< أَيُّوبَ 12 >
فَأَجَابَ أَيُّوبُ وَقَالَ: | ١ 1 |
तब अय्यूब ने जवाब दिया,
«صَحِيحٌ إِنَّكُمْ أَنْتُمْ شَعْبٌ وَمَعَكُمْ تَمُوتُ ٱلْحِكْمَةُ! | ٢ 2 |
बेशक आदमी तो तुम ही हो “और हिकमत तुम्हारे ही साथ मरेगी।
غَيْرَ أَنَّهُ لِي فَهْمٌ مِثْلَكُمْ. لَسْتُ أَنَا دُونَكُمْ. وَمَنْ لَيْسَ عِنْدَهُ مِثْلُ هَذِهِ؟ | ٣ 3 |
लेकिन मुझ में भी समझ है, जैसे तुम में है, मैं तुम से कम नहीं। भला ऐसी बातें जैसी यह हैं, कौन नहीं जानता?
رَجُلًا سُخْرَةً لِصَاحِبِهِ صِرْتُ. دَعَا ٱللهَ فَٱسْتَجَابَهُ. سُخْرَةٌ هُوَ ٱلصِّدِّيقُ ٱلْكَامِلُ. | ٤ 4 |
मैं उस आदमी की तरह हूँ जो अपने पड़ोसी के लिए हँसी का निशाना बना है। मैं वह आदमी था जो ख़ुदा से दुआ करता और वह उसकी सुन लेता था। रास्तबाज़ और कामिल आदमी हँसी का निशाना होता ही है।
لِلْمُبْتَلِي هَوَانٌ فِي أَفْكَارِ ٱلْمُطْمَئِنِّ، مُهَيَّأٌ لِمَنْ زَلَّتْ قَدَمُهُ. | ٥ 5 |
जो चैन से है उसके ख़्याल में दुख के लिए हिकारत होती है; यह उनके लिए तैयार रहती है जिनका पाँव फिसलता है।
خِيَامُ ٱلْمُخَرِّبِينَ مُسْتَرِيحَةٌ، وَٱلَّذِينَ يُغِيظُونَ ٱللهَ مُطْمَئِنُّونَ، ٱلَّذِينَ يَأْتُونَ بِإِلَهِهِمْ فِي يَدِهِمْ! | ٦ 6 |
डाकुओं के ख़ेमे सलामत रहते हैं, और जो ख़ुदा को गु़स्सा दिलाते हैं, वह महफू़ज़ रहते हैं; उन ही के हाथ को ख़ुदा ख़ूब भरता है।
«فَٱسْأَلِ ٱلْبَهَائِمَ فَتُعَلِّمَكَ، وَطُيُورَ ٱلسَّمَاءِ فَتُخْبِرَكَ. | ٧ 7 |
हैवानों से पूछ और वह तुझे सिखाएँगे, और हवा के परिन्दों से दरियाफ़्त कर और वह तुझे बताएँगे।
أَوْ كَلِّمِ ٱلْأَرْضَ فَتُعَلِّمَكَ، وَيُحَدِّثَكَ سَمَكُ ٱلْبَحْرِ. | ٨ 8 |
या ज़मीन से बात कर, वह तुझे सिखाएगी; और समन्दर की मछलियाँ तुझ से बयान करेंगी।
مَنْ لَا يَعْلَمُ مِنْ كُلِّ هَؤُلَاءِ أَنَّ يَدَ ٱلرَّبِّ صَنَعَتْ هَذَا؟ | ٩ 9 |
कौन नहीं जानता कि इन सब बातों में ख़ुदावन्द ही का हाथ है जिसने यह सब बनाया?
ٱلَّذِي بِيَدِهِ نَفَسُ كُلِّ حَيٍّ وَرُوحُ كُلِّ ٱلْبَشَرِ. | ١٠ 10 |
उसी के हाथ में हर जानदार की जान, और कुल बनी आदम की जान ताक़त है।
أَفَلَيْسَتِ ٱلْأُذُنُ تَمْتَحِنُ ٱلْأَقْوَالَ، كَمَا أَنَّ ٱلْحَنَكَ يَسْتَطْعِمُ طَعَامَهُ؟ | ١١ 11 |
क्या कान बातों को नहीं परख लेता, जैसे ज़बान खाने को चख लेती है?
عِنْدَ ٱلشَّيْبِ حِكْمَةٌ، وَطُولُ ٱلْأَيَّامِ فَهْمٌ. | ١٢ 12 |
बुड्ढों में समझ होती है, और उम्र की दराज़ी में समझदारी।
«عِنْدَهُ ٱلْحِكْمَةُ وَٱلْقُدْرَةُ. لَهُ ٱلْمَشُورَةُ وَٱلْفِطْنَةُ. | ١٣ 13 |
ख़ुदा में समझ और कु़व्वत है, उसके पास मसलहत और समझ है।
هُوَذَا يَهْدِمُ فَلَا يُبْنَى. يُغْلِقُ عَلَى إِنْسَانٍ فَلَا يُفْتَحُ. | ١٤ 14 |
देखो, वह ढा देता है तो फिर बनता नहीं। वह आदमी को बंद कर देता है, तो फिर खुलता नहीं।
يَمْنَعُ ٱلْمِيَاهَ فَتَيْبَسُ. يُطْلِقُهَا فَتَقْلِبُ ٱلْأَرْضَ. | ١٥ 15 |
देखो, वह मेंह को रोक लेता है, तो पानी सूख जाता है। फिर जब वह उसे भेजता है, तो वह ज़मीन को उलट देता है।
عِنْدَهُ ٱلْعِزُّ وَٱلْفَهْمُ. لَهُ ٱلْمُضِلُّ وَٱلْمُضَلُّ. | ١٦ 16 |
उसमें ताक़त और ता'सीर की कु़व्वत है। धोका खाने वाला और धोका देने वाला दोनों उसी के हैं।
يَذْهَبُ بِٱلْمُشِيرِينَ أَسْرَى، وَيُحَمِّقُ ٱلْقُضَاةَ. | ١٧ 17 |
वह सलाहकारों को लुटवा कर ग़ुलामी में ले जाता है, और 'अदालत करने वालों को बेवकू़फ़ बना देता है।
يَحُلُّ مَنَاطِقَ ٱلْمُلُوكِ، وَيَشُدُّ أَحْقَاءَهُمْ بِوِثَاقٍ. | ١٨ 18 |
वह शाही बन्धनों को खोल डालता है, और बादशाहों की कमर पर पटका बाँधता है।
يَذْهَبُ بِٱلْكَهَنَةِ أَسْرَى، وَيَقْلِبُ ٱلْأَقْوِيَاءَ. | ١٩ 19 |
वह काहिनों को लुटवाकर ग़ुलामी में ले जाता, और ज़बरदस्तों को पछाड़ देता है।
يَقْطَعُ كَلَامَ ٱلْأُمَنَاءِ، وَيَنْزِعُ ذَوْقَ ٱلشُّيُوخِ. | ٢٠ 20 |
वह 'ऐतमाद वाले की क़ुव्वत — ए — गोयाई दूर करता और बुज़ुर्गों की समझदारी को' छीन लेता है।
يُلْقِي هَوَانًا عَلَى ٱلشُّرَفَاءِ، وَيُرْخِي مِنْطَقَةَ ٱلْأَشِدَّاءِ. | ٢١ 21 |
वह हाकिमों पर हिकारत बरसाता, और ताक़तवरों की कमरबंद को खोल डालता' है।
يَكْشِفُ ٱلْعَمَائِقَ مِنَ ٱلظَّلَامِ، وَيُخْرِجُ ظِلَّ ٱلْمَوْتِ إِلَى ٱلنُّورِ. | ٢٢ 22 |
वह अँधेरे में से गहरी बातों को ज़ाहिर करता, और मौत के साये को भी रोशनी में ले आता है
يُكَثِّرُ ٱلْأُمَمَ ثُمَّ يُبِيدُهَا. يُوَسِّعُ لِلْأُمَمِ ثُمَّ يُجْلِيهَا. | ٢٣ 23 |
वह क़ौमों को बढ़ाकर उन्हें हलाक कर डालता है; वह क़ौमों को फैलाता और फिर उन्हें समेट लेता है।
يَنْزِعُ عُقُولَ رُؤَسَاءِ شَعْبِ ٱلْأَرْضِ، وَيُضِلُّهُمْ فِي تِيهٍ بِلَا طَرِيقٍ. | ٢٤ 24 |
वह ज़मीन की क़ौमों के सरदारों की 'अक़्ल उड़ा देता और उन्हें ऐसे वीरान में भटका देता है जहाँ रास्ता नहीं।
يَتَلَمَّسُونَ فِي ٱلظَّلَامِ وَلَيْسَ نُورٌ، وَيُرَنِّحُهُمْ مِثْلَ ٱلسَّكْرَانِ. | ٢٥ 25 |
वह रोशनी के बगै़र तारीकी में टटोलते फिरते हैं, और वह उन्हें ऐसा बना देता है कि मतवाले की तरह लड़खड़ाते हुए चलते हैं।