< ज़बूर 101 >
1 मैं शफ़क़त और 'अदल का हम्द गाऊँगा; ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी मदह सराई करूँगा।
Misericordia y juicio cantaré; a ti, Jehová, diré salmos.
2 मैं 'अक़्लमंदी से कामिल राह पर चलूँगा, तू मेरे पास कब आएगा? घर में मेरा चाल चलन सच्चे दिल से होगा।
Entenderé en el camino de la perfección, cuando vinieres a mí: en perfección de mi corazón andaré en medio de mi casa.
3 मैं किसी ख़बासत को मद्द — ए — नज़र नहीं रखूँगा; मुझे कज रफ़तारों के काम से नफ़रत है; उसको मुझ से कुछ मतलब न होगा।
No pondré delante de mis ojos cosa injusta: hacer traiciones aborrecí: no se allegará a mí.
4 कजदिली मुझ से दूर हो जाएगी; मैं किसी बुराई से आशना न हूँगा।
Corazón perverso se apartará de mí: mal no conoceré.
5 जो दर पर्दा अपने पड़ोसी की बुराई करे, मैं उसे हलाक कर डालूँगा; मैं बुलन्द नज़र और मग़रूर दिल की बर्दाश्त न करूँगा।
Al detractor de su prójimo a escondidas, a este cortaré: al altivo de ojos, y ancho de corazón, a este no puedo sufrir.
6 मुल्क के ईमानदारों पर मेरी निगाह होगी ताकि वह मेरे साथ रहें; जो कामिल राह पर चलता है वही मेरी ख़िदमत करेगा।
Mis ojos serán sobre los fieles de la tierra, para que se sienten conmigo: el que anduviere en el camino de la perfección, este me servirá.
7 दग़ाबाज़ मेरे घर में रहने न पाएगा; दरोग़ गो को मेरे सामने क़याम न होगा।
No habitará en medio de mi casa el que hace engaño; el que habla mentiras no se afirmará delante de mis ojos.
8 मैं हर सुबह मुल्क के सब शरीरों को हलाक किया करूँगा, ताकि ख़ुदावन्द के शहर से बदकारों को काट डालूँ।
Por las mañanas cortaré a todos los impíos de la tierra: para talar de la ciudad de Jehová a todos los que obraren iniquidad.