< مَتَّى 13 >

فِي ذَلِكَ ٱلْيَوْمِ خَرَجَ يَسُوعُ مِنَ ٱلْبَيْتِ وَجَلَسَ عِنْدَ ٱلْبَحْرِ، ١ 1
उसी दिन यीशु घर से निकलकर झील के किनारे जा बैठा।
فَٱجْتَمَعَ إِلَيْهِ جُمُوعٌ كَثِيرَةٌ، حَتَّى إِنَّهُ دَخَلَ ٱلسَّفِينَةَ وَجَلَسَ. وَٱلْجَمْعُ كُلُّهُ وَقَفَ عَلَى ٱلشَّاطِئِ. ٢ 2
और उसके पास ऐसी बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई कि वह नाव पर चढ़ गया, और सारी भीड़ किनारे पर खड़ी रही।
فَكَلَّمَهُمْ كَثِيرًا بِأَمْثَالٍ قَائِلًا: «هُوَذَا ٱلزَّارِعُ قَدْ خَرَجَ لِيَزْرَعَ، ٣ 3
और उसने उनसे दृष्टान्तों में बहुत सी बातें कहीं “एक बोनेवाला बीज बोने निकला।
وَفِيمَا هُوَ يَزْرَعُ سَقَطَ بَعْضٌ عَلَى ٱلطَّرِيقِ، فَجَاءَتِ ٱلطُّيُورُ وَأَكَلَتْهُ. ٤ 4
बोते समय कुछ बीज मार्ग के किनारे गिरे और पक्षियों ने आकर उन्हें चुग लिया।
وَسَقَطَ آخَرُ عَلَى ٱلْأَمَاكِنِ ٱلْمُحْجِرَةِ، حَيْثُ لَمْ تَكُنْ لَهُ تُرْبَةٌ كَثِيرَةٌ، فَنَبَتَ حَالًا إِذْ لَمْ يَكُنْ لَهُ عُمْقُ أَرْضٍ. ٥ 5
कुछ बीज पत्थरीली भूमि पर गिरे, जहाँ उन्हें बहुत मिट्टी न मिली और नरम मिट्टी न मिलने के कारण वे जल्द उग आए।
وَلَكِنْ لَمَّا أَشْرَقَتِ ٱلشَّمْسُ ٱحْتَرَقَ، وَإِذْ لَمْ يَكُنْ لَهُ أَصْلٌ جَفَّ. ٦ 6
पर सूरज निकलने पर वे जल गए, और जड़ न पकड़ने से सूख गए।
وَسَقَطَ آخَرُ عَلَى ٱلشَّوْكِ، فَطَلَعَ ٱلشَّوْكُ وَخَنَقَهُ. ٧ 7
कुछ बीज झाड़ियों में गिरे, और झाड़ियों ने बढ़कर उन्हें दबा डाला।
وَسَقَطَ آخَرُ عَلَى ٱلْأَرْضِ ٱلْجَيِّدَةِ فَأَعْطَى ثَمَرًا، بَعْضٌ مِئَةً وَآخَرُ سِتِّينَ وَآخَرُ ثَلَاثِينَ. ٨ 8
पर कुछ अच्छी भूमि पर गिरे, और फल लाए, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना।
مَنْ لَهُ أُذُنَانِ لِلسَّمْعِ، فَلْيَسْمَعْ». ٩ 9
जिसके कान हों वह सुन ले।”
فَتَقَدَّمَ ٱلتَّلَامِيذُ وَقَالُوا لَهُ: «لِمَاذَا تُكَلِّمُهُمْ بِأَمْثَالٍ؟». ١٠ 10
१०और चेलों ने पास आकर उससे कहा, “तू उनसे दृष्टान्तों में क्यों बातें करता है?”
فَأَجَابَ وَقَالَ لَهُمْ: «لِأَنَّهُ قَدْ أُعْطِيَ لَكُمْ أَنْ تَعْرِفُوا أَسْرَارَ مَلَكُوتِ ٱلسَّمَاوَاتِ، وَأَمَّا لِأُولَئِكَ فَلَمْ يُعْطَ. ١١ 11
११उसने उत्तर दिया, “तुम को स्वर्ग के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर उनको नहीं।
فَإِنَّ مَنْ لَهُ سَيُعْطَى وَيُزَادُ، وَأَمَّا مَنْ لَيْسَ لَهُ فَٱلَّذِي عِنْدَهُ سَيُؤْخَذُ مِنْهُ. ١٢ 12
१२क्योंकि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा; पर जिसके पास कुछ नहीं है, उससे जो कुछ उसके पास है, वह भी ले लिया जाएगा।
مِنْ أَجْلِ هَذَا أُكَلِّمُهُمْ بِأَمْثَالٍ، لِأَنَّهُمْ مُبْصِرِينَ لَا يُبْصِرُونَ، وَسَامِعِينَ لَا يَسْمَعُونَ وَلَا يَفْهَمُونَ. ١٣ 13
१३मैं उनसे दृष्टान्तों में इसलिए बातें करता हूँ, कि वे देखते हुए नहीं देखते; और सुनते हुए नहीं सुनते; और नहीं समझते।
فَقَدْ تَمَّتْ فِيهِمْ نُبُوَّةُ إِشَعْيَاءَ ٱلْقَائِلَةُ: تَسْمَعُونَ سَمْعًا وَلَا تَفْهَمُونَ، وَمُبْصِرِينَ تُبْصِرُونَ وَلَا تَنْظُرُونَ. ١٤ 14
१४और उनके विषय में यशायाह की यह भविष्यद्वाणी पूरी होती है: ‘तुम कानों से तो सुनोगे, पर समझोगे नहीं; और आँखों से तो देखोगे, पर तुम्हें न सूझेगा।
لِأَنَّ قَلْبَ هَذَا ٱلشَّعْبِ قَدْ غَلُظَ، وَآذَانَهُمْ قَدْ ثَقُلَ سَمَاعُهَا. وَغَمَّضُوا عُيُونَهُمْ، لِئَلَّا يُبْصِرُوا بِعُيُونِهِمْ، وَيَسْمَعُوا بِآذَانِهِمْ، وَيَفْهَمُوا بِقُلُوبِهِمْ، وَيَرْجِعُوا فَأَشْفِيَهُمْ. ١٥ 15
१५क्योंकि इन लोगों के मन सुस्त हो गए है, और वे कानों से ऊँचा सुनते हैं और उन्होंने अपनी आँखें मूँद लीं हैं; कहीं ऐसा न हो कि वे आँखों से देखें, और कानों से सुनें और मन से समझें, और फिर जाएँ, और मैं उन्हें चंगा करूँ।’
وَلَكِنْ طُوبَى لِعُيُونِكُمْ لِأَنَّهَا تُبْصِرُ، وَلِآذَانِكُمْ لِأَنَّهَا تَسْمَعُ. ١٦ 16
१६“पर धन्य है तुम्हारी आँखें, कि वे देखती हैं; और तुम्हारे कान, कि वे सुनते हैं।
فَإِنِّي ٱلْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ أَنْبِيَاءَ وَأَبْرَارًا كَثِيرِينَ ٱشْتَهَوْا أَنْ يَرَوْا مَا أَنْتُمْ تَرَوْنَ وَلَمْ يَرَوْا، وَأَنْ يَسْمَعُوا مَا أَنْتُمْ تَسْمَعُونَ وَلَمْ يَسْمَعُوا. ١٧ 17
१७क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और धर्मियों ने चाहा कि जो बातें तुम देखते हो, देखें पर न देखीं; और जो बातें तुम सुनते हो, सुनें, पर न सुनीं।
«فَٱسْمَعُوا أَنْتُمْ مَثَلَ ٱلزَّارِعِ: ١٨ 18
१८“अब तुम बोनेवाले का दृष्टान्त सुनो
كُلُّ مَنْ يَسْمَعُ كَلِمَةَ ٱلْمَلَكُوتِ وَلَا يَفْهَمُ، فَيَأْتِي ٱلشِّرِّيرُ وَيَخْطَفُ مَا قَدْ زُرِعَ فِي قَلْبِهِ. هَذَا هُوَ ٱلْمَزْرُوعُ عَلَى ٱلطَّرِيقِ. ١٩ 19
१९जो कोई राज्य कावचनसुनकर नहीं समझता, उसके मन में जो कुछ बोया गया था, उसे वह दुष्ट आकर छीन ले जाता है; यह वही है, जो मार्ग के किनारे बोया गया था।
وَٱلْمَزْرُوعُ عَلَى ٱلْأَمَاكِنِ ٱلْمُحْجِرَةِ هُوَ ٱلَّذِي يَسْمَعُ ٱلْكَلِمَةَ، وَحَالًا يَقْبَلُهَا بِفَرَحٍ، ٢٠ 20
२०और जो पत्थरीली भूमि पर बोया गया, यह वह है, जो वचन सुनकर तुरन्त आनन्द के साथ मान लेता है।
وَلَكِنْ لَيْسَ لَهُ أَصْلٌ فِي ذَاتِهِ، بَلْ هُوَ إِلَى حِينٍ. فَإِذَا حَدَثَ ضِيقٌ أَوِ ٱضْطِهَادٌ مِنْ أَجْلِ ٱلْكَلِمَةِ فَحَالًا يَعْثُرُ. ٢١ 21
२१पर अपने में जड़ न रखने के कारण वह थोड़े ही दिन रह पाता है, और जब वचन के कारण क्लेश या उत्पीड़न होता है, तो तुरन्त ठोकर खाता है।
وَٱلْمَزْرُوعُ بَيْنَ ٱلشَّوْكِ هُوَ ٱلَّذِي يَسْمَعُ ٱلْكَلِمَةَ، وَهَمُّ هَذَا ٱلْعَالَمِ وَغُرُورُ ٱلْغِنَى يَخْنُقَانِ ٱلْكَلِمَةَ فَيَصِيرُ بِلَا ثَمَرٍ. (aiōn g165) ٢٢ 22
२२जो झाड़ियों में बोया गया, यह वह है, जो वचन को सुनता है, पर इस संसार की चिन्ता और धन का धोखा वचन को दबाता है, और वह फल नहीं लाता। (aiōn g165)
وَأَمَّا ٱلْمَزْرُوعُ عَلَى ٱلْأَرْضِ ٱلْجَيِّدَةِ فَهُوَ ٱلَّذِي يَسْمَعُ ٱلْكَلِمَةَ وَيَفْهَمُ. وَهُوَ ٱلَّذِي يَأْتِي بِثَمَرٍ، فَيَصْنَعُ بَعْضٌ مِئَةً وَآخَرُ سِتِّينَ وَآخَرُ ثَلَاثِينَ». ٢٣ 23
२३जो अच्छी भूमि में बोया गया, यह वह है, जो वचन को सुनकर समझता है, और फल लाता है कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना।”
قَدَّمَ لَهُمْ مَثَلًا آخَرَ قَائِلًا: «يُشْبِهُ مَلَكُوتُ ٱلسَّمَاوَاتِ إِنْسَانًا زَرَعَ زَرْعًا جَيِّدًا فِي حَقْلِهِ. ٢٤ 24
२४यीशु ने उन्हें एक और दृष्टान्त दिया, “स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के समान है जिसने अपने खेत में अच्छा बीज बोया।
وَفِيمَا ٱلنَّاسُ نِيَامٌ جَاءَ عَدُوُّهُ وَزَرَعَ زَوَانًا فِي وَسْطِ ٱلْحِنْطَةِ وَمَضَى. ٢٥ 25
२५पर जब लोग सो रहे थे तो उसका बैरी आकर गेहूँ के बीच जंगली बीज बोकर चला गया।
فَلَمَّا طَلَعَ ٱلنَّبَاتُ وَصَنَعَ ثَمَرًا، حِينَئِذٍ ظَهَرَ ٱلزَّوَانُ أَيْضًا. ٢٦ 26
२६जब अंकुर निकले और बालें लगी, तो जंगली दाने के पौधे भी दिखाई दिए।
فَجَاءَ عَبِيدُ رَبِّ ٱلْبَيْتِ وَقَالُوا لَهُ: يَا سَيِّدُ، أَلَيْسَ زَرْعًا جَيِّدًا زَرَعْتَ فِي حَقْلِكَ؟ فَمِنْ أَيْنَ لَهُ زَوَانٌ؟. ٢٧ 27
२७इस पर गृहस्थ के दासों ने आकर उससे कहा, ‘हे स्वामी, क्या तूने अपने खेत में अच्छा बीज न बोया था? फिर जंगली दाने के पौधे उसमें कहाँ से आए?’
فَقَالَ لَهُمْ: إِنْسَانٌ عَدُوٌّ فَعَلَ هَذَا. فَقَالَ لَهُ ٱلْعَبِيدُ: أَتُرِيدُ أَنْ نَذْهَبَ وَنَجْمَعَهُ؟ ٢٨ 28
२८उसने उनसे कहा, ‘यह किसी शत्रु का काम है।’ दासों ने उससे कहा, ‘क्या तेरी इच्छा है, कि हम जाकर उनको बटोर लें?’
فَقَالَ: لَا! لِئَلَّا تَقْلَعُوا ٱلْحِنْطَةَ مَعَ ٱلزَّوَانِ وَأَنْتُمْ تَجْمَعُونَهُ. ٢٩ 29
२९उसने कहा, ‘नहीं, ऐसा न हो कि जंगली दाने के पौधे बटोरते हुए तुम उनके साथ गेहूँ भी उखाड़ लो।
دَعُوهُمَا يَنْمِيَانِ كِلَاهُمَا مَعًا إِلَى ٱلْحَصَادِ، وَفِي وَقْتِ ٱلْحَصَادِ أَقُولُ لِلْحَصَّادِينَ: ٱجْمَعُوا أَوَّلًا ٱلزَّوَانَ وَٱحْزِمُوهُ حُزَمًا لِيُحْرَقَ، وَأَمَّا ٱلْحِنْطَةَ فَٱجْمَعُوهَا إِلَى مَخْزَنِي». ٣٠ 30
३०कटनी तक दोनों को एक साथ बढ़ने दो, और कटनी के समय मैं काटनेवालों से कहूँगा; पहले जंगली दाने के पौधे बटोरकर जलाने के लिये उनके गट्ठे बाँध लो, और गेहूँ को मेरे खत्ते में इकट्ठा करो।’”
قَدَّمَ لَهُمْ مَثَلًا آخَرَ قَائِلًا: «يُشْبِهُ مَلَكُوتُ ٱلسَّمَاوَاتِ حَبَّةَ خَرْدَلٍ أَخَذَهَا إِنْسَانٌ وَزَرَعَهَا فِي حَقْلِهِ، ٣١ 31
३१उसने उन्हें एक और दृष्टान्त दिया, “स्वर्ग का राज्य राई के एक दाने के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने लेकर अपने खेत में बो दिया।
وَهِيَ أَصْغَرُ جَمِيعِ ٱلْبُزُورِ. وَلَكِنْ مَتَى نَمَتْ فَهِيَ أَكْبَرُ ٱلْبُقُولِ، وَتَصِيرُ شَجَرَةً، حَتَّى إِنَّ طُيُورَ ٱلسَّمَاءِ تَأْتِي وَتَتَآوَى فِي أَغْصَانِهَا». ٣٢ 32
३२वह सब बीजों से छोटा तो है पर जब बढ़ जाता है तब सब साग-पात से बड़ा होता है; और ऐसा पेड़ हो जाता है, कि आकाश के पक्षी आकर उसकी डालियों पर बसेरा करते हैं।”
قَالَ لَهُمْ مَثَلًا آخَرَ: «يُشْبِهُ مَلَكُوتُ ٱلسَّمَاوَاتِ خَمِيرَةً أَخَذَتْهَا ٱمْرَأَةٌ وَخَبَّأَتْهَا فِي ثَلَاثَةِ أَكْيَالِ دَقِيقٍ حَتَّى ٱخْتَمَرَ ٱلْجَمِيعُ». ٣٣ 33
३३उसने एक और दृष्टान्त उन्हें सुनाया, “स्वर्ग का राज्य ख़मीर के समान है जिसको किसी स्त्री ने लेकर तीन पसेरी आटे में मिला दिया और होते-होते वह सब ख़मीर हो गया।”
هَذَا كُلُّهُ كَلَّمَ بِهِ يَسُوعُ ٱلْجُمُوعَ بِأَمْثَالٍ، وَبِدُونِ مَثَلٍ لَمْ يَكُنْ يُكَلِّمُهُمْ، ٣٤ 34
३४ये सब बातें यीशु ने दृष्टान्तों में लोगों से कहीं, और बिना दृष्टान्त वह उनसे कुछ न कहता था।
لِكَيْ يَتِمَّ مَا قِيلَ بِٱلنَّبِيِّ ٱلْقَائِلِ: «سَأَفْتَحُ بِأَمْثَالٍ فَمِي، وَأَنْطِقُ بِمَكْتُومَاتٍ مُنْذُ تَأْسِيسِ ٱلْعَالَمِ». ٣٥ 35
३५कि जो वचन भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो: “मैं दृष्टान्त कहने को अपना मुँह खोलूँगा मैं उन बातों को जो जगत की उत्पत्ति से गुप्त रही हैं प्रगट करूँगा।”
حِينَئِذٍ صَرَفَ يَسُوعُ ٱلْجُمُوعَ وَجَاءَ إِلَى ٱلْبَيْتِ. فَتَقَدَّمَ إِلَيْهِ تَلَامِيذُهُ قَائِلِينَ: «فَسِّرْ لَنَا مَثَلَ زَوَانِ ٱلْحَقْلِ». ٣٦ 36
३६तब वह भीड़ को छोड़कर घर में आया, और उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा, “खेत के जंगली दाने का दृष्टान्त हमें समझा दे।”
فَأَجَابَ وَقَالَ لَهُمْ: «اَلزَّارِعُ ٱلزَّرْعَ ٱلْجَيِّدَ هُوَ ٱبْنُ ٱلْإِنْسَانِ. ٣٧ 37
३७उसने उनको उत्तर दिया, “अच्छे बीज का बोनेवाला मनुष्य का पुत्र है।
وَٱلْحَقْلُ هُوَ ٱلْعَالَمُ. وَٱلزَّرْعُ ٱلْجَيِّدُ هُوَ بَنُو ٱلْمَلَكُوتِ. وَٱلزَّوَانُ هُوَ بَنُو ٱلشِّرِّيرِ. ٣٨ 38
३८खेत संसार है, अच्छा बीज राज्य के सन्तान, और जंगली बीज दुष्ट के सन्तान हैं।
وَٱلْعَدُوُّ ٱلَّذِي زَرَعَهُ هُوَ إِبْلِيسُ. وَٱلْحَصَادُ هُوَ ٱنْقِضَاءُ ٱلْعَالَمِ. وَٱلْحَصَّادُونَ هُمُ ٱلْمَلَائِكَةُ. (aiōn g165) ٣٩ 39
३९जिस शत्रु ने उनको बोया वह शैतान है; कटनी जगत का अन्त है: और काटनेवाले स्वर्गदूत हैं। (aiōn g165)
فَكَمَا يُجْمَعُ ٱلزَّوَانُ وَيُحْرَقُ بِٱلنَّارِ، هَكَذَا يَكُونُ فِي ٱنْقِضَاءِ هَذَا ٱلْعَالَمِ: (aiōn g165) ٤٠ 40
४०अतः जैसे जंगली दाने बटोरे जाते और जलाए जाते हैं वैसा ही जगत के अन्त में होगा। (aiōn g165)
يُرْسِلُ ٱبْنُ ٱلْإِنْسَانِ مَلَائِكَتَهُ فَيَجْمَعُونَ مِنْ مَلَكُوتِهِ جَمِيعَ ٱلْمَعَاثِرِ وَفَاعِلِي ٱلْإِثْمِ، ٤١ 41
४१मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे उसके राज्य में से सब ठोकर के कारणों को और कुकर्म करनेवालों को इकट्ठा करेंगे।
وَيَطْرَحُونَهُمْ فِي أَتُونِ ٱلنَّارِ. هُنَاكَ يَكُونُ ٱلْبُكَاءُ وَصَرِيرُ ٱلْأَسْنَانِ. ٤٢ 42
४२और उन्हेंआग के कुण्डमें डालेंगे, वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।
حِينَئِذٍ يُضِيءُ ٱلْأَبْرَارُ كَٱلشَّمْسِ فِي مَلَكُوتِ أَبِيهِمْ. مَنْ لَهُ أُذُنَانِ لِلسَّمْعِ، فَلْيَسْمَعْ. ٤٣ 43
४३उस समय धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य के समान चमकेंगे। जिसके कान हों वह सुन ले।
«أَيْضًا يُشْبِهُ مَلَكُوتُ ٱلسَّمَاوَاتِ كَنْزًا مُخْفًى فِي حَقْلٍ، وَجَدَهُ إِنْسَانٌ فَأَخْفَاهُ. وَمِنْ فَرَحِهِ مَضَى وَبَاعَ كُلَّ مَا كَانَ لَهُ وَٱشْتَرَى ذَلِكَ ٱلْحَقْلَ. ٤٤ 44
४४“स्वर्ग का राज्य खेत में छिपे हुए धन के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने पाकर छिपा दिया, और आनन्द के मारे जाकर अपना सब कुछ बेचकर उस खेत को मोल लिया।
أَيْضًا يُشْبِهُ مَلَكُوتُ ٱلسَّمَاوَاتِ إِنْسَانًا تَاجِرًا يَطْلُبُ لَآلِئَ حَسَنَةً، ٤٥ 45
४५“फिर स्वर्ग का राज्य एक व्यापारी के समान है जो अच्छे मोतियों की खोज में था।
فَلَمَّا وَجَدَ لُؤْلُؤَةً وَاحِدَةً كَثِيرَةَ ٱلثَّمَنِ، مَضَى وَبَاعَ كُلَّ مَا كَانَ لَهُ وَٱشْتَرَاهَا. ٤٦ 46
४६जब उसे एक बहुमूल्य मोती मिला तो उसने जाकर अपना सब कुछ बेच डाला और उसे मोल ले लिया।
أَيْضًا يُشْبِهُ مَلَكُوتُ ٱلسَّمَاوَاتِ شَبَكَةً مَطْرُوحَةً فِي ٱلْبَحْرِ، وَجَامِعَةً مِنْ كُلِّ نَوْعٍ. ٤٧ 47
४७“फिर स्वर्ग का राज्य उस बड़े जाल के समान है, जो समुद्र में डाला गया, और हर प्रकार की मछलियों को समेट लाया।
فَلَمَّا ٱمْتَلَأَتْ أَصْعَدُوهَا عَلَى ٱلشَّاطِئِ، وَجَلَسُوا وَجَمَعُوا ٱلْجِيَادَ إِلَى أَوْعِيَةٍ، وَأَمَّا ٱلْأَرْدِيَاءُ فَطَرَحُوهَا خَارِجًا. ٤٨ 48
४८और जब जाल भर गया, तो मछुए किनारे पर खींच लाए, और बैठकर अच्छी-अच्छी तो बरतनों में इकट्ठा कीं और बेकार-बेकार फेंक दीं।
هَكَذَا يَكُونُ فِي ٱنْقِضَاءِ ٱلْعَالَمِ: يَخْرُجُ ٱلْمَلَائِكَةُ وَيُفْرِزُونَ ٱلْأَشْرَارَ مِنْ بَيْنِ ٱلْأَبْرَارِ، (aiōn g165) ٤٩ 49
४९जगत के अन्त में ऐसा ही होगा; स्वर्गदूत आकर दुष्टों को धर्मियों से अलग करेंगे, (aiōn g165)
وَيَطْرَحُونَهُمْ فِي أَتُونِ ٱلنَّارِ. هُنَاكَ يَكُونُ ٱلْبُكَاءُ وَصَرِيرُ ٱلْأَسْنَانِ». ٥٠ 50
५०और उन्हें आग के कुण्ड में डालेंगे। वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।
قَالَ لَهُمْ يَسُوعُ: «أَفَهِمْتُمْ هَذَا كُلَّهُ؟». فَقَالُوا: «نَعَمْ، يا سَيِّدُ». ٥١ 51
५१“क्या तुम ये सब बातें समझ गए?” चेलों ने उत्तर दिया, “हाँ।”
فَقَالَ لَهُمْ: «مِنْ أَجْلِ ذَلِكَ كُلُّ كَاتِبٍ مُتَعَلِّمٍ فِي مَلَكُوتِ ٱلسَّمَاوَاتِ يُشْبِهُ رَجُلًا رَبَّ بَيْتٍ يُخْرِجُ مِنْ كَنْزِهِ جُدُدًا وَعُتَقَاءَ». ٥٢ 52
५२फिर यीशु ने उनसे कहा, “इसलिए हर एक शास्त्री जो स्वर्ग के राज्य का चेला बना है, उस गृहस्थ के समान है जो अपने भण्डार से नई और पुरानी वस्तुएँ निकालता है।”
وَلَمَّا أَكْمَلَ يَسُوعُ هَذِهِ ٱلْأَمْثَالَ ٱنْتَقَلَ مِنْ هُنَاكَ. ٥٣ 53
५३जब यीशु ये सब दृष्टान्त कह चुका, तो वहाँ से चला गया।
وَلَمَّا جَاءَ إِلَى وَطَنِهِ كَانَ يُعَلِّمُهُمْ فِي مَجْمَعِهِمْ حَتَّى بُهِتُوا وَقَالُوا: «مِنْ أَيْنَ لِهَذَا هَذِهِ ٱلْحِكْمَةُ وَٱلْقُوَّاتُ؟ ٥٤ 54
५४और अपने नगर में आकर उनके आराधनालय में उन्हें ऐसा उपदेश देने लगा; कि वे चकित होकर कहने लगे, “इसको यह ज्ञान और सामर्थ्य के काम कहाँ से मिले?
أَلَيْسَ هَذَا ٱبْنَ ٱلنَّجَّارِ؟ أَلَيْسَتْ أُمُّهُ تُدْعَى مَرْيَمَ، وَإِخْوَتُهُ يَعْقُوبَ وَيُوسِي وَسِمْعَانَ وَيَهُوذَا؟ ٥٥ 55
५५क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं? और क्या इसकी माता का नाम मरियम और इसके भाइयों के नाम याकूब, यूसुफ, शमौन और यहूदा नहीं?
أَوَلَيْسَتْ أَخَوَاتُهُ جَمِيعُهُنَّ عِنْدَنَا؟ فَمِنْ أَيْنَ لِهَذَا هَذِهِ كُلُّهَا؟». ٥٦ 56
५६और क्या इसकी सब बहनें हमारे बीच में नहीं रहती? फिर इसको यह सब कहाँ से मिला?”
فَكَانُوا يَعْثُرُونَ بِهِ. وَأَمَّا يَسُوعُ فَقَالَ لَهُمْ: «لَيْسَ نَبِيٌّ بِلَا كَرَامَةٍ إِلَّا فِي وَطَنِهِ وَفِي بَيْتِهِ». ٥٧ 57
५७इस प्रकार उन्होंने उसके कारण ठोकर खाई, पर यीशु ने उनसे कहा, “भविष्यद्वक्ता का अपने नगर और अपने घर को छोड़ और कहीं निरादर नहीं होता।”
وَلَمْ يَصْنَعْ هُنَاكَ قُوَّاتٍ كَثِيرَةً لِعَدَمِ إِيمَانِهِمْ. ٥٨ 58
५८और उसने वहाँ उनके अविश्वास के कारण बहुत सामर्थ्य के काम नहीं किए।

< مَتَّى 13 >