< مَتَّى 15 >

حِينَئِذٍ جَاءَ إِلَى يَسُوعَ كَتَبَةٌ وَفَرِّيسِيُّونَ ٱلَّذِينَ مِنْ أُورُشَلِيمَ قَائِلِينَ: ١ 1
तब येरूशलेम से कुछ फ़रीसी और शास्त्री येशु के पास आकर कहने लगे,
«لِمَاذَا يَتَعَدَّى تَلَامِيذُكَ تَقْلِيدَ ٱلشُّيُوخِ، فَإِنَّهُمْ لَا يَغْسِلُونَ أَيْدِيَهُمْ حِينَمَا يَأْكُلُونَ خُبْزًا؟». ٢ 2
“आपके शिष्य पूर्वजों की परंपराओं का उल्लंघन क्यों करते हैं? वे भोजन के पहले हाथ नहीं धोया करते.”
فَأَجَابَ وَقَالَ لَهُمْ: «وَأَنْتُمْ أَيْضًا، لِمَاذَا تَتَعَدَّوْنَ وَصِيَّةَ ٱللهِ بِسَبَبِ تَقْلِيدِكُمْ؟ ٣ 3
येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “अपनी परंपराओं की पूर्ति में आप स्वयं परमेश्वर के आदेशों को क्यों तोड़ते हैं?
فَإِنَّ ٱللهَ أَوْصَى قَائِلًا: أَكْرِمْ أَبَاكَ وَأُمَّكَ، وَمَنْ يَشْتِمْ أَبًا أَوْ أُمًّا فَلْيَمُتْ مَوْتًا. ٤ 4
परमेश्वर की आज्ञा है, ‘अपने माता-पिता का सम्मान करो’ और वह, जो माता या पिता के प्रति बुरे शब्द बोले, उसे मृत्यु दंड दिया जाए.
وَأَمَّا أَنْتُمْ فَتَقُولُونَ: مَنْ قَالَ لِأَبِيهِ أَوْ أُمِّهِ: قُرْبَانٌ هُوَ ٱلَّذِي تَنْتَفِعُ بِهِ مِنِّي. فَلَا يُكْرِمُ أَبَاهُ أَوْ أُمَّهُ. ٥ 5
किंतु तुम कहते हो, ‘जो कोई अपने माता-पिता से कहता है, “आपको मुझसे जो कुछ प्राप्‍त होना था, वह सब अब परमेश्वर को भेंट किया जा चुका है,”
فَقَدْ أَبْطَلْتُمْ وَصِيَّةَ ٱللهِ بِسَبَبِ تَقْلِيدِكُمْ! ٦ 6
उसे माता-पिता का सम्मान करना आवश्यक नहीं.’ ऐसा करने के द्वारा अपनी ही परंपराओं को पूरा करने की फिराक में तुम परमेश्वर की आज्ञा को तोड़ते हो.
يَا مُرَاؤُونَ! حَسَنًا تَنَبَّأَ عَنْكُمْ إِشَعْيَاءُ قَائِلًا: ٧ 7
अरे पाखंडियों! भविष्यवक्ता यशायाह की यह भविष्यवाणी तुम्हारे विषय में ठीक ही है:
يَقْتَرِبُ إِلَيَّ هَذَا ٱلشَّعْبُ بِفَمِهِ، وَيُكْرِمُنِي بِشَفَتَيْهِ، وَأَمَّا قَلْبُهُ فَمُبْتَعِدٌ عَنِّي بَعِيدًا. ٨ 8
“ये लोग मात्र अपने होंठों से मेरा सम्मान करते हैं, किंतु उनके हृदय मुझसे बहुत दूर हैं.
وَبَاطِلًا يَعْبُدُونَنِي وَهُمْ يُعَلِّمُونَ تَعَالِيمَ هِيَ وَصَايَا ٱلنَّاسِ». ٩ 9
व्यर्थ में वे मेरी वंदना करते हैं. उनकी शिक्षा सिर्फ मनुष्यों द्वारा बनाए हुए नियम हैं.”
ثُمَّ دَعَا ٱلْجَمْعَ وَقَالَ لَهُمُ: «ٱسْمَعُوا وَٱفْهَمُوا. ١٠ 10
तब येशु ने भीड़ को अपने पास बुलाकर उनसे कहा, “सुनो और समझो:
لَيْسَ مَا يَدْخُلُ ٱلْفَمَ يُنَجِّسُ ٱلْإِنْسَانَ، بَلْ مَا يَخْرُجُ مِنَ ٱلْفَمِ هَذَا يُنَجِّسُ ٱلْإِنْسَانَ». ١١ 11
वह, जो मनुष्य के मुख में प्रवेश करता है, मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, परंतु उसे अशुद्ध वह करता है, जो उसके मुख से निकलता है.”
حِينَئِذٍ تَقَدَّمَ تَلَامِيذُهُ وَقَالُوا لَهُ: «أَتَعْلَمُ أَنَّ ٱلْفَرِّيسِيِّينَ لَمَّا سَمِعُوا ٱلْقَوْلَ نَفَرُوا؟». ١٢ 12
तब येशु के शिष्यों ने उनके पास आ उनसे प्रश्न किया, “क्या आप जानते हैं कि आपके इस वचन से फ़रीसी अपमानित हो रहे हैं?”
فَأَجَابَ وَقَالَ: «كُلُّ غَرْسٍ لَمْ يَغْرِسْهُ أَبِي ٱلسَّمَاوِيُّ يُقْلَعُ. ١٣ 13
येशु ने उनसे उत्तर में कहा, “ऐसा हर एक पौधा, जिसे मेरे पिता ने नहीं रोपा है, उखाड़ दिया जाएगा.
اُتْرُكُوهُمْ. هُمْ عُمْيَانٌ قَادَةُ عُمْيَانٍ. وَإِنْ كَانَ أَعْمَى يَقُودُ أَعْمَى يَسْقُطَانِ كِلَاهُمَا فِي حُفْرَةٍ». ١٤ 14
उनसे दूर ही रहो. वे तो अंधे मार्गदर्शक हैं. यदि अंधा ही अंधे का मार्गदर्शन करेगा, तो दोनों ही गड्ढे में गिरेंगे!”
فَأَجَابَ بُطْرُسُ وَقَالَ لَهُ: «فَسِّرْ لَنَا هَذَا ٱلْمَثَلَ». ١٥ 15
पेतरॉस ने येशु से विनती की, “प्रभु हमें इसका अर्थ समझाइए.”
فَقَالَ يَسُوعُ: «هَلْ أَنْتُمْ أَيْضًا حَتَّى ٱلْآنَ غَيْرُ فَاهِمِينَ؟ ١٦ 16
येशु ने कहा, “क्या तुम अब तक समझ नहीं पाए?
أَلَا تَفْهَمُونَ بَعْدُ أَنَّ كُلَّ مَا يَدْخُلُ ٱلْفَمَ يَمْضِي إِلَى ٱلْجَوْفِ وَيَنْدَفِعُ إِلَى ٱلْمَخْرَجِ؟ ١٧ 17
क्या तुम्हें यह समझ नहीं आया कि जो कुछ मुख में प्रवेश करता है, वह पेट में जाकर शरीर से बाहर निकल जाता है?
وَأَمَّا مَا يَخْرُجُ مِنَ ٱلْفَمِ فَمِنَ ٱلْقَلْبِ يَصْدُرُ، وَذَاكَ يُنَجِّسُ ٱلْإِنْسَانَ، ١٨ 18
किंतु जो कुछ मुख से निकलता है, उसका स्रोत होता है मनुष्य का हृदय. वही सब है जो मनुष्य को अशुद्ध करता है,
لِأَنْ مِنَ ٱلْقَلْبِ تَخْرُجُ أَفْكَارٌ شِرِّيرَةٌ: قَتْلٌ، زِنىً، فِسْقٌ، سِرْقَةٌ، شَهَادَةُ زُورٍ، تَجْدِيفٌ. ١٩ 19
क्योंकि हृदय से ही बुरे विचार, हत्या, व्यभिचार, वेश्यागामी, चोरियां, झूठी गवाही तथा निंदा उपजा करती हैं.
هَذِهِ هِيَ ٱلَّتِي تُنَجِّسُ ٱلْإِنْسَانَ. وَأَمَّا ٱلْأَ كْلُ بِأَيْدٍ غَيْرِ مَغْسُولَةٍ فَلَا يُنَجِّسُ ٱلْإِنْسَانَ». ٢٠ 20
ये ही मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, किंतु हाथ धोए बिना भोजन करने से कोई व्यक्ति अशुद्ध नहीं होता.”
ثُمَّ خَرَجَ يَسُوعُ مِنْ هُنَاكَ وَٱنْصَرَفَ إِلَى نَوَاحِي صُورَ وَصَيْدَاءَ. ٢١ 21
तब येशु वहां से निकलकर सोर और सीदोन प्रदेश में एकांतवास करने लगे.
وَإِذَا ٱمْرَأَةٌ كَنْعَانِيَّةٌ خَارِجَةٌ مِنْ تِلْكَ ٱلتُّخُومِ صَرَخَتْ إِلَيْهِ قَائِلَةً: «ٱرْحَمْنِي، يا سَيِّدُ، يا ٱبْنَ دَاوُدَ! اِبْنَتِي مَجْنُونَةٌ جِدًّا». ٢٢ 22
वहां एक कनानवासी स्त्री आई और पुकार-पुकारकर कहने लगी, “प्रभु! मुझ पर दया कीजिए. दावीद की संतान! मेरी पुत्री में एक क्रूर दुष्टात्मा समाया हुआ है और वह बहुत पीड़ित है.”
فَلَمْ يُجِبْهَا بِكَلِمَةٍ. فَتَقَدَّمَ تَلَامِيذُهُ وَطَلَبُوا إِلَيْهِ قَائِلِينَ: «ٱصْرِفْهَا، لِأَنَّهَا تَصِيحُ وَرَاءَنَا!». ٢٣ 23
किंतु येशु ने उसकी ओर लेश मात्र भी ध्यान नहीं दिया. शिष्य आकर उनसे विनती करने लगे, “प्रभु! उसे विदा कर दीजिए. वह चिल्लाती हुई हमारे पीछे लगी है.”
فَأَجَابَ وَقَالَ: «لَمْ أُرْسَلْ إِلَّا إِلَى خِرَافِ بَيْتِ إِسْرَائِيلَ ٱلضَّالَّةِ». ٢٤ 24
येशु ने उत्तर दिया, “मुझे मात्र इस्राएल वंश के खोई हुई भेड़ों के पास ही भेजा गया है.”
فَأَتَتْ وَسَجَدَتْ لَهُ قَائِلَةً: «يَا سَيِّدُ، أَعِنِّي!» ٢٥ 25
किंतु उस स्त्री ने येशु के पास आ झुकते हुए उनसे विनती की, “प्रभु! मेरी सहायता कीजिए!”
فَأَجَابَ وَقَالَ: «لَيْسَ حَسَنًا أَنْ يُؤْخَذَ خُبْزُ ٱلْبَنِينَ وَيُطْرَحَ لِلْكِلَابِ». ٢٦ 26
येशु ने उसे उत्तर दिया, “बालकों को परोसा भोजन उनसे लेकर कुत्तों को देना सही नहीं!”
فَقَالَتْ: «نَعَمْ، يا سَيِّدُ! وَٱلْكِلَابُ أَيْضًا تَأْكُلُ مِنَ ٱلْفُتَاتِ ٱلَّذِي يَسْقُطُ مِنْ مَائِدَةِ أَرْبَابِهَا!». ٢٧ 27
उस स्त्री ने उत्तर दिया, “सच है, प्रभु, किंतु यह भी तो सच है कि स्वामी की मेज़ से गिर जाते टुकड़ों से कुत्ते अपना पेट भर लेते हैं.”
حِينَئِذٍ أَجَابَ يَسُوعُ وَقَالَ لَهَا: «يَا ٱمْرَأَةُ، عَظِيمٌ إِيمَانُكِ! لِيَكُنْ لَكِ كَمَا تُرِيدِينَ». فَشُفِيَتِ ٱبْنَتُهَا مِنْ تِلْكَ ٱلسَّاعَةِ. ٢٨ 28
येशु कह उठे, “सराहनीय है तुम्हारा विश्वास! वैसा ही हो, जैसा तुम चाहती हो.” उसी क्षण उसकी पुत्री स्वस्थ हो गई.
ثُمَّ ٱنْتَقَلَ يَسُوعُ مِنْ هُنَاكَ وَجَاءَ إِلَى جَانِبِ بَحْرِ ٱلْجَلِيلِ، وَصَعِدَ إِلَى ٱلْجَبَلِ وَجَلَسَ هُنَاكَ. ٢٩ 29
वहां से येशु गलील झील के तट से होते हुए पर्वत पर चले गए और वहां बैठ गए.
فَجَاءَ إِلَيْهِ جُمُوعٌ كَثِيرَةٌ، مَعَهُمْ عُرْجٌ وَعُمْيٌ وَخُرْسٌ وَشُلٌّ وَآخَرُونَ كَثِيرُونَ، وَطَرَحُوهُمْ عِنْدَ قَدَمَيْ يَسُوعَ. فَشَفَاهُمْ ٣٠ 30
एक बड़ी भीड़ उनके पास आ गयी. जिनमें लंगड़े, अपंग, अंधे, गूंगे और अन्य रोगी थे. लोगों ने इन्हें येशु के चरणों में लिटा दिया और येशु ने उन्हें स्वस्थ कर दिया.
حَتَّى تَعَجَّبَ ٱلْجُمُوعُ إِذْ رَأَوْا ٱلْخُرْسَ يَتَكَلَّمُونَ، وَٱلشُّلَّ يَصِحُّونَ، وَٱلْعُرْجَ يَمْشُونَ، وَٱلْعُمْيَ يُبْصِرُونَ. وَمَجَّدُوا إِلَهَ إِسْرَائِيلَ. ٣١ 31
गूंगों को बोलते, अपंगों को स्वस्थ होते, लंगड़ों को चलते तथा अंधों को देखते देख भीड़ चकित हो इस्राएल के परमेश्वर का गुणगान करने लगी.
وَأَمَّا يَسُوعُ فَدَعَا تَلَامِيذَهُ وَقَالَ: «إِنِّي أُشْفِقُ عَلَى ٱلْجَمْعِ، لِأَنَّ ٱلْآنَ لَهُمْ ثَلَاثَةَ أَيَّامٍ يَمْكُثُونَ مَعِي وَلَيْسَ لَهُمْ مَا يَأْكُلُونَ. وَلَسْتُ أُرِيدُ أَنْ أَصْرِفَهُمْ صَائِمِينَ لِئَلَّا يُخَوِّرُوا فِي ٱلطَّرِيقِ». ٣٢ 32
येशु ने अपने शिष्यों को अपने पास बुलाकर कहा, “मुझे इन लोगों से सहानुभूति है क्योंकि ये मेरे साथ तीन दिन से हैं और इनके पास अब खाने को कुछ नहीं है. मैं इन्हें भूखा ही विदा करना नहीं चाहता—कहीं ये मार्ग में ही मूर्च्छित न हो जाएं.”
فَقَالَ لَهُ تَلَامِيذُهُ: «مِنْ أَيْنَ لَنَا فِي ٱلْبَرِّيَّةِ خُبْزٌ بِهَذَا ٱلْمِقْدَارِ، حَتَّى يُشْبِعَ جَمْعًا هَذَا عَدَدُهُ؟». ٣٣ 33
शिष्यों ने कहा, “इस निर्जन स्थान में इस बड़ी भीड़ की तृप्‍ति के लिए भोजन का प्रबंध कैसे होगा?”
فَقَالَ لَهُمْ يَسُوعُ: «كَمْ عِنْدَكُمْ مِنَ ٱلْخُبْزِ؟». فَقَالُوا: «سَبْعَةٌ وَقَلِيلٌ مِنْ صِغَارِ ٱلسَّمَكِ». ٣٤ 34
येशु ने उनसे प्रश्न किया, “कितनी रोटियां हैं तुम्हारे पास?” “सात, और कुछ छोटी मछलियां,” उन्होंने उत्तर दिया.
فَأَمَرَ ٱلْجُمُوعَ أَنْ يَتَّكِئُوا عَلَى ٱلْأَرْضِ، ٣٥ 35
येशु ने भीड़ को भूमि पर बैठ जाने का निर्देश दिया
وَأَخَذَ ٱلسَّبْعَ خُبْزَاتٍ وَٱلسَّمَكَ، وَشَكَرَ وَكَسَّرَ وَأَعْطَى تَلَامِيذَهُ، وَٱلتَّلَامِيذُ أَعْطَوْا ٱلْجَمْعَ. ٣٦ 36
और स्वयं उन्होंने सातों रोटियां और मछलियां लेकर उनके लिए परमेश्वर के प्रति आभार प्रकट करने के बाद उन्हें तोड़ा और शिष्यों को देते गए तथा शिष्य भीड़ को.
فَأَكَلَ ٱلْجَمِيعُ وَشَبِعُوا. ثُمَّ رَفَعُوا مَا فَضَلَ مِنَ ٱلْكِسَرِ سَبْعَةَ سِلَالٍ مَمْلُوءَةٍ، ٣٧ 37
सभी ने खाया और तृप्‍त हुए और शिष्यों ने तोड़ी गई रोटियों के शेष टुकड़ों को इकट्ठा कर सात बड़े टोकरे भर लिए.
وَٱلْآكِلُونَ كَانُوا أَرْبَعَةَ آلَافِ رَجُلٍ مَا عَدَا ٱلنِّسَاءَ وَٱلْأَوْلَادَ. ٣٨ 38
वहां जितनों ने भोजन किया था उनमें स्त्रियों और बालकों के अतिरिक्त पुरुषों ही की संख्या कोई चार हज़ार थी.
ثُمَّ صَرَفَ ٱلْجُمُوعَ وَصَعِدَ إِلَى ٱلسَّفِينَةِ وَجَاءَ إِلَى تُخُومِ مَجْدَلَ. ٣٩ 39
भीड़ को विदा कर येशु नाव में सवार होकर मगादान क्षेत्र में आए.

< مَتَّى 15 >