< اَلتَّثْنِيَة 14 >
«أَنْتُمْ أَوْلَادٌ لِلرَّبِّ إِلَهِكُمْ. لَا تَخْمِشُوا أَجْسَامَكُمْ، وَلَا تَجْعَلُوا قَرْعَةً بَيْنَ أَعْيُنِكُمْ لِأَجْلِ مَيْتٍ. | ١ 1 |
“तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हो, तुम मुर्दों की वजह से अपने आप को ज़ख़्मी न करना, और न अपने अबरू के बाल मुंडवाना।
لِأَنَّكَ شَعْبٌ مُقَدَّسٌ لِلرَّبِّ إِلَهِكَ، وَقَدِ ٱخْتَارَكَ ٱلرَّبُّ لِكَيْ تَكُونَ لَهُ شَعْبًا خَاصًّا فَوْقَ جَمِيعِ ٱلشُّعُوبِ ٱلَّذِينَ عَلَى وَجْهِ ٱلْأَرْضِ. | ٢ 2 |
क्यूँकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की मुक़द्दस क़ौम है और ख़ुदावन्द ने तुझको इस ज़मीन की और सब क़ौमों में से चुन लिया है ताकि तू उसकी ख़ास क़ौम ठहरे।
«لَا تَأْكُلْ رِجْسًا مَّا. | ٣ 3 |
“तू किसी घिनौनी चीज़ को मत खाना।
هَذِهِ هِيَ ٱلْبَهَائِمُ ٱلَّتِي تَأْكُلُونَهَا: ٱلْبَقَرُ وَٱلضَّأْنُ وَٱلْمَعْزُ | ٤ 4 |
जिन चौपायों को तुम खा सकते हो वह ये हैं, या'नी गाय — बैल, और भेड़, और बकरी,
وَٱلْإِيَّلُ وَٱلظَّبْيُ وَٱلْيَحْمُورُ وَٱلْوَعْلُ وَٱلرِّئْمُ وَٱلثَّيْتَلُ وَٱلْمَهَاةُ. | ٥ 5 |
और चिकारे और हिरन, और छोटा हिरन और बुज़कोही और साबिर और नीलगाय और, जंगली भेड़।
وَكُلُّ بَهِيمَةٍ مِنَ ٱلْبَهَائِمِ تَشُقُّ ظِلْفًا وَتَقْسِمُهُ ظِلْفَيْنِ وَتَجْتَرُّ فَإِيَّاهَا تَأْكُلُونَ. | ٦ 6 |
और चौपायों में से जिस जिस के पाँव अलग और चिरे हुए हैं और वह जुगाली भी करता हो तुम उसे खा सकते हो।
إِلَّا هَذِهِ فَلَا تَأْكُلُوهَا، مِمَّا يَجْتَرُّ وَمِمَّا يَشُقُّ ٱلظِّلْفَ ٱلْمُنْقَسِمَ: ٱلْجَمَلُ وَٱلْأَرْنَبُ وَٱلْوَبْرُ، لِأَنَّهَا تَجْتَرُّ لَكِنَّهَا لَا تَشُقُّ ظِلْفًا، فَهِيَ نَجِسَةٌ لَكُمْ. | ٧ 7 |
लेकिन उनमें से जो जुगाली करते हैं या उनके पाँव चिरे हुए हैं तुम उनको, या'नी ऊँट, और ख़रगोश, और साफ़ान को न खाना, क्यूँकि ये जुगाली करते हैं लेकिन इनके पाँव चिरे हुए नहीं हैं; इसलिए ये तुम्हारे लिए नापाक हैं।
وَٱلْخِنْزِيرُ لِأَنَّهُ يَشُقُّ ٱلظِّلْفَ لَكِنَّهُ لَا يَجْتَرُّ فَهُوَ نَجِسٌ لَكُمْ. فَمِنْ لَحْمِهَا لَا تَأْكُلُوا وَجُثَثَهَا لَا تَلْمِسُوا. | ٨ 8 |
और सूअर तुम्हारे लिए इस वजह से नापाक है कि उसके पाँव तो चिरे हुए हैं लेकिन वह जुगाली नहीं करता। तुम न तो उनका गोश्त खाना और न उनकी लाश को हाथ लगाना।
«وَهَذَا تَأْكُلُونَهُ مِنْ كُلِّ مَا فِي ٱلْمِيَاهِ: كُلُّ مَا لَهُ زَعَانِفُ وَحَرْشَفٌ تَأْكُلُونَهُ. | ٩ 9 |
'आबी जानवरों में से तुम उन ही को खाना जिनके पर और छिल्के हों।
لَكِنْ كُلُّ مَا لَيْسَ لَهُ زَعَانِفُ وَحَرْشَفٌ لَا تَأْكُلُوهُ. إِنَّهُ نَجِسٌ لَكُمْ. | ١٠ 10 |
लेकिन जिसके पर और छिल्के न हों तुम उसे मत खाना, वह तुम्हारे लिए नापाक हैं।
«كُلَّ طَيْرٍ طَاهِرٍ تَأْكُلُونَ. | ١١ 11 |
“पाक परिन्दों में से तुम जिसे चाहो खा सकते हो,
وَهَذَا مَا لَا تَأْكُلُونَ مِنْهُ: ٱلنَّسْرُ وَٱلْأَنُوقُ وَٱلْعُقَابُ | ١٢ 12 |
लेकिन इनमें से तुम किसी को न खाना, या'नी 'उक़ाब, और उस्तुख़्वानख़्वार, और बहरी 'उक़ाब,
وَٱلْحِدَأَةُ وَٱلْبَاشِقُ وَٱلشَّاهِينُ عَلَى أَجْنَاسِهِ، | ١٣ 13 |
और चील और बाज़ और गिद्ध और उनकी क़िस्म के:
وَكُلُّ غُرَابٍ عَلَى أَجْنَاسِهِ، | ١٤ 14 |
हर क़िस्म का कौवा,
وَٱلنَّعَامَةُ وَٱلظَّلِيمُ وَٱلسَّأَفُ وَٱلْبَازُ عَلَى أَجْنَاسِهِ، | ١٥ 15 |
और शुतुरमुर्ग़ और चुग़द और कोकिल और क़िस्म क़िस्म के शाहीन,
وَٱلْبُومُ وَٱلْكُرْكِيُّ وَٱلْبَجَعُ | ١٦ 16 |
और बूम, और उल्लू, और क़ाज़,
وَٱلْقُوقُ وَٱلرَّخَمُ وَٱلْغَوَّاصُ | ١٧ 17 |
और हवासिल, और रख़म, और हड़गीला,
وَٱللَّقْلَقُ وَٱلْبَبْغَاءُ عَلَى أَجْنَاسِهِ، وَٱلْهُدْهُدُ وَٱلْخُفَّاشُ. | ١٨ 18 |
और लक़ — लक़, और हर क़िस्म का बगुला, और हुद — हुद, और चमगादड़।
وَكُلُّ دَبِيبِ ٱلطَّيْرِ نَجِسٌ لَكُمْ. لَا يُؤْكَلُ. | ١٩ 19 |
और सब परदार रेंगने वाले जानदार तुम्हारे लिए नापाक हैं, वह खाए न जाएँ।
كُلَّ طَيْرٍ طَاهِرٍ تَأْكُلُونَ. | ٢٠ 20 |
और पाक परिन्दों में से तुम जिसे चाहो खाओ।
«لَا تَأْكُلُوا جُثَّةً مَّا. تُعْطِيهَا لِلْغَرِيبِ ٱلَّذِي فِي أَبْوَابِكَ فَيَأْكُلُهَا أَوْ يَبِيعُهَا لِأَجْنَبِيٍّ، لِأَنَّكَ شَعْبٌ مُقَدَّسٌ لِلرَّبِّ إِلَهِكَ. لَا تَطْبُخْ جَدْيًا بِلَبَنِ أُمِّهِ. | ٢١ 21 |
“जो जानवर आप ही मर जाए तू उसे मत खाना; तू उसे किसी परदेसी को, जो तेरे फाटकों के अन्दर हो खाने को दे सकता है, या उसे किसी अजनबी आदमी के हाथ बेच सकता है; क्यूँकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की मुक़द्दस क़ौम है। तू हलवान को उसकी माँ के दूध में न उबालना।
«تَعْشِيرًا تُعَشِّرُ كُلَّ مَحْصُولِ زَرْعِكَ ٱلَّذِي يَخْرُجُ مِنَ ٱلْحَقْلِ سَنَةً بِسَنَةٍ. | ٢٢ 22 |
“तू अपने ग़ल्ले में से, जो हर साल तुम्हारे खेतों में पैदा हो दहेकी देना।
وَتَأْكُلُ أَمَامَ ٱلرَّبِّ إِلَهِكَ، فِي ٱلْمَكَانِ ٱلَّذِي يَخْتَارُهُ لِيُحِلَّ ٱسْمَهُ فِيهِ، عُشْرَ حِنْطَتِكَ وَخَمْرِكَ وَزَيْتِكَ، وَأَبْكَارِ بَقَرِكَ وَغَنَمِكَ، لِكَيْ تَتَعَلَّمَ أَنْ تَتَّقِيَ ٱلرَّبَّ إِلَهَكَ كُلَّ ٱلْأَيَّامِ. | ٢٣ 23 |
और तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने उसी मक़ाम में जिसे वह अपने नाम के घर के लिए चुने, अपने ग़ल्ले और मय और तेल की दहेकी को, और अपने गाय — बैल और भेड़ — बकरियों के पहलौठों को खाना, ताकि तू हमेशा ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना सीखे।
وَلَكِنْ إِذَا طَالَ عَلَيْكَ ٱلطَّرِيقُ حَتَّى لَا تَقْدِرَ أَنْ تَحْمِلَهُ. إِذَا كَانَ بَعِيدًا عَلَيْكَ ٱلْمَكَانُ ٱلَّذِي يَخْتَارُهُ ٱلرَّبُّ إِلَهُكَ لِيَجْعَلَ ٱسْمَهُ فِيهِ، إِذْ يُبَارِكُكَ ٱلرَّبُّ إِلَهُكَ، | ٢٤ 24 |
और अगर वह जगह जिसको ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा अपने नाम को वहाँ क़ाईम करने के लिए चुने तेरे घर से बहुत दूर हो, और रास्ता भी इस क़दर लम्बा हो कि तू अपनी दहेकी को उस हाल में जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको बरकत बख़्शे वहाँ तक न ले जा सके,
فَبِعْهُ بِفِضَّةٍ، وَصُرَّ ٱلْفِضَّةَ فِي يَدِكَ وَٱذْهَبْ إِلَى ٱلْمَكَانِ ٱلَّذِي يَخْتَارُهُ ٱلرَّبُّ إِلَهُكَ، | ٢٥ 25 |
तो तू उसे बेच कर रुपये को बाँध, हाथ में लिए हुए उस जगह चले जाना जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा चुने।
وَأَنْفِقِ ٱلْفِضَّةَ فِي كُلِّ مَا تَشْتَهِي نَفْسُكَ فِي ٱلْبَقَرِ وَٱلْغَنَمِ وَٱلْخَمْرِ وَٱلْمُسْكِرِ وَكُلِّ مَا تَطْلُبُ مِنْكَ نَفْسُكَ، وَكُلْ هُنَاكَ أَمَامَ ٱلرَّبِّ إِلَهِكَ وَٱفْرَحْ أَنْتَ وَبَيْتُكَ. | ٢٦ 26 |
और इस रुपये से जो कुछ तेरा जी चाहे, चाहे गाय — बैल, या भेड़ — बकरी, या मय, या शराब मोल लेकर उसे अपने घराने समेत वहाँ ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने खाना और ख़ुशी मनाना।
وَٱللَّاوِيُّ ٱلَّذِي فِي أَبْوَابِكَ لَا تَتْرُكْهُ، لِأَنَّهُ لَيْسَ لَهُ قِسْمٌ وَلَا نَصِيبٌ مَعَكَ. | ٢٧ 27 |
और लावी को जो तेरे फाटकों के अन्दर है छोड़ न देना, क्यूँकि उसका तेरे साथ कोई हिस्सा या मीरास नहीं हैं।
«فِي آخِرِ ثَلَاثِ سِنِينَ تُخْرِجُ كُلَّ عُشْرِ مَحْصُولِكَ فِي تِلْكَ ٱلسَّنَةِ وَتَضَعُهُ فِي أَبْوَابِكَ. | ٢٨ 28 |
'तीन तीन बरस के बाद तू तीसरे बरस के माल की सारी दहेकी निकाल कर उसे अपने फाटकों के अन्दर इकट्ठा करना।
فَيَأْتِي ٱللَّاوِيُّ، لِأَنَّهُ لَيْسَ لَهُ قِسْمٌ وَلَا نَصِيبٌ مَعَكَ، وَٱلْغَرِيبُ وَٱلْيَتِيمُ وَٱلْأَرْمَلَةُ ٱلَّذِينَ فِي أَبْوَابِكَ، وَيَأْكُلُونَ وَيَشْبَعُونَ، لِكَيْ يُبَارِكَكَ ٱلرَّبُّ إِلَهُكَ فِي كُلِّ عَمَلِ يَدِكَ ٱلَّذِي تَعْمَلُ. | ٢٩ 29 |
तब लावी जिसका तेरे साथ कोई हिस्सा या मीरास नहीं, और परदेसी और यतीम और बेवा 'औरतें जो तेरे फाटकों के अन्दर हों आएँ, और खाकर सेर हों, ताकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे सब कामों में जिनको तू हाथ लगाये तुझको बरकत बख़्शे।