< غَلاطِيَّة 5 >
فَٱثْبُتُوا إِذًا فِي ٱلْحُرِّيَّةِ ٱلَّتِي قَدْ حَرَّرَنَا ٱلْمَسِيحُ بِهَا، وَلَا تَرْتَبِكُوا أَيْضًا بِنِيرِ عُبُودِيَّةٍ. | ١ 1 |
मसीह ने हमे आज़ाद रहने के लिए आज़ाद किया है; पस क़ाईम रहो, और दोबारा ग़ुलामी के जुवे में न जुतो।
هَا أَنَا بُولُسُ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ إِنِ ٱخْتَتَنْتُمْ لَا يَنْفَعُكُمُ ٱلْمَسِيحُ شَيْئًا! | ٢ 2 |
सुनो, मैं पौलुस तुमसे कहता हूँ कि अगर तुम ख़तना कराओगे तो मसीह से तुम को कुछ फ़ाइदा न होगा।
لَكِنْ أَشْهَدُ أَيْضًا لِكُلِّ إِنْسَانٍ مُخْتَتِنٍ أَنَّهُ مُلْتَزِمٌ أَنْ يَعْمَلَ بِكُلِّ ٱلنَّامُوسِ. | ٣ 3 |
बल्कि मैं हर एक ख़तना करने वाले आदमी पर फिर गवाही देता हूँ, कि उसे तमाम शरी'अत पर' अमल करना फ़र्ज़ है।
قَدْ تَبَطَّلْتُمْ عَنِ ٱلْمَسِيحِ أَيُّهَا ٱلَّذِينَ تَتَبَرَّرُونَ بِٱلنَّامُوسِ. سَقَطْتُمْ مِنَ ٱلنِّعْمَةِ. | ٤ 4 |
तुम जो शरी'अत के वसीले से रास्तबाज़ ठहरना चाहते हो, मसीह से अलग हो गए और फ़ज़ल से महरूम।
فَإِنَّنَا بِٱلرُّوحِ مِنَ ٱلْإِيمَانِ نَتَوَقَّعُ رَجَاءَ بِرٍّ. | ٥ 5 |
क्यूँकि हम पाक रूह के ज़रिए, ईमान से रास्तबाज़ी की उम्मीद बर आने के मुन्तज़िर हैं।
لِأَنَّهُ فِي ٱلْمَسِيحِ يَسُوعَ لَا ٱلْخِتَانُ يَنْفَعُ شَيْئًا وَلَا ٱلْغُرْلَةُ، بَلِ ٱلْإِيمَانُ ٱلْعَامِلُ بِٱلْمَحَبَّةِ. | ٦ 6 |
और मसीह ईसा में न तो ख़तना कुछ काम का है न नामख़्तूनी मगर ईमान जो मुहब्बत की राह से असर करता है।
كُنْتُمْ تَسْعَوْنَ حَسَنًا. فَمَنْ صَدَّكُمْ حَتَّى لَا تُطَاوِعُوا لِلْحَقِّ؟ | ٧ 7 |
तुम तो अच्छी तरह दौड़ रहे थे किसने तुम्हें हक़ के मानने से रोक दिया।
هَذِهِ ٱلْمُطَاوَعَةُ لَيْسَتْ مِنَ ٱلَّذِي دَعَاكُمْ. | ٨ 8 |
ये तरग़ीब ख़ुदा जिसने तुम्हें बुलाया उस की तरफ़ से नहीं है।
«خَمِيرَةٌ صَغِيرَةٌ تُخَمِّرُ ٱلْعَجِينَ كُلَّهُ». | ٩ 9 |
थोड़ा सा ख़मीर सारे गूँधे हुए आटे को ख़मीर कर देता है।
وَلَكِنَّنِي أَثِقُ بِكُمْ فِي ٱلرَّبِّ أَنَّكُمْ لَا تَفْتَكِرُونَ شَيْئًا آخَرَ. وَلَكِنَّ ٱلَّذِي يُزْعِجُكُمْ سَيَحْمِلُ ٱلدَّيْنُونَةَ أَيَّ مَنْ كَانَ. | ١٠ 10 |
मुझे ख़ुदावन्द में तुम पर ये भरोसा है कि तुम और तरह का ख़याल न करोगे; लेकिन जो तुम्हें उलझा देता है, वो चाहे कोई हो सज़ा पाएगा।
وَأَمَّا أَنَا أَيُّهَا ٱلْإِخْوَةُ فَإِنْ كُنْتُ بَعْدُ أَكْرِزُ بِٱلْخِتَانِ، فَلِمَاذَا أُضْطَهَدُ بَعْدُ؟ إِذًا عَثْرَةُ ٱلصَّلِيبِ قَدْ بَطَلَتْ. | ١١ 11 |
और ऐ भाइयों! अगर मैं अब तक ख़तना का एलान करता हूँ, तो अब तक सताया क्यूँ जाता हूँ? इस सूरत में तो सलीब की ठोकर तो जाती रही।
يَالَيْتَ ٱلَّذِينَ يُقْلِقُونَكُمْ يَقْطَعُونَ أَيْضًا! | ١٢ 12 |
क़ाश कि तुम्हें बेक़रार करने वाले अपना तअ'ल्लुक़ तोड़ लेते।
فَإِنَّكُمْ إِنَّمَا دُعِيتُمْ لِلْحُرِّيَّةِ أَيُّهَا ٱلْإِخْوَةُ. غَيْرَ أَنَّهُ لَا تُصَيِّرُوا ٱلْحُرِّيَّةَ فُرْصَةً لِلْجَسَدِ، بَلْ بِٱلْمَحَبَّةِ ٱخْدِمُوا بَعْضُكُمْ بَعْضًا. | ١٣ 13 |
ऐ भाइयों! तुम आज़ादी के लिए बुलाए तो गए हो, मगर ऐसा न हो कि ये आज़ादी जिस्मानी बातों का मौक़ा, बने; बल्कि मुहब्बत की राह पर एक दूसरे की ख़िदमत करो।
لِأَنَّ كُلَّ ٱلنَّامُوسِ فِي كَلِمَةٍ وَاحِدَةٍ يُكْمَلُ: «تُحِبُّ قَرِيبَكَ كَنَفْسِكَ». | ١٤ 14 |
क्यूँकि पूरी शरी'अत पर एक ही बात से 'अमल हो जाता है, या; नी इससे कि “तू अपने पड़ोसी से अपनी तरह मुहब्बत रख।”
فَإِذَا كُنْتُمْ تَنْهَشُونَ وَتَأْكُلُونَ بَعْضُكُمْ بَعْضًا، فَٱنْظُرُوا لِئَلَّا تُفْنُوا بَعْضُكُمْ بَعْضًا. | ١٥ 15 |
लेकिन अगर तुम एक दूसरे को फाड़ खाते हो, तो ख़बरदार रहना कि एक दूसरे को ख्त्म न कर दो।
وَإِنَّمَا أَقُولُ: ٱسْلُكُوا بِٱلرُّوحِ فَلَا تُكَمِّلُوا شَهْوَةَ ٱلْجَسَدِ. | ١٦ 16 |
मगर मैं तुम से ये कहता हूँ, रूह के मुताबिक़ चलो तो जिस्म की ख़्वाहिश को हरगिज़ पूरा न करोगे।
لِأَنَّ ٱلْجَسَدَ يَشْتَهِي ضِدَّ ٱلرُّوحِ وَٱلرُّوحُ ضِدَّ ٱلْجَسَدِ، وَهَذَانِ يُقَاوِمُ أَحَدُهُمَا ٱلْآخَرَ، حَتَّى تَفْعَلُونَ مَا لَا تُرِيدُونَ. | ١٧ 17 |
क्यूँकि जिस्म रूह के ख़िलाफ़ ख़्वाहिश करता है और रूह जिस्म के ख़िलाफ़ है, और ये एक दूसरे के मुख़ालिफ़ हैं, ताकि जो तुम चाहो वो न करो।
وَلَكِنْ إِذَا ٱنْقَدْتُمْ بِٱلرُّوحِ فَلَسْتُمْ تَحْتَ ٱلنَّامُوسِ. | ١٨ 18 |
और अगर तुम पाक रूह की हिदायत से चलते हो, तो शरी'अत के मातहत नहीं रहे।
وَأَعْمَالُ ٱلْجَسَدِ ظَاهِرَةٌ، ٱلَّتِي هِيَ: زِنًى، عَهَارَةٌ، نَجَاسَةٌ، دَعَارَةٌ، | ١٩ 19 |
अब जिस्म के काम तो ज़ाहिर हैं, या'नी कि हरामकारी, नापाकी, शहवत परस्ती,
عِبَادَةُ ٱلْأَوْثَانِ، سِحْرٌ، عَدَاوَةٌ، خِصَامٌ، غَيْرَةٌ، سَخَطٌ، تَحَزُّبٌ، شِقَاقٌ، بِدْعَةٌ، | ٢٠ 20 |
बुत परसती, जादूगरी, अदावतें, झगड़ा, हसद, ग़ुस्सा, तफ़्रक़े, जुदाइयाँ, बिद'अतें,
حَسَدٌ، قَتْلٌ، سُكْرٌ، بَطَرٌ، وَأَمْثَالُ هَذِهِ ٱلَّتِي أَسْبِقُ فَأَقُولُ لَكُمْ عَنْهَا كَمَا سَبَقْتُ فَقُلْتُ أَيْضًا: إِنَّ ٱلَّذِينَ يَفْعَلُونَ مِثْلَ هَذِهِ لَا يَرِثُونَ مَلَكُوتَ ٱللهِ. | ٢١ 21 |
अदावत, नशाबाज़ी, नाच रंग और इनकी तरह, इनके ज़रिए तुम्हें पहले से कहे देता हूँ जिसको पहले बता चुका हूँ कि ऐसे काम करने वाले ख़ुदा की बादशाही के वारिस न होंगे।
وَأَمَّا ثَمَرُ ٱلرُّوحِ فَهُوَ: مَحَبَّةٌ، فَرَحٌ، سَلَامٌ، طُولُ أَنَاةٍ، لُطْفٌ، صَلَاحٌ، إِيمَانٌ، | ٢٢ 22 |
मगर पाक रूह का फल मुहब्बत, ख़ुशी, इत्मीनान, सब्र, मेहरबानी, नेकी, ईमानदारी
وَدَاعَةٌ، تَعَفُّفٌ. ضِدَّ أَمْثَالِ هَذِهِ لَيْسَ نَامُوسٌ. | ٢٣ 23 |
हलीम, परहेज़गारी है; ऐसे कामों की कोई शरी; अत मुख़ालिफ़ नहीं।
وَلَكِنَّ ٱلَّذِينَ هُمْ لِلْمَسِيحِ قَدْ صَلَبُوا ٱلْجَسَدَ مَعَ ٱلْأَهْوَاءِ وَٱلشَّهَوَاتِ. | ٢٤ 24 |
और जो मसीह ईसा के हैं उन्होंने जिस्म को उसकी रगबतों और ख़्वाहिशों समेत सलीब पर खींच दिया है।
إِنْ كُنَّا نَعِيشُ بِٱلرُّوحِ، فَلْنَسْلُكْ أَيْضًا بِحَسَبِ ٱلرُّوحِ. | ٢٥ 25 |
अगर हम पाक रूह की वजह से ज़िंदा हैं, तो रूह के मुवाफ़िक़ चलना भी चाहिए।
لَا نَكُنْ مُعْجِبِينَ نُغَاضِبُ بَعْضُنَا بَعْضًا، وَنَحْسِدُ بَعْضُنَا بَعْضًا. | ٢٦ 26 |
हम बेजा फ़ख़्र करके न एक दूसरे को चिढ़ाएँ, न एक दूसरे से जलें।