< اَلْمُلُوكِ ٱلثَّانِي 4 >
وَصَرَخَتْ إِلَى أَلِيشَعَ ٱمْرَأَةٌ مِنْ نِسَاءِ بَنِي ٱلْأَنْبِيَاءِ قَائِلَةً: «إِنَّ عَبْدَكَ زَوْجِي قَدْ مَاتَ، وَأَنْتَ تَعْلَمُ أَنَّ عَبْدَكَ كَانَ يَخَافُ ٱلرَّبَّ. فَأَتَى ٱلْمُرَابِي لِيَأْخُذَ وَلَدَيَّ لَهُ عَبْدَيْنِ». | ١ 1 |
और अम्बियाज़ादों की बीवियों में से एक 'औरत ने इलीशा' से फ़रियाद की और कहने लगी, “तेरा ख़ादिम मेरा शौहर मर गया है, और तू जानता है कि तेरा ख़ादिम ख़ुदावन्द से डरता था; इसलिए अब क़र्ज़ देने वाला आया है कि मेरे दोनों बेटों को ले जाए ताकि वह ग़ुलाम बनें।”
فَقَالَ لَهَا أَلِيشَعُ: «مَاذَا أَصْنَعُ لَكِ؟ أَخْبِرِينِي مَاذَا لَكِ فِي ٱلْبَيْتِ؟». فَقَالَتْ: «لَيْسَ لِجَارِيَتِكَ شَيْءٌ فِي ٱلْبَيْتِ إِلَّا دُهْنَةَ زَيْتٍ». | ٢ 2 |
इलीशा' ने उससे कहा, “मैं तेरे लिए क्या करूँ? मुझे बता, तेरे पास घर में क्या है?” उसने कहा, “तेरी ख़ादिमा के पास घर में एक प्याला तेल के 'अलावा कुछ भी नहीं।”
فَقَالَ: «ٱذْهَبِي ٱسْتَعِيرِي لِنَفْسِكِ أَوْعِيَةً مِنْ خَارِجٍ، مِنْ عِنْدِ جَمِيعِ جِيرَانِكِ، أَوْعِيَةً فَارِغَةً. لَا تُقَلِّلِي. | ٣ 3 |
तब उसने कहा, “तू जा, और बाहर से अपने सब पड़ोसियों से बर्तन उजरत पर ले, वह बर्तन ख़ाली हों, और थोड़े बर्तन न लेना।
ثُمَّ ٱدْخُلِي وَأَغْلِقِي ٱلْبَابَ عَلَى نَفْسِكِ وَعَلَى بَنِيكِ، وَصُبِّي فِي جَمِيعِ هَذِهِ ٱلْأَوْعِيَةِ، وَمَا ٱمْتَلَأَ ٱنْقُلِيهِ». | ٤ 4 |
फिर तू अपने बेटों को साथ लेकर अन्दर जाना और पीछे से दरवाज़ा बन्द कर लेना, और उन सब बर्तनों में तेल उँडेलना, और जो भर जाए उसे उठा कर अलग रखना।”
فَذَهَبَتْ مِنْ عِنْدِهِ وَأَغْلَقَتِ ٱلْبَابَ عَلَى نَفْسِهَا وَعَلَى بَنِيهَا. فَكَانُوا هُمْ يُقَدِّمُونَ لَهَا ٱلْأَوْعِيَةَ وَهِيَ تَصُبُّ. | ٥ 5 |
तब वह उसके पास से गई, और उसने अपने बेटों को अन्दर साथ लेकर दरवाज़ा बन्द कर लिया; और वह उसके पास लाते जाते थे और वह उँडेलती जाती थी।
وَلَمَّا ٱمْتَلَأَتِ ٱلْأَوْعِيَةُ قَالَتْ لِٱبْنِهَا: «قَدِّمْ لِي أَيْضًا وِعَاءً». فَقَالَ لَهَا: «لَا يُوجَدُ بَعْدُ وِعَاءٌ». فَوَقَفَ ٱلزَّيْتُ. | ٦ 6 |
जब वह बर्तन भर गए तो उसने अपने बेटे से कहा, “मेरे पास एक और बर्तन ला।” उसने उससे कहा, “और तो कोई बर्तन रहा नहीं।” तब तेल बन्द हो गया।
فَأَتَتْ وَأَخْبَرَتْ رَجُلَ ٱللهِ فَقَالَ: «ٱذْهَبِي بِيعِي ٱلزَّيْتَ وَأَوْفِي دَيْنَكِ، وَعِيشِي أَنْتِ وَبَنُوكِ بِمَا بَقِيَ». | ٧ 7 |
तब उसने आकर मर्द — ए — ख़ुदा को बताया। उसने कहा, “जा, तेल बेच, और क़र्ज़ अदा कर, और जो बाक़ी रहे उससे तू और तेरे बेटे गुज़ारा करें।”
وَفِي ذَاتِ يَوْمٍ عَبَرَ أَلِيشَعُ إِلَى شُونَمَ. وَكَانَتْ هُنَاكَ ٱمْرَأَةٌ عَظِيمَةٌ، فَأَمْسَكَتْهُ لِيَأْكُلَ خُبْزًا. وَكَانَ كُلَّمَا عَبَرَ يَمِيلُ إِلَى هُنَاكَ لِيَأْكُلَ خُبْزًا. | ٨ 8 |
एक रोज़ ऐसा हुआ कि इलीशा' शूनीम को गया, वहाँ एक दौलतमन्द 'औरत थी; और उसने उसे रोटी खाने पर मजबूर किया। फिर तो जब कभी वह उधर से गुज़रता, रोटी खाने के लिए वहीं चला जाता था।
فَقَالَتْ لِرَجُلِهَا: «قَدْ عَلِمْتُ أَنَّهُ رَجُلُ ٱللهِ، مُقَدَّسٌ ٱلَّذِي يَمُرُّ عَلَيْنَا دَائِمًا. | ٩ 9 |
इसलिए उसने अपने शौहर से कहा, “देख, मुझे मा'लूम होता है कि ये मर्द — ए — ख़ुदा, जो अकसर हमारी तरफ़ आता है, मुक़द्दस है।
فَلْنَعْمَلْ عُلِّيَّةً عَلَى ٱلْحَائِطِ صَغِيرَةً وَنَضَعْ لَهُ هُنَاكَ سَرِيرًا وَخِوَانًا وَكُرْسِيًّا وَمَنَارَةً، حَتَّى إِذَا جَاءَ إِلَيْنَا يَمِيلُ إِلَيْهَا». | ١٠ 10 |
हम उसके लिए एक छोटी सी कोठरी दीवार पर बना दें, और उसके लिए एक पलंग और मेज़ और चौकी और चराग़दान लगा दें, फिर जब कभी वह हमारे पास आए तो वहीं ठहरेगा।”
وَفِي ذَاتِ يَوْمٍ جَاءَ إِلَى هُنَاكَ وَمَالَ إِلَى ٱلْعُلِّيَّةِ وَٱضْطَجَعَ فِيهَا. | ١١ 11 |
फिर एक दिन ऐसा हुआ कि वह उधर गया और उस कोठरी में जाकर वहीं सोया।
فَقَالَ لِجِيحْزِي غُلَامِهِ: «ٱدْعُ هَذِهِ ٱلشُّونَمِيَّةَ». فَدَعَاهَا، فَوَقَفَتْ أَمَامَهُ. | ١٢ 12 |
फिर उसने अपने ख़ादिम जेहाज़ी से कहा, “इस शूनीमी 'औरत को बुला ले।” उसने उसे बुला लिया और वह उसके सामने खड़ी हुई।
فَقَالَ لَهُ: «قُلْ لَهَا: هُوَذَا قَدِ ٱنْزَعَجْتِ بِسَبَبِنَا كُلَّ هَذَا ٱلِٱنْزِعَاجِ، فَمَاذَا يُصْنَعُ لَكِ؟ هَلْ لَكِ مَا يُتَكَلَّمُ بِهِ إِلَى ٱلْمَلِكِ أَوْ إِلَى رَئِيسِ ٱلْجَيْشِ؟» فَقَالَتْ: «إِنَّمَا أَنَا سَاكِنَةٌ فِي وَسْطِ شَعْبِي». | ١٣ 13 |
फिर उसने अपने ख़ादिम से कहा, “तू उससे पूछ कि तूने जो हमारे लिए इस क़दर फ़िक्रें कीं, तो तेरे लिए क्या किया जाए? क्या तू चाहती है कि बादशाह से, या फ़ौज के सरदार से तेरी सिफ़ारिश की जाए?” उसने जवाब दिया, “मैं तो अपने ही लोगों में रहती हूँ।”
ثُمَّ قَالَ: «فَمَاذَا يُصْنَعُ لَهَا؟» فَقَالَ جِيحْزِي: «إِنَّهُ لَيْسَ لَهَا ٱبْنٌ، وَرَجُلُهَا قَدْ شَاخَ». | ١٤ 14 |
फिर उसने कहा, “उसके लिए क्या किया जाए?” तब जेहाज़ी ने जवाब दिया, “सच उसके कोई बेटा नहीं, और उसका शौहर बुड्ढा है।”
فَقَالَ: «ٱدْعُهَا». فَدَعَاهَا، فَوَقَفَتْ فِي ٱلْبَابِ. | ١٥ 15 |
तब उसने कहा, “उसे बुला ले।” और जब उसने उसे बुलाया, तो वह दरवाज़े पर खड़ी हुई।
فَقَالَ: «فِي هَذَا ٱلْمِيعَادِ نَحْوَ زَمَانِ ٱلْحَيَاةِ تَحْتَضِنِينَ ٱبْنًا». فَقَالَتْ: «لَا يَا سَيِّدِي رَجُلَ ٱللهِ. لَا تَكْذِبْ عَلَى جَارِيَتِكَ». | ١٦ 16 |
तब उसने कहा, “मौसम — ए — बहार में, वक़्त पूरा होने पर तेरी गोद में बेटा होगा।” उसने कहा, “नहीं, ऐ मेरे मालिक! ऐ मर्द — ए — ख़ुदा, अपनी ख़ादिमा से झूठ न कह।”
فَحَبِلَتِ ٱلْمَرْأَةُ وَوَلَدَتِ ٱبْنًا فِي ذَلِكَ ٱلْمِيعَادِ نَحْوَ زَمَانِ ٱلْحَيَاةِ، كَمَا قَالَ لَهَا أَلِيشَعُ. | ١٧ 17 |
फिर वह 'औरत हामिला हुई और जैसा इलीशा' ने उससे कहा था, मौसम — ए — बहार में वक़्त पूरा होने पर उसके बेटा हुआ।
وَكَبِرَ ٱلْوَلَدُ. وَفِي ذَاتِ يَوْمٍ خَرَجَ إِلَى أَبِيهِ إِلَى ٱلْحَصَّادِينَ، | ١٨ 18 |
जब वह लड़का बढ़ा, तो एक दिन ऐसा हुआ कि वह अपने बाप के पास खेत काटनेवालों में चला गया।
وَقَالَ لِأَبِيهِ: «رَأْسِي، رَأْسِي». فَقَالَ لِلْغُلَامِ: «ٱحْمِلْهُ إِلَى أُمِّهِ». | ١٩ 19 |
और उसने अपने बाप से कहा, हाय मेरा सिर, हाय मेरा सिर! “उसने अपने ख़ादिम से कहा, 'उसे उसकी माँ के पास ले जा।”
فَحَمَلَهُ وَأَتَى بِهِ إِلَى أُمِّهِ، فَجَلَسَ عَلَى رُكْبَتَيْهَا إِلَى ٱلظُّهْرِ وَمَاتَ. | ٢٠ 20 |
जब उसने उसे लेकर उसकी माँ के पास पहुँचा दिया, तो वह उसके घुटनों पर दोपहर तक बैठा रहा, इसके बाद मर गया।
فَصَعِدَتْ وَأَضْجَعَتْهُ عَلَى سَرِيرِ رَجُلِ ٱللهِ، وَأَغْلَقَتْ عَلَيْهِ وَخَرَجَتْ. | ٢١ 21 |
तब उसकी माँ ने ऊपर जाकर उसे मर्द — ए — ख़ुदा के पलंग पर लिटा दिया, और दरवाज़ा बन्द करके बाहर गई।
وَنَادَتْ رَجُلَهَا وَقَالَتْ: «أَرْسِلْ لِي وَاحِدًا مِنَ ٱلْغِلْمَانِ وَإِحْدَى ٱلْأُتُنِ فَأَجْرِيَ إِلَى رَجُلِ ٱللهِ وَأَرْجِعَ». | ٢٢ 22 |
और उसने अपने शौहर से पुकार कर कहा, “जल्द जवानों में से एक को, और गधों में से एक को मेरे लिए भेज दे, ताकि मैं मर्द — ए — ख़ुदा के पास दौड़ जाऊँ और फिर लौट आऊँ।”
فَقَالَ: «لِمَاذَا تَذْهَبِينَ إِلَيْهِ ٱلْيَوْمَ؟ لَا رَأْسُ شَهْرٍ وَلَا سَبْتٌ». فَقَالَتْ: «سَلَامٌ». | ٢٣ 23 |
उसने कहा, “आज तू उसके पास क्यूँ जाना चाहती है? आज न तो नया चाँद है न सब्त।” उसने जवाब दिया, “अच्छा ही होगा।”
وَشَدَّتْ عَلَى ٱلْأَتَانِ، وَقَالَتْ لِغُلَامِهَا: «سُقْ وَسِرْ وَلَا تَتَعَوَّقْ لِأَجْلِي فِي ٱلرُّكُوبِ إِنْ لَمْ أَقُلْ لَكَ». | ٢٤ 24 |
और उसने गधे पर ज़ीन कसकर अपने ख़ादिम से कहा, “चल, आगे बढ़; और सवारी चलाने में सुस्ती न कर, जब तक मैं तुझ से न कहूँ।”
وَٱنْطَلَقَتْ حَتَّى جَاءَتْ إِلَى رَجُلِ ٱللهِ إِلَى جَبَلِ ٱلْكَرْمَلِ. فَلَمَّا رَآهَا رَجُلُ ٱللهِ مِنْ بَعِيدٍ قَالَ لِجِيحْزِي غُلَامِهِ: «هُوَذَا تِلْكَ ٱلشُّونَمِيَّةُ. | ٢٥ 25 |
तब वह चली और वह कर्मिल पहाड़ को मर्द — ए — ख़ुदा के पास गई। उस मर्द — ए — ख़ुदा ने दूर से उसे देखकर अपने ख़ादिम जेहाज़ी से कहा, देख, उधर वह शूनीमी 'औरत है।
اُرْكُضِ ٱلْآنَ لِلِقَائِهَا وَقُلْ لَهَا: أَسَلَامٌ لَكِ؟ أَسَلَامٌ لِزَوْجِكِ؟ أَسَلَامٌ لِلْوَلَدِ؟» فَقَالَتْ: «سَلَامٌ». | ٢٦ 26 |
अब ज़रा उसके इस्तक़बाल को दौड़ जा, और उससे पूछ, 'क्या तू खै़रियत से है? तेरा शौहर खै़रियत से, बच्चा ख़ैरियत से है?' “उसने जवाब दिया, ठीक नहीं है।”
فَلَمَّا جَاءَتْ إِلَى رَجُلِ ٱللهِ إِلَى ٱلْجَبَلِ أَمْسَكَتْ رِجْلَيْهِ. فَتَقَدَّمَ جِيحْزِي لِيَدْفَعَهَا، فَقَالَ رَجُلُ ٱللهِ: «دَعْهَا لِأَنَّ نَفْسَهَا مُرَّةٌ فِيهَا وَٱلرَّبُّ كَتَمَ ٱلْأَمْرَ عَنِّي وَلَمْ يُخْبِرْنِي». | ٢٧ 27 |
और जब वह उस पहाड़ पर मर्द — ए — ख़ुदा के पास आई, तो उसके पैर पकड़ लिए, और जेहाज़ी उसे हटाने के लिए नज़दीक आया, पर मर्द — ए — ख़ुदा ने कहा, “उसे छोड़ दे, क्यूँकि उसका दिल परेशान है, और ख़ुदावन्द ने ये बात मुझ से छिपाई और मुझे न बताई।”
فَقَالَتْ: «هَلْ طَلَبْتُ ٱبْنًا مِنْ سَيِّدِي؟ أَلَمْ أَقُلْ لَا تَخْدَعْنِي؟» | ٢٨ 28 |
और वह कहने लगी, क्या मैंने अपने मालिक से बेटे का सवाल किया था? क्या मैंने न कहा था, “मुझे धोका न दे'?”
فَقَالَ لِجِيحْزِي: «أُشْدُدْ حَقَوَيْكَ وَخُذْ عُكَّازِي بِيَدِكَ وَٱنْطَلِقْ، وَإِذَا صَادَفْتَ أَحَدًا فَلَا تُبَارِكْهُ، وَإِنْ بَارَكَكَ أَحَدٌ فَلَا تُجِبْهُ. وَضَعْ عُكَّازِي عَلَى وَجْهِ ٱلصَّبِيِّ». | ٢٩ 29 |
तब उसने जेहाज़ी से कहा, “कमर बाँध, और मेरी लाठी हाथ में लेकर अपना रास्ता ले; अगर कोई तुझे रास्ते में मिले तो उसे सलाम न करना, और अगर कोई तुझे सलाम करे तो जवाब न देना; और मेरी लाठी उस लड़के के मुँह पर रख देना।”
فَقَالَتْ أُمُّ ٱلصَّبِيِّ: «حَيٌّ هُوَ ٱلرَّبُّ، وَحَيَّةٌ هِيَ نَفْسُكَ، إِنَّنِي لَا أَتْرُكُكَ». فَقَامَ وَتَبِعَهَا. | ٣٠ 30 |
उस लड़के की माँ ने कहा, “ख़ुदावन्द की हयात की क़सम और तेरी जान की क़सम, मैं तुझे नहीं छोड़ूँगी।” तब वह उठ कर उसके पीछे — पीछे चला।
وَجَازَ جِيحْزِي قُدَّامَهُمَا وَوَضَعَ ٱلْعُكَّازَ عَلَى وَجْهِ ٱلصَّبِيِّ، فَلَمْ يَكُنْ صَوْتٌ وَلَا مُصْغٍ. فَرَجَعَ لِلِقَائِهِ وَأَخْبَرَهُ قَائِلًا: «لَمْ يَنْتَبِهِ ٱلصَّبِيُّ». | ٣١ 31 |
और जेहाज़ी ने उनसे पहले आकर लाठी को उस लड़के के मुँह पर रखा; पर न तो कुछ आवाज़ हुई, न सुना। इसलिए वह उससे मिलने को लौटा, और उसे बताया, “लड़का नहीं जागा।”
وَدَخَلَ أَلِيشَعُ ٱلْبَيْتَ وَإِذَا بِٱلصَّبِيِّ مَيْتٌ وَمُضْطَجعٌ عَلَى سَرِيرِهِ. | ٣٢ 32 |
जब इलीशा' उस घर में आया, तो देखो, वह लड़का मरा हुआ उसके पलंग पर पड़ा था।
فَدَخَلَ وَأَغْلَقَ ٱلْبَابَ عَلَى نَفْسَيْهِمَا كِلَيْهِمَا، وَصَلَّى إِلَى ٱلرَّبِّ. | ٣٣ 33 |
तब वह अकेला अन्दर गया, और दरवाज़ा बन्द करके ख़ुदावन्द से दुआ की।
ثُمَّ صَعِدَ وَٱضْطَجَعَ فَوْقَ ٱلصَّبِيِّ وَوَضَعَ فَمَهُ عَلَى فَمِهِ، وَعَيْنَيْهِ عَلَى عَيْنَيْهِ، وَيَدَيْهِ عَلَى يَدَيْهِ، وَتَمَدَّدَ عَلَيْهِ فَسَخُنَ جَسَدُ ٱلْوَلَدِ. | ٣٤ 34 |
और ऊपर चढ़कर उस बच्चे पर लेट गया; और उसके मुँह पर अपना मुँह, और उसकी आँखों पर अपनी ऑखें, और उसके हाथों पर अपने हाथ रख लिए, और उसके ऊपर लेट गया; तब उस बच्चे का जिस्म गर्म होने लगा।
ثُمَّ عَادَ وَتَمَشَّى فِي ٱلْبَيْتِ تَارَةً إِلَى هُنَا وَتَارَةً إِلَى هُنَاكَ، وَصَعِدَ وَتَمَدَّدَ عَلَيْهِ فَعَطَسَ ٱلصَّبِيُّ سَبْعَ مَرَّاتٍ، ثُمَّ فَتَحَ ٱلصَّبِيُّ عَيْنَيْهِ. | ٣٥ 35 |
फिर वह उठकर उस घर में एक बार टहला, और ऊपर चढ़कर उस बच्चे के ऊपर लेट गया; और वह बच्चा सात बार छींका और बच्चे ने ऑखें खोल दीं।
فَدَعَا جِيحْزِي وَقَالَ: «اُدْعُ هَذِهِ ٱلشُّونَمِيَّةَ» فَدَعَاهَا. وَلَمَّا دَخَلَتْ إِلَيْهِ قَالَ: «ٱحْمِلِي ٱبْنَكِ». | ٣٦ 36 |
तब उसने जेहाज़ी को बुला कर कहा, “उस शूनीमी 'औरत को बुला ले।” तब उसने उसे बुलाया, और जब वह उसके पास आई, तो उसने उससे कहा, “अपने बेटे को उठा ले।”
فَأَتَتْ وَسَقَطَتْ عَلَى رِجْلَيْهِ وَسَجَدَتْ إِلَى ٱلْأَرْضِ، ثُمَّ حَمَلَتِ ٱبْنَهَا وَخَرَجَتْ. | ٣٧ 37 |
तब वह अन्दर जाकर उसके क़दमों पर गिरी और ज़मीन पर सिज्दे में हो गई; फिर अपने बेटे को उठा कर बाहर चली गई।
وَرَجَعَ أَلِيشَعُ إِلَى ٱلْجِلْجَالِ. وَكَانَ جُوعٌ فِي ٱلْأَرْضِ وَكَانَ بَنُو ٱلْأَنْبِيَاءِ جُلُوسًا أَمَامَهُ. فَقَالَ لِغُلَامِهِ: «ضَعِ ٱلْقِدْرَ ٱلْكَبِيرَةَ، وَٱسْلُقْ سَلِيقَةً لِبَنِي ٱلْأَنْبِيَاءِ». | ٣٨ 38 |
और इलीशा' फिर जिलजाल में आया, और मुल्क में काल था, और अम्बियाज़ादे उसके सामने बैठे हुए थे। और उसने अपने ख़ादिम से कहा, “बड़ी देग चढ़ा दे, और इन अम्बियाज़ादों के लिए लप्सी पका।”
وَخَرَجَ وَاحِدٌ إِلَى ٱلْحَقْلِ لِيَلْتَقِطَ بُقُولًا، فَوَجَدَ يَقْطِينًا بَرِّيًّا، فَٱلْتَقَطَ مِنْهُ قُثَّاءً بَرِّيًّا مِلْءَ ثَوْبِهِ، وَأَتَى وَقَطَّعَهُ فِي قِدْرِ ٱلسَّلِيقَةِ، لِأَنَّهُمْ لَمْ يَعْرِفُوا. | ٣٩ 39 |
और उनमें से एक खेत में गया कि कुछ सब्ज़ी चुन लाए। तब उसे कोई जंगली लता मिल गई। उसने उसमें से इन्द्रायन तोड़कर दामन भर लिया और लौटा, और उनको काटकर लप्सी की देग में डाल दिया, क्यूँकि वह उनको पहचानते न थे।
وَصَبُّوا لِلْقَوْمِ لِيَأْكُلُوا. وَفِيمَا هُمْ يَأْكُلُونَ مِنَ ٱلسَّلِيقَةِ صَرَخُوا وَقَالُوا: «فِي ٱلْقِدْرِ مَوْتٌ يَا رَجُلَ ٱللهِ!». وَلَمْ يَسْتَطِيعُوا أَنْ يَأْكُلُوا. | ٤٠ 40 |
चुनाँचे उन्होंने उन मर्दों के खाने के लिए उसमें से ऊँडेला। और ऐसा हुआ कि जब वह उस लप्सी में से खाने लगे, तो चिल्ला उठे और कहा, “ऐ मर्द — ए — ख़ुदा, देग में मौत है!” और वह उसमें से खा न सके।
فَقَالَ: «هَاتُوا دَقِيقًا». فَأَلْقَاهُ فِي ٱلْقِدْرِ وَقَالَ: «صُبَّ لِلْقَوْمِ فَيَأْكُلُوا». فَكَأَنَّهُ لَمْ يَكُنْ شَيْءٌ رَدِيءٌ فِي ٱلْقِدْرِ. | ٤١ 41 |
लेकिन उसने कहा, “आटा लाओ।” और उसने उस देग में डाल दिया और कहा, “उन लोगों के लिए उंडेलो, ताकि वह खाएँ।” फ़िर देग में कोई मुज़िर चीज़ बाक़ी न रही।
وَجَاءَ رَجُلٌ مِنْ بَعْلِ شَلِيشَةَ وَأَحْضَرَ لِرَجُلِ ٱللهِ خُبْزَ بَاكُورَةٍ عِشْرِينَ رَغِيفًا مِنْ شَعِيرٍ، وَسَوِيقًا فِي جِرَابِهِ. فَقَالَ: «أَعْطِ ٱلشَّعْبَ لِيَأْكُلُوا». | ٤٢ 42 |
बाल सलीसा से एक शख़्स आया, और पहले फ़सल की रोटियाँ, या'नी जौ के बीस गिर्दे और अनाज की हरी — हरी बाले मर्द ए — ख़ुदा के पास लाया, उसने कहा, “इन लोगों को दे दे, ताकि वह खाएँ।”
فَقَالَ خَادِمُهُ: «مَاذَا؟ هَلْ أَجْعَلُ هَذَا أَمَامَ مِئَةِ رَجُلٍ؟» فَقَالَ: «أَعْطِ ٱلشَّعْبَ فَيَأْكُلُوا، لِأَنَّهُ هَكَذَا قَالَ ٱلرَّبُّ: يَأْكُلُونَ وَيَفْضُلُ عَنْهُمْ». | ٤٣ 43 |
उसके ख़ादिम ने कहा, “क्या मैं इतने ही को सौ आदमियों के सामने रख दूँ?” फिर उसने फिर कहा, लोगों को दे दे, ताकि वह खाएँ; क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, “वह खाएँगे और उसमें से कुछ छोड़ भी देंगे।”
فَجَعَلَ أَمَامَهُمْ فَأَكَلُوا، وَفَضَلَ عَنْهُمْ حَسَبَ قَوْلِ ٱلرَّبِّ. | ٤٤ 44 |
तब उसने उसे उनके आगे रख्खा और उन्होंने खाया; और जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था, उसमें से कुछ छोड़ भी दिया।