< اَلتَّكْوِينُ 44 >
ثُمَّ أَمَرَ ٱلَّذِي عَلَى بَيْتِهِ قَائِلًا: «ٱمْلَأْ عِدَالَ ٱلرِّجَالِ طَعَامًا حَسَبَ مَا يُطِيقُونَ حِمْلَهُ، وَضَعْ فِضَّةَ كُلِّ وَاحِدٍ فِي فَمِ عِدْلِهِ. | ١ 1 |
१तब उसने अपने घर के अधिकारी को आज्ञा दी, “इन मनुष्यों के बोरों में जितनी भोजनवस्तु समा सके उतनी भर दे, और एक-एक जन के रुपये को उसके बोरे के मुँह पर रख दे।
وَطَاسِي، طَاسَ ٱلْفِضَّةِ، تَضَعُ فِي فَمِ عِدْلِ ٱلصَّغِيرِ، وَثَمَنَ قَمْحِهِ». فَفَعَلَ بِحَسَبِ كَلَامِ يُوسُفَ ٱلَّذِي تَكَلَّمَ بِهِ. | ٢ 2 |
२और मेरा चाँदी का कटोरा छोटे भाई के बोरे के मुँह पर उसके अन्न के रुपये के साथ रख दे।” यूसुफ की इस आज्ञा के अनुसार उसने किया।
فَلَمَّا أَضَاءَ ٱلصُّبْحُ ٱنْصَرَفَ ٱلرِّجَالُ هُمْ وَحَمِيرُهُمْ. | ٣ 3 |
३सवेरे भोर होते ही वे मनुष्य अपने गदहों समेत विदा किए गए।
وَلَمَّا كَانُوا قَدْ خَرَجُوا مِنَ ٱلْمَدِينَةِ وَلَمْ يَبْتَعِدُوا، قَالَ يُوسُفُ لِلَّذِي عَلَى بَيْتِهِ: «قُمِ ٱسْعَ وَرَاءَ ٱلرِّجَالِ، وَمَتَى أَدْرَكْتَهُمْ فَقُلْ لَهُمْ: لِمَاذَا جَازَيْتُمْ شَرًّا عِوَضًا عَنْ خَيْرٍ؟ | ٤ 4 |
४वे नगर से निकले ही थे, और दूर न जाने पाए थे कि यूसुफ ने अपने घर के अधिकारी से कहा, “उन मनुष्यों का पीछा कर, और उनको पाकर उनसे कह, ‘तुम ने भलाई के बदले बुराई क्यों की है?
أَلَيْسَ هَذَا هُوَ ٱلَّذِي يَشْرَبُ سَيِّدِي فِيهِ؟ وَهُوَ يَتَفَاءَلُ بِهِ. أَسَأْتُمْ فِي مَا صَنَعْتُمْ». | ٥ 5 |
५क्या यह वह वस्तु नहीं जिसमें मेरा स्वामी पीता है, और जिससे वह शकुन भी विचारा करता है? तुम ने यह जो किया है सो बुरा किया।’”
فَأَدْرَكَهُمْ وَقَالَ لَهُمْ هَذَا ٱلْكَلَامَ. | ٦ 6 |
६तब उसने उन्हें जा पकड़ा, और ऐसी ही बातें उनसे कहीं।
فَقَالُوا لَهُ: «لِمَاذَا يَتَكَلَّمُ سَيِّدِي مِثْلَ هَذَا ٱلْكَلَامِ؟ حَاشَا لِعَبِيدِكَ أَنْ يَفْعَلُوا مِثْلَ هَذَا ٱلْأَمْرِ! | ٧ 7 |
७उन्होंने उससे कहा, “हे हमारे प्रभु, तू ऐसी बातें क्यों कहता है? ऐसा काम करना तेरे दासों से दूर रहे।
هُوَذَا ٱلْفِضَّةُ ٱلَّتِي وَجَدْنَا فِي أَفْوَاهِ عِدَالِنَا رَدَدْنَاهَا إِلَيْكَ مِنْ أَرْضِ كَنْعَانَ. فَكَيْفَ نَسْرِقُ مِنْ بَيْتِ سَيِّدِكَ فِضَّةً أَوْ ذَهَبًا؟ | ٨ 8 |
८देख जो रुपया हमारे बोरों के मुँह पर निकला था, जब हमने उसको कनान देश से ले आकर तुझे लौटा दिया, तब भला, तेरे स्वामी के घर में से हम कोई चाँदी या सोने की वस्तु कैसे चुरा सकते हैं?
ٱلَّذِي يُوجَدُ مَعَهُ مِنْ عَبِيدِكَ يَمُوتُ، وَنَحْنُ أَيْضًا نَكُونُ عَبِيدًا لِسَيِّدِي». | ٩ 9 |
९तेरे दासों में से जिस किसी के पास वह निकले, वह मार डाला जाए, और हम भी अपने उस प्रभु के दास हो जाएँ।”
فَقَالَ: «نَعَمِ، ٱلْآنَ بِحَسَبِ كَلَامِكُمْ هَكَذَا يَكُونُ. ٱلَّذِي يُوجَدُ مَعَهُ يَكُونُ لِي عَبْدًا، وَأَمَّا أَنْتُمْ فَتَكُونُونَ أَبْرِيَاءَ». | ١٠ 10 |
१०उसने कहा, “तुम्हारा ही कहना सही, जिसके पास वह निकले वह मेरा दास होगा; और तुम लोग निर्दोष ठहरोगे।”
فَٱسْتَعْجَلُوا وَأَنْزَلُوا كُلُّ وَاحِدٍ عِدْلَهُ إِلَى ٱلْأَرْضِ، وَفَتَحُوا كُلُّ وَاحِدٍ عِدْلَهُ. | ١١ 11 |
११इस पर वे जल्दी से अपने-अपने बोरे को उतार भूमि पर रखकर उन्हें खोलने लगे।
فَفَتَّشَ مُبْتَدِئًا مِنَ ٱلْكَبِيرِ حَتَّى ٱنْتَهَى إِلَى ٱلصَّغِيرِ، فَوُجِدَ ٱلطَّاسُ فِي عِدْلِ بَنْيَامِينَ. | ١٢ 12 |
१२तब वह ढूँढ़ने लगा, और बडे़ के बोरे से लेकर छोटे के बोरे तक खोज की: और कटोरा बिन्यामीन के बोरे में मिला।
فَمَزَّقُوا ثِيَابَهُمْ وَحَمَّلَ كُلُّ وَاحِدٍ عَلَى حِمَارِهِ وَرَجَعُوا إِلَى ٱلْمَدِينَةِ. | ١٣ 13 |
१३तब उन्होंने अपने-अपने वस्त्र फाड़े, और अपना-अपना गदहा लादकर नगर को लौट गए।
فَدَخَلَ يَهُوذَا وَإِخْوَتُهُ إِلَى بَيْتِ يُوسُفَ وَهُوَ بَعْدُ هُنَاكَ، وَوَقَعُوا أَمَامَهُ عَلَى ٱلْأَرْضِ. | ١٤ 14 |
१४जब यहूदा और उसके भाई यूसुफ के घर पर पहुँचे, और यूसुफ वहीं था, तब वे उसके सामने भूमि पर गिरे।
فَقَالَ لَهُمْ يُوسُفُ: «مَا هَذَا ٱلْفِعْلُ ٱلَّذِي فَعَلْتُمْ؟ أَلَمْ تَعْلَمُوا أَنَّ رَجُلًا مِثْلِي يَتَفَاءَلُ؟» | ١٥ 15 |
१५यूसुफ ने उनसे कहा, “तुम लोगों ने यह कैसा काम किया है? क्या तुम न जानते थे कि मुझ सा मनुष्य शकुन विचार सकता है?”
فَقَالَ يَهُوذَا: «مَاذَا نَقُولُ لِسَيِّدِي؟ مَاذَا نَتَكَلَّمُ؟ وَبِمَاذَا نَتَبَرَّرُ؟ ٱللهُ قَدْ وَجَدَ إِثْمَ عَبِيدِكَ. هَا نَحْنُ عَبِيدٌ لِسَيِّدِي، نَحْنُ وَٱلَّذِي وُجِدَ ٱلطَّاسُ فِي يَدِهِ جَمِيعًا». | ١٦ 16 |
१६यहूदा ने कहा, “हम लोग अपने प्रभु से क्या कहें? हम क्या कहकर अपने को निर्दोष ठहराएँ? परमेश्वर ने तेरे दासों के अधर्म को पकड़ लिया है। हम, और जिसके पास कटोरा निकला वह भी, हम सब के सब अपने प्रभु के दास ही हैं।”
فَقَالَ: «حَاشَا لِي أَنْ أَفْعَلَ هَذَا! ٱلرَّجُلُ ٱلَّذِي وُجِدَ ٱلطَّاسُ فِي يَدِهِ هُوَ يَكُونُ لِي عَبْدًا، وَأَمَّا أَنْتُمْ فَٱصْعَدُوا بِسَلَامٍ إِلَى أَبِيكُمْ». | ١٧ 17 |
१७उसने कहा, “ऐसा करना मुझसे दूर रहे, जिस जन के पास कटोरा निकला है, वही मेरा दास होगा; और तुम लोग अपने पिता के पास कुशल क्षेम से चले जाओ।”
ثُمَّ تَقَدَّمَ إِلَيْهِ يَهُوذَا وَقَالَ: «ٱسْتَمِعْ يَا سَيِّدِي. لِيَتَكَلَّمْ عَبْدُكَ كَلِمَةً فِي أُذُنَيْ سَيِّدِي وَلَا يَحْمَ غَضَبُكَ عَلَى عَبْدِكَ، لِأَنَّكَ مِثْلُ فِرْعَوْنَ. | ١٨ 18 |
१८तब यहूदा उसके पास जाकर कहने लगा, “हे मेरे प्रभु, तेरे दास को अपने प्रभु से एक बात कहने की आज्ञा हो, और तेरा कोप तेरे दास पर न भड़के; क्योंकि तू तो फ़िरौन के तुल्य है।
سَيِّدِي سَأَلَ عَبِيدَهُ قَائِلًا: هَلْ لَكُمْ أَبٌ أَوْ أَخٌ؟ | ١٩ 19 |
१९मेरे प्रभु ने अपने दासों से पूछा था, ‘क्या तुम्हारे पिता या भाई हैं?’
فَقُلْنَا لِسَيِّدِي: لَنَا أَبٌ شَيْخٌ، وَٱبْنُ شَيْخُوخَةٍ صَغِيرٌ، مَاتَ أَخُوهُ وَبَقِيَ هُوَ وَحْدَهُ لِأُمِّهِ، وَأَبُوهُ يُحِبُّهُ. | ٢٠ 20 |
२०और हमने अपने प्रभु से कहा, ‘हाँ, हमारा बूढ़ा पिता है, और उसके बुढ़ापे का एक छोटा सा बालक भी है, परन्तु उसका भाई मर गया है, इसलिए वह अब अपनी माता का अकेला ही रह गया है, और उसका पिता उससे स्नेह रखता है।’
فَقُلْتَ لِعَبِيدِكَ: ٱنْزِلُوا بِهِ إِلَيَّ فَأَجْعَلَ نَظَرِي عَلَيْهِ. | ٢١ 21 |
२१तब तूने अपने दासों से कहा था, ‘उसको मेरे पास ले आओ, जिससे मैं उसको देखूँ।’
فَقُلْنَا لِسَيِّدِي: لَا يَقْدِرُ ٱلْغُلَامُ أَنْ يَتْرُكَ أَبَاهُ، وَإِنْ تَرَكَ أَبَاهُ يَمُوتُ. | ٢٢ 22 |
२२तब हमने अपने प्रभु से कहा था, ‘वह लड़का अपने पिता को नहीं छोड़ सकता; नहीं तो उसका पिता मर जाएगा।’
فَقُلْتَ لِعَبِيدِكَ: إِنْ لَمْ يَنْزِلْ أَخُوكُمُ ٱلصَّغِيرُ مَعَكُمْ لَا تَعُودُوا تَنْظُرُونَ وَجْهِي. | ٢٣ 23 |
२३और तूने अपने दासों से कहा, ‘यदि तुम्हारा छोटा भाई तुम्हारे संग न आए, तो तुम मेरे सम्मुख फिर न आने पाओगे।’
فَكَانَ لَمَّا صَعِدْنَا إِلَى عَبْدِكَ أَبِي أَنَّنَا أَخْبَرْنَاهُ بِكَلَامِ سَيِّدِي. | ٢٤ 24 |
२४इसलिए जब हम अपने पिता तेरे दास के पास गए, तब हमने उससे अपने प्रभु की बातें कहीं।
ثُمَّ قَالَ أَبُونَا: ٱرْجِعُوا ٱشْتَرُوا لَنَا قَلِيلًا مِنَ ٱلطَّعَامِ. | ٢٥ 25 |
२५तब हमारे पिता ने कहा, ‘फिर जाकर हमारे लिये थोड़ी सी भोजनवस्तु मोल ले आओ।’
فَقُلْنَا: لَا نَقْدِرُ أَنْ نَنْزِلَ، وَإِنَّمَا إِذَا كَانَ أَخُونَا ٱلصَّغِيرُ مَعَنَا نَنْزِلُ، لِأَنَّنَا لَا نَقْدِرُ أَنْ نَنْظُرَ وَجْهَ ٱلرَّجُلِ وَأَخُونَا ٱلصَّغِيرُ لَيْسَ مَعَنَا. | ٢٦ 26 |
२६हमने कहा, ‘हम नहीं जा सकते, हाँ, यदि हमारा छोटा भाई हमारे संग रहे, तब हम जाएँगे; क्योंकि यदि हमारा छोटा भाई हमारे संग न रहे, तो हम उस पुरुष के सम्मुख न जाने पाएँगे।’
فَقَالَ لَنَا عَبْدُكَ أَبِي: أَنْتُمْ تَعْلَمُونَ أَنَّ ٱمْرَأَتِي وَلَدَتْ لِي ٱثْنَيْنِ، | ٢٧ 27 |
२७तब तेरे दास मेरे पिता ने हम से कहा, ‘तुम तो जानते हो कि मेरी स्त्री से दो पुत्र उत्पन्न हुए।
فَخَرَجَ ٱلْوَاحِدُ مِنْ عِنْدِي، وَقُلْتُ: إِنَّمَا هُوَ قَدِ ٱفْتُرِسَ ٱفْتِرَاسًا، وَلَمْ أَنْظُرْهُ إِلَى ٱلْآنَ. | ٢٨ 28 |
२८और उनमें से एक तो मुझे छोड़ ही गया, और मैंने निश्चय कर लिया, कि वह फाड़ डाला गया होगा; और तब से मैं उसका मुँह न देख पाया।
فَإِذَا أَخَذْتُمْ هَذَا أَيْضًا مِنْ أَمَامِ وَجْهِي وَأَصَابَتْهُ أَذِيَّةٌ، تُنْزِلُونَ شَيْبَتِي بِشَرٍّ إِلَى ٱلْهَاوِيَةِ. (Sheol ) | ٢٩ 29 |
२९अतः यदि तुम इसको भी मेरी आँख की आड़ में ले जाओ, और कोई विपत्ति इस पर पड़े, तो तुम्हारे कारण मैं इस बुढ़ापे की अवस्था में शोक के साथ अधोलोक में उतर जाऊँगा।’ (Sheol )
فَٱلْآنَ مَتَى جِئْتُ إِلَى عَبْدِكَ أَبِي، وَٱلْغُلَامُ لَيْسَ مَعَنَا، وَنَفْسُهُ مُرْتَبِطَةٌ بِنَفْسِهِ، | ٣٠ 30 |
३०इसलिए जब मैं अपने पिता तेरे दास के पास पहुँचूँ, और यह लड़का संग न रहे, तब, उसका प्राण जो इसी पर अटका रहता है,
يَكُونُ مَتَى رَأَى أَنَّ ٱلْغُلَامَ مَفْقُودٌ، أَنَّهُ يَمُوتُ، فَيُنْزِلُ عَبِيدُكَ شَيْبَةَ عَبْدِكَ أَبِينَا بِحُزْنٍ إِلَى ٱلْهَاوِيَةِ، (Sheol ) | ٣١ 31 |
३१इस कारण, यह देखकर कि लड़का नहीं है, वह तुरन्त ही मर जाएगा। तब तेरे दासों के कारण तेरा दास हमारा पिता, जो बुढ़ापे की अवस्था में है, शोक के साथ अधोलोक में उतर जाएगा। (Sheol )
لِأَنَّ عَبْدَكَ ضَمِنَ ٱلْغُلَامَ لِأَبِي قَائِلًا: إِنْ لَمْ أَجِئْ بِهِ إِلَيْكَ أَصِرْ مُذْنِبًا إِلَى أَبِي كُلَّ ٱلْأَيَّامِ. | ٣٢ 32 |
३२फिर तेरा दास अपने पिता के यहाँ यह कहकर इस लड़के का जामिन हुआ है, ‘यदि मैं इसको तेरे पास न पहुँचा दूँ, तब तो मैं सदा के लिये तेरा अपराधी ठहरूँगा।’
فَٱلْآنَ لِيَمْكُثْ عَبْدُكَ عِوَضًا عَنِ ٱلْغُلَامِ، عَبْدًا لِسَيِّدِي، وَيَصْعَدِ ٱلْغُلَامُ مَعَ إِخْوَتِهِ. | ٣٣ 33 |
३३इसलिए अब तेरा दास इस लड़के के बदले अपने प्रभु का दास होकर रहने की आज्ञा पाए, और यह लड़का अपने भाइयों के संग जाने दिया जाए।
لِأَنِّي كَيْفَ أَصْعَدُ إِلَى أَبِي وَٱلْغُلَامُ لَيْسَ مَعِي؟ لِئَلَّا أَنْظُرَ ٱلشَّرَّ ٱلَّذِي يُصِيبُ أَبِي». | ٣٤ 34 |
३४क्योंकि लड़के के बिना संग रहे मैं कैसे अपने पिता के पास जा सकूँगा; ऐसा न हो कि मेरे पिता पर जो दुःख पड़ेगा वह मुझे देखना पड़े।”