< गज़लुल 8 >
1 काश कि तू मेरे भाई की तरह होता, जिसने मेरी माँ की छातियों से दूध पिया। मैं जब तुझे बाहर पाती, तो तेरी मच्छियाँ लेती, और कोई मुझे हक़ीर न जानता।
Quis mihi det te fratrem meum sugentem ubera matris meæ, ut inveniam te foris, et deosculer te, et iam me nemo despiciat?
2 मैं तुझ को अपनी माँ के घर में ले जाती, वह मुझे सिखाती। मैं अपने अनारों के रस से तुझे मम्जूज मय पिलाती।
Apprehendam te, et ducam in domum matris meæ: ibi me docebis, et dabo tibi poculum ex vino condito, et mustum malorum granatorum meorum.
3 उसका बायाँ हाथ मेरे सिर के नीचे होता, और दहना मुझे गले से लगाता!
Læva eius sub capite meo, et dextera illius amplexabitur me.
4 ऐ येरूशलेम की बेटियो, मैं तुम को क़सम देती हूँ कि तुम मेरे प्यारे को न जगाओ न उठाओ, जब तक कि वह उठना न चाहे।
Adiuro vos filiæ Ierusalem, ne suscitetis, neque evigilare faciatis dilectam donec ipsa velit.
5 यह कौन है जो वीराने से, अपने महबूब पर तकिया किए चली आती है? मैंने तुझे सेब के दरख़्त के नीचे जगाया। जहाँ तेरी पैदाइश हुई, जहाँ तेरी माँ ने तुझे पैदा किया।
Quæ est ista, quæ ascendit de deserto, deliciis affluens, innixa super dilectum suum? Sub arbore malo suscitavi te: ibi corrupta est mater tua, ibi violata est genitrix tua.
6 नगीन की तरह मुझे अपने दिल में लगा रख और तावीज़ की तरह अपने बाज़ू पर, क्यूँकि इश्क मौत की तरह ज़बरदस्त है, और गै़रत पाताल सी बेमुरव्वत है उसके शो'ले आग के शोले हैं, और ख़ुदावन्द के शोले की तरह। (Sheol )
Pone me ut signaculum super cor tuum, ut signaculum super brachium tuum: quia fortis est ut mors dilectio. dura sicut infernus æmulatio, lampades eius lampades ignis atque flammarum. (Sheol )
7 सैलाब 'इश्क़ को बुझा नहीं सकता, बाढ़ उसको डुबा नहीं सकती, अगर आदमी मुहब्बत के बदले अपना सब कुछ दे डाले तो वह सरासर हिकारत के लायक़ ठहरेगा।
Aquæ multæ non potuerunt extinguere charitatem, nec flumina obruent illam: si dederit homo omnem substantiam domus suæ pro dilectione, quasi nihil despiciet eam.
8 हमारी एक छोटी बहन है, अभी उसकी छातियाँ नहीं उठीं। जिस रोज़ उसकी बात चले, हम अपनी बहन के लिए क्या करें?
Soror nostra parva, et ubera non habet. quid faciemus sorori nostræ in die quando alloquenda est?
9 अगर वह दीवार हो, तो हम उस पर चाँदी का बुर्ज बनाएँगेऔर अगर वह दरवाज़ा हो; हम उस पर देवदार के तख़्ते लगाएँगे।
Si murus est, ædificemus super eum propugnacula argentea: si ostium est, compingamus illud tabulis cedrinis.
10 मैं दीवार हूँ और मेरी छातियाँ बुर्ज हैं और मैं उसकी नज़र में सलामती याफ़्ता, की तरह थी।
Ego murus: et ubera mea sicut turris, ex quo facta sum coram eo quasi pacem reperiens.
11 बाल हामून में सुलेमान का खजूर का बाग़ था उसने उस खजूर के बाग़ को बाग़बानों के सुपुर्द किया कि उनमें से हर एक उसके फल के बदले हज़ार मिस्क़ाल चाँदी अदा करे।
Vinea fuit pacifico in ea, quæ habet populos: tradidit eam custodibus, vir affert pro fructu eius mille argenteos.
12 मेरा खजूर का बाग़ जो मेरा ही है मेरे सामने है ऐ सुलेमान तू तो हज़ार ले, और उसके फल के निगहबान दो सौ पाएँ।
Vinea mea coram me est. Mille tui pacifici, et ducenti his, qui custodiunt fructus eius.
13 ऐ बूस्तान में रहनेवाली, दोस्त तेरी आवाज़ सुनते हैं; मुझ को भी सुना।
Quæ habitas in hortis, amici auscultant: fac me audire vocem tuam.
14 ऐ मेरे महबूब जल्दी कर और उस ग़ज़ाल या आहू बच्चे की तरह हो जा, जो बलसानी पहाड़ियों पर है।
Fuge dilecte mi, et assimilare capreæ, hinnuloque cervorum super montes aromatum.