< যোহনঃ 16 >

1 যুষ্মাকং যথা ৱাধা ন জাযতে তদর্থং যুষ্মান্ এতানি সর্ৱ্ৱৱাক্যানি ৱ্যাহরং|
युष्माकं यथा वाधा न जायते तदर्थं युष्मान् एतानि सर्व्ववाक्यानि व्याहरं।
2 লোকা যুষ্মান্ ভজনগৃহেভ্যো দূরীকরিষ্যন্তি তথা যস্মিন্ সমযে যুষ্মান্ হৎৱা ঈশ্ৱরস্য তুষ্টি জনকং কর্ম্মাকুর্ম্ম ইতি মংস্যন্তে স সময আগচ্ছন্তি|
लोका युष्मान् भजनगृहेभ्यो दूरीकरिष्यन्ति तथा यस्मिन् समये युष्मान् हत्वा ईश्वरस्य तुष्टि जनकं कर्म्माकुर्म्म इति मंस्यन्ते स समय आगच्छन्ति।
3 তে পিতরং মাঞ্চ ন জানন্তি, তস্মাদ্ যুষ্মান্ প্রতীদৃশম্ আচরিষ্যন্তি|
ते पितरं माञ्च न जानन्ति, तस्माद् युष्मान् प्रतीदृशम् आचरिष्यन्ति।
4 অতো হেতাঃ সমযে সমুপস্থিতে যথা মম কথা যুষ্মাকং মনঃসুঃ সমুপতিষ্ঠতি তদর্থং যুষ্মাভ্যম্ এতাং কথাং কথযামি যুষ্মাভিঃ সার্দ্ধম্ অহং তিষ্ঠন্ প্রথমং তাং যুষ্মভ্যং নাকথযং|
अतो हेताः समये समुपस्थिते यथा मम कथा युष्माकं मनःसुः समुपतिष्ठति तदर्थं युष्माभ्यम् एतां कथां कथयामि युष्माभिः सार्द्धम् अहं तिष्ठन् प्रथमं तां युष्मभ्यं नाकथयं।
5 সাম্প্রতং স্ৱস্য প্রেরযিতুঃ সমীপং গচ্ছামি তথাপি ৎৱং ক্ক গচ্ছসি কথামেতাং যুষ্মাকং কোপি মাং ন পৃচ্ছতি|
साम्प्रतं स्वस्य प्रेरयितुः समीपं गच्छामि तथापि त्वं क्क गच्छसि कथामेतां युष्माकं कोपि मां न पृच्छति।
6 কিন্তু মযোক্তাভিরাভিঃ কথাভি র্যূষ্মাকম্ অন্তঃকরণানি দুঃখেন পূর্ণান্যভৱন্|
किन्तु मयोक्ताभिराभिः कथाभि र्यूष्माकम् अन्तःकरणानि दुःखेन पूर्णान्यभवन्।
7 তথাপ্যহং যথার্থং কথযামি মম গমনং যুষ্মাকং হিতার্থমেৱ, যতো হেতো র্গমনে ন কৃতে সহাযো যুষ্মাকং সমীপং নাগমিষ্যতি কিন্তু যদি গচ্ছামি তর্হি যুষ্মাকং সমীপে তং প্রেষযিষ্যামি|
तथाप्यहं यथार्थं कथयामि मम गमनं युष्माकं हितार्थमेव, यतो हेतो र्गमने न कृते सहायो युष्माकं समीपं नागमिष्यति किन्तु यदि गच्छामि तर्हि युष्माकं समीपे तं प्रेषयिष्यामि।
8 ততঃ স আগত্য পাপপুণ্যদণ্ডেষু জগতো লোকানাং প্রবোধং জনযিষ্যতি|
ततः स आगत्य पापपुण्यदण्डेषु जगतो लोकानां प्रबोधं जनयिष्यति।
9 তে মযি ন ৱিশ্ৱসন্তি তস্মাদ্ধেতোঃ পাপপ্রবোধং জনযিষ্যতি|
ते मयि न विश्वसन्ति तस्माद्धेतोः पापप्रबोधं जनयिष्यति।
10 ১০ যুষ্মাকম্ অদৃশ্যঃ সন্নহং পিতুঃ সমীপং গচ্ছামি তস্মাদ্ পুণ্যে প্রবোধং জনযিষ্যতি|
युष्माकम् अदृश्यः सन्नहं पितुः समीपं गच्छामि तस्माद् पुण्ये प्रबोधं जनयिष्यति।
11 ১১ এতজ্জগতোঽধিপতি র্দণ্ডাজ্ঞাং প্রাপ্নোতি তস্মাদ্ দণ্ডে প্রবোধং জনযিষ্যতি|
एतज्जगतोऽधिपति र्दण्डाज्ञां प्राप्नोति तस्माद् दण्डे प्रबोधं जनयिष्यति।
12 ১২ যুষ্মভ্যং কথযিতুং মমানেকাঃ কথা আসতে, তাঃ কথা ইদানীং যূযং সোঢুং ন শক্নুথ;
युष्मभ्यं कथयितुं ममानेकाः कथा आसते, ताः कथा इदानीं यूयं सोढुं न शक्नुथ;
13 ১৩ কিন্তু সত্যময আত্মা যদা সমাগমিষ্যতি তদা সর্ৱ্ৱং সত্যং যুষ্মান্ নেষ্যতি, স স্ৱতঃ কিমপি ন ৱদিষ্যতি কিন্তু যচ্ছ্রোষ্যতি তদেৱ কথযিৎৱা ভাৱিকার্য্যং যুষ্মান্ জ্ঞাপযিষ্যতি|
किन्तु सत्यमय आत्मा यदा समागमिष्यति तदा सर्व्वं सत्यं युष्मान् नेष्यति, स स्वतः किमपि न वदिष्यति किन्तु यच्छ्रोष्यति तदेव कथयित्वा भाविकार्य्यं युष्मान् ज्ञापयिष्यति।
14 ১৪ মম মহিমানং প্রকাশযিষ্যতি যতো মদীযাং কথাং গৃহীৎৱা যুষ্মান্ বোধযিষ্যতি|
मम महिमानं प्रकाशयिष्यति यतो मदीयां कथां गृहीत्वा युष्मान् बोधयिष्यति।
15 ১৫ পিতু র্যদ্যদ্ আস্তে তৎ সর্ৱ্ৱং মম তস্মাদ্ কারণাদ্ অৱাদিষং স মদীযাং কথাং গৃহীৎৱা যুষ্মান্ বোধযিষ্যতি|
पितु र्यद्यद् आस्ते तत् सर्व्वं मम तस्माद् कारणाद् अवादिषं स मदीयां कथां गृहीत्वा युष्मान् बोधयिष्यति।
16 ১৬ কিযৎকালাৎ পরং যূযং মাং দ্রষ্টুং ন লপ্স্যধ্ৱে কিন্তু কিযৎকালাৎ পরং পুন র্দ্রষ্টুং লপ্স্যধ্ৱে যতোহং পিতুঃ সমীপং গচ্ছামি|
कियत्कालात् परं यूयं मां द्रष्टुं न लप्स्यध्वे किन्तु कियत्कालात् परं पुन र्द्रष्टुं लप्स्यध्वे यतोहं पितुः समीपं गच्छामि।
17 ১৭ ততঃ শিষ্যাণাং কিযন্তো জনাঃ পরস্পরং ৱদিতুম্ আরভন্ত, কিযৎকালাৎ পরং মাং দ্রষ্টুং ন লপ্স্যধ্ৱে কিন্তু কিযৎকালাৎ পরং পুন র্দ্রষ্টুং লপ্স্যধ্ৱে যতোহং পিতুঃ সমীপং গচ্ছামি, ইতি যদ্ ৱাক্যম্ অযং ৱদতি তৎ কিং?
ततः शिष्याणां कियन्तो जनाः परस्परं वदितुम् आरभन्त, कियत्कालात् परं मां द्रष्टुं न लप्स्यध्वे किन्तु कियत्कालात् परं पुन र्द्रष्टुं लप्स्यध्वे यतोहं पितुः समीपं गच्छामि, इति यद् वाक्यम् अयं वदति तत् किं?
18 ১৮ ততঃ কিযৎকালাৎ পরম্ ইতি তস্য ৱাক্যং কিং? তস্য ৱাক্যস্যাভিপ্রাযং ৱযং বোদ্ধুং ন শক্নুমস্তৈরিতি
ततः कियत्कालात् परम् इति तस्य वाक्यं किं? तस्य वाक्यस्याभिप्रायं वयं बोद्धुं न शक्नुमस्तैरिति
19 ১৯ নিগদিতে যীশুস্তেষাং প্রশ্নেচ্ছাং জ্ঞাৎৱা তেভ্যোঽকথযৎ কিযৎকালাৎ পরং মাং দ্রষ্টুং ন লপ্স্যধ্ৱে, কিন্তু কিযৎকালাৎ পরং পূন র্দ্রষ্টুং লপ্স্যধ্ৱে, যামিমাং কথামকথযং তস্যা অভিপ্রাযং কিং যূযং পরস্পরং মৃগযধ্ৱে?
निगदिते यीशुस्तेषां प्रश्नेच्छां ज्ञात्वा तेभ्योऽकथयत् कियत्कालात् परं मां द्रष्टुं न लप्स्यध्वे, किन्तु कियत्कालात् परं पून र्द्रष्टुं लप्स्यध्वे, यामिमां कथामकथयं तस्या अभिप्रायं किं यूयं परस्परं मृगयध्वे?
20 ২০ যুষ্মানহম্ অতিযথার্থং ৱদামি যূযং ক্রন্দিষ্যথ ৱিলপিষ্যথ চ, কিন্তু জগতো লোকা আনন্দিষ্যন্তি; যূযং শোকাকুলা ভৱিষ্যথ কিন্তু শোকাৎ পরং আনন্দযুক্তা ভৱিষ্যথ|
युष्मानहम् अतियथार्थं वदामि यूयं क्रन्दिष्यथ विलपिष्यथ च, किन्तु जगतो लोका आनन्दिष्यन्ति; यूयं शोकाकुला भविष्यथ किन्तु शोकात् परं आनन्दयुक्ता भविष्यथ।
21 ২১ প্রসৱকাল উপস্থিতে নারী যথা প্রসৱৱেদনযা ৱ্যাকুলা ভৱতি কিন্তু পুত্রে ভূমিষ্ঠে সতি মনুষ্যৈকো জন্মনা নরলোকে প্রৱিষ্ট ইত্যানন্দাৎ তস্যাস্তৎসর্ৱ্ৱং দুঃখং মনসি ন তিষ্ঠতি,
प्रसवकाल उपस्थिते नारी यथा प्रसववेदनया व्याकुला भवति किन्तु पुत्रे भूमिष्ठे सति मनुष्यैको जन्मना नरलोके प्रविष्ट इत्यानन्दात् तस्यास्तत्सर्व्वं दुःखं मनसि न तिष्ठति,
22 ২২ তথা যূযমপি সাম্প্রতং শোকাকুলা ভৱথ কিন্তু পুনরপি যুষ্মভ্যং দর্শনং দাস্যামি তেন যুষ্মাকম্ অন্তঃকরণানি সানন্দানি ভৱিষ্যন্তি, যুষ্মাকং তম্ আনন্দঞ্চ কোপি হর্ত্তুং ন শক্ষ্যতি|
तथा यूयमपि साम्प्रतं शोकाकुला भवथ किन्तु पुनरपि युष्मभ्यं दर्शनं दास्यामि तेन युष्माकम् अन्तःकरणानि सानन्दानि भविष्यन्ति, युष्माकं तम् आनन्दञ्च कोपि हर्त्तुं न शक्ष्यति।
23 ২৩ তস্মিন্ দিৱসে কামপি কথাং মাং ন প্রক্ষ্যথ| যুষ্মানহম্ অতিযথার্থং ৱদামি, মম নাম্না যৎ কিঞ্চিদ্ পিতরং যাচিষ্যধ্ৱে তদেৱ স দাস্যতি|
तस्मिन् दिवसे कामपि कथां मां न प्रक्ष्यथ। युष्मानहम् अतियथार्थं वदामि, मम नाम्ना यत् किञ्चिद् पितरं याचिष्यध्वे तदेव स दास्यति।
24 ২৪ পূর্ৱ্ৱে মম নাম্না কিমপি নাযাচধ্ৱং, যাচধ্ৱং ততঃ প্রাপ্স্যথ তস্মাদ্ যুষ্মাকং সম্পূর্ণানন্দো জনিষ্যতে|
पूर्व्वे मम नाम्ना किमपि नायाचध्वं, याचध्वं ततः प्राप्स्यथ तस्माद् युष्माकं सम्पूर्णानन्दो जनिष्यते।
25 ২৫ উপমাকথাভিঃ সর্ৱ্ৱাণ্যেতানি যুষ্মান্ জ্ঞাপিতৱান্ কিন্তু যস্মিন্ সমযে উপমযা নোক্ত্ৱা পিতুঃ কথাং স্পষ্টং জ্ঞাপযিষ্যামি সময এতাদৃশ আগচ্ছতি|
उपमाकथाभिः सर्व्वाण्येतानि युष्मान् ज्ञापितवान् किन्तु यस्मिन् समये उपमया नोक्त्वा पितुः कथां स्पष्टं ज्ञापयिष्यामि समय एतादृश आगच्छति।
26 ২৬ তদা মম নাম্না প্রার্থযিষ্যধ্ৱে ঽহং যুষ্মন্নিমিত্তং পিতরং ৱিনেষ্যে কথামিমাং ন ৱদামি;
तदा मम नाम्ना प्रार्थयिष्यध्वे ऽहं युष्मन्निमित्तं पितरं विनेष्ये कथामिमां न वदामि;
27 ২৭ যতো যূযং মযি প্রেম কুরুথ, তথাহম্ ঈশ্ৱরস্য সমীপাদ্ আগতৱান্ ইত্যপি প্রতীথ, তস্মাদ্ কারণাৎ কারণাৎ পিতা স্ৱযং যুষ্মাসু প্রীযতে|
यतो यूयं मयि प्रेम कुरुथ, तथाहम् ईश्वरस्य समीपाद् आगतवान् इत्यपि प्रतीथ, तस्माद् कारणात् कारणात् पिता स्वयं युष्मासु प्रीयते।
28 ২৮ পিতুঃ সমীপাজ্জজদ্ আগতোস্মি জগৎ পরিত্যজ্য চ পুনরপি পিতুঃ সমীপং গচ্ছামি|
पितुः समीपाज्जजद् आगतोस्मि जगत् परित्यज्य च पुनरपि पितुः समीपं गच्छामि।
29 ২৯ তদা শিষ্যা অৱদন্, হে প্রভো ভৱান্ উপমযা নোক্ত্ৱাধুনা স্পষ্টং ৱদতি|
तदा शिष्या अवदन्, हे प्रभो भवान् उपमया नोक्त्वाधुना स्पष्टं वदति।
30 ৩০ ভৱান্ সর্ৱ্ৱজ্ঞঃ কেনচিৎ পৃষ্টো ভৱিতুমপি ভৱতঃ প্রযোজনং নাস্তীত্যধুনাস্মাকং স্থিরজ্ঞানং জাতং তস্মাদ্ ভৱান্ ঈশ্ৱরস্য সমীপাদ্ আগতৱান্ ইত্যত্র ৱযং ৱিশ্ৱসিমঃ|
भवान् सर्व्वज्ञः केनचित् पृष्टो भवितुमपि भवतः प्रयोजनं नास्तीत्यधुनास्माकं स्थिरज्ञानं जातं तस्माद् भवान् ईश्वरस्य समीपाद् आगतवान् इत्यत्र वयं विश्वसिमः।
31 ৩১ ততো যীশুঃ প্রত্যৱাদীদ্ ইদানীং কিং যূযং ৱিশ্ৱসিথ?
ततो यीशुः प्रत्यवादीद् इदानीं किं यूयं विश्वसिथ?
32 ৩২ পশ্যত সর্ৱ্ৱে যূযং ৱিকীর্ণাঃ সন্তো মাম্ একাকিনং পীরত্যজ্য স্ৱং স্ৱং স্থানং গমিষ্যথ, এতাদৃশঃ সময আগচ্ছতি ৱরং প্রাযেণোপস্থিতৱান্; তথাপ্যহং নৈকাকী ভৱামি যতঃ পিতা মযা সার্দ্ধম্ আস্তে|
पश्यत सर्व्वे यूयं विकीर्णाः सन्तो माम् एकाकिनं पीरत्यज्य स्वं स्वं स्थानं गमिष्यथ, एतादृशः समय आगच्छति वरं प्रायेणोपस्थितवान्; तथाप्यहं नैकाकी भवामि यतः पिता मया सार्द्धम् आस्ते।
33 ৩৩ যথা মযা যুষ্মাকং শান্তি র্জাযতে তদর্থম্ এতাঃ কথা যুষ্মভ্যম্ অচকথং; অস্মিন্ জগতি যুষ্মাকং ক্লেশো ঘটিষ্যতে কিন্ত্ৱক্ষোভা ভৱত যতো মযা জগজ্জিতং|
यथा मया युष्माकं शान्ति र्जायते तदर्थम् एताः कथा युष्मभ्यम् अचकथं; अस्मिन् जगति युष्माकं क्लेशो घटिष्यते किन्त्वक्षोभा भवत यतो मया जगज्जितं।

< যোহনঃ 16 >