٥ 25 |
अऊर पानी बरस्यो, अऊर बाढ़ आयी, अऊर आन्धिया चली, अऊर यो सब ऊ घर सी टकरायी, तब भी ऊ नहीं गिरयो, कहालीकि ओको नींव चट्टान पर डाल्यो गयो होतो।
وَكُلُّ مَنْ يَسْمَعُ أَقْوَالِي هَذِهِ وَلَا يَعْمَلُ بِهَا، يُشَبَّهُ بِرَجُلٍ جَاهِلٍ، بَنَى بَيْتَهُ عَلَى ٱلرَّمْلِ. | ٢٦ 26 |
“पर जो कोयी मोरी या बाते सुनय हय अऊर उन पर नहीं चलय, यो ऊ मूर्ख आदमी को जसो ठहरेंन जेन अपनो घर रेतु पर बनायो।
فَنَزَلَ ٱلْمَطَرُ، وَجَاءَتِ ٱلْأَنْهَارُ، وَهَبَّتِ ٱلرِّيَاحُ، وَصَدَمَتْ ذَلِكَ ٱلْبَيْتَ فَسَقَطَ، وَكَانَ سُقُوطُهُ عَظِيمًا!». | ٢٧ 27 |
अऊर पानी बरस्यो, अऊर बाढ़ आयी, अऊर आन्धिया चली, अऊर ऊ घर सी टकरायी अऊर ऊ गिर क नाश भय गयो।”
فَلَمَّا أَكْمَلَ يَسُوعُ هَذِهِ ٱلْأَقْوَالَ بُهِتَتِ ٱلْجُمُوعُ مِنْ تَعْلِيمِهِ، | ٢٨ 28 |
जब यीशु या बाते कह्य चुक्यो, त असो भयो कि भीड़ ओको उपदेश सी चकित भयी,
لِأَنَّهُ كَانَ يُعَلِّمُهُمْ كَمَنْ لَهُ سُلْطَانٌ وَلَيْسَ كَٱلْكَتَبَةِ. | ٢٩ 29 |
कहालीकि ऊ उन्को धर्मशास्त्रियों को जसो नहीं पर अधिकार को जसो उन्ख उपदेश देत होतो।