< أعمال 5 >
وَرَجُلٌ ٱسْمُهُ حَنَانِيَّا، وَٱمْرَأَتُهُ سَفِّيرَةُ، بَاعَ مُلْكًا | ١ 1 |
और एक शख़्स हननियाह नाम और उसकी बीवी सफ़ीरा ने जायदाद बेची।
وَٱخْتَلَسَ مِنَ ٱلثَّمَنِ، وَٱمْرَأَتُهُ لَهَا خَبَرُ ذَلِكَ، وَأَتَى بِجُزْءٍ وَوَضَعَهُ عِنْدَ أَرْجُلِ ٱلرُّسُلِ. | ٢ 2 |
और उसने अपनी बीवी के जानते हुए क़ीमत में से कुछ रख छोड़ा और एक हिस्सा लाकर रसूलों के पाँव में रख दिया।
فَقَالَ بُطْرُسُ: «يَا حَنَانِيَّا، لِمَاذَا مَلَأَ ٱلشَّيْطَانُ قَلْبَكَ لِتَكْذِبَ عَلَى ٱلرُّوحِ ٱلْقُدُسِ وَتَخْتَلِسَ مِنْ ثَمَنِ ٱلْحَقْلِ؟ | ٣ 3 |
मगर पतरस ने कहा, ऐ हननियाह! क्यूँ शैतान ने तेरे दिल में ये बात डाल दी, कि तू रूह — उल — क़ुद्दूस से झूठ बोले और ज़मीन की क़ीमत में से कुछ रख छोड़े।
أَلَيْسَ وَهُوَ بَاقٍ كَانَ يَبْقَى لَكَ؟ وَلَمَّا بِيعَ، أَلَمْ يَكُنْ فِي سُلْطَانِكَ؟ فَمَا بَالُكَ وَضَعْتَ فِي قَلْبِكَ هَذَا ٱلْأَمْرَ؟ أَنْتَ لَمْ تَكْذِبْ عَلَى ٱلنَّاسِ بَلْ عَلَى ٱللهِ». | ٤ 4 |
क्या जब तक वो तेरे पास थी वो तेरी न थी? और जब बेची गई तो तेरे इख़्तियार में न रही, तूने क्यूँ अपने दिल में इस बात का ख़याल बाँधा? तू आदमियों से नहीं बल्कि ख़ुदा से झूठ बोला।
فَلَمَّا سَمِعَ حَنَانِيَّا هَذَا ٱلْكَلَامَ وَقَعَ وَمَاتَ. وَصَارَ خَوْفٌ عَظِيمٌ عَلَى جَمِيعِ ٱلَّذِينَ سَمِعُوا بِذَلِكَ. | ٥ 5 |
ये बातें सुनते ही हननियाह गिर पड़ा, और उसका दम निकल गया, और सब सुनने वालों पर बड़ा ख़ौफ़ छा गया।
فَنَهَضَ ٱلْأَحْدَاثُ وَلَفُّوهُ وَحَمَلُوهُ خَارِجًا وَدَفَنُوهُ. | ٦ 6 |
कुछ जवानों ने उठ कर उसे कफ़्नाया और बाहर ले जाकर दफ़्न किया।
ثُمَّ حَدَثَ بَعْدَ مُدَّةِ نَحْوِ ثَلَاثِ سَاعَاتٍ، أَنَّ ٱمْرَأَتَهُ دَخَلَتْ، وَلَيْسَ لَهَا خَبَرُ مَا جَرَى. | ٧ 7 |
तक़रीबन तीन घंटे गुज़र जाने के बाद उसकी बीवी इस हालात से बेख़बर अन्दर आई।
فأَجَابَهَا بُطْرُسُ: «قُولِي لِي: أَبِهَذَا ٱلْمِقْدَارِ بِعْتُمَا ٱلْحَقْلَ؟». فَقَالَتْ: «نَعَمْ، بِهَذَا ٱلْمِقْدَارِ». | ٨ 8 |
पतरस ने उस से कहा, मुझे बता; क्या तुम ने इतने ही की ज़मीन बेची थी? उसने कहा हाँ इतने ही की।
فَقَالَ لَهَا بُطْرُسُ: «مَا بَالُكُمَا ٱتَّفَقْتُمَا عَلَى تَجْرِبَةِ رُوحِ ٱلرَّبِّ؟ هُوَذَا أَرْجُلُ ٱلَّذِينَ دَفَنُوا رَجُلَكِ عَلَى ٱلْبَابِ، وَسَيَحْمِلُونَكِ خَارِجًا». | ٩ 9 |
पतरस ने उससे कहा, “तुम ने क्यूँ ख़ुदावन्द की रूह को आज़माने के लिए ये क्या किया? देख तेरे शौहर को दफ़्न करने वाले दरवाज़े पर खड़े हैं, और तुझे भी बाहर ले जाएँगे।”
فَوَقَعَتْ فِي ٱلْحَالِ عِنْدَ رِجْلَيْهِ وَمَاتَتْ. فَدَخَلَ ٱلشَّبَابُ وَوَجَدُوهَا مَيْتَةً، فَحَمَلُوهَا خَارِجًا وَدَفَنُوهَا بِجَانِبِ رَجُلِهَا. | ١٠ 10 |
वो उसी वक़्त उसके क़दमों पर गिर पड़ी और उसका दम निकल गया, और जवानों ने अन्दर आकर उसे मुर्दा पाया और बाहर ले जाकर उसके शौहर के पास दफ़्न कर दिया।
فَصَارَ خَوْفٌ عَظِيمٌ عَلَى جَمِيعِ ٱلْكَنِيسَةِ وَعَلَى جَمِيعِ ٱلَّذِينَ سَمِعُوا بِذَلِكَ. | ١١ 11 |
और सारी कलीसिया बल्कि इन बातों के सब सुननेवालों पर बड़ा ख़ौफ़ छा गया।
وَجَرَتْ عَلَى أَيْدِي ٱلرُّسُلِ آيَاتٌ وَعَجَائِبُ كَثِيرَةٌ فِي ٱلشَّعْبِ. وَكَانَ ٱلْجَمِيعُ بِنَفْسٍ وَاحِدَةٍ فِي رِوَاقِ سُلَيْمَانَ. | ١٢ 12 |
और रसूलों के हाथों से बहुत से निशान और अजीब काम लोगों में ज़ाहिर होते थे, और वो सब एक दिल होकर सुलैमान के बरामदेह में जमा हुआ करते थे।
وَأَمَّا ٱلْآخَرُونَ فَلَمْ يَكُنْ أَحَدٌ مِنْهُمْ يَجْسُرُ أَنْ يَلْتَصِقَ بِهِمْ، لَكِنْ كَانَ ٱلشَّعْبُ يُعَظِّمُهُمْ. | ١٣ 13 |
लेकिन बे ईमानों में से किसी को हिम्मत न हुई, कि उन में जा मिले, मगर लोग उनकी बड़ाई करते थे।
وَكَانَ مُؤْمِنُونَ يَنْضَمُّونَ لِلرَّبِّ أَكْثَرَ، جَمَاهِيرُ مِنْ رِجَالٍ وَنِسَاءٍ، | ١٤ 14 |
और ईमान लाने वाले मर्द — ओ — औरत ख़ुदावन्द की कलीसिया में और भी कसरत से आ मिले।
حَتَّى إِنَّهُمْ كَانُوا يَحْمِلُونَ ٱلْمَرْضَى خَارِجًا فِي ٱلشَّوَارِعِ وَيَضَعُونَهُمْ عَلَى فُرُشٍ وَأَسِرَّةٍ، حَتَّى إِذَا جَاءَ بُطْرُسُ يُخَيِّمُ وَلَوْ ظِلُّهُ عَلَى أَحَدٍ مِنْهُمْ. | ١٥ 15 |
यहाँ तक कि लोग बीमारों को सड़कों पर ला लाकर चार पाइयों और ख़टोलो पर लिटा देते थे, ताकि जब पतरस आए तो उसका साया ही उन में से किसी पर पड़ जाए।
وَٱجْتَمَعَ جُمْهُورُ ٱلْمُدُنِ ٱلْمُحِيطَةِ إِلَى أُورُشَلِيمَ حَامِلِينَ مَرْضَى وَمُعَذَّبِينَ مِنْ أَرْوَاحٍ نَجِسَةٍ، وَكَانُوا يُبْرَأُونَ جَمِيعُهُمْ. | ١٦ 16 |
और येरूशलेम के चारों तरफ़ के कस्बों से भी लोग बीमारों और नापाक रूहों के सताए हुवों को लाकर कसरत से जमा होते थे, और वो सब अच्छे कर दिए जाते थे।
فَقَامَ رَئِيسُ ٱلْكَهَنَةِ وَجَمِيعُ ٱلَّذِينَ مَعَهُ، ٱلَّذِينَ هُمْ شِيعَةُ ٱلصَّدُّوقِيِّينَ، وَٱمْتَلَأُوا غَيْرَةً، | ١٧ 17 |
फिर सरदार काहिन और उसके सब साथी जो सदूक़ियों के फ़िरक़े के थे, हसद के मारे उठे।
فَأَلْقَوْا أَيْدِيَهُمْ عَلَى ٱلرُّسُلِ وَوَضَعُوهُمْ فِي حَبْسِ ٱلْعَامَّةِ. | ١٨ 18 |
और रसूलों को पकड़ कर हवालात में रख दिया।
وَلَكِنَّ مَلَاكَ ٱلرَّبِّ فِي ٱللَّيْلِ فَتَحَ أَبْوَابَ ٱلسِّجْنِ وَأَخْرَجَهُمْ وَقَالَ: | ١٩ 19 |
मगर ख़ुदावन्द के एक फ़रिश्ते ने रात को क़ैदख़ाने के दरवाज़े खोले और उन्हें बाहर लाकर कहा कि।
«ٱذْهَبُوا قِفُوا وَكَلِّمُوا ٱلشَّعْبَ فِي ٱلْهَيْكَلِ بِجَمِيعِ كَلَامِ هَذِهِ ٱلْحَيَاةِ». | ٢٠ 20 |
“जाओ, हैकल में खड़े होकर इस ज़िन्दगी की सब बातें लोगों को सुनाओ।”
فَلَمَّا سَمِعُوا دَخَلُوا ٱلْهَيْكَلَ نَحْوَ ٱلصُّبْحِ وَجَعَلُوا يُعَلِّمُونَ. ثُمَّ جَاءَ رَئِيسُ ٱلْكَهَنَةِ وَٱلَّذِينَ مَعَهُ، وَدَعَوْا ٱلْمَجْمَعَ وَكُلَّ مَشْيَخَةِ بَنِي إِسْرَائِيلَ، فَأَرْسَلُوا إِلَى ٱلْحَبْسِ لِيُؤْتَى بِهِمْ. | ٢١ 21 |
वो ये सुनकर सुबह होते ही हैकल में गए, और ता'लीम देने लगे; मगर सरदार काहिन और उसके साथियों ने आकर सद्रे — ऐ — अदालत वालों और बनी इस्राईल के सब बुज़ुर्गों को जमा किया, और क़ैद खाने में कहला भेजा उन्हें लाएँ।
وَلَكِنَّ ٱلْخُدَّامَ لَمَّا جَاءُوا لَمْ يَجِدُوهُمْ فِي ٱلسِّجْنِ، فَرَجَعُوا وَأَخْبَرُوا | ٢٢ 22 |
लेकिन सिपाहियों ने पहुँच कर उन्हें क़ैद खाने में न पाया, और लौट कर ख़बर दी
قَائِلِينَ: «إِنَّنَا وَجَدْنَا ٱلْحَبْسَ مُغْلَقًا بِكُلِّ حِرْصٍ، وَٱلْحُرَّاسَ وَاقِفِينَ خَارِجًا أَمَامَ ٱلْأَبْوَابِ، وَلَكِنْ لَمَّا فَتَحْنَا لَمْ نَجِدْ فِي ٱلدَّاخِلِ أَحَدًا». | ٢٣ 23 |
“हम ने क़ैद खाने को तो बड़ी हिफ़ाज़त से बन्द किया हुआ, और पहरेदारों को दरवाज़ों पर खड़े पाया; मगर जब खोला तो अन्दर कोई न मिला!”
فَلَمَّا سَمِعَ ٱلْكَاهِنُ وَقَائِدُ جُنْدِ ٱلْهَيْكَلِ وَرُؤَسَاءُ ٱلْكَهَنَةِ هَذِهِ ٱلْأَقْوَالَ، ٱرْتَابُوا مِنْ جِهَتِهِمْ: مَا عَسَى أَنْ يَصِيرَ هَذَا؟ | ٢٤ 24 |
जब हैकल के सरदार और सरदार काहिनों ने ये बातें सुनी तो उनके बारे में हैरान हुए, कि इसका क्या अंजाम होगा?
ثُمَّ جَاءَ وَاحِدٌ وَأَخْبَرَهُمْ قَائِلًا: «هُوَذَا ٱلرِّجَالُ ٱلَّذِينَ وَضَعْتُمُوهُمْ فِي ٱلسِّجْنِ هُمْ فِي ٱلْهَيْكَلِ وَاقِفِينَ يُعَلِّمُونَ ٱلشَّعْبَ!». | ٢٥ 25 |
इतने में किसी ने आकर उन्हें ख़बर दी कि देखो, वो आदमी जिन्हें तुम ने क़ैद किया था; हैकल में खड़े लोगों को ता'लीम दे रहे हैं।
حِينَئِذٍ مَضَى قَائِدُ ٱلْجُنْدِ مَعَ ٱلْخُدَّامِ، فَأَحْضَرَهُمْ لَا بِعُنْفٍ، لِأَنَّهُمْ كَانُوا يَخَافُونَ ٱلشَّعْبَ لِئَلَّا يُرْجَمُوا. | ٢٦ 26 |
तब सरदार सिपाहियों के साथ जाकर उन्हें ले आया; लेकिन ज़बरदस्ती नहीं, क्यूँकि लोगों से डरते थे, कि हम पर पथराव न करें।
فَلَمَّا أَحْضَرُوهُمْ أَوْقَفُوهُمْ فِي ٱلْمَجْمَعِ. فَسَأَلَهُمْ رَئِيسُ ٱلْكَهَنَةِ | ٢٧ 27 |
फिर उन्हें लाकर 'अदालत में खड़ा कर दिया, और सरदार काहिन ने उन से ये कहा।
قَائِلًا: «أَمَا أَوْصَيْنَاكُمْ وَصِيَّةً أَنْ لَا تُعَلِّمُوا بِهَذَا ٱلِٱسْمِ؟ وَهَا أَنْتُمْ قَدْ مَلَأْتُمْ أُورُشَلِيمَ بِتَعْلِيمِكُمْ، وَتُرِيدُونَ أَنْ تَجْلِبُوا عَلَيْنَا دَمَ هَذَا ٱلْإِنْسَانِ». | ٢٨ 28 |
“हम ने तो तुम्हें सख़्त ताकीद की थी, कि ये नाम लेकर ता'लीम न देना; मगर देखो तुम ने तमाम येरूशलेम में अपनी ता'लीम फैला दी, और उस शख़्स का ख़ून हमारी गर्दन पर रखना चहते हो।”
فَأَجَابَ بُطْرُسُ وَٱلرُّسُلُ وَقَالُوا: «يَنْبَغِي أَنْ يُطَاعَ ٱللهُ أَكْثَرَ مِنَ ٱلنَّاسِ. | ٢٩ 29 |
पतरस और रसूलों ने जवाब में कहा, कि; “हमें आदमियों के हुक्म की निस्बत ख़ुदा का हुक्म मानना ज़्यादा फ़र्ज़ है।
إِلَهُ آبَائِنَا أَقَامَ يَسُوعَ ٱلَّذِي أَنْتُمْ قَتَلْتُمُوهُ مُعَلِّقِينَ إِيَّاهُ عَلَى خَشَبَةٍ. | ٣٠ 30 |
हमारे बाप दादा के ख़ुदा ने ईसा को जिलाया, जिसे तुमने सलीब पर लटका कर मार डाला था।
هَذَا رَفَّعَهُ ٱللهُ بِيَمِينِهِ رَئِيسًا وَمُخَلِّصًا، لِيُعْطِيَ إِسْرَائِيلَ ٱلتَّوْبَةَ وَغُفْرَانَ ٱلْخَطَايَا. | ٣١ 31 |
उसी को ख़ुदा ने मालिक और मुन्जी ठहराकर अपने दहने हाथ से सर बलन्द किया, ताकि इस्राईल को तौबा की तौफ़ीक़ और गुनाहों की मु'आफ़ी बख़्शे।
وَنَحْنُ شُهُودٌ لَهُ بِهَذِهِ ٱلْأُمُورِ، وَٱلرُّوحُ ٱلْقُدُسُ أَيْضًا، ٱلَّذِي أَعْطَاهُ ٱللهُ لِلَّذِينَ يُطِيعُونَهُ». | ٣٢ 32 |
और हम इन बातों के गवाह हैं; रूह — उल — क़ुद्दुस भी जिसे ख़ुदा ने उन्हें बख़्शा है जो उसका हुक्म मानते हैं।”
فَلَمَّا سَمِعُوا حَنِقُوا، وَجَعَلُوا يَتَشَاوَرُونَ أَنْ يَقْتُلُوهُمْ. | ٣٣ 33 |
वो ये सुनकर जल गए, और उन्हें क़त्ल करना चाहा।
فَقَامَ فِي ٱلْمَجْمَعِ رَجُلٌ فَرِّيسِيٌّ ٱسْمُهُ غَمَالَائِيلُ، مُعَلِّمٌ لِلنَّامُوسِ، مُكَرَّمٌ عِنْدَ جَمِيعِ ٱلشَّعْبِ، وَأَمَرَ أَنْ يُخْرَجَ ٱلرُّسُلُ قَلِيلًا. | ٣٤ 34 |
मगर गमलीएल नाम एक फ़रीसी ने जो शरा' का मु'अल्लिम और सब लोगों में इज़्ज़तदार था; अदालत में खड़े होकर हुक्म दिया कि इन आदमियों को थोड़ी देर के लिए बाहर कर दो।
ثُمَّ قَالَ لَهُمْ: «أَيُّهَا ٱلرِّجَالُ ٱلْإِسْرَائِيلِيُّونَ، ٱحْتَرِزُوا لِأَنْفُسِكُمْ مِنْ جِهَةِ هَؤُلَاءِ ٱلنَّاسِ فِي مَا أَنْتُمْ مُزْمِعُونَ أَنْ تَفْعَلُوا. | ٣٥ 35 |
फिर उस ने कहा, ऐ इस्राईलियो; इन आदमियों के साथ जो कुछ करना चाहते हो होशियारी से करना।
لِأَنَّهُ قَبْلَ هَذِهِ ٱلْأَيَّامِ قَامَ ثُودَاسُ قَائِلًا عَنْ نَفْسِهِ: إِنَّهُ شَيْءٌ، ٱلَّذِي ٱلْتَصَقَ بِهِ عَدَدٌ مِنَ ٱلرِّجَالِ نَحْوُ أَرْبَعِمِئَةٍ، ٱلَّذِي قُتِلَ، وَجَمِيعُ ٱلَّذِينَ ٱنْقَادُوا إِلَيْهِ تَبَدَّدُوا وَصَارُوا لَا شَيْءَ. | ٣٦ 36 |
क्यूँकि इन दिनों से पहले थियूदास ने उठ कर दा'वा किया था, कि मैं भी कुछ हूँ; और तक़रीबन चार सौ आदमी उसके साथ हो गए थे, मगर वो मारा गया और जितने उसके मानने वाले थे, सब इधर उधर हुए; और मिट गए।
بَعْدَ هَذَا قَامَ يَهُوذَا ٱلْجَلِيلِيُّ فِي أَيَّامِ ٱلِٱكْتِتَابِ، وَأَزَاغَ وَرَاءَهُ شَعْبًا غَفِيرًا. فَذَاكَ أَيْضًا هَلَكَ، وَجَمِيعُ ٱلَّذِينَ ٱنْقَادُوا إِلَيْهِ تَشَتَّتُوا. | ٣٧ 37 |
इस शख़्स के बाद यहूदाह गलीली नाम लिखवाने के दिनों में उठा; और उस ने कुछ लोग अपनी तरफ़ कर लिए; वो भी हलाक हुआ और जितने उसके मानने वाले थे सब इधर उधर हो गए।
وَٱلْآنَ أَقُولُ لَكُمْ: تَنَحَّوْا عَنْ هَؤُلَاءِ ٱلنَّاسِ وَٱتْرُكُوهُمْ! لِأَنَّهُ إِنْ كَانَ هَذَا ٱلرَّأْيُ أَوْ هَذَا ٱلْعَمَلُ مِنَ ٱلنَّاسِ فَسَوْفَ يَنْتَقِضُ، | ٣٨ 38 |
पस अब में तुम से कहता हूँ कि इन आदमियों से किनारा करो और उन से कुछ काम न रख्खो, कहीं ऐसा न हो कि ख़ुदा से भी लड़ने वाले ठहरो क्यूँकि ये तदबीर या काम अगर आदमियों की तरफ़ से है तो आप बरबाद हो जाएगा।
وَإِنْ كَانَ مِنَ ٱللهِ فَلَا تَقْدِرُونَ أَنْ تَنْقُضُوهُ، لِئَلَّا تُوجَدُوا مُحَارِبِينَ لِلهِ أَيْضًا». | ٣٩ 39 |
लेकिन अगर ख़ुदा की तरफ़ से है तो तुम इन लोगों को मग़लूब न कर सकोगे।
فَٱنْقَادُوا إِلَيْهِ. وَدَعَوْا ٱلرُّسُلَ وَجَلَدُوهُمْ، وَأَوْصَوْهُمْ أَنْ لَا يَتَكَلَّمُوا بِٱسْمِ يَسُوعَ، ثُمَّ أَطْلَقُوهُمْ. | ٤٠ 40 |
उन्होंने उसकी बात मानी और रसूलों को पास बुला उनको पिटवाया और ये हुक्म देकर छोड़ दिया कि ईसा का नाम लेकर बात न करना
وَأَمَّا هُمْ فَذَهَبُوا فَرِحِينَ مِنْ أَمَامِ ٱلْمَجْمَعِ، لِأَنَّهُمْ حُسِبُوا مُسْتَأْهِلِينَ أَنْ يُهَانُوا مِنْ أَجْلِ ٱسْمِهِ. | ٤١ 41 |
पस वो अदालत से इस बात पर ख़ुश होकर चले गए; कि हम उस नाम की ख़ातिर बेइज़्ज़त होने के लायक़ तो ठहरे।
وَكَانُوا لَا يَزَالُونَ كُلَّ يَوْمٍ فِي ٱلْهَيْكَلِ وَفِي ٱلْبُيُوتِ مُعَلِّمِينَ وَمُبَشِّرِينَ بِيَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ. | ٤٢ 42 |
और वो हैकल में और घरों में हर रोज़ ता'लीम देने और इस बात की ख़ुशख़बरी सुनाने से कि ईसा ही मसीह है बाज़ न आए।