< पैदाइश 31 >

1 और उसने लाबन के बेटों की यह बातें सुनीं, कि या'क़ूब ने हमारे बाप का सब कुछ ले लिया और हमारे बाप के माल की बदौलत उसकी यह सारी शान — ओ — शौकत है।
وَسَمِعَ يَعْقُوبُ مَا يُرَدِّدُهُ أَبْنَاءُ لابَانَ قَائِلِينَ: «لَقَدِ اسْتَوْلَى يَعْقُوبُ عَلَى كُلِّ مَا لأَبِينَا، وَجَمَعَ ثَرْوَتَهُ مِمَّا يَمْلِكُهُ وَالِدُنَا».١
2 और या'क़ूब ने लाबन के चेहरे को देख कर ताड़ लिया कि उसका रुख़ पहले से बदला हुआ है।
وَرَأَى يَعْقُوبُ أَنَّ مُعَامَلَةَ لابَانَ لَهُ قَدْ طَرَأَ عَلَيْهَا تَغْيِيرٌ فَاخْتَلَفَتْ عَمَّا كَانَتْ عَلَيْهِ سَابِقاً.٢
3 और ख़ुदावन्द ने या'क़ूब से कहा, कि तू अपने बाप दादा के मुल्क को और अपने रिश्तेदारो के पास लौट जा, और मैं तेरे साथ रहूँगा।
وَقَالَ الرَّبُّ لِيَعْقُوبَ: «عُدْ إِلَى أَرْضِ آبَائِكَ وَإِلَى قَوْمِكَ وَأَنَا أَكُونُ مَعَكَ».٣
4 तब या'क़ूब ने राख़िल और लियाह को मैदान में जहाँ उसकी भेड़ — बकरियाँ थीं बुलवाया
فَأَرْسَلَ يَعْقُوبُ وَاسْتَدْعَى رَاحِيلَ وَلَيْئَةَ إِلَى الْحَقْلِ حَيْثُ يَرْعَى الْمَاشِيَةَ.٤
5 और उनसे कहा, मैं देखता हूँ कि तुम्हारे बाप का रुख़ पहले से बदला हुआ है, लेकिन मेरे बाप का ख़ुदा मेरे साथ रहा।
وَقَالَ لَهُمَا: «إِنِّي أَرَى أَنَّ أَبَاكُمَا لَمْ يَعُدْ يُعَامِلُنِي كَالْعَهْدِ بِهِ مِنْ قَبْلُ، وَلَكِنْ إِلَهُ أَبَائِي كَانَ وَمَازَالَ مَعِي.٥
6 तुम तो जानती हो कि मैंने अपनी ताक़त के मुताबिक़ तुम्हारे बाप की ख़िदमत की है।
أَنْتُمَا تَعْلَمَانِ أَنَّنِي خَدَمْتُ أَبَاكُمَا بِكُلِّ قُوَايَ.٦
7 लेकिन तुम्हारे बाप ने मुझे धोका दे देकर दस बार मेरी मज़दूरी बदली, लेकिन ख़ुदा ने उसको मुझे नुक़्सान पहुँचाने न दिया।
أَمَّا أَبُوكُمَا فَقَدْ غَدَرَ بِي وَغَيَّرَ أُجْرَتِي عَشْرَ مَرَّاتٍ. لَكِنَّ اللهَ لَمْ يَسْمَحْ لَهُ بِأَنْ يُسِيءَ إِلَيَّ.٧
8 जब उसने यह कहा कि चितले बच्चे तेरी मज़दूरी होंगे, तो भेड़ बकरियाँ चितले बच्चे देने लगीं, और जब कहा कि धारीदार बच्चे तेरे होंगे, तो भेड़ — बकरियों ने धारीदार बच्चे दिए।
فَإِنْ قَالَ: لِتَكُنِ الْغَنَمُ الرُّقْطُ أُجْرَتَكَ، وَلَدَتْ كُلُّ الْغَنَمِ رُقْطاً. وَإِنْ قَالَ: لِتَكُنِ الْغَنَمُ الْمُخَطَّطَةُ أُجْرَتَكَ، وَلَدَتْ كُلُّ الْغَنَمِ مُخَطَّطَةً.٨
9 यूँ ख़ुदा ने तुम्हारे बाप के जानवर लेकर मुझे दे दिए।
لَقَدْ سَلَبَ اللهُ مَوَاشِي أَبِيكُمَا وَأَعْطَانِي إِيَّاهَا.٩
10 और जब भेड़ बकरियाँ गाभिन हुई, तो मैंने ख़्वाब में देखा कि जो बकरे बकरियों पर चढ़ रहे हैं वो धारीदार, चितले और चितकबरे हैं।
وَرَأَيْتُ فِي مَوْسِمِ تَلاقُحِ الْغَنَمِ حُلْماً: أَنَّ جَمِيعَ الْفُحُولِ الصَّاعِدَةِ عَلَى الْغَنَمِ مُخَطَّطَةٌ وَرَقْطَاءُ وَمُنَمَّرَةٌ.١٠
11 और ख़ुदा के फ़रिश्ते ने ख़्वाब में मुझ से कहा, 'ऐ या'क़ूब!' मैंने कहा, 'मैं हाज़िर हूँ।
وَقَالَ لِي مَلاكُ اللهِ فِي الْحُلْمِ: يَا يَعْقُوبُ،١١
12 तब उसने कहा कि अब तू अपनी आँख उठा कर देख, कि सब बकरे जो बकरियों पर चढ़ रहे हैं धारीदार चितले और चितकबरे हैं, क्यूँकि जो कुछ लाबन तुझ से करता है मैंने देखा।
تَطَلَّعْ حَوْلَكَ وَانْظُرْ، فَتَرَى أَنَّ جَمِيعَ الْفُحُولِ الصَّاعِدَةِ عَلَى الْغَنَمِ هِيَ مُخَطَّطَةٌ وَرَقْطَاءُ وَمُنَمَّرَةٌ. فَإِنِّي رَأَيْتُ مَا يَصْنَعُهُ بِكَ لابَانُ.١٢
13 मैं बैतएल का ख़ुदा हूँ, जहाँ तूने सुतून पर तेल डाला और मेरी मन्नत मानी, इसलिए अब उठ और इस मुल्क से निकल कर अपने वतन को लौट जा'।
أَنَا إِلَهُ بَيْتِ إِيلَ، حَيْثُ مَسَحْتَ عَمُوداً، وَحَيْثُ نَذَرْتَ لِي نَذْراً. الآنَ قُمْ وَامْضِ مِنْ هَذِهِ الأَرْضِ وَارْجِعْ إِلَى أَرْضِ مَوْلِدِكَ».١٣
14 तब राख़िल और लियाह ने उसे जवाब दिया, “क्या, अब भी हमारे बाप के घर में कुछ हमारा बख़रा या मीरास है?
فَقَالَتْ رَاحِيلُ وَلَيْئَةُ: «هَلْ بَقِيَ لَنَا نَصِيبٌ وَمِيرَاثٌ فِي بَيْتِ أَبِينَا؟١٤
15 क्या वह हम को अजनबी के बराबर नहीं समझता? क्यूँकि उसने हम को भी बेच डाला और हमारे रुपये भी खा बैठा।
أَلَمْ يُعَامِلْنَا كَأَجْنَبِيَّتَيْنِ لأَنَّهُ بَاعَنَا وَأَكَلَ ثَمَنَنَا أَيْضاً؟١٥
16 इसलिए अब जो दौलत ख़ुदा ने हमारे बाप से ली वह हमारी और हमारे फ़र्ज़न्दों की है, फिर जो कुछ ख़ुदा ने तुझ से कहा है वही कर।”
إِنَّ كُلَّ الثَّرْوَةِ الَّتِي سَلَبَهَا اللهُ مِنْ أَبِينَا هِيَ لَنَا وَلأَوْلادِنَا، وَالآنَ افْعَلْ كُلَّ مَا قَالَهُ اللهُ لَكَ».١٦
17 तब या'क़ूब ने उठ कर अपने बाल बच्चों और बीवियों को ऊँटों पर बिठाया।
فَقَامَ يَعْقُوبُ وَحَمَلَ أَوْلادَهُ وَنِسَاءَهُ عَلَى الْجِمَالِ،١٧
18 और अपने सब जानवरों और माल — ओ — अस्बाब को जो उसने इकट्ठा किया था, या'नी वह जानवर जो उसे फ़द्दान — अराम में मज़दूरी में मिले थे, लेकर चला ताकि मुल्क — ए — कना'न में अपने बाप इस्हाक़ के पास जाए।
وَسَاقَ كُلَّ مَاشِيَتِهِ أَمَامَهُ وَجَمِيعَ مُقْتَنَيَاتِهِ الَّتِي اقْتَنَاهَا فِي سَهْلِ أَرَامَ وَاتَّجَهَ إِلَى إِسْحاقَ أَبِيهِ فِي أَرْضِ كَنْعَانَ.١٨
19 और लाबन अपनी भेड़ों की ऊन कतरने को गया हुआ था, तब राख़िल अपने बाप के बुतों को चुरा ले गई।
وَكَانَ لابَانُ قَدْ مَضَى لِيَجُزَّ غَنَمَهُ، فَسَرَقَتْ رَاحِيلُ أَصْنَامَ أَبِيهَا.١٩
20 और या'क़ूब लाबन अरामी के पास से चोरी से चला गया, क्यूँकि उसे उसने अपने भागने की ख़बर न दी।
وَكَذَلِكَ خَدَعَ يَعْقُوبُ لابَانَ الأَرَامِيَّ فَلَمْ يُخْبِرْهُ بِقَرَارِهِ٢٠
21 फिर वह अपना सब कुछ लेकर भागा और दरिया पार होकर अपना रुख़ कोह — ए — जिल'आद की तरफ किया।
فَهَرَبَ هُوَ وَكُلُّ مَا مَعَهُ، وَانْطَلَقَ عَابِراً النَّهْرَ مُتَوَجِّهاً نَحْوَ جَبَلِ جِلْعَادَ.٢١
22 और तीसरे दिन लाबन की ख़बर हुई कि या'क़ूब भाग गया।
فَأُخْبِرَ لابَانُ فِي الْيَوْمِ الثَّالِثِ أَنَّ يَعْقُوبَ قَدْ هَرَبَ.٢٢
23 तब उसने अपने भाइयों को हमराह लेकर सात मन्ज़िल तक उसका पीछा किया, और जिल'आद के पहाड़ पर उसे जा पकड़ा।
فَصَحِبَ إِخْوَتَهُ مَعَهُ وَتَعَقَّبَهُ مَسِيرَةَ سَبْعَةِ أَيَّامٍ حَتَّى أَدْرَكَهُ فِي جَبَلِ جِلْعَادَ.٢٣
24 और रात को ख़ुदा लाबन अरामी के पास ख़्वाब में आया और उससे कहा कि ख़बरदार, तू या'क़ूब को बुरा या भला कुछ न कहना।
فَتَجَلَّى اللهُ لِلابَانَ الأَرَامِيِّ فِي حُلْمٍ لَيْلاً وَقَالَ لَهُ: «إِيَّاكَ أَنْ تُخَاطِبَ يَعْقُوبَ بِخَيْرٍ أَوْ بِشَرٍّ».٢٤
25 और लाबन या'क़ूब के बराबर जा पहुँचा और या'क़ूब ने अपना ख़ेमा पहाड़ पर खड़ा कर रख्खा था। इसलिए लाबन ने भी अपने भाइयों के साथ जिल'आद के पहाड़ पर डेरा लगा लिया।
وَحِينَ أَدْرَكَ لابَانُ يَعْقُوبَ كَانَ يَعْقُوبُ قَدْ ضَرَبَ خَيْمَتَهُ فِي الْجَبَلِ، فَخَيَّمَ لابَانُ وَإخْوَتُهُ فِي جَبَلِ جِلْعَادَ.٢٥
26 तब लाबन ने या'क़ूब से कहा, कि तूने यह क्या किया कि मेरे पास से चोरी से चला आया, और मेरी बेटियों को भी इस तरह ले आया गोया वह तलवार से क़ैद की गई हैं?
وَقَالَ لابَانُ لِيَعْقُوبَ: «مَاذَا دَهَاكَ حَتَّى إِنَّكَ خَدَعْتَنِي وَسُقْتَ ابْنَتَيَّ كَسَبَايَا السَّيْفِ؟٢٦
27 तू छिप कर क्यूँ भागा और मेरे पास से चोरी से क्यूँ चला आया और मुझे कुछ कहा भी नहीं, वरना मैं तुझे खु़शी — खु़शी तबले और बरबत के साथ गाते बजाते रवाना करता?
لِمَاذَا هَرَبْتَ خِفْيَةً وَخَدَعْتَنِي؟ لِمَاذَا لَمْ تُخْبِرْنِي فَكُنْتُ أُشَيِّعُكَ بِفَرَحٍ وَغِنَاءٍ وَدُفٍّ وَعُودٍ؟٢٧
28 और मुझे अपने बेटों और बेटियों को चूमने भी न दिया? यह तूने बेहूदा काम किया।
وَلَمْ تَدَعْنِي أُقَبِّلُ أَحْفَادِي وَابْنَتَيَّ؟ إِنَّكَ بِغَبَاوَةٍ تَصَرَّفْتَ.٢٨
29 मुझ में इतनी ताक़त है कि तुम को दुख दूँ, लेकिन तेरे बाप के ख़ुदा ने कल रात मुझे यूँ कहा, कि ख़बरदार तू या'क़ूब को बुरा या भला कुछ न कहना।
إنَّ فِي مَقْدُورِي أَنْ أُؤْذِيَكَ، وَلِكِنَّ إِلَهَ أَبِيكَ أَمَرَنِي لَيْلَةَ أَمْسٍ قَائِلاً: إِيَّاكَ أَنْ تُخَاطِبَ يَعْقُوبَ بِخَيْرٍ أَوْ بِشَرٍّ.٢٩
30 खै़र! अब तू चला आया तो चला आया क्यूँकि तू अपने बाप के घर का बहुत ख़्वाहिश मन्द है, लेकिन मेरे देवताओं को क्यूँ चुरा लाया?
وَالآنَ أَنْتَ تَمْضِي لأَنَّكَ اشْتَقْتَ إِلَى بَيْتِ أَبِيكَ، وَلَكِنْ لِمَاذَا سَرَقْتَ آلِهَتِي؟».٣٠
31 तब या'क़ूब ने लाबन से कहा, “इसलिए कि मैं डरा, क्यूँकि कि मैंने सोचा कि कहीं तू अपनी बेटियों को जबरन मुझ से छीन न ले।
فَأَجَابَ يَعْقُوبُ: «لأَنَّنِي خِفْتُ أَنْ تَغْتَصِبَ ابْنَتَيْكَ مِنِّي.٣١
32 अब जिसके पास तुझे तेरे बुत मिलें वह ज़िन्दा नहीं बचेगा। तेरा जो कुछ मेरे पास निकले उसे इन भाइयों के आगे पहचान कर ले।” क्यूँकि या'क़ूब को मा'लूम न था कि राख़िल उन देवताओं को चुरा लाई है।
وَالآنَ، مَنْ تَجِدُ آلِهَتَكَ مَعَهُ فَالْمَوْتُ عِقَابُهُ. فَتِّشْ أَمَامَ إِخْوَتِنَا كُلَّ مَا مَعِي. إِنْ وَجَدْتَ لَكَ شَيْئاً فَخُذْهُ». وَلَمْ يَكُنْ يَعْقُوبُ يَعْلَمُ أَنَّ رَاحِيلَ قَدْ سَرَقَتِ الآلِهَةَ.٣٢
33 चुनांचे लाबन या'क़ूब और लियाह और दोनों लौंडियों के ख़ेमों में गया लेकिन उनको वहाँ न पाया, तब वह लियाह के ख़ेमा से निकल कर राख़िल के ख़ेमे में दाख़िल हुआ।
فَدَخَلَ لابَانُ خَيْمَةَ كُلٍّ مِنْ يَعْقُوبَ وَلَيْئَةَ وَالْجَارِيَتَيْنِ فَلَمْ يَجِدْ شَيْئاً. ثُمَّ خَرَجَ مِنْ خِبَاءِ لَيْئَةَ وَدَخَلَ إِلَى خَيْمَةِ رَاحِيلَ.٣٣
34 और राख़िल उन बुतों को लेकर और उनकी ऊँट के कजावे में रख कर उन पर बैठ गई थी, और लाबन ने सारे ख़में में टटोल टटोल कर देख लिया पर उनको न पाया।
وَكَانَتْ رَاحِيلُ قَدْ أَخَذَتِ الأَصْنَامَ وَأَخْفَتْهَا فِي رَحْلِ الْجَمَلِ وَجَلَسَتْ عَلَيْهَا، فَبَحَثَ فِي كُلِّ الْخَيْمَةِ دُونَ أَنْ يَعْثُرَ عَلَى شَيْءٍ.٣٤
35 तब वह अपने बाप से कहने लगी, “ऐ मेरे आक़ा! तू इस बात से नाराज़ न होना कि मैं तेरे आगे उठ नहीं सकती, क्यूँकि मैं ऐसे हाल में हूँ जो 'औरतों का हुआ करता है।” तब उसने ढूंडा पर वह बुत उसको न मिले।
وَقَالَتْ لأَبِيهَا «لا يُسِئْكَ يَا سَيِّدِي عَدَمُ اسْتِطَاعَتِي الْوُقُوفَ أَمَامَكَ لأَنَّ عَادَةَ النِّسَاءِ قَدْ عَرَضَتْ لِي». وَعِنْدَمَا بَحَثَ لابَانُ وَلَمْ يَجِدْ شَيْئاً٣٥
36 तब या'क़ूब ने ग़ुस्सा होकर लाबन को मलामत की और या'क़ूब लाबन से कहने लगा कि मेरा क्या जुर्म और क्या क़ुसूर है कि तूने ऐसी तेज़ी से मेरा पीछा किया?
اغْتَاظَ يَعْقُوبُ وَخَاصَمَ لابَانَ قَائِلاً: «مَا هُوَ ذَنْبِي وَمَا هِيَ خَطِيئَتِي حَتَّى تَعَقَّبْتَنِي بِغَيْظٍ؟٣٦
37 तूने जो मेरा सारा सामान टटोल — टटोल कर देख लिया तो तुझे तेरे घर के सामान में से क्या चीज़ मिली? अगर कुछ है तो उसे मेरे और अपने इन भाइयो के आगे रख, कि वह हम दोनों के बीच इन्साफ़ करें।
وَهَا أَنْتَ قَدْ فَتَّشْتَ جَمِيعَ أَثَاثِ بَيْتِي، فَمَاذَا وَجَدْتَ مِنْ جَمِيعِ أَثَاثِ بَيْتِكَ؟ اعْرِضْهُ هُنَا أَمَامَ أَقْرِبَائِنَا فَيَحْكُمُوا بَيْنَنَا كِلَيْنَا.٣٧
38 मैं पूरे बीस साल तेरे साथ रहा; न तो कभी तेरी भेड़ों और बकरियों का गाभ गिरा, और न तेरे रेवड़ के मेंढे मैंने खाए।
لَقَدْ مَكَثْتُ مَعَكَ عِشْرِينَ سَنَةً، فَمَا أَسْقَطَتْ نِعَاجُكَ وَعِنَازُكَ، وَلَمْ آكُلْ مِنْ كِبَاشِ غَنَمِكَ.٣٨
39 जिसे दरिन्दों ने फाड़ा मैं उसे तेरे पास न लाया, उसका नुक़्सान मैंने सहा; जो दिन की या रात को चोरी गया उसे तूने मुझ से तलब किया।
أَشْلاءَ فَرِيسَةٍ لَمْ أُحْضِرْ لَكَ بَلْ كُنْتُ أَتَحَمَّلُ خَسَارَتَهَا، وَمِنْ يَدِي كُنْتَ تَطْلُبُهَا، سَوَاءٌ كَانَتْ مَخْطُوفَةً فِي النَّهَارِ أَمْ فِي اللَّيْلِ.٣٩
40 मेरा हाल यह रहा कि मैं दिन को गर्मी और रात को सर्दी में मरा और मेरी आँखों से नींद दूर रहती थी।
كُنْتُ فِي النَّهَارِ يَأْكُلُنِي الْحَرُّ وَفِي اللَّيْلِ الْجَلِيدُ، وَفَارَقَ نَوْمِي عَيْنَيَّ.٤٠
41 मैं बीस साल तक तेरे घर में रहा, चौदह साल तक तो मैंने तेरी दोनों बेटियों की ख़ातिर और छ: साल तक तेरी भेड़ बकरियों की ख़ातिर तेरी ख़िदमत की, और तूने दस बार मेरी मज़दूरी बदल डाली।
لَقَدْ صَارَ لِي عِشْرُونَ سَنَةً فِي بَيْتِكَ. أَرْبَعَ عَشْرَةَ سَنَةً مِنْهَا خَدَمْتُكَ لِقَاءَ زَوَاجِي بِابْنَتَيْكَ، وَسِتَّ سَنَوَاتٍ مُقَابِلَ غَنَمِكَ، وَقَدْ غَيَّرْتَ أُجْرَتِي عَشْرَ مَرَّاتٍ.٤١
42 अगर मेरे बाप का ख़ुदा अब्रहाम का मा'बूद जिसका रौब इस्हाक़ मानता था, मेरी तरफ़ न होता तो ज़रूर ही तू अब मुझे ख़ाली हाथ जाने देता। ख़ुदा ने मेरी मुसीबत और मेरे हाथों की मेहनत देखी है और कल रात तुझे डाँटा भी।
وَلَوْلا أَنَّ إِلَهَ أَبِي، إِلَهَ إِبْرَاهِيمَ وَهَيْبَةَ إِسْحاقَ كَانَا مَعِي لَكُنْتَ الآنَ قَدْ صَرَفْتَنِي فَارِغاً. لَكِنِ الرَّبُّ قَدْ رَأَى مَذَلَّتِي وَتَعَبَ يَدَيَّ فَوَبَّخَكَ لَيْلَةَ أَمْسِ».٤٢
43 तब लाबन ने या'क़ूब को जवाब दिया, यह बेटियाँ भी मेरी और यह लड़के भी मेरे और यह भेड़ बकरियाँ भी मेरी हैं, बल्कि जो कुछ तुझे दिखाई देता है वह सब मेरा ही है। इसलिए मैं आज के दिन अपनी ही बेटियों से या उनके लड़कों से जो उनके हुए क्या कर सकता हूँ?
فَأَجَابَ لابَانُ: «الْبَنَاتُ بَنَاتِي، وَالأَبْنَاءُ أَبْنَائِي وَالْغَنَمُ غَنَمِي، وَكُلُّ مَا تَرَاهُ هُوَ لِي. وَلَكِنْ مَاذَا أَفْعَلُ بِبَنَاتِي وَأَوْلادِهِنَّ الآنَ؟٤٣
44 फिर अब आ, कि मैं और तू दोनों मिल कर आपस में एक 'अहद बाँधे और वही मेरे और तेरे बीच गवाह रहे।
فَلْنَقْطَعْ عَهْداً بَيْنَنَا الْيَوْمَ، فَيَكُونَ شَاهِداً بَيْنِي وَبَيْنَكَ».٤٤
45 तब या'क़ूब ने एक पत्थर लेकर उसे सुतून की तरह खड़ा किया।
فَأَخَذَ يَعْقُوبُ حَجَراً وَنَصَبَهُ عَمُوداً،٤٥
46 और या'क़ूब ने अपने भाइयों से कहा, पत्थर जमा' करो! “उन्होंने पत्थर जमा' करके ढेर लगाया और वहीं उस ढेर के पास उन्होंने खाना खाया।
وَقَالَ لأَقْرِبَائِهِ: «اجْمَعُوا حِجَارَةً». فَأَخَذُوا الْحِجَارَةَ وَجَعَلُوهَا رُجْمَةً وَأَكَلُوا هُنَاكَ فَوْقَهَا.٤٦
47 और लाबन ने उसका नाम यज्र शाहदूथा और या'क़ूब ने जिल'आद रख्खा।
وَدَعَاهَا لابَانُ «يَجَرْ سَهْدُوثَا» (وَمَعْنَاهَا: رُجْمَةُ الشَّهَادَةِ بِلُغَةِ لابَانَ) وَأَمَّا يَعْقُوبُ فَدَعَاهَا «جَلْعِيدَ» (وَمَعْنَاهَا: رُجْمَةُ الشَّهَادَةِ بِلُغَةِ يَعْقُوبَ).٤٧
48 और लाबन ने कहा कि यह ढेर आज के दिन मेरे और तेरे बीच गवाह हो। इसी लिए उसका नाम जिल'आद रख्खा गया।
وَقَالَ لابَانُ: «هَذِهِ الرُّجْمَةُ شَاهِدَةٌ الْيَوْمَ بَيْنِي وَبَيْنَكَ». لِذَلِكَ دُعِيَ اسْمُهَا جَلْعِيدَ.٤٨
49 और मिस्फ़ाह भी क्यूँकि लाबन ने कहा कि जब हम एक दूसरे से गैर हाज़िर हों तो ख़ुदावन्द मेरे और तेरे बीच निगरानी करता रहे।
وَكَذَلِكَ دُعِيَتْ بِالْمِصْفَاةِ أَيْضاً لأَنَّهُ قَالَ: «لِيَكُنِ الرَّبُّ رَقِيباً بَيْنِي وَبَيْنَكَ حِينَ يَغِيبُ كُلٌّ مِنَّا عَنِ الآخَرِ.٤٩
50 अगर तू मेरी बेटियों को दुख दे और उनके अलावा और बीवियाँ करे तो कोई आदमी हमारे साथ नहीं है लेकिन देख ख़ुदा मेरे और तेरे बीच में गवाह है।
إِنْ أَسَأْتَ مُعَامَلَةَ ابْنَتَيَّ، أَوْ تَزَوَّجْتَ عَلَيْهِمَا، فَإِنَّ اللهَ يَرَاكَ وَيَكُونُ حَاكِماً بَيْنِي وَبَيْنَكَ حَتَّى لَوْ لَمْ أَعْرِفْ أَنَا».٥٠
51 लाबन ने या'क़ूब से यह भी कहा कि इस ढेर को देख और उस सुतून को देख जो मैंने अपने और तेरे बीच में खड़ा किया है।
وَأَضَافَ: «لِتَكُنِ الرُّجْمَةُ، وَهَذَا الْعَمُودُ الَّذِي أَقَمْتُهُ بَيْنِي وَبَيْنَكَ٥١
52 यह ढेर गवाह हो और ये सुतून गवाह हो, नुक़सान पहुँचाने के लिए न तो मैं इस ढेर से उधर तेरी तरफ़ हद से बढूँ और न तू इस ढेर और सुतून से इधर मेरी तरफ़ हद से बढ़े।
شَاهِدَيْنِ أَنْ لَا أَتَجَاوَزَ هَذِهِ الرُّجْمَةَ لإِيقَاعِ الأَذَى بِكَ، أَوْ تَتَجَاوَزَ أَنْتَ الرُّجْمَةَ وَهَذَا الْعَمُودَ لإِلْحَاقِ الضَّرَرِ بِي.٥٢
53 अब्रहाम का ख़ुदा और नहूर का ख़ुदा और उनके बाप का ख़ुदा हमारे बीच में इन्साफ़ करे।” और या'क़ूब ने उस ज़ात की क़सम खाई जिसका रौ'ब उसका बाप इस्हाक़ मानता था।
وَلْيَكُنْ إِلَهُ إِبْرَاهِيمَ وَإِلَهُ نَاحُورَ وَإِلَهُ أَبِيهِمَا حَاكِماً بَيْنَنَا». فَحَلَفَ يَعْقُوبُ بِهَيْبَةِ أَبِيهِ إِسْحاقَ.٥٣
54 तब या'क़ूब ने वहीं पहाड़ पर क़ुर्बानी पेश की और अपने भाइयों को खाने पर बुलाया, और उन्होंने खाना खाया और रात पहाड़ पर काटी।
ثُمَّ قَدَّمَ يَعْقُوبُ قُرْبَاناً فِي الْجَبَلِ وَدَعَا أَقْرِبَاءَهُ لِيَأْكُلُوا طَعَاماً، فَأَكَلُوا وَقَضَوْا لَيْلَتَهُمْ فِي الْجَبَلِ.٥٤
55 और लाबन सुबह — सवेरे उठा और अपने बेटों और अपनी बेटियों को चूमा और उनको दुआ देकर रवाना हो गया और अपने मकान को लौटा।
وَفِي الصَّبَاحِ الْمُبَكِّرِ نَهَضَ لابَانُ وَقَبَّلَ أَحْفَادَهُ وَابْنَتَيْهِ وَبَارَكَهُمْ، ثُمَّ انْصَرَفَ رَاجِعاً، إِلَى مَحَلِّ إِقَامَتِهِ.٥٥

< पैदाइश 31 >