< Romanos 12 >
1 obsecro itaque vos fratres per misericordiam Dei ut exhibeatis corpora vestra hostiam viventem sanctam Deo placentem rationabile obsequium vestrum
येकोलायी हे भाऊवों अऊर बहिनों, मय परमेश्वर की दया याद दिलाय क बिनती करू हय कि अपनो शरीरों ख जीन्दो, अऊर पवित्र, अऊर परमेश्वर ख भातो हुयो बलिदान कर क् चढ़ावो। योच तुम्हरी सच्चो उपासना हय।
2 et nolite conformari huic saeculo sed reformamini in novitate sensus vestri ut probetis quae sit voluntas Dei bona et placens et perfecta (aiōn )
यो जगत को जसो मत बनो; पर तुम्हरो मन को नयो पन होय जान सी तुम्हरो चाल-चलन भी बदलतो जाये, जेकोसी तुम परमेश्वर की अच्छी, अऊर भावती, अऊर सिद्ध इच्छा अनुभव सी मालूम करतो रहो। (aiōn )
3 dico enim per gratiam quae data est mihi omnibus qui sunt inter vos non plus sapere quam oportet sapere sed sapere ad sobrietatem unicuique sicut Deus divisit mensuram fidei
कहालीकि मय ऊ अनुग्रह को वजह जो मोख मिल्यो हय, तुम सी हर एक सी कहू हय कि जसो समझनो चाहिये ओको सी बढ़ क कोयी भी अपनो आप ख मत समझो; पर जसो परमेश्वर न हर एक ख विश्वास परिनाम को अनुसार बाट दियो हय, वसोच सुबुद्धी को संग अपनो आप ख समझो।
4 sicut enim in uno corpore multa membra habemus omnia autem membra non eundem actum habent
कहालीकि जसी हमरो एक शरीर म बहुत सो अंग हंय, सब अंगों को एक जसो काम नहाय;
5 ita multi unum corpus sumus in Christo singuli autem alter alterius membra
वसोच हम जो बहुत अंग रह्य क भी मसीह म एक शरीर हंय, अऊर हम एक दूसरों म, मिल्यो हुयो हय जसो एक शरीर म हय।
6 habentes autem donationes secundum gratiam quae data est nobis differentes sive prophetiam secundum rationem fidei
येकोलायी ऊ अनुग्रह को अनुसार जो हम्ख दियो गयो हय, अलग अलग तरह को वरदान मिल्यो हंय, त जेक सन्देश देन को दान मिल्यो होना, त ऊ विश्वास को अनुसार सन्देश दे;
7 sive ministerium in ministrando sive qui docet in doctrina
यदि सेवा करन को दान मिल्यो होना, त सेवा म लग्यो रहे; यदि कोयी सिखावन वालो होना, त सिखावन म लग्यो रहे;
8 qui exhortatur in exhortando qui tribuit in simplicitate qui praeest in sollicitudine qui miseretur in hilaritate
जो प्रोत्साहन देन वालो हो ऊ प्रोत्साहित करे जो दान देन उदारता सी दे; जो अगुवायी करन वालो हो ऊ लगन को संग अगुवायी करे, अऊर जसो दया दिखानो को दान हो, ऊ प्रसन्नता सी करे।
9 dilectio sine simulatione odientes malum adherentes bono
तुम्हरो प्रेम निष्कपट होना; बुरायी सी घृना करो; अऊर भलायी म लग्यो रहो।
10 caritatem fraternitatis invicem diligentes honore invicem praevenientes
भाईचारा को प्रेम सी एक दूसरों सी प्रेम करनो अऊर एक दूसरों को लायी आदर दिखावन को लायी उत्सुक होनो चाहिये।
11 sollicitudine non pigri spiritu ferventes Domino servientes
कोशिश करन म आलसी नहीं होना; आत्मिक उत्साह म भरयो रहो; प्रभु की सेवा करत रहो।
12 spe gaudentes in tribulatione patientes orationi instantes
आशा म खुशी रहो; कठिनायी म धिरज रखो; अऊर हर समय प्रार्थना म लग्यो रहो।
13 necessitatibus sanctorum communicantes hospitalitatem sectantes
मसीह लोगों ख जो कुछ जरूरत होना ओको म उन्की मदत करो; अऊर मेहमानी करनो म सहभागी लग्यो रहो।
14 benedicite persequentibus benedicite et nolite maledicere
अपनो सतावन वालो ख आशीष देवो; आशीष हि देवो श्राप मत देवो।
15 gaudere cum gaudentibus flere cum flentibus
खुशी मनावन वालो को संग खुशी मनावो, अऊर रोवन वालो को संग रोवो।
16 id ipsum invicem sentientes non alta sapientes sed humilibus consentientes nolite esse prudentes apud vosmet ipsos
आपस म एक जसो मन रखो; अभिमानी नहीं हो, पर नम्रता सी संगति रखो; अपनो नजर म बुद्धिमान मत बनो।
17 nulli malum pro malo reddentes providentes bona non tantum coram Deo sed etiam coram omnibus hominibus
बुरायी को बदला कोयी सी बुरायी मत करो; जो बाते सब लोगों को नजर म भली हंय, उनकी चिन्ता करतो रहो।
18 si fieri potest quod ex vobis est cum omnibus hominibus pacem habentes
जहां तक बन सकय, सब आदमियों को संग मेल मिलाप रखो।
19 non vosmet ipsos defendentes carissimi sed date locum irae scriptum est enim mihi vindictam ego retribuam dicit Dominus
हे प्रियो, बदला मत लेवो, पर परमेश्वर को गुस्सा ख मौका देवो, कहालीकि शास्त्र म लिख्यो हय, “बदला लेनो मोरो काम आय, प्रभु कह्य हय मयच बदला देऊ।”
20 sed si esurierit inimicus tuus ciba illum si sitit potum da illi hoc enim faciens carbones ignis congeres super caput eius
पर “यदि तोरो दुश्मन भूखो हय त ओख खाना खिलायजो, यदि प्यासो हय त ओख पानी पिलावो; कहालीकि असो करन सी खुद हि तोख शरमायेंन।”
21 noli vinci a malo sed vince in bono malum
बुरायी सी मत हारो, पर भलायी सी बुरायी ख जीत लेवो।