< أعمال 26 >

فَقَالَ أَغْرِيبَاسُ لِبُولُسَ: «مَأْذُونٌ لَكَ أَنْ تَتَكَلَّمَ لِأَجْلِ نَفْسِكَ». حِينَئِذٍ بَسَطَ بُولُسُ يَدَهُ وَجَعَلَ يَحْتَجُّ: ١ 1
अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “तुझे अपने विषय में बोलने की अनुमति है।” तब पौलुस हाथ बढ़ाकर उत्तर देने लगा,
«إِنِّي أَحْسِبُ نَفْسِي سَعِيدًا أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ أَغْرِيبَاسُ، إِذْ أَنَا مُزْمِعٌ أَنْ أَحْتَجَّ ٱلْيَوْمَ لَدَيْكَ عَنْ كُلِّ مَا يُحَاكِمُنِي بِهِ ٱلْيَهُودُ. ٢ 2
“हे राजा अग्रिप्पा, जितनी बातों का यहूदी मुझ पर दोष लगाते हैं, आज तेरे सामने उनका उत्तर देने में मैं अपने को धन्य समझता हूँ,
لَا سِيَّمَا وَأَنْتَ عَالِمٌ بِجَمِيعِ ٱلْعَوَائِدِ وَٱلْمَسَائِلِ ٱلَّتِي بَيْنَ ٱلْيَهُودِ. لِذَلِكَ أَلْتَمِسُ مِنْكَ أَنْ تَسْمَعَنِي بِطُولِ ٱلْأَنَاةِ. ٣ 3
विशेष करके इसलिए कि तू यहूदियों के सब प्रथाओं और विवादों को जानता है। अतः मैं विनती करता हूँ, धीरज से मेरी सुन ले।
فَسِيرَتِي مُنْذُ حَدَاثَتِي ٱلَّتِي مِنَ ٱلْبُدَاءَةِ كَانَتْ بَيْنَ أُمَّتِي فِي أُورُشَلِيمَ يَعْرِفُهَا جَمِيعُ ٱلْيَهُودِ، ٤ 4
“जैसा मेरा चाल-चलन आरम्भ से अपनी जाति के बीच और यरूशलेम में जैसा था, यह सब यहूदी जानते हैं।
عَالِمِينَ بِي مِنَ ٱلْأَوَّلِ، إِنْ أَرَادُوا أَنْ يَشْهَدُوا، أَنِّي حَسَبَ مَذْهَبِ عِبَادَتِنَا ٱلْأَضْيَقِ عِشْتُ فَرِّيسِيًّا. ٥ 5
वे यदि गवाही देना चाहते हैं, तो आरम्भ से मुझे पहचानते हैं, कि मैं फरीसी होकर अपने धर्म के सबसे खरे पंथ के अनुसार चला।
وَٱلْآنَ أَنَا وَاقِفٌ أُحَاكَمُ عَلَى رَجَاءِ ٱلْوَعْدِ ٱلَّذِي صَارَ مِنَ ٱللهِ لِآبَائِنَا، ٦ 6
और अब उस प्रतिज्ञा की आशा के कारण जो परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से की थी, मुझ पर मुकद्दमा चल रहा है।
ٱلَّذِي أَسْبَاطُنَا ٱلِٱثْنَا عَشَرَ يَرْجُونَ نَوَالَهُ، عَابِدِينَ بِٱلْجَهْدِ لَيْلًا وَنَهَارًا. فَمِنْ أَجْلِ هَذَا ٱلرَّجَاءِ أَنَا أُحَاكَمُ مِنَ ٱلْيَهُودِ أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ أَغْرِيبَاسُ. ٧ 7
उसी प्रतिज्ञा के पूरे होने की आशा लगाए हुए, हमारे बारहों गोत्र अपने सारे मन से रात-दिन परमेश्वर की सेवा करते आए हैं। हे राजा, इसी आशा के विषय में यहूदी मुझ पर दोष लगाते हैं।
لِمَاذَا يُعَدُّ عِنْدَكُمْ أَمْرًا لَا يُصَدَّقُ إِنْ أَقَامَ ٱللهُ أَمْوَاتًا؟ ٨ 8
जबकि परमेश्वर मरे हुओं को जिलाता है, तो तुम्हारे यहाँ यह बात क्यों विश्वास के योग्य नहीं समझी जाती?
فَأَنَا ٱرْتَأَيْتُ فِي نَفْسِي أَنَّهُ يَنْبَغِي أَنْ أَصْنَعَ أُمُورًا كَثِيرَةً مُضَادَّةً لِٱسْمِ يَسُوعَ ٱلنَّاصِرِيِّ. ٩ 9
“मैंने भी समझा था कि यीशु नासरी के नाम के विरोध में मुझे बहुत कुछ करना चाहिए।
وَفَعَلْتُ ذَلِكَ أَيْضًا فِي أُورُشَلِيمَ، فَحَبَسْتُ فِي سُجُونٍ كَثِيرِينَ مِنَ ٱلْقِدِّيسِينَ، آخِذًا ٱلسُّلْطَانَ مِنْ قِبَلِ رُؤَسَاءِ ٱلْكَهَنَةِ. وَلَمَّا كَانُوا يُقْتَلُونَ أَلْقَيْتُ قُرْعَةً بِذَلِكَ. ١٠ 10
१०और मैंने यरूशलेम में ऐसा ही किया; और प्रधान याजकों से अधिकार पाकर बहुत से पवित्र लोगों को बन्दीगृह में डाला, और जब वे मार डाले जाते थे, तो मैं भी उनके विरोध में अपनी सम्मति देता था।
وَفِي كُلِّ ٱلْمَجَامِعِ كُنْتُ أُعَاقِبُهُمْ مِرَارًا كَثِيرَةً، وَأَضْطَرُّهُمْ إِلَى ٱلتَّجْدِيفِ. وَإِذْ أَفْرَطَ حَنَقِي عَلَيْهِمْ كُنْتُ أَطْرُدُهُمْ إِلَى ٱلْمُدُنِ ٱلَّتِي فِي ٱلْخَارِجِ. ١١ 11
११और हर आराधनालय में मैं उन्हें ताड़ना दिला-दिलाकर यीशु की निन्दा करवाता था, यहाँ तक कि क्रोध के मारे ऐसा पागल हो गया कि बाहर के नगरों में भी जाकर उन्हें सताता था।
«وَلَمَّا كُنْتُ ذَاهِبًا فِي ذَلِكَ إِلَى دِمَشْقَ، بِسُلْطَانٍ وَوَصِيَّةٍ مِنْ رُؤَسَاءِ ٱلْكَهَنَةِ، ١٢ 12
१२“इसी धुन में जब मैं प्रधान याजकों से अधिकार और आज्ञापत्र लेकर दमिश्क को जा रहा था;
رَأَيْتُ فِي نِصْفِ ٱلنَّهَارِ فِي ٱلطَّرِيقِ، أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ، نُورًا مِنَ ٱلسَّمَاءِ أَفْضَلَ مِنْ لَمَعَانِ ٱلشَّمْسِ، قَدْ أَبْرَقَ حَوْلِي وَحَوْلَ ٱلذَّاهِبِينَ مَعِي. ١٣ 13
१३तो हे राजा, मार्ग में दोपहर के समय मैंने आकाश से सूर्य के तेज से भी बढ़कर एक ज्योति, अपने और अपने साथ चलनेवालों के चारों ओर चमकती हुई देखी।
فَلَمَّا سَقَطْنَا جَمِيعُنَا عَلَى ٱلْأَرْضِ، سَمِعْتُ صَوْتًا يُكَلِّمُنِي وَيَقُولُ بِٱللُّغَةِ ٱلْعِبْرَانِيَّةِ: شَاوُلُ، شَاوُلُ! لِمَاذَا تَضْطَهِدُنِي؟ صَعْبٌ عَلَيْكَ أَنْ تَرْفُسَ مَنَاخِسَ. ١٤ 14
१४और जब हम सब भूमि पर गिर पड़े, तो मैंने इब्रानी भाषा में, मुझसे कहते हुए यह वाणी सुनी, ‘हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? पैने पर लात मारना तेरे लिये कठिन है।’
فَقُلْتُ أَنَا: مَنْ أَنْتَ يَا سَيِّدُ؟ فَقَالَ: أَنَا يَسُوعُ ٱلَّذِي أَنْتَ تَضْطَهِدُهُ. ١٥ 15
१५मैंने कहा, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ प्रभु ने कहा, ‘मैं यीशु हूँ, जिसे तू सताता है।
وَلَكِنْ قُمْ وَقِفْ عَلَى رِجْلَيْكَ لِأَنِّي لِهَذَا ظَهَرْتُ لَكَ، لِأَنْتَخِبَكَ خَادِمًا وَشَاهِدًا بِمَا رَأَيْتَ وَبِمَا سَأَظْهَرُ لَكَ بِهِ، ١٦ 16
१६परन्तु तू उठ, अपने पाँवों पर खड़ा हो; क्योंकि मैंने तुझे इसलिए दर्शन दिया है कि तुझे उन बातों का भी सेवक और गवाह ठहराऊँ, जो तूने देखी हैं, और उनका भी जिनके लिये मैं तुझे दर्शन दूँगा।
مُنْقِذًا إِيَّاكَ مِنَ ٱلشَّعْبِ وَمِنَ ٱلْأُمَمِ ٱلَّذِينَ أَنَا ٱلْآنَ أُرْسِلُكَ إِلَيْهِمْ، ١٧ 17
१७और मैं तुझे तेरे लोगों से और अन्यजातियों से बचाता रहूँगा, जिनके पास मैं अब तुझे इसलिए भेजता हूँ।
لِتَفْتَحَ عُيُونَهُمْ كَيْ يَرْجِعُوا مِنْ ظُلُمَاتٍ إِلَى نُورٍ، وَمِنْ سُلْطَانِ ٱلشَّيْطَانِ إِلَى ٱللهِ، حَتَّى يَنَالُوا بِٱلْإِيمَانِ بِي غُفْرَانَ ٱلْخَطَايَا وَنَصِيبًا مَعَ ٱلْمُقَدَّسِينَ. ١٨ 18
१८कि तू उनकी आँखें खोले, किवे अंधकार से ज्योति की ओर, और शैतान के अधिकार से परमेश्वर की ओर फिरें; कि पापों की क्षमा, और उन लोगों के साथ जो मुझ पर विश्वास करने से पवित्र किए गए हैं, विरासत पाएँ।’
«مِنْ ثَمَّ أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ أَغْرِيبَاسُ لَمْ أَكُنْ مُعَانِدًا لِلرُّؤْيَا ٱلسَّمَاوِيَّةِ، ١٩ 19
१९अतः हे राजा अग्रिप्पा, मैंने उस स्वर्गीय दर्शन की बात न टाली,
بَلْ أَخْبَرْتُ أَوَّلًا ٱلَّذِينَ فِي دِمَشْقَ، وَفِي أُورُشَلِيمَ حَتَّى جَمِيعِ كُورَةِ ٱلْيَهُودِيَّةِ، ثُمَّ ٱلْأُمَمَ، أَنْ يَتُوبُوا وَيَرْجِعُوا إِلَى ٱللهِ عَامِلِينَ أَعْمَالًا تَلِيقُ بِٱلتَّوْبَةِ. ٢٠ 20
२०परन्तु पहले दमिश्क के, फिर यरूशलेम के रहनेवालों को, तब यहूदिया के सारे देश में और अन्यजातियों को समझाता रहा, कि मन फिराओ और परमेश्वर की ओर फिरकर मन फिराव के योग्य काम करो।
مِنْ أَجْلِ ذَلِكَ أَمْسَكَنِي ٱلْيَهُودُ فِي ٱلْهَيْكَلِ وَشَرَعُوا فِي قَتْلِي. ٢١ 21
२१इन बातों के कारण यहूदी मुझे मन्दिर में पकड़कर मार डालने का यत्न करते थे।
فَإِذْ حَصَلْتُ عَلَى مَعُونَةٍ مِنَ ٱللهِ، بَقِيتُ إِلَى هَذَا ٱلْيَوْمِ، شَاهِدًا لِلصَّغِيرِ وَٱلْكَبِيرِ. وَأَنَا لَا أَقُولُ شَيْئًا غَيْرَ مَا تَكَلَّمَ ٱلْأَنْبِيَاءُ وَمُوسَى أَنَّهُ عَتِيدٌ أَنْ يَكُونَ: ٢٢ 22
२२परन्तु परमेश्वर की सहायता से मैं आज तक बना हूँ और छोटे बड़े सभी के सामने गवाही देता हूँ, और उन बातों को छोड़ कुछ नहीं कहता, जो भविष्यद्वक्ताओं और मूसा ने भी कहा कि होनेवाली हैं,
إِنْ يُؤَلَّمِ ٱلْمَسِيحُ، يَكُنْ هُوَ أَوَّلَ قِيَامَةِ ٱلْأَمْوَاتِ، مُزْمِعًا أَنْ يُنَادِيَ بِنُورٍ لِلشَّعْبِ وَلِلْأُمَمِ». ٢٣ 23
२३कि मसीह को दुःख उठाना होगा, और वही सबसे पहले मरे हुओं में से जी उठकर, हमारे लोगों में और अन्यजातियों में ज्योति का प्रचार करेगा।”
وَبَيْنَمَا هُوَ يَحْتَجُّ بِهَذَا، قَالَ فَسْتُوسُ بِصَوْتٍ عَظِيمٍ: «أَنْتَ تَهْذِي يَا بُولُسُ! ٱلْكُتُبُ ٱلْكَثِيرَةُ تُحَوِّلُكَ إِلَى ٱلْهَذَيَانِ!». ٢٤ 24
२४जब वह इस रीति से उत्तर दे रहा था, तो फेस्तुस ने ऊँचे शब्द से कहा, “हे पौलुस, तू पागल है। बहुत विद्या ने तुझे पागल कर दिया है।”
فَقَالَ: «لَسْتُ أَهْذِي أَيُّهَا ٱلْعَزِيزُ فَسْتُوسُ، بَلْ أَنْطِقُ بِكَلِمَاتِ ٱلصِّدْقِ وَٱلصَّحْوِ. ٢٥ 25
२५परन्तु उसने कहा, “हे महाप्रतापी फेस्तुस, मैं पागल नहीं, परन्तु सच्चाई और बुद्धि की बातें कहता हूँ।
لِأَنَّهُ مِنْ جِهَةِ هَذِهِ ٱلْأُمُورِ، عَالِمٌ ٱلْمَلِكُ ٱلَّذِي أُكَلِّمُهُ جِهَارًا، إِذْ أَنَا لَسْتُ أُصَدِّقُ أَنْ يَخْفَى عَلَيْهِ شَيْءٌ مِنْ ذَلِكَ، لِأَنَّ هَذَا لَمْ يُفْعَلْ فِي زَاوِيَةٍ. ٢٦ 26
२६राजा भी जिसके सामने मैं निडर होकर बोल रहा हूँ, ये बातें जानता है, और मुझे विश्वास है, कि इन बातों में से कोई उससे छिपी नहीं, क्योंकि वह घटना तो कोने में नहीं हुई।
أَتُؤْمِنُ أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ أَغْرِيبَاسُ بِٱلْأَنْبِيَاءِ؟ أَنَا أَعْلَمُ أَنَّكَ تُؤْمِنُ». ٢٧ 27
२७हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यद्वक्ताओं का विश्वास करता है? हाँ, मैं जानता हूँ, कि तू विश्वास करता है।”
فَقَالَ أَغْرِيبَاسُ لِبُولُسَ: «بِقَلِيلٍ تُقْنِعُنِي أَنْ أَصِيرَ مَسِيحِيًّا!». ٢٨ 28
२८अब अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “क्या तू थोड़े ही समझाने से मुझे मसीही बनाना चाहता है?”
فَقَالَ بُولُسُ: «كُنْتُ أُصَلِّي إِلَى ٱللهِ أَنَّهُ بِقَلِيلٍ وَبِكَثِيرٍ، لَيْسَ أَنْتَ فَقَطْ، بَلْ أَيْضًا جَمِيعُ ٱلَّذِينَ يَسْمَعُونَنِي ٱلْيَوْمَ، يَصِيرُونَ هَكَذَا كَمَا أَنَا، مَا خَلَا هَذِهِ ٱلْقُيُودَ». ٢٩ 29
२९पौलुस ने कहा, “परमेश्वर से मेरी प्रार्थना यह है कि क्या थोड़े में, क्या बहुत में, केवल तू ही नहीं, परन्तु जितने लोग आज मेरी सुनते हैं, मेरे इन बन्धनों को छोड़ वे मेरे समान हो जाएँ।”
فَلَمَّا قَالَ هَذَا قَامَ ٱلْمَلِكُ وَٱلْوَالِي وَبَرْنِيكِي وَٱلْجَالِسُونَ مَعَهُمْ، ٣٠ 30
३०तब राजा और राज्यपाल और बिरनीके और उनके साथ बैठनेवाले उठ खड़े हुए;
وَٱنْصَرَفُوا وَهُمْ يُكَلِّمُونَ بَعْضُهُمْ بَعْضًا قَائِلِينَ: «إِنَّ هَذَا ٱلْإِنْسَانَ لَيْسَ يَفْعَلُ شَيْئًا يَسْتَحِقُّ ٱلْمَوْتَ أَوِ ٱلْقُيُودَ». ٣١ 31
३१और अलग जाकर आपस में कहने लगे, “यह मनुष्य ऐसा तो कुछ नहीं करता, जो मृत्यु-दण्ड या बन्दीगृह में डाले जाने के योग्य हो।
وَقَالَ أَغْرِيبَاسُ لِفَسْتُوسَ: «كَانَ يُمْكِنُ أَنْ يُطْلَقَ هَذَا ٱلْإِنْسَانُ لَوْ لَمْ يَكُنْ قَدْ رَفَعَ دَعْوَاهُ إِلَى قَيْصَرَ». ٣٢ 32
३२अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “यदि यह मनुष्य कैसर की दुहाई न देता, तो छूट सकता था।”

< أعمال 26 >