< أَيُّوبَ 19 >
فَأَجَابَ أَيُّوبُ وَقَالَ: | ١ 1 |
तब अय्योब ने उत्तर दिया:
«حَتَّى مَتَى تُعَذِّبُونَ نَفْسِي وَتَسْحَقُونَنِي بِٱلْكَلَامِ؟ | ٢ 2 |
“तुम कब तक मुझे यातना देते रहोगे तथा अपने इन शब्दों से कुचलते रहोगे?
هَذِهِ عَشَرَ مَرَّاتٍ أَخْزَيْتُمُونِي. لَمْ تَخْجَلُوا مِنْ أَنْ تَحْكِرُونِي. | ٣ 3 |
इन दसों अवसरों पर तुम मेरा अपमान करते रहे हो; मेरे साथ अन्याय करते हुए तुम्हें लज्जा तक न आई.
وَهَبْنِي ضَلَلْتُ حَقًّا. عَلَيَّ تَسْتَقِرُّ ضَلَالَتِي! | ٤ 4 |
हां, यदि वास्तव में मुझसे कोई त्रुटि हुई है, तो यह त्रुटि मेरे लिए चिंता का विषय है.
إِنْ كُنْتُمْ بِٱلْحَقِّ تَسْتَكْبِرُونَ عَلَيَّ، فَثَبِّتُوا عَلَيَّ عَارِي. | ٥ 5 |
यदि तुम वास्तव में स्वयं को मुझसे उच्चतर प्रदर्शित करोगे तथा मुझ पर मेरी स्थिति को निंदनीय प्रमाणित कर दोगे,
فَٱعْلَمُوا إِذًا أَنَّ ٱللهَ قَدْ عَوَّجَنِي، وَلَفَّ عَلَيَّ أُحْبُولَتَهُ. | ٦ 6 |
तब मैं यह समझ लूंगा, कि मेरी यह स्थिति परमेश्वर की ओर से है तथा उन्हीं ने मुझे इस जाल में डाला है.
هَا إِنِّي أَصْرُخُ ظُلْمًا فَلَا أُسْتَجَابُ. أَدْعُو وَلَيْسَ حُكْمٌ. | ٧ 7 |
“मैं तो चिल्ला रहा हूं, ‘अन्याय!’ किंतु मुझे कोई उत्तर नहीं मिल रहा; मैं सहायता के लिए पुकार रहा हूं, किंतु न्याय कहीं से मिल नहीं रहा है.
قَدْ حَوَّطَ طَرِيقِي فَلَا أَعْبُرُ، وَعَلَى سُبُلِي جَعَلَ ظَلَامًا. | ٨ 8 |
परमेश्वर ने ही जब मेरे मार्ग रोक दिया है, मैं आगे कैसे बढ़ूं? उन्होंने तो मेरे मार्ग अंधकार कर दिए हैं.
أَزَالَ عَنِّي كَرَامَتِي وَنَزَعَ تَاجَ رَأْسِي. | ٩ 9 |
मेरा सम्मान मुझसे छीन लिया गया है, तथा जो मुकुट मेरे सिर पर था, वह भी उतार लिया गया है.
هَدَمَنِي مِنْ كُلِّ جِهَةٍ فَذَهَبْتُ، وَقَلَعَ مِثْلَ شَجَرَةٍ رَجَائِي، | ١٠ 10 |
वह मुझे चारों ओर से तोड़ने में शामिल हैं, कि मैं नष्ट हो जाऊं; उन्होंने मेरी आशा को उखाड़ दिया है, जैसे किसी वृक्ष से किया जाता है.
وَأَضْرَمَ عَلَيَّ غَضَبَهُ، وَحَسِبَنِي كَأَعْدَائِهِ. | ١١ 11 |
अपना कोप भी उन्होंने मुझ पर उंडेल दिया है; क्योंकि उन्होंने तो मुझे अपना शत्रु मान लिया है.
مَعًا جَاءَتْ غُزَاتُهُ، وَأَعَدُّوا عَلَيَّ طَرِيقَهُمْ، وَحَلُّوا حَوْلَ خَيْمَتِي. | ١٢ 12 |
उनकी सेना एकत्र हो रही है; उन्होंने मेरे विरुद्ध ढलान तैयार की है तथा मेरे तंबू के आस-पास घेराबंदी कर ली है.
قَدْ أَبْعَدَ عَنِّي إِخْوَتِي، وَمَعَارِفِي زَاغُوا عَنِّي. | ١٣ 13 |
“उन्होंने तो मेरे भाइयों को मुझसे दूर कर दिया है; मेरे परिचित मुझसे पूर्णतः अनजान हो गए हैं.
أَقَارِبِي قَدْ خَذَلُونِي، وَٱلَّذِينَ عَرَفُونِي نَسُونِي. | ١٤ 14 |
मेरे संबंधियों ने तो मेरा त्याग कर दिया है; मेरे परम मित्रों ने मुझे याद करना छोड़ दिया है.
نُزَلَاءُ بَيْتِي وَإِمَائِي يَحْسِبُونَنِي أَجْنَبِيًّا. صِرْتُ فِي أَعْيُنِهِمْ غَرِيبًا. | ١٥ 15 |
वे, जो मेरी गृहस्थी के अंग हैं तथा जो मेरी परिचारिकाएं हैं; वे सब मुझे परदेशी समझने लगी हैं.
عَبْدِي دَعَوْتُ فَلَمْ يُجِبْ. بِفَمِي تَضَرَّعْتُ إِلَيْهِ. | ١٦ 16 |
मैं अपने सेवक को अपने निकट बुलाता हूं, किंतु वह उत्तर नहीं देता.
نَكْهَتِي مَكْرُوهَةٌ عِنْدَ ٱمْرَأَتِي، وَخَمَمْتُ عِنْدَ أَبْنَاءِ أَحْشَائِي. | ١٧ 17 |
मेरी पत्नी के लिए अब मेरा श्वास घृणास्पद हो गया है; अपने भाइयों के लिए मैं घिनौना हो गया हूं.
اَلْأَوْلَادُ أَيْضًا قَدْ رَذَلُونِي. إِذَا قُمْتُ يَتَكَلَّمُونَ عَلَيَّ. | ١٨ 18 |
यहां तक कि छोटे-छोटे बालक मुझे तुच्छ समझने लगे हैं; जैसे ही मैं उठता हूं, वे मेरी निंदा करते हैं.
كَرِهَنِي كُلُّ رِجَالِي، وَٱلَّذِينَ أَحْبَبْتُهُمُ ٱنْقَلَبُوا عَلَيَّ. | ١٩ 19 |
मेरे सभी सहयोगी मेरे विद्वेषी हो गए हैं; मुझे जिन-जिन से प्रेम था, वे अब मेरे विरुद्ध हो चुके हैं.
عَظْمِي قَدْ لَصِقَ بِجِلْدِي وَلَحْمِي، وَنَجَوْتُ بِجِلْدِ أَسْنَانِي. | ٢٠ 20 |
अब तो मैं मात्र चमड़ी तथा हड्डियों का रह गया हूं; मैं जो हूं, मृत्यु से बाल-बाल बच निकला हूं.
تَرَاءَفُوا، تَرَاءَفُوا أَنْتُمْ عَلَيَّ يَا أَصْحَابِي، لِأَنَّ يَدَ ٱللهِ قَدْ مَسَّتْنِي. | ٢١ 21 |
“मेरे मित्रों, मुझ पर कृपा करो, क्योंकि मुझ पर तो परमेश्वर का प्रहार हुआ है.
لِمَاذَا تُطَارِدُونَنِي كَمَا ٱللهُ، وَلَا تَشْبَعُونَ مِنْ لَحْمِي؟ | ٢٢ 22 |
किंतु परमेश्वर के समान तुम मुझे क्यों सता रहे हो? क्या मेरी देह को यातना देकर तुम्हें संतोष नहीं हुआ है?
«لَيْتَ كَلِمَاتِي ٱلْآنَ تُكْتَبُ. يَا لَيْتَهَا رُسِمَتْ فِي سِفْرٍ، | ٢٣ 23 |
“कैसा होता यदि मेरे इन विचारों को लिखा जाता, इन्हें पुस्तक का रूप दिया जा सकता,
وَنُقِرَتْ إِلَى ٱلْأَبَدِ فِي ٱلصَّخْرِ بِقَلَمِ حَدِيدٍ وَبِرَصَاصٍ. | ٢٤ 24 |
सीसे के पटल पर लौह लेखनी से उन्हें चट्टान पर स्थायी रूप से खोद दिया जाता!
أَمَّا أَنَا فَقَدْ عَلِمْتُ أَنَّ وَلِيِّي حَيٌّ، وَٱلْآخِرَ عَلَى ٱلْأَرْضِ يَقُومُ، | ٢٥ 25 |
परंतु मुझे यह मालूम है कि मेरा छुड़ाने वाला जीवित हैं, तथा अंततः वह पृथ्वी पर खड़ा रहेंगे.
وَبَعْدَ أَنْ يُفْنَى جِلْدِي هَذَا، وَبِدُونِ جَسَدِي أَرَى ٱللهَ. | ٢٦ 26 |
मेरी देह के नष्ट हो जाने के बाद भी, मैं अपनी देह में ही परमेश्वर का दर्शन करूंगा;
ٱلَّذِي أَرَاهُ أَنَا لِنَفْسِي، وَعَيْنَايَ تَنْظُرَانِ وَلَيْسَ آخَرُ. إِلَى ذَلِكَ تَتُوقُ كُلْيَتَايَ فِي جَوْفِي. | ٢٧ 27 |
जिन्हें मैं अपनी ही आंखों से देखूंगा, उन्हें अन्य किसी के नहीं, बल्कि मेरे ही नेत्र देखेंगे. मेरा मन अंदर ही अंदर उतावला हुआ जा रहा है!
فَإِنَّكُمْ تَقُولُونَ: لِمَاذَا نُطَارِدُهُ؟ وَٱلْكَلَامُ ٱلْأَصْلِيُّ يُوجَدُ عِنْدِي. | ٢٨ 28 |
“अब यदि तुम यह विचार करने लगो, ‘हम उसे कैसे सता सकेंगे?’ अथवा, ‘उस पर हम कौन सा आरोप लगा सकेंगे?’
خَافُوا عَلَى أَنْفُسِكُمْ مِنَ ٱلسَّيْفِ، لِأَنَّ ٱلْغَيْظَ مِنْ آثَامِ ٱلسَّيْفِ. لِكَيْ تَعْلَمُوا مَا هُوَ ٱلْقَضَاءُ». | ٢٩ 29 |
तब उपयुक्त यह होगा कि तुम अपने ऊपर तलवार के प्रहार का ध्यान रखो; क्योंकि क्रोध का दंड तलवार से होता है, तब तुम्हें यह बोध होना अनिवार्य है, कि एक न्याय का समय है.”