< ١ كورنثوس 15 >
وَأُعَرِّفُكُمْ أَيُّهَا ٱلْإِخْوَةُ بِٱلْإِنْجِيلِ ٱلَّذِي بَشَّرْتُكُمْ بِهِ، وَقَبِلْتُمُوهُ، وَتَقُومُونَ فِيهِ، | ١ 1 |
ऐ भाइयों! मैं तुम्हें वही ख़ुशख़बरी बताए देता हूँ जो पहले दे चुका हूँ जिसे तुम ने क़बूल भी कर लिया था और जिस पर क़ाईम भी हो।
وَبِهِ أَيْضًا تَخْلُصُونَ، إِنْ كُنْتُمْ تَذْكُرُونَ أَيُّ كَلَامٍ بَشَّرْتُكُمْ بِهِ. إِلَّا إِذَا كُنْتُمْ قَدْ آمَنْتُمْ عَبَثًا! | ٢ 2 |
उसी के वसीले से तुम को नजात भी मिली है बशर्ते कि वो ख़ुशख़बरी जो मैंने तुम्हें दी थी याद रखते हो वर्ना तुम्हारा ईमान लाना बेफ़ाइदा हुआ।
فَإِنَّنِي سَلَّمْتُ إِلَيْكُمْ فِي ٱلْأَوَّلِ مَا قَبِلْتُهُ أَنَا أَيْضًا: أَنَّ ٱلْمَسِيحَ مَاتَ مِنْ أَجْلِ خَطَايَانَا حَسَبَ ٱلْكُتُبِ، | ٣ 3 |
चुनाँचे मैंने सब से पहले तुम को वही बात पहुँचा दी जो मुझे पहुँची थी; कि मसीह किताब — ए — 'मुक़द्दस के मुताबिक़ हमारे गुनाहों के लिए मरा।
وَأَنَّهُ دُفِنَ، وَأَنَّهُ قَامَ فِي ٱلْيَوْمِ ٱلثَّالِثِ حَسَبَ ٱلْكُتُبِ، | ٤ 4 |
और दफ़्न हुआ और तीसरे दिन किताब ऐ'मुक़द्दस के मुताबिक़ जी उठा।
وَأَنَّهُ ظَهَرَ لِصَفَا ثُمَّ لِلِٱثْنَيْ عَشَرَ. | ٥ 5 |
और कैफ़ा और उस के बाद उन बारह को दिखाई दिया।
وَبَعْدَ ذَلِكَ ظَهَرَ دَفْعَةً وَاحِدَةً لِأَكْثَرَ مِنْ خَمْسِمِئَةِ أَخٍ، أَكْثَرُهُمْ بَاقٍ إِلَى ٱلْآنَ. وَلَكِنَّ بَعْضَهُمْ قَدْ رَقَدُوا. | ٦ 6 |
फिर पाँच सौ से ज़्यादा भाइयों को एक साथ दिखाई दिया जिन में अक्सर अब तक मौजूद हैं और कुछ सो गए।
وَبَعْدَ ذَلِكَ ظَهَرَ لِيَعْقُوبَ، ثُمَّ لِلرُّسُلِ أَجْمَعِينَ. | ٧ 7 |
फिर या'क़ूब को दिखाई दिया फिर सब रसूलों को।
وَآخِرَ ٱلْكُلِّ - كَأَنَّهُ لِلسِّقْطِ - ظَهَرَ لِي أَنَا. | ٨ 8 |
और सब से पीछे मुझ को जो गोया अधूरे दिनों की पैदाइश हूँ दिखाई दिया।
لِأَنِّي أَصْغَرُ ٱلرُّسُلِ، أَنَا ٱلَّذِي لَسْتُ أَهْلًا لِأَنْ أُدْعَى رَسُولًا، لِأَنِّي ٱضْطَهَدْتُ كَنِيسَةَ ٱللهِ. | ٩ 9 |
क्यूँकि मैं रसूलों में सब से छोटा हूँ, बल्कि रसूल कहलाने के लायक़ नहीं इसलिए कि मैने ख़ुदा की कलीसिया को सताया था।
وَلَكِنْ بِنِعْمَةِ ٱللهِ أَنَا مَا أَنَا، وَنِعْمَتُهُ ٱلْمُعْطَاةُ لِي لَمْ تَكُنْ بَاطِلَةً، بَلْ أَنَا تَعِبْتُ أَكْثَرَ مِنْهُمْ جَمِيعِهِمْ. وَلَكِنْ لَا أَنَا، بَلْ نِعْمَةُ ٱللهِ ٱلَّتِي مَعِي. | ١٠ 10 |
लेकिन जो कुछ हूँ ख़ुदा के फ़ज़ल से हूँ और उसका फ़ज़ल जो मुझ पर हुआ वो बेफ़ाइदा नहीं हुआ बल्कि मैंने उन सब से ज़्यादा मेहनत की और ये मेरी तरफ़ से नहीं हुई बल्कि ख़ुदा के फ़ज़ल से जो मुझ पर था।
فَسَوَاءٌ أَنَا أَمْ أُولَئِكَ، هَكَذَا نَكْرِزُ وَهَكَذَا آمَنْتُمْ. | ١١ 11 |
पस चाहे मैं हूँ चाहे वो हों हम यही ऐलान करते हैं और इसी पर तुम ईमान भी लाए।
وَلَكِنْ إِنْ كَانَ ٱلْمَسِيحُ يُكْرَزُ بِهِ أَنَّهُ قَامَ مِنَ ٱلْأَمْوَاتِ، فَكَيْفَ يَقُولُ قَوْمٌ بَيْنَكُمْ: «إِنْ لَيْسَ قِيَامَةُ أَمْوَاتٍ»؟ | ١٢ 12 |
पस जब मसीह की ये मनादी की जाती है कि वो मुर्दों में से जी उठा तो तुम में से कुछ इस तरह कहते हैं कि मुर्दों की क़यामत है ही नहीं।
فَإِنْ لَمْ تَكُنْ قِيَامَةُ أَمْوَاتٍ فَلَا يَكُونُ ٱلْمَسِيحُ قَدْ قَامَ! | ١٣ 13 |
अगर मुर्दों की क़यामत नहीं तो मसीह भी नहीं जी उठा है।
وَإِنْ لَمْ يَكُنِ ٱلْمَسِيحُ قَدْ قَامَ، فَبَاطِلَةٌ كِرَازَتُنَا وَبَاطِلٌ أَيْضًا إِيمَانُكُمْ، | ١٤ 14 |
और अगर मसीह नहीं जी उठा तो हमारी मनादी भी बेफ़ाइदा है और तुम्हारा ईमान भी बेफ़ाइदा है।
وَنُوجَدُ نَحْنُ أَيْضًا شُهُودَ زُورٍ لِلهِ، لِأَنَّنَا شَهِدْنَا مِنْ جِهَةِ ٱللهِ أَنَّهُ أَقَامَ ٱلْمَسِيحَ وَهُوَ لَمْ يُقِمْهُ، إِنْ كَانَ ٱلْمَوْتَى لَا يَقُومُونَ. | ١٥ 15 |
बल्कि हम ख़ुदा के झूठे गवाह ठहरे क्यूँकि हम ने ख़ुदा के बारे में ये गवाही दी कि उसने मसीह को जिला दिया हालाँकि नहीं जिलाया अगर बिलफ़र्ज़ मुर्दे नहीं जी उठते।
لِأَنَّهُ إِنْ كَانَ ٱلْمَوْتَى لَا يَقُومُونَ، فَلَا يَكُونُ ٱلْمَسِيحُ قَدْ قَامَ. | ١٦ 16 |
और अगर मुर्दे नहीं जी उठते तो मसीह भी नहीं जी उठा।
وَإِنْ لَمْ يَكُنِ ٱلْمَسِيحُ قَدْ قَامَ، فَبَاطِلٌ إِيمَانُكُمْ. أَنْتُمْ بَعْدُ فِي خَطَايَاكُمْ! | ١٧ 17 |
और अगर मसीह नहीं जी उठा तो तुम्हारा ईमान बे'फ़ाइदा है तुम अब तक अपने गुनाहों में गिरफ़्तार हो।
إِذًا ٱلَّذِينَ رَقَدُوا فِي ٱلْمَسِيحِ أَيْضًا هَلَكُوا! | ١٨ 18 |
बल्कि जो मसीह में सो गए हैं वो भी हलाक हुए।
إِنْ كَانَ لَنَا فِي هَذِهِ ٱلْحَيَاةِ فَقَطْ رَجَاءٌ فِي ٱلْمَسِيحِ، فَإِنَّنَا أَشْقَى جَمِيعِ ٱلنَّاسِ. | ١٩ 19 |
अगर हम सिर्फ़ इसी ज़िन्दगी में मसीह में उम्मीद रखते हैं तो सब आदमियों से ज़्यादा बदनसीब हैं।
وَلَكِنِ ٱلْآنَ قَدْ قَامَ ٱلْمَسِيحُ مِنَ ٱلْأَمْوَاتِ وَصَارَ بَاكُورَةَ ٱلرَّاقِدِينَ. | ٢٠ 20 |
लेकिन फ़िलवक़्त मसीह मुर्दों में से जी उठा है और जो सो गए हैं उन में पहला फल हुआ।
فَإِنَّهُ إِذِ ٱلْمَوْتُ بِإِنْسَانٍ، بِإِنْسَانٍ أَيْضًا قِيَامَةُ ٱلْأَمْوَاتِ. | ٢١ 21 |
क्यूँकि अब आदमी की वजह से मौत आई तो आदमी की वजह से मुर्दों की क़यामत भी आई।
لِأَنَّهُ كَمَا فِي آدَمَ يَمُوتُ ٱلْجَمِيعُ، هَكَذَا فِي ٱلْمَسِيحِ سَيُحْيَا ٱلْجَمِيعُ. | ٢٢ 22 |
और जैसे आदम में सब मरते हैं वैसे ही मसीह में सब ज़िन्दा किए जाएँगे।
وَلَكِنَّ كُلَّ وَاحِدٍ فِي رُتْبَتِهِ: ٱلْمَسِيحُ بَاكُورَةٌ، ثُمَّ ٱلَّذِينَ لِلْمَسِيحِ فِي مَجِيئِهِ. | ٢٣ 23 |
लेकिन हर एक अपनी अपनी बारी से; पहला फल मसीह फिर मसीह के आने पर उसके लोग।
وَبَعْدَ ذَلِكَ ٱلنِّهَايَةُ، مَتَى سَلَّمَ ٱلْمُلْكَ لِلهِ ٱلْآبِ، مَتَى أَبْطَلَ كُلَّ رِيَاسَةٍ وَكُلَّ سُلْطَانٍ وَكُلَّ قُوَّةٍ. | ٢٤ 24 |
इसके बाद आख़िरत होगी; उस वक़्त वो सारी हुकूमत और सारा इख़्तियार और क़ुदरत नेस्त करके बादशाही को ख़ुदा या'नी बाप के हवाले कर देगा।
لِأَنَّهُ يَجِبُ أَنْ يَمْلِكَ حَتَّى «يَضَعَ جَمِيعَ ٱلْأَعْدَاءِ تَحْتَ قَدَمَيْهِ». | ٢٥ 25 |
क्यूँकि जब तक कि वो सब दुश्मनों को अपने पाँव तले न ले आए उस को बादशाही करना ज़रूरी है।
آخِرُ عَدُوٍّ يُبْطَلُ هُوَ ٱلْمَوْتُ. | ٢٦ 26 |
सब से पिछला दुश्मन जो नेस्त किया जाएगा वो मौत है।
لِأَنَّهُ أَخْضَعَ كُلَّ شَيْءٍ تَحْتَ قَدَمَيْهِ. وَلَكِنْ حِينَمَا يَقُولُ: «إِنَّ كُلَّ شَيْءٍ قَدْ أُخْضِعَ» فَوَاضِحٌ أَنَّهُ غَيْرُ ٱلَّذِي أَخْضَعَ لَهُ ٱلْكُلَّ. | ٢٧ 27 |
क्यूँकि ख़ुदा ने सब कुछ उसके पाँव तले कर दिया है; मगर जब वो फ़रमाता है कि सब कुछ उसके ताबे' कर दिया गया तो ज़ाहिर है कि जिसने सब कुछ उसके ताबे कर दिया; वो अलग रहा।
وَمَتَى أُخْضِعَ لَهُ ٱلْكُلُّ، فَحِينَئِذٍ ٱلِٱبْنُ نَفْسُهُ أَيْضًا سَيَخْضَعُ لِلَّذِي أَخْضَعَ لَهُ ٱلْكُلَّ، كَيْ يَكُونَ ٱللهُ ٱلْكُلَّ فِي ٱلْكُلِّ. | ٢٨ 28 |
और जब सब कुछ उसके ताबे' कर दिया जाएगा तो बेटा ख़ुद उसके ताबे' हो जाएगा जिसने सब चीज़ें उसके ताबे' कर दीं ताकि सब में ख़ुदा ही सब कुछ है।
وَإِلَّا فَمَاذَا يَصْنَعُ ٱلَّذِينَ يَعْتَمِدُونَ مِنْ أَجْلِ ٱلْأَمْوَاتِ؟ إِنْ كَانَ ٱلْأَمْوَاتُ لَا يَقُومُونَ ٱلْبَتَّةَ، فَلِمَاذَا يَعْتَمِدُونَ مِنْ أَجْلِ ٱلْأَمْوَاتِ؟ | ٢٩ 29 |
वर्ना जो लोग मुर्दों के लिए बपतिस्मा लेते हैं; वो क्या करेंगे? अगर मुर्दे जी उठते ही नहीं तो फिर क्यूँ उन के लिए बपतिस्मा लेते हो?
وَلِمَاذَا نُخَاطِرُ نَحْنُ كُلَّ سَاعَةٍ؟ | ٣٠ 30 |
और हम क्यूँ हर वक़्त ख़तरे में पड़े रहते हैं?
إِنِّي بِٱفْتِخَارِكُمُ ٱلَّذِي لِي فِي يَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ رَبِّنَا، أَمُوتُ كُلَّ يَوْمٍ. | ٣١ 31 |
ऐ भाइयों! उस फ़ख़्र की क़सम जो हमारे ईसा मसीह में तुम पर है में हर रोज़ मरता हूँ।
إِنْ كُنْتُ كَإِنْسَانٍ قَدْ حَارَبْتُ وُحُوشًا فِي أَفَسُسَ، فَمَا ٱلْمَنْفَعَةُ لِي؟ إِنْ كَانَ ٱلْأَمْوَاتُ لَا يَقُومُونَ، «فَلْنَأْكُلْ وَنَشْرَبْ لِأَنَّنَا غَدًا نَمُوتُ!». | ٣٢ 32 |
जैसा कि कलाम में लिखा है कि अगर मैं इंसान की तरह इफ़िसुस में दरिन्दों से लड़ा तो मुझे क्या फ़ाइदा? अगर मुर्दे न जिलाए जाएँगे “तो आओ खाएँ पीएँ क्यूँकि कल तो मर ही जाएँगे।”
لَا تَضِلُّوا: «فَإِنَّ ٱلْمُعَاشَرَاتِ ٱلرَّدِيَّةَ تُفْسِدُ ٱلْأَخْلَاقَ ٱلْجَيِّدَةَ». | ٣٣ 33 |
धोखा न खाओ “बुरी सोहबतें अच्छी आदतों को बिगाड़ देती हैं।”
اُصْحُوا لِلْبِرِّ وَلَا تُخْطِئُوا، لِأَنَّ قَوْمًا لَيْسَتْ لَهُمْ مَعْرِفَةٌ بِٱللهِ. أَقُولُ ذَلِكَ لِتَخْجِيلِكُمْ! | ٣٤ 34 |
रास्तबाज़ होने के लिए होश में आओ और गुनाह न करो, क्यूँकि कुछ ख़ुदा से नावाक़िफ़ हैं; मैं तुम्हें शर्म दिलाने को ये कहता हूँ।
لَكِنْ يَقُولُ قَائِلٌ: «كَيْفَ يُقَامُ ٱلْأَمْوَاتُ؟ وَبِأَيِّ جِسْمٍ يَأْتُونَ؟». | ٣٥ 35 |
अब कोई ये कहेगा, “मुर्दे किस तरह जी उठते हैं? और कैसे जिस्म के साथ आते हैं?”
يَاغَبِيُّ! ٱلَّذِي تَزْرَعُهُ لَا يُحْيَا إِنْ لَمْ يَمُتْ. | ٣٦ 36 |
ऐ, नादान! तू ख़ुद जो कुछ बोता है जब तक वो न मरे ज़िन्दा नहीं किया जाता।
وَٱلَّذِي تَزْرَعُهُ، لَسْتَ تَزْرَعُ ٱلْجِسْمَ ٱلَّذِي سَوْفَ يَصِيرُ، بَلْ حَبَّةً مُجَرَّدَةً، رُبَّمَا مِنْ حِنْطَةٍ أَوْ أَحَدِ ٱلْبَوَاقِي. | ٣٧ 37 |
और जो तू बोता है, ये वो जिस्म नहीं जो पैदा होने वाला है बल्कि सिर्फ़ दाना है; चाहे गेहूँ का चाहे किसी और चीज़ का।
وَلَكِنَّ ٱللهَ يُعْطِيهَا جِسْمًا كَمَا أَرَادَ. وَلِكُلِّ وَاحِدٍ مِنَ ٱلْبُزُورِ جِسْمَهُ. | ٣٨ 38 |
मगर ख़ुदा ने जैसा इरादा कर लिया वैसा ही उसको जिस्म देता है और हर एक बीज को उसका ख़ास जिस्म।
لَيْسَ كُلُّ جَسَدٍ جَسَدًا وَاحِدًا، بَلْ لِلنَّاسِ جَسَدٌ وَاحِدٌ، وَلِلْبَهَائِمِ جَسَدٌ آخَرُ، وَلِلسَّمَكِ آخَرُ، وَلِلطَّيْرِ آخَرُ. | ٣٩ 39 |
सब गोश्त एक जैसा गोश्त नहीं; बल्कि आदमियों का गोश्त और है, चौपायों का गोश्त और; परिन्दों का गोश्त और है मछलियों का गोश्त और।
وَأَجْسَامٌ سَمَاوِيَّةٌ، وَأَجْسَامٌ أَرْضِيَّةٌ. لَكِنَّ مَجْدَ ٱلسَّمَاوِيَّاتِ شَيْءٌ، وَمَجْدَ ٱلْأَرْضِيَّاتِ آخَرُ. | ٤٠ 40 |
आसमानी भी जिस्म हैं, और ज़मीनी भी मगर आसमानियों का जलाल और है, और ज़मीनियों का और।
مَجْدُ ٱلشَّمْسِ شَيْءٌ، وَمَجْدُ ٱلْقَمَرِ آخَرُ، وَمَجْدُ ٱلنُّجُومِ آخَرُ. لِأَنَّ نَجْمًا يَمْتَازُ عَنْ نَجْمٍ فِي ٱلْمَجْدِ. | ٤١ 41 |
आफ़ताब का जलाल और है, माहताब का जलाल और, सितारों का जलाल और, क्यूँकि सितारे सितारे के जलाल में फ़र्क़ है।
هَكَذَا أَيْضًا قِيَامَةُ ٱلْأَمْوَاتِ: يُزْرَعُ فِي فَسَادٍ وَيُقَامُ فِي عَدَمِ فَسَادٍ. | ٤٢ 42 |
मुर्दों की क़यामत भी ऐसी ही है; जिस्म फ़ना की हालत में बोया जाता है, और हमेशा की हालत में जी उठता है।
يُزْرَعُ فِي هَوَانٍ وَيُقَامُ فِي مَجْدٍ. يُزْرَعُ فِي ضَعْفٍ وَيُقَامُ فِي قُوَّةٍ. | ٤٣ 43 |
बेहुरमती की हालत में बोया जाता है, और जलाल की हालत में जी उठता है, कमज़ोरी की हालत में बोया जाता है और क़ुव्वत की हालत में जी उठता है।
يُزْرَعُ جِسْمًا حَيَوَانِيًّا وَيُقَامُ جِسْمًا رُوحَانِيًّا. يُوجَدُ جِسْمٌ حَيَوَانِيٌّ وَيُوجَدُ جِسْمٌ رُوحَانِيٌّ. | ٤٤ 44 |
नफ़्सानी जिस्म बोया जाता है, और रूहानी जिस्म जी उठता है जब नफ़्सानी जिस्म है तो रूहानी जिस्म भी है।
هَكَذَا مَكْتُوبٌ أَيْضًا: «صَارَ آدَمُ، ٱلْإِنْسَانُ ٱلْأَوَّلُ، نَفْسًا حَيَّةً»، وَآدَمُ ٱلْأَخِيرُ رُوحًا مُحْيِيًا. | ٤٥ 45 |
चुनाँचे कलाम लिखा भी है, “पहला आदमी या'नी आदम ज़िन्दा नफ़्स बना पिछला आदम ज़िन्दगी बख़्शने वाली रूह बना।”
لَكِنْ لَيْسَ ٱلرُّوحَانِيُّ أَوَّلًا بَلِ ٱلْحَيَوَانِيُّ، وَبَعْدَ ذَلِكَ ٱلرُّوحَانِيُّ. | ٤٦ 46 |
लेकिन रूहानी पहले न था बल्कि नफ़्सानी था इसके बाद रूहानी हुआ।
ٱلْإِنْسَانُ ٱلْأَوَّلُ مِنَ ٱلْأَرْضِ تُرَابِيٌّ. ٱلْإِنْسَانُ ٱلثَّانِي ٱلرَّبُّ مِنَ ٱلسَّمَاءِ. | ٤٧ 47 |
पहला आदमी ज़मीन से या'नी ख़ाकी था दूसरा आदमी आसमानी है।
كَمَا هُوَ ٱلتُّرَابِيُّ هَكَذَا ٱلتُّرَابِيُّونَ أَيْضًا، وَكَمَا هُوَ ٱلسَّمَاوِيُّ هَكَذَا ٱلسَّمَاوِيُّونَ أَيْضًا. | ٤٨ 48 |
जैसा वो ख़ाकी था वैसे ही और ख़ाकी भी हैं और जैसा वो आसमानी है वैसे ही और आसमानी भी हैं।
وَكَمَا لَبِسْنَا صُورَةَ ٱلتُّرَابِيِّ، سَنَلْبَسُ أَيْضًا صُورَةَ ٱلسَّمَاوِيِّ. | ٤٩ 49 |
और जिस तरह हम इस ख़ाकी की सूरत पर हुए उसी तरह उस आसमानी की सूरत पर भी होंगे।
فَأَقُولُ هَذَا أَيُّهَا ٱلْإِخْوَةُ: إِنَّ لَحْمًا وَدَمًا لَا يَقْدِرَانِ أَنْ يَرِثَا مَلَكُوتَ ٱللهِ، وَلَا يَرِثُ ٱلْفَسَادُ عَدَمَ ٱلْفَسَادِ. | ٥٠ 50 |
ऐ भाइयों! मेरा मतलब ये है कि गोश्त और ख़ून ख़ुदा की बादशाही के वारिस नहीं हो सकते और न फ़ना बक़ा की वारिस हो सकती है।
هُوَذَا سِرٌّ أَقُولُهُ لَكُمْ: لَا نَرْقُدُ كُلُّنَا، وَلَكِنَّنَا كُلَّنَا نَتَغَيَّرُ، | ٥١ 51 |
देखो मैं तुम से राज़ की बात कहता हूँ हम सब तो नहीं सोएँगे मगर सब बदल जाएँगे।
فِي لَحْظَةٍ فِي طَرْفَةِ عَيْنٍ، عِنْدَ ٱلْبُوقِ ٱلْأَخِيرِ. فَإِنَّهُ سَيُبَوَّقُ، فَيُقَامُ ٱلْأَمْوَاتُ عَدِيمِي فَسَادٍ، وَنَحْنُ نَتَغَيَّرُ. | ٥٢ 52 |
और ये एक दम में, एक पल में पिछला नरसिंगा फूँकते ही होगा क्यूँकि नरसिंगा फूँका जाएगा और मुर्दे ग़ैर फ़ानी हालत में उठेंगे और हम बदल जाएँगे।
لِأَنَّ هَذَا ٱلْفَاسِدَ لَابُدَّ أَنْ يَلْبَسَ عَدَمَ فَسَادٍ، وَهَذَا ٱلْمَائِتَ يَلْبَسُ عَدَمَ مَوْتٍ. | ٥٣ 53 |
क्यूँकि ज़रूरी है कि ये फ़ानी जिस्म बक़ा का जामा पहने और ये मरने वाला जिस्म हमेशा की ज़िन्दगी का जामा पहने।
وَمَتَى لَبِسَ هَذَا ٱلْفَاسِدُ عَدَمَ فَسَادٍ، وَلَبِسَ هَذَا ٱلْمَائِتُ عَدَمَ مَوْتٍ، فَحِينَئِذٍ تَصِيرُ ٱلْكَلِمَةُ ٱلْمَكْتُوبَةُ: «ٱبْتُلِعَ ٱلْمَوْتُ إِلَى غَلَبَةٍ». | ٥٤ 54 |
जब ये फ़ानी जिस्म बक़ा का जामा पहन चुकेगा और ये मरने वाला जिस्म हमेशा हमेशा का जामा पहन चुकेगा तो वो क़ौल पूरा होगा जो कलाम लिखा है “मौत फ़तह का लुक़्मा हो जाएगी।
«أَيْنَ شَوْكَتُكَ يَا مَوْتُ؟ أَيْنَ غَلَبَتُكِ يَا هَاوِيَةُ؟» (Hadēs ) | ٥٥ 55 |
ऐ मौत तेरी फ़तह कहाँ रही? ऐ मौत तेरा डंक कहाँ रहा?” (Hadēs )
أَمَّا شَوْكَةُ ٱلْمَوْتِ فَهِيَ ٱلْخَطِيَّةُ، وَقُوَّةُ ٱلْخَطِيَّةِ هِيَ ٱلنَّامُوسُ. | ٥٦ 56 |
मौत का डंक गुनाह है और गुनाह का ज़ोर शरी'अत है।
وَلَكِنْ شُكْرًا لِلهِ ٱلَّذِي يُعْطِينَا ٱلْغَلَبَةَ بِرَبِّنَا يَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ. | ٥٧ 57 |
मगर ख़ुदा का शुक्र है, जो हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा मसीह के वसीले से हम को फ़तह बख्शता है।
إِذًا يَا إِخْوَتِي ٱلْأَحِبَّاءَ، كُونُوا رَاسِخِينَ، غَيْرَ مُتَزَعْزِعِينَ، مُكْثِرِينَ فِي عَمَلِ ٱلرَّبِّ كُلَّ حِينٍ، عَالِمِينَ أَنَّ تَعَبَكُمْ لَيْسَ بَاطِلًا فِي ٱلرَّبِّ. | ٥٨ 58 |
पस ऐ मेरे अज़ीज़ भाइयों! साबित क़दम और क़ाईम रहो और ख़ुदावन्द के काम में हमेशा बढ़ते रहो क्यूँकि ये जानते हो कि तुम्हारी मेहनत ख़ुदावन्द में बेफ़ाइदा नहीं है।