< اَلتَّكْوِينُ 27 >
وَحَدَثَ لَمَّا شَاخَ إِسْحَاقُ وَكَلَّتْ عَيْنَاهُ عَنِ ٱلنَّظَرِ، أَنَّهُ دَعَا عِيسُوَ ٱبْنَهُ ٱلْأَكْبَرَ وَقَالَ لَهُ: «يَا ٱبْنِي». فَقَالَ لَهُ: «هَأَنَذَا». | ١ 1 |
जब यित्सहाक वृद्ध हो गये थे और उनकी आंखें इतनी कमजोर हो गईं कि वह देख नहीं सकते थे, तब उन्होंने अपने बड़े बेटे एसाव को बुलाया और कहा, “हे मेरे पुत्र.” उन्होंने कहा, “क्या आज्ञा है पिताजी?”
فَقَالَ: «إِنَّنِي قَدْ شِخْتُ وَلَسْتُ أَعْرِفُ يَوْمَ وَفَاتِي. | ٢ 2 |
यित्सहाक ने कहा, “मैं तो बूढ़ा हो गया हूं और नहीं जानता कि कब मर जाऊंगा.
فَٱلْآنَ خُذْ عُدَّتَكَ: جُعْبَتَكَ وَقَوْسَكَ، وَٱخْرُجْ إِلَى ٱلْبَرِّيَّةِ وَتَصَيَّدْ لِي صَيْدًا، | ٣ 3 |
इसलिये अब तुम अपना हथियार—अपना तरकश और धनुष लो और खुले मैदान में जाओ और मेरे लिये कोई वन पशु शिकार करके ले आओ.
وَٱصْنَعْ لِي أَطْعِمَةً كَمَا أُحِبُّ، وَأْتِنِي بِهَا لِآكُلَ حَتَّى تُبَارِكَكَ نَفْسِي قَبْلَ أَنْ أَمُوتَ». | ٤ 4 |
और मेरी पसंद के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाकर मेरे पास ले आना कि मैं उसे खाऊं और अपने मरने से पहले तुम्हें आशीष दूं.”
وَكَانَتْ رِفْقَةُ سَامِعَةً إِذْ تَكَلَّمَ إِسْحَاقُ مَعَ عِيسُو ٱبْنِهِ. فَذَهَبَ عِيسُو إِلَى ٱلْبَرِّيَّةِ كَيْ يَصْطَادَ صَيْدًا لِيَأْتِيَ بِهِ. | ٥ 5 |
जब यित्सहाक अपने पुत्र एसाव से बातें कर रहे थे, तब रेबेकाह उनकी बातों को सुन रही थी. जब एसाव खुले मैदान में शिकार लाने के लिए चला गया,
وَأَمَّا رِفْقَةُ فَكَلمتْ يَعْقُوبَ ٱبْنِهَا قَائِلةً: «إِنِّي قَدْ سَمِعْتُ أَبَاكَ يُكَلِّمُ عِيسُوَ أَخَاكَ قَائِلًا: | ٦ 6 |
तब रेबेकाह ने अपने पुत्र याकोब से कहा, “देख, मैंने तुम्हारे पिता को तुम्हारे भाई एसाव से यह कहते हुए सुना है,
ٱئْتِنِي بِصَيْدٍ وَٱصْنَعْ لِي أَطْعِمَةً لِآكُلَ وَأُبَارِكَكَ أَمَامَ ٱلرَّبِّ قَبْلَ وَفَاتِي. | ٧ 7 |
‘शिकार करके मेरे लिये स्वादिष्ट भोजन बनाकर ला कि मैं उसे खाऊं और अपने मरने से पहले याहवेह के सामने तुम्हें आशीष दूं.’
فَٱلْآنَ يَا ٱبْنِي ٱسْمَعْ لِقَوْلِي فِي مَا أَنَا آمُرُكَ بِهِ: | ٨ 8 |
इसलिये, हे मेरे पुत्र, अब ध्यान से मेरी बात सुन और जो मैं कहती हूं उसे कर:
اِذْهَبْ إِلَى ٱلْغَنَمِ وَخُذْ لِي مِنْ هُنَاكَ جَدْيَيْنِ جَيِّدَيْنِ مِنَ ٱلْمِعْزَى، فَأَصْنَعَهُمَا أَطْعِمَةً لِأَبِيكَ كَمَا يُحِبُّ، | ٩ 9 |
जानवरों के झुंड में जाकर दो अच्छे छोटे बकरे ले आ, ताकि मैं तुम्हारे पिता के लिए उनके पसंद के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बना दूं.
فَتُحْضِرَهَا إِلَى أَبِيكَ لِيَأْكُلَ حَتَّى يُبَارِكَكَ قَبْلَ وَفَاتِهِ». | ١٠ 10 |
तब तुम उस भोजन को अपने पिता के पास ले जाना, ताकि वह उसे खाकर अपने मरने से पहले तुम्हें अपनी आशीष दें.”
فَقَالَ يَعْقُوبُ لِرِفْقَةَ أُمِّهِ: «هُوَذَا عِيسُو أَخِي رَجُلٌ أَشْعَرُ وَأَنَا رَجُلٌ أَمْلَسُ. | ١١ 11 |
याकोब ने अपनी माता रेबेकाह से कहा, “पर मेरे भाई के शरीर में पूरे बाल हैं, लेकिन मेरी त्वचा चिकनी है.
رُبَّمَا يَجُسُّنِي أَبِي فَأَكُونُ فِي عَيْنَيْهِ كَمُتَهَاوِنٍ، وَأَجْلِبُ عَلَى نَفْسِي لَعْنَةً لَا بَرَكَةً». | ١٢ 12 |
यदि मेरे पिता मुझे छुएंगे तब क्या होगा? मैं तो धोखा देनेवाला ठहरूंगा और आशीष के बदले अपने ऊपर शाप लाऊंगा.”
فَقَالَتْ لَهُ أُمُّهُ: «لَعْنَتُكَ عَلَيَّ يَا ٱبْنِي. اِسْمَعْ لِقَوْلِي فَقَطْ وَٱذْهَبْ خُذْ لِي». | ١٣ 13 |
तब उसकी मां ने कहा, “मेरे पुत्र, तुम्हारा शाप मुझ पर आ जाए. मैं जैसा कहती हूं तू वैसा ही कर; जा और उनको मेरे लिये ले आ.”
فَذَهَبَ وَأَخَذَ وَأَحْضَرَ لِأُمِّهِ، فَصَنَعَتْ أُمُّهُ أَطْعِمَةً كَمَا كَانَ أَبُوهُ يُحِبُّ. | ١٤ 14 |
इसलिये याकोब जाकर उनको लाया और अपनी मां को दे दिया, और उसने याकोब के पिता की पसंद के अनुसार स्वादिष्ट भोजन तैयार किया.
وَأَخَذَتْ رِفْقَةُ ثِيَابَ عِيسُو ٱبْنِهَا ٱلْأَكْبَرِ ٱلْفَاخِرَةَ ٱلَّتِي كَانَتْ عِنْدَهَا فِي ٱلْبَيْتِ وَأَلْبَسَتْ يَعْقُوبَ ٱبْنَهَا ٱلْأَصْغَرَ، | ١٥ 15 |
तब रेबेकाह ने अपने बड़े बेटे एसाव के सबसे अच्छे कपड़े घर से लाकर अपने छोटे बेटे याकोब को पहना दिए.
وَأَلْبَسَتْ يَدَيْهِ وَمَلَاسَةَ عُنُقِهِ جُلُودَ جَدْيَيِ ٱلْمِعْزَى. | ١٦ 16 |
उसने बकरी के खालों से उसके चिकने भाग और गले और गले के चिकने भाग को भी ढंक दिया.
وَأَعْطَتِ ٱلْأَطْعِمَةَ وَٱلْخُبْزَ ٱلَّتِي صَنَعَتْ فِي يَدِ يَعْقُوبَ ٱبْنِهَا. | ١٧ 17 |
तब उसने अपनी पकाई स्वादिष्ट मांस को और रोटी लेकर याकोब को दी.
فَدَخَلَ إِلَى أَبِيهِ وَقَالَ: «يَا أَبِي». فَقَالَ: «هَأَنَذَا. مَنْ أَنْتَ يَا ٱبْنِي؟». | ١٨ 18 |
अपने पिता के पास जाकर याकोब ने कहा, “पिताजी.” यित्सहाक ने उत्तर दिया, “हां बेटा, कौन हो तुम?”
فَقَالَ يَعْقُوبُ لِأَبِيهِ: «أَنَا عِيسُو بِكْرُكَ. قَدْ فَعَلْتُ كَمَا كَلَّمْتَنِي. قُمِ ٱجْلِسْ وَكُلْ مِنْ صَيْدِي لِكَيْ تُبَارِكَنِي نَفْسُكَ». | ١٩ 19 |
याकोब ने अपने पिता को उत्तर दिया, “मैं आपका बड़ा बेटा एसाव हूं. मैंने वह सब किया है, जैसा आपने कहा था. कृपया बैठिये और मेरे शिकार से पकाया भोजन कीजिये और मुझे अपनी आशीष दीजिये.”
فَقَالَ إِسْحَاقُ لِٱبْنِهِ: «مَا هَذَا ٱلَّذِي أَسْرَعْتَ لِتَجِدَ يَا ٱبْنِي؟». فَقَالَ: «إِنَّ ٱلرَّبَّ إِلَهَكَ قَدْ يَسَّرَ لِي». | ٢٠ 20 |
यित्सहाक ने अपने पुत्र से पूछा, “मेरे पुत्र, यह तुम्हें इतनी जल्दी कैसे मिल गया?” याकोब ने कहा, “याहवेह आपके परमेश्वर ने मुझे सफलता दी.”
فَقَالَ إِسْحَاقُ لِيَعْقُوبَ: «تَقَدَّمْ لِأَجُسَّكَ يَا ٱبْنِي. أَأَنْتَ هُوَ ٱبْنِي عِيسُو أَمْ لَا؟». | ٢١ 21 |
तब यित्सहाक ने याकोब से कहा, “हे मेरे पुत्र, मेरे पास आ, ताकि मैं तुम्हें छूकर जान सकूं कि तू सही में मेरा पुत्र एसाव है या नहीं.”
فَتَقَدَّمَ يَعْقُوبُ إِلَى إِسْحَاقَ أَبِيهِ، فَجَسَّهُ وَقَالَ: «ٱلصَّوْتُ صَوْتُ يَعْقُوبَ، وَلَكِنَّ ٱلْيَدَيْنِ يَدَا عِيسُو». | ٢٢ 22 |
तब याकोब अपने पिता यित्सहाक के पास गया, जिसने उसे छुआ और कहा, “आवाज तो याकोब की है किंतु हाथ एसाव के हाथ जैसे हैं.”
وَلَمْ يَعْرِفْهُ لِأَنَّ يَدَيْهِ كَانَتَا مُشْعِرَتَيْنِ كَيَدَيْ عِيسُو أَخِيهِ، فَبَارَكَهُ. | ٢٣ 23 |
यित्सहाक ने उसे नहीं पहचाना, क्योंकि उसके हाथ में वैसे ही बाल थे जैसे एसाव के थे. इसलिए यित्सहाक उसे आशीष देने के लिए आगे बढ़ा.
وَقَالَ: «هَلْ أَنْتَ هُوَ ٱبْنِي عِيسُو؟». فَقَالَ: «أَنَا هُوَ». | ٢٤ 24 |
यित्सहाक ने पूछा, “क्या तू सही में मेरा पुत्र एसाव है?” याकोब ने उत्तर दिया, “मैं हूं.”
فَقَالَ: «قَدِّمْ لِي لِآكُلَ مِنْ صَيْدِ ٱبْنِي حَتَّى تُبَارِكَكَ نَفْسِي». فَقَدَّمَ لَهُ فَأَكَلَ، وَأَحْضَرَ لَهُ خَمْرًا فَشَرِبَ. | ٢٥ 25 |
तब यित्सहाक ने कहा, “हे मेरे पुत्र, अपने शिकार से पकाये कुछ भोजन मेरे खाने के लिये ला, ताकि मैं तुम्हें अपनी आशीष दूं.” याकोब अपने पिता के पास खाना लाया और उसने खाया; और वह दाखरस भी लाया और उसने पिया.
فَقَالَ لَهُ إِسْحَاقُ أَبُوهُ: «تَقَدَّمْ وَقَبِّلْنِي يَا ٱبْنِي». | ٢٦ 26 |
तब उसके पिता यित्सहाक ने उससे कहा, “हे मेरे पुत्र, यहां आ और मुझे चूम.”
فَتَقَدَّمَ وَقَبَّلَهُ، فَشَمَّ رَائِحَةَ ثِيَابِهِ وَبَارَكَهُ، وَقَالَ: «ٱنْظُرْ! رَائِحَةُ ٱبْنِي كَرَائِحَةِ حَقْلٍ قَدْ بَارَكَهُ ٱلرَّبُّ. | ٢٧ 27 |
इसलिये याकोब उसके पास गया और उसे चूमा. जब यित्सहाक को उसके कपड़ों से एसाव की गंध आई, इसलिये उसने उसे आशीष देते हुए कहा, “मेरे बेटे की खुशबू याहवेह की आशीष से मैदान में फैल गई है.
فَلْيُعْطِكَ ٱللهُ مِنْ نَدَى ٱلسَّمَاءِ وَمِنْ دَسَمِ ٱلْأَرْضِ. وَكَثْرَةَ حِنْطَةٍ وَخَمْرٍ. | ٢٨ 28 |
अब परमेश्वर तुम्हें आकाश की ओस, पृथ्वी की अच्छी उपज तथा अन्न और नये दाखरस से आशीषित करेंगे.
لِيُسْتَعْبَدْ لَكَ شُعُوبٌ، وَتَسْجُدْ لَكَ قَبَائِلُ. كُنْ سَيِّدًا لِإِخْوَتِكَ، وَلْيَسْجُدْ لَكَ بَنُو أُمِّكَ. لِيَكُنْ لَاعِنُوكَ مَلْعُونِينَ، وَمُبَارِكُوكَ مُبَارَكِينَ». | ٢٩ 29 |
सभी राष्ट्र तुम्हारी सेवा करेंगे, जाति-जाति के लोग तुम्हारे सामने झुकेंगे, तुम अपने भाइयों के ऊपर शासक होंगे; तुम्हारी मां के पुत्र तुम्हारे सामने झुकेंगे. जो तुम्हें शाप देंगे वे स्वयं शापित होंगे और जो तुम्हें आशीष देंगे वे आशीष पायेंगे.”
وَحَدَثَ عِنْدَمَا فَرَغَ إِسْحَاقُ مِنْ بَرَكَةِ يَعْقُوبَ، وَيَعْقُوبُ قَدْ خَرَجَ مِنْ لَدُنْ إِسْحَاقَ أَبِيهِ، أَنَّ عِيسُوَ أَخَاهُ أَتَى مِنْ صَيْدِهِ، | ٣٠ 30 |
जैसे ही यित्सहाक याकोब को आशीष दे चुके तब उनका भाई एसाव शिकार करके घर आया.
فَصَنَعَ هُوَ أَيْضًا أَطْعِمَةً وَدَخَلَ بِهَا إِلَى أَبِيهِ وَقَالَ لِأَبِيهِ: «لِيَقُمْ أَبِي وَيَأْكُلْ مِنْ صَيْدِ ٱبْنِهِ حَتَّى تُبَارِكَنِي نَفْسُكَ». | ٣١ 31 |
उन्होंने जल्दी स्वादिष्ट खाना तैयार किया और अपने पिता से कहा “पिताजी, उठिए और स्वादिष्ट खाना खाकर मुझे अपनी आशीष दीजिए.”
فَقَالَ لَهُ إِسْحَاقُ أَبُوهُ: «مَنْ أَنْتَ؟» فَقَالَ: «أَنَا ٱبْنُكَ بِكْرُكَ عِيسُو». | ٣٢ 32 |
उसके पिता यित्सहाक ने उनसे पूछा, “कौन हो तुम?” उसने कहा, “मैं आपका बेटा हूं, आपका बड़ा बेटा एसाव.”
فَٱرْتَعَدَ إِسْحَاقُ ٱرْتِعَادًا عَظِيمًا جِدًّا وَقَالَ: «فَمَنْ هُوَ ٱلَّذِي ٱصْطَادَ صَيْدًا وَأَتَى بِهِ إِلَيَّ فَأَكَلْتُ مِنَ ٱلْكُلِّ قَبْلَ أَنْ تَجِيءَ، وَبَارَكْتُهُ؟ نَعَمْ، وَيَكُونُ مُبَارَكًا». | ٣٣ 33 |
यह सुन यित्सहाक कांपते हुए बोले, “तो वह कौन था, जो मेरे लिए भोजन लाया था? और मैंने उसे आशीषित भी किया, अब वह आशीषित ही रहेगा!”
فَعِنْدَمَا سَمِعَ عِيسُو كَلَامَ أَبِيهِ صَرَخَ صَرْخَةً عَظِيمَةً وَمُرَّةً جِدًّا، وَقَالَ لِأَبِيهِ: «بَارِكْنِي أَنَا أَيْضًا يَا أَبِي». | ٣٤ 34 |
अपने पिता की ये बात सुनकर एसाव फूट-फूटकर रोने लगा और अपने पिता से कहा, “पिताजी, मुझे आशीष दीजिए, मुझे भी!”
فَقَالَ: «قَدْ جَاءَ أَخُوكَ بِمَكْرٍ وَأَخَذَ بَرَكَتَكَ». | ٣٥ 35 |
यित्सहाक ने कहा, “तुम्हारे भाई ने धोखा किया और आशीष ले ली.”
فَقَالَ: «أَلَا إِنَّ ٱسْمَهُ دُعِيَ يَعْقُوبَ، فَقَدْ تَعَقَّبَنِي ٱلْآنَ مَرَّتَيْنِ! أَخَذَ بَكُورِيَّتِي، وَهُوَذَا ٱلْآنَ قَدْ أَخَذَ بَرَكَتِي». ثُمَّ قَالَ: «أَمَا أَبْقَيْتَ لِي بَرَكَةً؟». | ٣٦ 36 |
एसाव ने कहा, “उसके लिए याकोब नाम सही नहीं है? दो बार उसने मेरे साथ बुरा किया: पहले उसने मेरे बड़े होने का अधिकार ले लिया और अब मेरी आशीष भी छीन ली!” तब एसाव ने अपने पिता से पूछा, “क्या आपने मेरे लिए एक भी आशीष नहीं बचाई?”
فَأَجَابَ إِسْحَاقُ وَقَالَ لِعِيسُو: «إِنِّي قَدْ جَعَلْتُهُ سَيِّدًا لَكَ، وَدَفَعْتُ إِلَيْهِ جَمِيعَ إِخْوَتِهِ عَبِيدًا، وَعَضَدْتُهُ بِحِنْطَةٍ وَخَمْرٍ. فَمَاذَا أَصْنَعُ إِلَيْكَ يَا ٱبْنِي؟» | ٣٧ 37 |
यित्सहाक ने एसाव से कहा, “मैं तो उसे तुम्हारा स्वामी बना चुका हूं. और सभी संबंधियों को उसका सेवक बनाकर उसे सौंप दिया और उसे अन्न एवं नये दाखरस से भरे रहने की आशीष दी हैं. अब मेरे पुत्र, तुम्हारे लिए मैं क्या करूं?”
فَقَالَ عِيسُو لِأَبِيهِ: «أَلَكَ بَرَكَةٌ وَاحِدَةٌ فَقَطْ يَا أَبِي؟ بَارِكْنِي أَنَا أَيْضًا يَا أَبِي». وَرَفَعَ عِيسُو صَوْتَهُ وَبَكَى. | ٣٨ 38 |
एसाव ने अपने पिता से पूछा, “पिताजी, क्या आपके पास मेरे लिए एक भी आशीष नहीं? और वह रोता हुआ कहने लगा कि पिताजी मुझे भी आशीष दीजिए!”
فَأَجَابَ إِسْحَاقُ أَبُوهُ وَقَالَ لَهُ: «هُوَذَا بِلَا دَسَمِ ٱلْأَرْضِ يَكُونُ مَسْكَنُكَ، وَبِلَا نَدَى ٱلسَّمَاءِ مِنْ فَوْقُ. | ٣٩ 39 |
तब यित्सहाक ने कहा, “तुम्हारा घर अच्छी उपज वाली भूमि पर हो और उस पर आकाश से ओस गिरे.
وَبِسَيْفِكَ تَعِيشُ، وَلِأَخِيكَ تُسْتَعْبَدُ، وَلَكِنْ يَكُونُ حِينَمَا تَجْمَحُ أَنَّكَ تُكَسِّرُ نِيرَهُ عَنْ عُنُقِكَ». | ٤٠ 40 |
तुम अपनी तलवार की ताकत से जीवित रहोगे. तुम अपने भाई की सेवा करोगे; किंतु हां, किंतु तुम आज़ादी के लिए लड़ोगे, और तुम अपने ऊपर पड़े उसके प्रतिबन्ध को तोड़ फेंकोगे.”
فَحَقَدَ عِيسُو عَلَى يَعْقُوبَ مِنْ أَجْلِ ٱلْبَرَكَةِ ٱلَّتِي بَارَكَهُ بِهَا أَبُوهُ. وَقَالَ عِيسُو فِي قَلْبِهِ: «قَرُبَتْ أَيَّامُ مَنَاحَةِ أَبِي، فَأَقْتُلُ يَعْقُوبَ أَخِي». | ٤١ 41 |
एसाव अपने भाई याकोब से नफ़रत करने लगा और मन में ऐसा सोचने लगा, “पिता की मृत्यु शोक के दिन नज़दीक है, उनके बाद मैं याकोब की हत्या कर दूंगा.”
فَأُخْبِرَتْ رِفْقَةُ بِكَلَامِ عِيسُوَ ٱبْنِهَا ٱلْأَكْبَرِ، فَأَرْسَلَتْ وَدَعَتْ يَعْقُوبَ ٱبْنَهَا ٱلْأَصْغَرَ وَقَالَتْ لَهُ: «هُوَذَا عِيسُو أَخُوكَ مُتَسَلٍّ مِنْ جِهَتِكَ بِأَنَّهُ يَقْتُلُكَ. | ٤٢ 42 |
जब रेबेकाह को अपने बड़े बेटे की ये बातें बताई गईं तब उसने सेवक भेजकर अपने छोटे पुत्र याकूब को बुलवाकर उससे कहा, “तुम्हारे भाई एसाव के मन में तुम्हारे लिए बहुत नफ़रत हैं. सुनो, तुम्हारा भाई एसाव तुम्हें मारने का षड़्यंत्र कर रहा है.
فَٱلْآنَ يَا ٱبْنِي ٱسْمَعْ لِقَوْلِي، وَقُمِ ٱهْرُبْ إِلَى أَخِي لَابَانَ إِلَى حَارَانَ، | ٤٣ 43 |
इसलिये तुम यहां से भागकर मेरे भाई लाबान के यहां चले जाओ.
وَأَقِمْ عِنْدَهُ أَيَّامًا قَلِيلَةً حَتَّى يَرْتَدَّ سُخْطُ أَخِيكَ. | ٤٤ 44 |
वहां जाकर कुछ समय रहो, जब तक तुम्हारे भाई का गुस्सा खत्म न हो जाए.
حَتَّى يَرْتَدَّ غَضَبُ أَخِيكَ عَنْكَ، وَيَنْسَى مَا صَنَعْتَ بِهِ. ثُمَّ أُرْسِلُ فَآخُذُكَ مِنْ هُنَاكَ. لِمَاذَا أُعْدَمُ ٱثْنَيْكُمَا فِي يَوْمٍ وَاحِدٍ؟». | ٤٥ 45 |
जब तुम्हारे भाई का गुस्सा खत्म होगा, और भूल जायेगा कि तुमने उसके साथ क्या किया, तब मैं तुम्हें वहां से बुला लूंगी. मैं एक ही दिन तुम दोनों को क्यों खो दूं?”
وَقَالَتْ رِفْقَةُ لِإِسْحَاقَ: «مَلِلْتُ حَيَاتِي مِنْ أَجْلِ بَنَاتِ حِثَّ. إِنْ كَانَ يَعْقُوبُ يَأْخُذُ زَوْجَةً مِنْ بَنَاتِ حِثَّ مِثْلَ هَؤُلَاءِ مِنْ بَنَاتِ ٱلْأَرْضِ، فَلِمَاذَا لِي حَيَاةٌ؟». | ٤٦ 46 |
एक दिन रेबेकाह ने यित्सहाक से कहा, “हेथ की इन पुत्रियों ने मेरा जीवन दुःखी कर दिया है. यदि याकोब भी हेथ की पुत्रियों में से किसी को, अपनी पत्नी बना लेगा तो मेरे लिए जीना और मुश्किल हो जाएगा?” इसलिये याकोब को उसके मामा के घर भेज दो.