< مَرْقُس 7 >
وَٱجْتَمَعَ إِلَيْهِ ٱلْفَرِّيسِيُّونَ وَقَوْمٌ مِنَ ٱلْكَتَبَةِ قَادِمِينَ مِنْ أُورُشَلِيمَ. | ١ 1 |
फिर फ़रीसी और कुछ आलिम उसके पास जमा हुए, वो येरूशलेम से आए थे।
وَلَمَّا رَأَوْا بَعْضًا مِنْ تَلَامِيذِهِ يَأْكُلُونَ خُبْزًا بِأَيْدٍ دَنِسَةٍ، أَيْ غَيْرِ مَغْسُولَةٍ، لَامُوا. | ٢ 2 |
और उन्होंने देखा कि उसके कुछ शागिर्द नापाक या'नी बिना धोए हाथों से खाना खाते हैं
لِأَنَّ ٱلْفَرِّيسِيِّينَ وَكُلَّ ٱلْيَهُودِ إِنْ لَمْ يَغْسِلُوا أَيْدِيَهُمْ بِٱعْتِنَاءٍ، لَا يَأْكُلُونَ، مُتَمَسِّكِينَ بِتَقْلِيدِ ٱلشُّيُوخِ. | ٣ 3 |
क्यूँकि फ़रीसी और सब यहूदी बुज़ुर्गों की रिवायत के मुताबिक़ जब तक अपने हाथ ख़ूब न धोलें नहीं खाते।
وَمِنَ ٱلسُّوقِ إِنْ لَمْ يَغْتَسِلُوا لَا يَأْكُلُونَ. وَأَشْيَاءُ أُخْرَى كَثِيرَةٌ تَسَلَّمُوهَا لِلتَّمَسُّكِ بِهَا، مِنْ غَسْلِ كُؤُوسٍ وَأَبَارِيقَ وَآنِيَةِ نُحَاسٍ وَأَسِرَّةٍ. | ٤ 4 |
और बाज़ार से आकर जब तक ग़ुस्ल न कर लें नहीं खाते, और बहुत सी और बातों के जो उनको पहुँची हैं पाबन्द हैं, जैसे प्यालों और लोटों और ताँबे के बरतनों को धोना।
ثُمَّ سَأَلَهُ ٱلْفَرِّيسِيُّونَ وَٱلْكَتَبَةُ: «لِمَاذَا لَا يَسْلُكُ تَلَامِيذُكَ حَسَبَ تَقْلِيدِ ٱلشُّيُوخِ، بَلْ يَأْكُلُونَ خُبْزًا بِأَيْدٍ غَيْرِ مَغْسُولَةٍ؟». | ٥ 5 |
पस फ़रीसियों और आलिमों ने उस से पूछा, क्या वजह है कि “तेरे शागिर्द बुज़ुर्गों की रिवायत पर नहीं चलते बल्कि नापाक हाथों से खाना खाते हैं?”
فَأَجَابَ وَقَالَ لَهُمْ: «حَسَنًا تَنَبَّأَ إِشَعْيَاءُ عَنْكُمْ أَنْتُمُ ٱلْمُرَائِينَ! كَمَا هُوَ مَكْتُوبٌ: هَذَا ٱلشَّعْبُ يُكْرِمُنِي بِشَفَتَيْهِ، وَأَمَّا قَلْبُهُ فَمُبْتَعِدٌ عَنِّي بَعِيدًا، | ٦ 6 |
उसने उनसे कहा, “यसा'याह ने तुम रियाकारों के हक़ में क्या ख़ूब नबुव्वत की; जैसे लिखा है कि: ये लोग होंटों से तो मेरी ता'ज़ीम करते हैं लेकिन इनके दिल मुझ से दूर है।
وَبَاطِلًا يَعْبُدُونَنِي وَهُمْ يُعَلِّمُونَ تَعَالِيمَ هِيَ وَصَايَا ٱلنَّاسِ. | ٧ 7 |
ये बे फ़ाइदा मेरी इबादत करते हैं, क्यूँकि इनसानी अहकाम की ता'लीम देते हैं।’
لِأَنَّكُمْ تَرَكْتُمْ وَصِيَّةَ ٱللهِ وَتَتَمَسَّكُونَ بِتَقْلِيدِ ٱلنَّاسِ: غَسْلَ ٱلْأَبَارِيقِ وَٱلْكُؤُوسِ، وَأُمُورًا أُخَرَ كَثِيرَةً مِثْلَ هَذِهِ تَفْعَلُونَ». | ٨ 8 |
तुम ख़ुदा के हुक्म को छोड़ करके आदमियों की रिवायत को क़ाईम रखते हो।”
ثُمَّ قَالَ لَهُمْ: «حَسَنًا! رَفَضْتُمْ وَصِيَّةَ ٱللهِ لِتَحْفَظُوا تَقْلِيدَكُمْ! | ٩ 9 |
उसने उनसे कहा, “तुम अपनी रिवायत को मानने के लिए ख़ुदा के हुक्म को बिल्कुल रद्द कर देते हो।
لِأَنَّ مُوسَى قَالَ: أَكْرِمْ أَبَاكَ وَأُمَّكَ، وَمَنْ يَشْتُمُ أَبًا أَوْ أُمًّا فَلْيَمُتْ مَوْتًا. | ١٠ 10 |
क्यूँकि मूसा ने फ़रमाया है, अपने बाप की अपनी माँ की इज़्ज़त कर, और जो कोई बाप या माँ को बुरा कहे, वो ज़रूर जान से मारा जाए।’
وَأَمَّا أَنْتُمْ فَتَقُولُونَ: إِنْ قَالَ إِنْسَانٌ لِأَبِيهِ أَوْ أُمِّهِ: قُرْبَانٌ، أَيْ هَدِيَّةٌ، هُوَ ٱلَّذِي تَنْتَفِعُ بِهِ مِنِّي | ١١ 11 |
लेकिन तुम कहते हो, 'अगर कोई बाप या माँ से कहे' कि जिसका तुझे मुझ से फ़ाइदा पहुँच सकता था, 'वो क़ुर्बान या'नी ख़ुदा की नज़्र हो चुकी।
فَلَا تَدَعُونَهُ فِي مَا بَعْدُ يَفْعَلُ شَيْئًا لِأَبِيهِ أَوْ أُمِّهِ. | ١٢ 12 |
तो तुम उसे फिर बाप या माँ की कुछ मदद करने नहीं देते।
مُبْطِلِينَ كَلَامَ ٱللهِ بِتَقْلِيدِكُمُ ٱلَّذِي سَلَّمْتُمُوهُ. وَأُمُورًا كَثِيرَةً مِثْلَ هَذِهِ تَفْعَلُونَ». | ١٣ 13 |
यूँ तुम ख़ुदा के कलाम को अपनी रिवायत से, जो तुम ने जारी की है बेकार कर देते हो, और ऐसे बहुतेरे काम करते हो।”
ثُمَّ دَعَا كُلَّ ٱلْجَمْعِ وَقَالَ لَهُمُ: «ٱسْمَعُوا مِنِّي كُلُّكُمْ وَٱفْهَمُوا. | ١٤ 14 |
और वो लोगों को फिर पास बुला कर उनसे कहने लगा, “तुम सब मेरी सुनो और समझो।
لَيْسَ شَيْءٌ مِنْ خَارِجِ ٱلْإِنْسَانِ إِذَا دَخَلَ فِيهِ يَقْدِرُ أَنْ يُنَجِّسَهُ، لَكِنَّ ٱلْأَشْيَاءَ ٱلَّتِي تَخْرُجُ مِنْهُ هِيَ ٱلَّتِي تُنَجِّسُ ٱلْإِنْسَانَ. | ١٥ 15 |
कोई चीज़ बाहर से आदमी में दाख़िल होकर उसे नापाक नहीं कर सकती मगर जो चीज़ें आदमी में से निकलती हैं वही उसको नापाक करती हैं।
إِنْ كَانَ لِأَحَدٍ أُذْنَانِ لِلسَّمْعِ، فَلْيَسْمَعْ». | ١٦ 16 |
[अगर किसी के सुनने के कान हों तो सुन लें]।”
وَلَمَّا دَخَلَ مِنْ عِنْدِ ٱلْجَمْعِ إِلَى ٱلْبَيْتِ، سَأَلَهُ تَلَامِيذُهُ عَنِ ٱلْمَثَلِ. | ١٧ 17 |
जब वो भीड़ के पास से घर में आया “तो उसके शागिर्दों ने उससे इस मिसाल का मतलब पूछा?”
فَقَالَ لَهُمْ: «أَفَأَنْتُمْ أَيْضًا هَكَذَا غَيْرُ فَاهِمِينَ؟ أَمَا تَفْهَمُونَ أَنَّ كُلَّ مَا يَدْخُلُ ٱلْإِنْسَانَ مِنْ خَارِجٍ لَا يَقْدِرُ أَنْ يُنَجِّسَهُ، | ١٨ 18 |
उस ने उनसे कहा, “क्या तुम भी ऐसे ना समझ हो? क्या तुम नहीं समझते कि कोई चीज़ जो बाहर से आदमी के अन्दर जाती है उसे नापाक नहीं कर सकती?
لِأَنَّهُ لَا يَدْخُلُ إِلَى قَلْبِهِ بَلْ إِلَى ٱلْجَوْفِ، ثُمَّ يَخْرُجُ إِلَى ٱلْخَلَاءِ، وَذَلِكَ يُطَهِّرُ كُلَّ ٱلْأَطْعِمَةِ». | ١٩ 19 |
इसलिए कि वो उसके दिल में नहीं बल्कि पेट में जाती है और गंदगी में निकल जाती है। ये कह कर उसने तमाम खाने की चीज़ों को पाक ठहराया।
ثُمَّ قَالَ: «إِنَّ ٱلَّذِي يَخْرُجُ مِنَ ٱلْإِنْسَانِ ذَلِكَ يُنَجِّسُ ٱلْإِنْسَانَ. | ٢٠ 20 |
फिर उसने कहा, जो कुछ आदमी में से निकलता है वही उसको नापाक करता है।
لِأَنَّهُ مِنَ ٱلدَّاخِلِ، مِنْ قُلُوبِ ٱلنَّاسِ، تَخْرُجُ ٱلْأَفْكَارُ ٱلشِّرِّيرَةُ: زِنًى، فِسْقٌ، قَتْلٌ، | ٢١ 21 |
क्यूँकि अन्दर से, या'नी आदमी के दिल से बुरे ख्याल निकलते हैं हरामकारियाँ
سِرْقَةٌ، طَمَعٌ، خُبْثٌ، مَكْرٌ، عَهَارَةٌ، عَيْنٌ شِرِّيرَةٌ، تَجْدِيفٌ، كِبْرِيَاءُ، جَهْلٌ. | ٢٢ 22 |
चोरियाँ. ख़ून रेज़ियाँ, ज़िनाकारियाँ। लालच, बदियाँ, मक्कारी, शहवत परस्ती, बदनज़री, बदगोई, शेख़ी, बेवक़ूफ़ी।
جَمِيعُ هَذِهِ ٱلشُّرُورِ تَخْرُجُ مِنَ ٱلدَّاخِلِ وَتُنَجِّسُ ٱلْإِنْسَانَ». | ٢٣ 23 |
ये सब बुरी बातें अन्दर से निकल कर आदमी को नापाक करती हैं”
ثُمَّ قَامَ مِنْ هُنَاكَ وَمَضَى إِلَى تُخُومِ صُورَ وَصَيْدَاءَ، وَدَخَلَ بَيْتًا وَهُوَ يُرِيدُ أَنْ لَا يَعْلَمَ أَحَدٌ، فَلَمْ يَقْدِرْ أَنْ يَخْتَفِيَ، | ٢٤ 24 |
फिर वहाँ से उठ कर सूर और सैदा की सरहदों में गया और एक घर में दाख़िल हुआ और नहीं चाहता था कि कोई जाने मगर छुपा न रह सका।
لِأَنَّ ٱمْرَأَةً كَانَ بِٱبْنَتِهَا رُوحٌ نَجِسٌ سَمِعَتْ بِهِ، فَأَتَتْ وَخَرَّتْ عِنْدَ قَدَمَيْهِ. | ٢٥ 25 |
बल्कि फ़ौरन एक औरत जिसकी छोटी बेटी में बदरूह थी, उसकी ख़बर सुनकर आई और उसके क़दमों पर गिरी।
وَكَانَتْ ٱلٱمْرَأَةُ أُمَمِيَّةً، وَفِي جِنْسِهَا فِينِيقِيَّةً سُورِيَّةً. فَسَأَلَتْهُ أَنْ يُخْرِجَ ٱلشَّيْطَانَ مِنِ ٱبْنَتِهَا. | ٢٦ 26 |
ये 'औरत यूनानी थी और क़ौम की सूरूफ़ेनेकी। उसने उससे दरख़्वास्त की कि बदरूह को उसकी बेटी में से निकाले।
وَأَمَّا يَسُوعُ فَقَالَ لَهَا: «دَعِي ٱلْبَنِينَ أَوَّلًا يَشْبَعُونَ، لِأَنَّهُ لَيْسَ حَسَنًا أَنْ يُؤْخَذَ خُبْزُ ٱلْبَنِينَ وَيُطْرَحَ لِلْكِلَابِ». | ٢٧ 27 |
उसने उससे कहा, “पहले लड़कों को सेर होने दे क्यूँकि लड़कों की रोटी लेकर कुत्तों को डाल देना अच्छा नहीं।”
فَأَجَابَتْ وَقَالَتْ لَهُ: «نَعَمْ، يَا سَيِّدُ! وَٱلْكِلَابُ أَيْضًا تَحْتَ ٱلْمَائِدَةِ تَأْكُلُ مِنْ فُتَاتِ ٱلْبَنِينَ!». | ٢٨ 28 |
उस ने जवाब में कहा “हाँ ख़ुदावन्द, कुत्ते भी मेज़ के तले लड़कों की रोटी के टुकड़ों में से खाते हैं।”
فَقَالَ لَهَا: «لِأَجْلِ هَذِهِ ٱلْكَلِمَةِ، ٱذْهَبِي. قَدْ خَرَجَ ٱلشَّيْطَانُ مِنِ ٱبْنَتِكِ». | ٢٩ 29 |
उसने उससे कहा “इस कलाम की ख़ातिर जा बदरूह तेरी बेटी से निकल गई है।”
فَذَهَبَتْ إِلَى بَيْتِهَا وَوَجَدَتِ ٱلشَّيْطَانَ قَدْ خَرَجَ، وَٱلِٱبْنَةَ مَطْرُوحَةً عَلَى ٱلْفِرَاشِ. | ٣٠ 30 |
और उसने अपने घर में जाकर देखा कि लड़की पलंग पर पड़ी है और बदरूह निकल गई है।
ثُمَّ خَرَجَ أَيْضًا مِنْ تُخُومِ صُورَ وَصَيْدَاءَ، وَجَاءَ إِلَى بَحْرِ ٱلْجَلِيلِ فِي وَسْطِ حُدُودِ ٱلْمُدُنِ ٱلْعَشْرِ. | ٣١ 31 |
और वो फिर सूर शहर की सरहदों से निकल कर सैदा शहर की राह से दिकपुलिस की सरहदों से होता हुआ गलील की झील पर पहुँचा।
وَجَاءُوا إِلَيْهِ بِأَصَمَّ أَعْقَدَ، وَطَلَبُوا إِلَيْهِ أَنْ يَضَعَ يَدَهُ عَلَيْهِ. | ٣٢ 32 |
और लोगों ने एक बहरे को जो हकला भी था, उसके पास लाकर उसकी मिन्नत की कि अपना हाथ उस पर रख।
فَأَخَذَهُ مِنْ بَيْنِ ٱلْجَمْعِ عَلَى نَاحِيَةٍ، وَوَضَعَ أَصَابِعَهُ فِي أُذُنَيْهِ وَتَفَلَ وَلَمَسَ لِسَانَهُ، | ٣٣ 33 |
वो उसको भीड़ में से अलग ले गया, और अपनी उंगलियाँ उसके कानों में डालीं और थूक कर उसकी ज़बान छूई।
وَرَفَعَ نَظَرَهُ نَحْوَ ٱلسَّمَاءِ، وَأَنَّ وَقَالَ لَهُ: «إِفَّثَا». أَيِ ٱنْفَتِحْ. | ٣٤ 34 |
और आसमान की तरफ़ नज़र करके एक आह भरी और उससे कहा “इफ़्फ़त्तह!” या'नी “खुल जा!”
وَلِلْوَقْتِ ٱنْفَتَحَتْ أُذْنَاهُ، وَٱنْحَلَّ رِبَاطُ لِسَانِهِ، وَتَكَلَّمَ مُسْتَقِيمًا. | ٣٥ 35 |
और उसके कान खुल गए, और उसकी ज़बान की गिरह खुल गई और वो साफ़ बोलने लगा।
فَأَوْصَاهُمْ أَنْ لَا يَقُولُوا لِأَحَدٍ. وَلَكِنْ عَلَى قَدْرِ مَا أَوْصَاهُمْ كَانُوا يُنَادُونَ أَكْثَرَ كَثِيرًا. | ٣٦ 36 |
उसने उसको हुक्म दिया कि किसी से न कहना, लेकिन जितना वो उनको हुक्म देता रहा उतना ही ज़्यादा वो चर्चा करते रहे।
وَبُهِتُوا إِلَى ٱلْغَايَةِ قَائِلِينَ: «إِنَّهُ عَمِلَ كُلَّ شَيْءٍ حَسَنًا! جَعَلَ ٱلصُّمَّ يَسْمَعُونَ وَٱلْخُرْسَ يَتَكَلَّمُونَ». | ٣٧ 37 |
और उन्हों ने निहायत ही हैरान होकर कहा “जो कुछ उसने किया सब अच्छा किया वो बहरों को सुनने की और गूँगों को बोलने की ताक़त देता है।”