< إِرْمِيَا 1 >
كَلَامُ إِرْمِيَا بْنِ حَلْقِيَّا مِنَ ٱلْكَهَنَةِ ٱلَّذِينَ فِي عَنَاثُوثَ فِي أَرْضِ بَنْيَامِينَ، | ١ 1 |
यरमियाह — बिन — ख़िलक़ियाह की बातें जो — बिनयमीन की ममलुकत में अन्तोती काहिनों में से था;
ٱلَّذِي كَانَتْ كَلِمَةُ ٱلرَّبِّ إِلَيْهِ فِي أَيَّامِ يُوشِيَّا بْنِ آمُونَ مَلِكِ يَهُوذَا، فِي ٱلسَّنَةِ ٱلثَّالِثَةِ عَشْرَةَ مِنْ مُلْكِهِ. | ٢ 2 |
जिस पर ख़ुदावन्द का कलाम शाह — ए — यहूदाह यूसियाह — बिन — अमून के दिनों में उसकी सल्तनत के तेरहवें साल में नाज़िल हुआ।
وَكَانَتْ فِي أَيَّامِ يَهُويَاقِيمَ بْنِ يُوشِيَّا مَلِكِ يَهُوذَا، إِلَى تَمَامِ ٱلسَّنَةِ ٱلْحَادِيَةِ عَشْرَةَ لِصِدْقِيَّا بْنِ يُوشِيَّا مَلِكِ يَهُوذَا، إِلَى سَبْيِ أُورُشَلِيمَ فِي ٱلشَّهْرِ ٱلْخَامِسِ. | ٣ 3 |
शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम बिन — यूसियाह के दिनों में भी, शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह — बिन — यूसियाह के ग्यारहवें साल के पूरे होने तक अहल — ए — येरूशलेम के ग़ुलामी में जाने तक जो पाँचवें महीने में था, नाज़िल होता रहा।
فَكَانَتْ كَلِمَةُ ٱلرَّبِّ إِلَيَّ قَائِلًا: | ٤ 4 |
तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ, और उसने फ़रमाया,
«قَبْلَمَا صَوَّرْتُكَ فِي ٱلْبَطْنِ عَرَفْتُكَ، وَقَبْلَمَا خَرَجْتَ مِنَ ٱلرَّحِمِ قَدَّسْتُكَ. جَعَلْتُكَ نَبِيًّا لِلشُّعُوبِ». | ٥ 5 |
“इससे पहले कि मैंने तुझे बत्न में ख़ल्क़ किया, मैं तुझे जानता था और तेरी पैदाइश से पहले मैंने तुझे ख़ास किया, और क़ौमों के लिए तुझे नबी ठहराया।”
فَقُلْتُ: «آهِ، يَا سَيِّدُ ٱلرَّبُّ، إِنِّي لَا أَعْرِفُ أَنْ أَتَكَلَّمَ لِأَنِّي وَلَدٌ». | ٦ 6 |
तब मैंने कहा, हाय, ख़ुदावन्द ख़ुदा! देख, मैं बोल नहीं सकता, क्यूँकि मैं तो बच्चा हूँ।
فَقَالَ ٱلرَّبُّ لِي: «لَا تَقُلْ إِنِّي وَلَدٌ، لِأَنَّكَ إِلَى كُلِّ مَنْ أُرْسِلُكَ إِلَيْهِ تَذْهَبُ وَتَتَكَلَّمُ بِكُلِّ مَا آمُرُكَ بِهِ. | ٧ 7 |
लेकिन ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, यूँ न कह कि मैं बच्चा हूँ; क्यूँकि जिस किसी के पास मैं तुझे भेजूँगा तू जाएगा, और जो कुछ मैं तुझे फ़रमाऊँगा तू कहेगा।
لَا تَخَفْ مِنْ وُجُوهِهِمْ، لِأَنِّي أَنَا مَعَكَ لِأُنْقِذَكَ، يَقُولُ ٱلرَّبُّ». | ٨ 8 |
तू उनके चेहरों को देखकर न डर क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है मैं तुझे छुड़ाने को तेरे साथ हूँ।
وَمَدَّ ٱلرَّبُّ يَدَهُ وَلَمَسَ فَمِي، وَقَالَ ٱلرَّبُّ لِي: «هَا قَدْ جَعَلْتُ كَلَامِي فِي فَمِكَ. | ٩ 9 |
तब ख़ुदावन्द ने अपना हाथ बढ़ाकर मेरे मुँह को छुआ; और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया देख मैंने अपना कलाम तेरे मुँह में डाल दिया।
اُنْظُرْ! قَدْ وَكَّلْتُكَ هَذَا ٱلْيَوْمَ عَلَى ٱلشُّعُوبِ وَعَلَى ٱلْمَمَالِكِ، لِتَقْلَعَ وَتَهْدِمَ وَتُهْلِكَ وَتَنْقُضَ وَتَبْنِيَ وَتَغْرِسَ». | ١٠ 10 |
देख, आज के दिन मैंने तुझे क़ौमों पर, और सल्तनतों पर मुक़र्रर किया कि उखाड़े और ढाए, और हलाक करे और गिराए, और ता'मीर करे और लगाए।
ثُمَّ صَارَتْ كَلِمَةُ ٱلرَّبِّ إِلَيَّ قَائِلًا: «مَاذَا أَنْتَ رَاءٍ يَا إِرْمِيَا؟» فَقُلْتُ: «أَنَا رَاءٍ قَضِيبَ لَوْزٍ». | ١١ 11 |
फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया, ऐ यरमियाह, तू क्या देखता है? मैंने 'अर्ज़ की कि “बादाम के दरख़्त की एक शाख़ देखता हूँ।”
فَقَالَ ٱلرَّبُّ لِي: «أَحْسَنْتَ ٱلرُّؤْيَةَ، لِأَنِّي أَنَا سَاهِرٌ عَلَى كَلِمَتِي لِأُجْرِيَهَا». | ١٢ 12 |
और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, तू ने ख़ूब देखा, क्यूँकि मैं अपने कलाम को पूरा करने के लिए बेदार' रहता हूँ।
ثُمَّ صَارَتْ كَلِمَةُ ٱلرَّبِّ إِلَيَّ ثَانِيَةً قَائِلًا: «مَاذَا أَنْتَ رَاءٍ؟» فَقُلْتُ: «إِنِّي رَاءٍ قِدْرًا مَنْفُوخَةً، وَوَجْهُهَا مِنْ جِهَةِ ٱلشِّمَالِ». | ١٣ 13 |
दूसरी बार ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रामाया तू क्या देखता है मैंने अर्ज़ की कि उबलती हुई देग देखता हूँ, जिसका मुँह उत्तर की तरफ़ से है।
فَقَالَ ٱلرَّبُّ لِي: «مِنَ ٱلشِّمَالِ يَنْفَتِحُ ٱلشَّرُّ عَلَى كُلِّ سُكَّانِ ٱلْأَرْضِ. | ١٤ 14 |
तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, उत्तर की तरफ़ से इस मुल्क के तमाम बाशिन्दों पर आफ़त आएगी।
لِأَنِّي هَأَنَذَا دَاعٍ كُلَّ عَشَائِرِ مَمَالِكِ ٱلشِّمَالِ، يَقُولُ ٱلرَّبُّ، فَيَأْتُونَ وَيَضَعُونَ كُلُّ وَاحِدٍ كُرْسِيَّهُ فِي مَدْخَلِ أَبْوَابِ أُورُشَلِيمَ، وَعَلَى كُلِّ أَسْوَارِهَا حَوَالَيْهَا، وَعَلَى كُلِّ مُدُنِ يَهُوذَا. | ١٥ 15 |
क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, देख, मैं उत्तर की सल्तनतों के तमाम ख़ान्दानों को बुलाऊँगा, और वह आएँगे और हर एक अपना तख़्त येरूशलेम के फाटकों के मदख़ल पर, और उसकी सब दीवारों के चारों तरफ़, और यहूदाह के तमाम शहरों के सामने क़ाईम करेगा।
وَأُقِيمُ دَعْوَايَ عَلَى كُلِّ شَرِّهِمْ، لِأَنَّهُمْ تَرَكُونِي وَبَخَّرُوا لِآلِهَةٍ أُخْرَى، وَسَجَدُوا لِأَعْمَالِ أَيْدِيهِمْ. | ١٦ 16 |
और मैं उनकी सारी शरारत की वजह से उन पर फ़तवा दूँगा; क्यूँकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया और ग़ैर — मा'बूदों के सामने लुबान जलाया और अपनी ही दस्तकारी को सिज्दा किया।
«أَمَّا أَنْتَ فَنَطِّقْ حَقْوَيْكَ وَقُمْ وَكَلِّمْهُمْ بِكُلِّ مَا آمُرُكَ بِهِ. لَا تَرْتَعْ مِنْ وُجُوهِهِمْ لِئَلَّا أُرِيعَكَ أَمَامَهُمْ. | ١٧ 17 |
इसलिए तू अपनी कमर कसकर उठ खड़ा हो, और जो कुछ मैं तुझे फ़रमाऊँ उनसे कह। उनके चेहरों को देखकर न डर, ऐसा न हो कि मैं तुझे उनके सामने शर्मिंदा करूँ।
هَأَنَذَا قَدْ جَعَلْتُكَ ٱلْيَوْمَ مَدِينَةً حَصِينَةً وَعَمُودَ حَدِيدٍ وَأَسْوَارَ نُحَاسٍ عَلَى كُلِّ ٱلْأَرْضِ، لِمُلُوكِ يَهُوذَا وَلِرُؤَسَائِهَا وَلِكَهَنَتِهَا وَلِشَعْبِ ٱلْأَرْضِ. | ١٨ 18 |
क्यूँकि देख, मैं आज के दिन तुझ को इस तमाम मुल्क, और यहूदाह के बादशाहों और उसके अमीरों और उसके काहिनों और मुल्क के लोगों के सामने, एक फ़सीलदार शहर और लोहे का सुतून और पीतल की दीवार बनाता हूँ।
فَيُحَارِبُونَكَ وَلَا يَقْدِرُونَ عَلَيْكَ، لِأَنِّي أَنَا مَعَكَ، يَقُولُ ٱلرَّبُّ، لِأُنْقِذَكَ». | ١٩ 19 |
और वह तुझ से लड़ेंगे, लेकिन तुझ पर ग़ालिब न आएँगे; क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं तुझे छुड़ाने को तेरे साथ हूँ।