< أعمال 14 >
وَحَدَثَ فِي إِيقُونِيَةَ أَنَّهُمَا دَخَلَا مَعًا إِلَى مَجْمَعِ ٱلْيَهُودِ وَتَكَلَّمَا، حَتَّى آمَنَ جُمْهُورٌ كَثِيرٌ مِنَ ٱلْيَهُودِ وَٱلْيُونَانِيِّينَ. | ١ 1 |
और इकुनियुम में ऐसा हुआ कि वो साथ साथ यहूदियों के इबादत खाने में गए। और ऐसी तक़रीर की कि यहूदियों और यूनानियों दोनों की एक बड़ी जमा'अत ईमान ले आई।
وَلَكِنَّ ٱلْيَهُودَ غَيْرَ ٱلْمُؤْمِنِينَ غَرُّوا وَأَفْسَدُوا نُفُوسَ ٱلْأُمَمِ عَلَى ٱلْإِخْوَةِ. | ٢ 2 |
मगर नाफ़रमान यहूदियों ने ग़ैर क़ौमों के दिलों में जोश पैदा करके उनको भाइयों की तरफ़ बदगुमान कर दिया।
فَأَقَامَا زَمَانًا طَوِيلًا يُجَاهِرَانِ بِٱلرَّبِّ ٱلَّذِي كَانَ يَشْهَدُ لِكَلِمَةِ نِعْمَتِهِ، وَيُعْطِي أَنْ تُجْرَى آيَاتٌ وَعَجَائِبُ عَلَى أَيْدِيهِمَا. | ٣ 3 |
पस, वो बहुत ज़माने तक वहाँ रहे, और ख़ुदावन्द के भरोसे पर हिम्मत से कलाम करते थे, और वो उनके हाथों से निशान और अजीब काम कराकर, अपने फ़ज़ल के कलाम की गवाही देता था।
فَٱنْشَقَّ جُمْهُورُ ٱلْمَدِينَةِ، فَكَانَ بَعْضُهُمْ مَعَ ٱلْيَهُودِ، وَبَعْضُهُمْ مَعَ ٱلرَّسُولَيْنِ. | ٤ 4 |
लेकिन शहर के लोगों में फ़ूट पड़ गई। कुछ यहूदियों की तरफ़ हो गए। कुछ रसूलों की तरफ़।
فَلَمَّا حَصَلَ مِنَ ٱلْأُمَمِ وَٱلْيَهُودِ مَعَ رُؤَسَائِهِمْ هُجُومٌ لِيَبْغُوا عَلَيْهِمَا وَيَرْجُمُوهُمَا، | ٥ 5 |
मगर जब ग़ैर क़ौम वाले और यहूदी उन्हें बे'इज़्ज़त और पथराव करने को अपने सरदारों समेत उन पर चढ़ आए।
شَعَرَا بِهِ، فَهَرَبَا إِلَى مَدِينَتَيْ لِيكَأُونِيَّةَ: لِسْتِرَةَ وَدَرْبَةَ، وَإِلَى ٱلْكُورَةِ ٱلْمُحِيطَةِ. | ٦ 6 |
तो वो इस से वाक़िफ़ होकर लुकाउनिया मुल्क के शहरों लुस्तरा और दिरबे और उनके आस — पास में भाग गए।
وَكَانَا هُنَاكَ يُبَشِّرَانِ. | ٧ 7 |
और वहाँ ख़ुशख़बरी सुनाते रहे।
وَكَانَ يَجْلِسُ فِي لِسْتْرَةَ رَجُلٌ عَاجِزُ ٱلرِّجْلَيْنِ مُقْعَدٌ مِنْ بَطْنِ أُمِّهِ، وَلَمْ يَمْشِ قَطُّ. | ٨ 8 |
और लुस्तरा में एक शख़्स बैठा था, जो पाँव से लाचार था। वो पैदाइशी लंगड़ा था, और कभी न चला था।
هَذَا كَانَ يَسْمَعُ بُولُسَ يَتَكَلَّمُ، فَشَخَصَ إِلَيْهِ، وَإِذْ رَأَى أَنَّ لَهُ إِيمَانًا لِيُشْفَى، | ٩ 9 |
वो पौलुस को बातें करते सुन रहा था। और जब इस ने उसकी तरफ़ ग़ौर करके देखा कि उस में शिफ़ा पाने के लायक़ ईमान है।
قَالَ بِصَوْتٍ عَظِيمٍ: «قُمْ عَلَى رِجْلَيْكَ مُنْتَصِبًا!». فَوَثَبَ وَصَارَ يَمْشِي. | ١٠ 10 |
तो बड़ी आवाज़ से कहा कि, “अपने पाँव के बल सीधा खड़ा हो पस, वो उछल कर चलने फिरने लगा।”
فَٱلْجُمُوعُ لَمَّا رَأَوْا مَا فَعَلَ بُولُسُ، رَفَعُوا صَوْتَهُمْ بِلُغَةِ لِيكَأُونِيَّةَ قَائِلِينَ: «إِنَّ ٱلْآلِهَةَ تَشَبَّهُوا بِٱلنَّاسِ وَنَزَلُوا إِلَيْنَا». | ١١ 11 |
लोगों ने पौलुस का ये काम देखकर लुकाउनिया की बोली में बुलन्द आवाज़ से कहा “कि आदमियों की सूरत में देवता उतर कर हमारे पास आए हैं
فَكَانُوا يَدْعُونَ بَرْنَابَا «زَفْسَ» وَبُولُسَ «هَرْمَسَ» إِذْ كَانَ هُوَ ٱلْمُتَقَدِّمَ فِي ٱلْكَلَامِ. | ١٢ 12 |
और उन्होंने बरनबास को ज़ियूस कहा, और पौलुस को हरमेस इसलिए कि ये कलाम करने में सबक़त रखता था।
فَأَتَى كَاهِنُ زَفْسَ، ٱلَّذِي كَانَ قُدَّامَ ٱلْمَدِينَةِ، بِثِيرَانٍ وَأَكَالِيلَ عِنْدَ ٱلْأَبْوَابِ مَعَ ٱلْجُمُوعِ، وَكَانَ يُرِيدُ أَنْ يَذْبَحَ. | ١٣ 13 |
और ज़ियूस कि उस मन्दिर का पुजारी जो उनके शहर के सामने था, बैल और फ़ूलों के हार फाटक पर लाकर लोगों के साथ क़ुर्बानी करना चहता था।”
فَلَمَّا سَمِعَ ٱلرَّسُولَانِ، بَرْنَابَا وَبُولُسُ، مَزَّقَا ثِيَابَهُمَا، وَٱنْدَفَعَا إِلَى ٱلْجَمْعِ صَارِخَيْنِ | ١٤ 14 |
जब बरनबास और पौलुस रसूलों ने ये सुना तो अपने कपड़े फाड़ कर लोगों में जा कूदे, और पुकार पुकार कर।
وَقَائِلِينِ: «أَيُّهَا ٱلرِّجَالُ، لِمَاذَا تَفْعَلُونَ هَذَا؟ نَحْنُ أَيْضًا بَشَرٌ تَحْتَ آلَامٍ مِثْلُكُمْ، نُبَشِّرُكُمْ أَنْ تَرْجِعُوا مِنْ هَذِهِ ٱلْأَبَاطِيلِ إِلَى ٱلْإِلَهِ ٱلْحَيِّ ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلسَّمَاءَ وَٱلْأَرْضَ وَٱلْبَحْرَ وَكُلَّ مَا فِيهَا، | ١٥ 15 |
कहने लगे, लोगो तुम ये क्या करते हो? हम भी तुम्हारी हम तबी'अत इंसान हैं और तुम्हें ख़ुशख़बरी सुनाते हैं ताकि इन बातिल चीज़ों से किनारा करके ज़िन्दा ख़ुदा की तरफ़ फिरो, जिस ने आसमान और ज़मीन और समुन्दर और जो कुछ उन में है, पैदा किया।
ٱلَّذِي فِي ٱلْأَجْيَالِ ٱلْمَاضِيَةِ تَرَكَ جَمِيعَ ٱلْأُمَمِ يَسْلُكُونَ فِي طُرُقِهِمْ | ١٦ 16 |
उस ने अगले ज़माने में सब क़ौमों को अपनी अपनी राह पर चलने दिया।
مَعَ أَنَّهُ لَمْ يَتْرُكْ نَفْسَهُ بِلَا شَاهِدٍ، وَهُوَ يَفْعَلُ خَيْرًا: يُعْطِينَا مِنَ ٱلسَّمَاءِ أَمْطَارًا وَأَزْمِنَةً مُثْمِرَةً، وَيَمْلَأُ قُلُوبَنَا طَعَامًا وَسُرُورًا». | ١٧ 17 |
तोभी उस ने अपने आप को बेगवाह न छोड़ा। चुनाँचे, उस ने महरबानियाँ कीं और आसमान से तुम्हारे लिए पानी बरसाया और बड़ी बड़ी पैदावार के मौसम अता' किए और तुम्हारे दिलों को ख़ुराक और ख़ुशी से भर दिया।
وَبِقَوْلِهِمَا هَذَا كَفَّا ٱلْجُمُوعَ بِٱلْجَهْدِ عَنْ أَنْ يَذْبَحُوا لَهُمَا. | ١٨ 18 |
ये बातें कहकर भी लोगों को मुश्किल से रोका कि उन के लिए क़ुर्बानी न करें।
ثُمَّ أَتَى يَهُودٌ مِنْ أَنْطَاكِيَةَ وَإِيقُونِيَةَ وَأَقْنَعُوا ٱلْجُمُوعَ، فَرَجَمُوا بُولُسَ وَجَرُّوهُ خَارِجَ ٱلْمَدِينَةِ، ظَانِّينَ أَنَّهُ قَدْ مَاتَ. | ١٩ 19 |
फिर कुछ यहूदी अन्ताकिया और इकुनियुम से आए और लोगों को अपनी तरफ़ करके पौलुस पर पथराव किया और उसको मुर्दा समझकर शहर के बाहर घसीट ले गए।
وَلَكِنْ إِذْ أَحَاطَ بِهِ ٱلتَّلَامِيذُ، قَامَ وَدَخَلَ ٱلْمَدِينَةَ، وَفِي ٱلْغَدِ خَرَجَ مَعَ بَرْنَابَا إِلَى دَرْبَةَ. | ٢٠ 20 |
मगर जब शागिर्द उसके आस पास आ खड़े हुए, तो वो उठ कर शहर में आया, और दूसरे दिन बरनबास के साथ दिरबे शहर को चला गया।
فَبَشَّرَا فِي تِلْكَ ٱلْمَدِينَةِ وَتَلْمَذَا كَثِيرِينَ. ثُمَّ رَجَعَا إِلَى لِسْتِرَةَ وَإِيقُونِيَةَ وَأَنْطَاكِيَةَ، | ٢١ 21 |
और वो उस शहर में ख़ुशख़बरी सुना कर और बहुत से शागिर्द करके लुस्तरा और इकुनियुम और अन्ताकिया को वापस आए।
يُشَدِّدَانِ أَنْفُسَ ٱلتَّلَامِيذِ وَيَعِظَانِهِمْ أَنْ يَثْبُتُوا فِي ٱلْإِيمَانِ، وَأَنَّهُ بِضِيقَاتٍ كَثِيرَةٍ يَنْبَغِي أَنْ نَدْخُلَ مَلَكُوتَ ٱللهِ. | ٢٢ 22 |
और शागिर्दों के दिलों को मज़बूत करते, और ये नसीहत देते थे, कि ईमान पर क़ाईम रहो और कहते थे “ज़रूर है कि हम बहुत मुसीबतें सहकर ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल हों।”
وَٱنْتَخَبَا لَهُمْ قُسُوسًا فِي كُلِّ كَنِيسَةٍ، ثُمَّ صَلَّيَا بِأَصْوَامٍ وَٱسْتَوْدَعَاهُمْ لِلرَّبِّ ٱلَّذِي كَانُوا قَدْ آمَنُوا بِهِ. | ٢٣ 23 |
और उन्होंने हर एक कलीसिया में उनके लिए बुज़ुर्गों को मुक़र्रर किया और रोज़ा रखकर और दुआ करके उन्हें दावन्द के सुपुर्द किया, जिस पर वो ईमान लाए थे।
وَلَمَّا ٱجْتَازَا فِي بِيسِيدِيَّةَ أَتَيَا إِلَى بَمْفِيلِيَّةَ. | ٢٤ 24 |
और पिसदिया मुल्क में से होते हुए पम्फ़ीलिया मुल्क में पहुँचे।
وَتَكَلَّمَا بِٱلْكَلِمَةِ فِي بَرْجَةَ، ثُمَّ نَزَلَا إِلَى أَتَّالِيَةَ. | ٢٥ 25 |
और पिरगे में कलाम सुनाकर अत्तलिया को गए।
وَمِنْ هُنَاكَ سَافَرَا فِي ٱلْبَحْرِ إِلَى أَنْطَاكِيَةَ، حَيْثُ كَانَا قَدْ أُسْلِمَا إِلَى نِعْمَةِ ٱللهِ لِلْعَمَلِ ٱلَّذِي أَكْمَلَاهُ. | ٢٦ 26 |
और वहाँ से जहाज़ पर उस अन्ताकिया में आए, जहाँ उस काम के लिए जो उन्होंने अब पूरा किया ख़ुदा के फ़ज़ल के सुपुर्द किए गए थे।
وَلَمَّا حَضَرَا وَجَمَعَا ٱلْكَنِيسَةَ، أَخْبَرَا بِكُلِّ مَا صَنَعَ ٱللهُ مَعَهُمَا، وَأَنَّهُ فَتَحَ لِلْأُمَمِ بَابَ ٱلْإِيمَانِ. | ٢٧ 27 |
वहाँ पहुँचकर उन्होंने कलीसिया को जमा किया और उन के सामने बयान किया कि ख़ुदा ने हमारे ज़रिए क्या कुछ किया और ये कि उस ने ग़ैर क़ौमों के लिए ईमान का दरवाज़ा खोल दिया।
وَأَقَامَا هُنَاكَ زَمَانًا لَيْسَ بِقَلِيلٍ مَعَ ٱلتَّلَامِيذِ. | ٢٨ 28 |
और वो ईमानदारों के पास मुद्दत तक रहे।