< रोमियो 6 >
1 पस हम क्या कहें? क्या गुनाह करते रहें ताकि फ़ज़ल ज़्यादा हो?
What should we say then? Should we continue in sin, that grace may abound?
2 हरगिज़ नहीं हम जो गुनाह के ऐ'तिबार से मर गए क्यूँकर उस में फिर से ज़िन्दगी गुज़ारें?
Absolutely not. We who died to sin, how could we live in it any longer?
3 क्या तुम नहीं जानते कि हम जितनों ने मसीह ईसा में शामिल होने का बपतिस्मा लिया तो उस की मौत में शामिल होने का बपतिस्मा लिया?
Or do you not know that all we who were baptized into Christ Jesus were baptized into his death?
4 पस मौत में शामिल होने के बपतिस्मे के वसीले से हम उसके साथ दफ़्न हुए ताकि जिस तरह मसीह बाप के जलाल के वसीले से मुर्दों में से जिलाया गया; उसी तरह हम भी नई ज़िन्दगी में चलें।
We were buried therefore with him through baptism to death, that just like Christ was raised from the dead through the glory of the Father, so we also might walk in newness of life.
5 क्यूँकि जब हम उसकी मुशाबहत से उसके साथ जुड़ गए, तो बेशक उसके जी उठने की मुशाबहत से भी उस के साथ जुड़े होंगे।
For if we have become united with him in the likeness of his death, we will also be part of his resurrection;
6 चुनाँचे हम जानते हैं कि हमारी पूरानी इंसान ियत उसके साथ इसलिए मस्लूब की गई कि गुनाह का बदन बेकार हो जाए ताकि हम आगे को गुनाह की ग़ुलामी में न रहें।
knowing this, that our old self was crucified with him, that the body of sin might be done away with, so that we would no longer be in bondage to sin.
7 क्यूँकि जो मरा वो गुनाह से बरी हुआ।
For he who has died has been freed from sin.
8 पस जब हम मसीह के साथ मरे तो हमें यक़ीन है कि उसके साथ जिएँगे भी।
But if we died with Christ, we believe that we will also live with him;
9 क्यूँकि ये जानते हैं कि मसीह जब मुर्दों में से जी उठा है तो फिर नहीं मरने का; मौत का फिर उस पर इख़्तियार नहीं होने का।
knowing that Christ, being raised from the dead, dies no more. Death no more has dominion over him.
10 क्यूँकि मसीह जो मरा गुनाह के ऐ'तिबार से एक बार मरा; मगर अब जो ज़िन्दा हुआ तो ख़ुदा के ऐ'तिबार से ज़िन्दा है।
For the death that he died, he died to sin one time; but the life that he lives, he lives to God.
11 इसी तरह तुम भी अपने आपको गुनाह के ऐ'तिबार से मुर्दा; मगर ख़ुदा के ए'तिबार से मसीह ईसा में ज़िन्दा समझो।
In the same way, consider yourselves dead to sin, but alive to God in Christ Jesus.
12 पस गुनाह तुम्हारे फ़ानी बदन में बादशाही न करे; कि तुम उसकी ख़्वाहिशों के ताबे रहो।
Therefore do not let sin reign in your mortal body, that you should obey it in its lusts.
13 और अपने आ'ज़ा नारास्ती के हथियार होने के लिए गुनाह के हवाले न करो; बल्कि अपने आपको मुर्दों में से ज़िन्दा जानकर ख़ुदा के हवाले करो और अपने आ'ज़ा रास्तबाज़ी के हथियार होने के लिए ख़ुदा के हवाले करो।
Neither present your members to sin as instruments of unrighteousness, but present yourselves to God, as alive from the dead, and your members as instruments of righteousness to God.
14 इसलिए कि गुनाह का तुम पर इख़्तियार न होगा; क्यूँकि तुम शरी'अत के मातहत नहीं बल्कि फ़ज़ल के मातहत हो।
For sin will not have dominion over you. For you are not under law, but under grace.
15 पस क्या हुआ? क्या हम इसलिए गुनाह करें कि शरी'अत के मातहत नहीं बल्कि फ़ज़ल के मातहत हैं? हरगिज़ नहीं;
What then? Should we sin because we are not under law, but under grace? Absolutely not.
16 क्या तुम नहीं जानते, कि जिसकी फ़रमाँबरदारी के लिए अपने आप को ग़ुलामों की तरह हवाले कर देते हो, उसी के ग़ुलाम हो जिसके फ़रमाँबरदार हो चाहे गुनाह के जिसका अंजाम मौत है चाहे फ़रमाँबरदारी के जिस का अंजाम रास्तबाज़ी है?
Do you not know that when you present yourselves to someone as obedient slaves, you are slaves of the one whom you obey, whether of sin, which leads to death, or of obedience, which leads to righteousness?
17 लेकिन ख़ुदा का शुक्र है कि अगरचे तुम गुनाह के ग़ुलाम थे तोभी दिल से उस ता'लीम के फ़रमाँबरदार हो गए; जिसके साँचे में ढाले गए थे।
But thanks be to God, that, whereas you were slaves of sin, you became obedient from the heart to that form of teaching to which you were entrusted.
18 और गुनाह से आज़ाद हो कर रास्तबाज़ी के ग़ुलाम हो गए।
Being made free from sin, you became slaves of righteousness.
19 मैं तुम्हारी इंसानी कमज़ोरी की वजह से इंसानी तौर पर कहता हूँ; जिस तरह तुम ने अपने आ'ज़ा बदकारी करने के लिए नापाकी और बदकारी की ग़ुलामी के हवाले किए थे उसी तरह अब अपने आ'ज़ा पाक होने के लिए रास्तबाज़ी की ग़ुलामी के हवाले कर दो।
I speak in human terms because of the weakness of your flesh, for as you presented your members as slaves to uncleanness and to wickedness upon wickedness, even so now present your members as slaves to righteousness for sanctification.
20 क्यूँकि जब तुम गुनाह के ग़ुलाम थे, तो रास्तबाज़ी के ऐ'तिबार से आज़ाद थे।
For when you were slaves of sin, you were free in regard to righteousness.
21 पस जिन बातों पर तुम अब शर्मिन्दा हो उनसे तुम उस वक़्त क्या फल पाते थे? क्यूँकि उन का अंजाम तो मौत है।
What fruit then did you have at that time in the things of which you are now ashamed? For the end of those things is death.
22 मगर अब गुनाह से आज़ाद और ख़ुदा के ग़ुलाम हो कर तुम को अपना फल मिला जिससे पाकीज़गी हासिल होती है और इस का अंजाम हमेशा की ज़िन्दगी है। (aiōnios )
But now, being made free from sin, and having become slaves of God, you have your fruit of sanctification, and the result of everlasting life. (aiōnios )
23 क्यूँकि गुनाह की मज़दूरी मौत है मगर ख़ुदा की बख़्शिश हमारे ख़ुदावन्द ईसा मसीह में हमेशा की ज़िन्दगी है। (aiōnios )
For the wages of sin is death, but the free gift of God is everlasting life in Christ Jesus our Lord. (aiōnios )