< إِشَعْيَاءَ 57 >
بَادَ ٱلصِّدِّيقُ وَلَيْسَ أَحَدٌ يَضَعُ ذَلِكَ فِي قَلْبِهِ. وَرِجَالُ ٱلْإِحْسَانِ يُضَمُّونَ، وَلَيْسَ مَنْ يَفْطَنُ بِأَنَّهُ مِنْ وَجْهِ ٱلشَّرِّ يُضَمُّ ٱلصِّدِّيقُ. | ١ 1 |
१धर्मी जन नाश होता है, और कोई इस बात की चिन्ता नहीं करता; भक्त मनुष्य उठा लिए जाते हैं, परन्तु कोई नहीं सोचता। धर्मी जन इसलिए उठा लिया गया कि आनेवाली आपत्ति से बच जाए,
يَدْخُلُ ٱلسَّلَامَ. يَسْتَرِيحُونَ فِي مَضَاجِعِهِمِ. ٱلسَّالِكُ بِٱلِٱسْتِقَامَةِ. | ٢ 2 |
२वह शान्ति को पहुँचता है; जो सीधी चाल चलता है वह अपनी खाट पर विश्राम करता है।
«أَمَّا أَنْتُمْ فَتَقَدَّمُوا إِلَى هُنَا يَا بَنِي ٱلسَّاحِرَةِ، نَسْلَ ٱلْفَاسِقِ وَٱلزَّانِيَةِ. | ٣ 3 |
३परन्तु तुम, हे जादूगरनी के पुत्रों, हे व्यभिचारी और व्यभिचारिणी की सन्तान, यहाँ निकट आओ।
بِمَنْ تَسْخَرُونَ، وَعَلَى مَنْ تَفْغَرُونَ ٱلْفَمَ وَتَدْلَعُونَ ٱللِّسَانَ؟ أَمَا أَنْتُمْ أَوْلَادُ ٱلْمَعْصِيَةِ، نَسْلُ ٱلْكَذِبِ؟ | ٤ 4 |
४तुम किस पर हँसी करते हो? तुम किस पर मुँह खोलकर जीभ निकालते हो? क्या तुम पाखण्डी और झूठे के वंश नहीं हो,
ٱلْمُتَوَقِّدُونَ إِلَى ٱلْأَصْنَامِ تَحْتَ كُلِّ شَجَرَةٍ خَضْرَاءَ، ٱلْقَاتِلُونَ ٱلْأَوْلَادَ فِي ٱلْأَوْدِيَةِ تَحْتَ شُقُوقِ ٱلْمَعَاقِلِ. | ٥ 5 |
५तुम, जो सब हरे वृक्षों के तले देवताओं के कारण कामातुर होते और नालों में और चट्टानों ही दरारों के बीच बाल-बच्चों को वध करते हो?
فِي حِجَارَةِ ٱلْوَادِي ٱلْمُلْسِ نَصِيبُكِ. تِلْكَ هِيَ قُرْعَتُكِ. لِتِلْكَ سَكَبْتِ سَكِيبًا وَأَصْعَدْتِ تَقْدِمَةً. أَعَنْ هَذِهِ أَتَعَزَّى؟ | ٦ 6 |
६नालों के चिकने पत्थर ही तेरा भाग और अंश ठहरे; तूने उनके लिये तपावन दिया और अन्नबलि चढ़ाया है। क्या मैं इन बातों से शान्त हो जाऊँ?
عَلَى جَبَلٍ عَالٍ وَمُرْتَفِعٍ وَضَعْتِ مَضْجَعَكِ، وَإِلَى هُنَاكَ صَعِدْتِ لِتَذْبَحِي ذَبِيحَةً. | ٧ 7 |
७एक बड़े ऊँचे पहाड़ पर तूने अपना बिछौना बिछाया है, वहीं तू बलि चढ़ाने को चढ़ गई।
وَرَاءَ ٱلْبَابِ وَٱلْقَائِمَةِ وَضَعْتِ تَذْكَارَكِ، لِأَنَّكِ لِغَيْرِي كَشَفْتِ وَصَعِدْتِ. أَوْسَعْتِ مَضْجَعَكِ وَقَطَعْتِ لِنَفْسِكِ عَهْدًا مَعَهُمْ. أَحْبَبْتِ مَضْجَعَهُمْ. نَظَرْتِ فُرْصَةً. | ٨ 8 |
८तूने अपनी निशानी अपने द्वार के किवाड़ और चौखट की आड़ ही में रखी; मुझे छोड़कर तू औरों को अपने आपको दिखाने के लिये चढ़ी, तूने अपनी खाट चौड़ी की और उनसे वाचा बाँध ली, तूने उनकी खाट को जहाँ देखा, पसन्द किया।
وَسِرْتِ إِلَى ٱلْمَلِكِ بِٱلدُّهْنِ، وَأَكْثَرْتِ أَطْيَابَكِ، وَأَرْسَلْتِ رُسُلَكِ إِلَى بُعْدٍ وَنَزَلْتِ حَتَّى إِلَى ٱلْهَاوِيَةِ. (Sheol ) | ٩ 9 |
९तू तेल लिए हुए राजा के पास गई और बहुत सुगन्धित तेल अपने काम में लाई; अपने दूत तूने दूर तक भेजे और अधोलोक तक अपने को नीचा किया। (Sheol )
بِطُولِ أَسْفَارِكِ أَعْيَيْتِ، وَلَمْ تَقُولِي: يَئِسْتُ. شَهْوَتَكِ وَجَدْتِ، لِذَلِكَ لَمْ تَضْعُفِي. | ١٠ 10 |
१०तू अपनी यात्रा की लम्बाई के कारण थक गई, तो भी तूने न कहा कि यह व्यर्थ है; तेरा बल कुछ अधिक हो गया, इसी कारण तू नहीं थकी।
وَمِمَّنْ خَشِيتِ وَخِفْتِ حَتَّى خُنْتِ، وَإِيَّايَ لَمْ تَذْكُرِي، وَلَا وَضَعْتِ فِي قَلْبِكِ؟ أَمَّا أَنَا سَاكِتٌ، وَذَلِكَ مُنْذُ ٱلْقَدِيمِ، فَإِيَّايَ لَمْ تَخَافِي. | ١١ 11 |
११तूने किसके डर से झूठ कहा, और किसका भय मानकर ऐसा किया कि मुझ को स्मरण नहीं रखा न मुझ पर ध्यान दिया? क्या मैं बहुत काल से चुप नहीं रहा? इस कारण तू मेरा भय नहीं मानती।
أَنَا أُخْبِرُ بِبِرِّكِ وَبِأَعْمَالِكِ فَلَا تُفِيدُكِ. | ١٢ 12 |
१२मैं आप तेरी धार्मिकता और कर्मों का वर्णन करूँगा, परन्तु उनसे तुझे कुछ लाभ न होगा।
إِذْ تَصْرُخِينَ فَلْيُنْقِذْكِ جُمُوعُكِ. وَلَكِنِ ٱلرِّيحُ تَحْمِلُهُمْ كُلَّهُمْ. تَأْخُذُهُمْ نَفَخَةٌ. أَمَّا ٱلْمُتَوَكِّلُ عَلَيَّ فَيَمْلِكُ ٱلْأَرْضَ وَيَرِثُ جَبَلَ قُدْسِي». | ١٣ 13 |
१३जब तू दुहाई दे, तब जिन मूर्तियों को तूने जमा किया है वे ही तुझे छुड़ाएँ! वे तो सब की सब वायु से वरन् एक ही फूँक से उड़ जाएँगी। परन्तु जो मेरी शरण लेगा वह देश का अधिकारी होगा, और मेरे पवित्र पर्वत का भी अधिकारी होगा।
وَيَقُولُ: «أَعِدُّوا، أَعِدُّوا. هَيِّئُوا ٱلطَّرِيقَ. ٱرْفَعُوا ٱلْمَعْثَرَةَ مِنْ طَرِيقِ شَعْبِي». | ١٤ 14 |
१४यह कहा जाएगा, “पाँति बाँध बाँधकर राजमार्ग बनाओ, मेरी प्रजा के मार्ग में से हर एक ठोकर दूर करो।”
لِأَنَّهُ هَكَذَا قَالَ ٱلْعَلِيُّ ٱلْمُرْتَفِعُ، سَاكِنُ ٱلْأَبَدِ، ٱلْقُدُّوسُ ٱسْمُهُ: «فِي ٱلْمَوْضِعِ ٱلْمُرْتَفِعِ ٱلْمُقَدَّسِ أَسْكُنُ، وَمَعَ ٱلْمُنْسَحِقِ وَٱلْمُتَوَاضِعِ ٱلرُّوحِ، لِأُحْيِيَ رُوحَ ٱلْمُتَوَاضِعِينَ، وَلِأُحْيِيَ قَلْبَ ٱلْمُنْسَحِقِينَ. | ١٥ 15 |
१५क्योंकि जो महान और उत्तम और सदैव स्थिर रहता, और जिसका नाम पवित्र है, वह यह कहता है, “मैं ऊँचे पर और पवित्रस्थान में निवास करता हूँ, और उसके संग भी रहता हूँ, जो खेदित और नम्र हैं, कि, नम्र लोगों के हृदय और खेदित लोगों के मन को हर्षित करूँ।
لِأَنِّي لَا أُخَاصِمُ إِلَى ٱلْأَبَدِ، وَلَا أَغْضَبُ إِلَى ٱلدَّهْرِ. لِأَنَّ ٱلرُّوحَ يُغْشَى عَلَيْهَا أَمَامِي، وَٱلنَّسَمَاتُ ٱلَّتِي صَنَعْتُهَا. | ١٦ 16 |
१६मैं सदा मुकद्दमा न लड़ता रहूँगा, न सर्वदा क्रोधित रहूँगा; क्योंकि आत्मा मेरे बनाए हुए हैं और जीव मेरे सामने मूर्छित हो जाते हैं।
مِنْ أَجْلِ إِثْمِ مَكْسَبِهِ غَضِبْتُ وَضَرَبْتُهُ. اَسْتَتَرْتُ وَغَضِبْتُ، فَذَهَبَ عَاصِيًا فِي طَرِيقِ قَلْبِهِ. | ١٧ 17 |
१७उसके लोभ के पाप के कारण मैंने क्रोधित होकर उसको दुःख दिया था, और क्रोध के मारे उससे मुँह छिपाया था; परन्तु वह अपने मनमाने मार्ग में दूर भटकता चला गया था।
رَأَيْتُ طُرُقَهُ وَسَأَشْفِيهِ وَأَقُودُهُ، وَأَرُدُّ تَعْزِيَاتٍ لَهُ وَلِنَائِحِيهِ | ١٨ 18 |
१८मैं उसकी चाल देखता आया हूँ, तो भी अब उसको चंगा करूँगा; मैं उसे ले चलूँगा और विशेष करके उसके शोक करनेवालों को शान्ति दूँगा।
خَالِقًا ثَمَرَ ٱلشَّفَتَيْنِ. سَلَامٌ سَلَامٌ لِلْبَعِيدِ وَلِلْقَرِيبِ، قَالَ ٱلرَّبُّ، وَسَأَشْفِيهِ. | ١٩ 19 |
१९मैं मुँह के फल का सृजनहार हूँ; यहोवा ने कहा है, जो दूर और जो निकट हैं, दोनों को पूरी शान्ति मिले; और मैं उसको चंगा करूँगा।
أَمَّا ٱلْأَشْرَارُ فَكَالْبَحْرِ ٱلْمُضْطَرِبِ لِأَنَّهُ لَا يَسْتَطِيعُ أَنْ يَهْدَأَ، وَتَقْذِفُ مِيَاهُهُ حَمْأَةً وَطِينًا. | ٢٠ 20 |
२०परन्तु दुष्ट तो लहराते हुए समुद्र के समान है जो स्थिर नहीं रह सकता; और उसका जल मैल और कीच उछालता है।
لَيْسَ سَلَامٌ، قَالَ إِلَهِي، لِلْأَشْرَارِ. | ٢١ 21 |
२१दुष्टों के लिये शान्ति नहीं है, मेरे परमेश्वर का यही वचन है।”