< लूका 10 >
1 १ और इन बातों के बाद प्रभु ने सत्तर और मनुष्य नियुक्त किए और जिस-जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर था, वहाँ उन्हें दो-दो करके अपने आगे भेजा।
ⲁ̅ⲙⲛ̅ⲛⲥⲁ(ⲛⲁ)ⲓ̈ ⲁⲡϫⲟⲉⲓⲥ ⲥⲉⲧⲡ̅ⲕⲉϣϥⲉⲥⲛⲟⲟⲩⲥ ⲁϥϫⲟⲟⲩⲥⲉ ⲥⲛⲁⲩ ⲥⲛⲁⲩ ϩⲁⲧⲉϥϩⲏ ⲉⲡⲟⲗⲓⲥ ⲛⲓⲙ ⲛⲙⲙⲁ ⲛⲓⲙ ⲉⲧϥ̅ⲛⲁⲃⲱⲕ ⲉϩⲟⲩⲛ ⲉⲣⲟⲟⲩ.
2 २ और उसने उनसे कहा, “पके खेत बहुत हैं; परन्तु मजदूर थोड़े हैं इसलिए खेत के स्वामी से विनती करो, कि वह अपने खेत काटने को मजदूर भेज दे।
ⲃ̅ⲛⲉϥϫⲱ ⲇⲉ ⲙⲙⲟⲥ ⲛⲁⲩ ϫⲉ ⲡⲱϩⲥ̅ ⲙⲉⲛ ⲛⲁϣⲱϥ ⲛⲉⲣⲅⲁⲧⲏⲥ ⲇⲉ ⲥⲃⲕ̅ⲏⲡⲉ. ⲥⲉⲡⲥ̅ⲡϫⲟⲉⲓⲥ ⲇⲉ ⲙⲡⲱϩⲥ̅ ϫⲉ ⲉϥⲉⲛⲉϫⲉⲣⲅⲁⲧⲏⲥ ⲉⲃⲟⲗ ⲉⲡⲉϥⲱϩⲥ̅.
3 ३ जाओ; देखों मैं तुम्हें भेड़ों के समान भेड़ियों के बीच में भेजता हूँ।
ⲅ̅ⲃⲱⲕ ⲉⲓⲥϩⲏⲏⲧⲉ ⲁⲛⲟⲕ ϯϫⲟⲟⲩ ⲙ̅ⲙⲱⲧⲛ̅ ⲛ̅ⲑⲉ ⲛϩⲉⲛϩⲓⲉⲓⲃ ⲛ̅ⲧⲙⲏⲧⲉ ⲛ̅ϩⲉⲛⲟⲩⲱⲛϣ̅.
4 ४ इसलिए न बटुआ, न झोली, न जूते लो; और न मार्ग में किसी को नमस्कार करो।
ⲇ̅ⲙ̅ⲡⲣ̅ϥⲓⲧⲱⲱⲙⲉ ⲟⲩⲇⲉ ⲡⲏⲣⲁ. ⲟⲩⲇⲉ ⲧⲟⲟⲩⲉ. ⲁⲩⲱ ⲙ̅ⲡⲣ̅ⲁⲥⲡⲁⲍⲉ ⲗ̅ⲗⲁⲁⲩ ϩⲓⲧⲉϩⲓⲏ.
5 ५ जिस किसी घर में जाओ, पहले कहो, ‘इस घर पर कल्याण हो।’
ⲉ̅ⲡⲏⲓ̈ ⲇⲉ ⲉⲧⲉⲧⲛⲁⲃⲱⲕ ⲉϩⲟⲩⲛ ⲉⲣⲟϥ. ⲁϫⲓⲥ ⲛ̅ϣⲟⲣⲡ̅ ϫⲉ ϯⲣⲏⲛⲏ ⲙ̅ⲡⲉⲓ̈ⲏⲓ̈
6 ६ यदि वहाँ कोई कल्याण के योग्य होगा; तो तुम्हारा कल्याण उस पर ठहरेगा, नहीं तो तुम्हारे पास लौट आएगा।
ⲋ̅ⲁⲩⲱ ⲉϣⲱⲡⲉ ⲟⲩⲛϣⲏⲣⲉ ⲛ̅ⲓ̈ⲣⲏⲛⲏ ⲙ̅ⲙⲁⲩ. ⲉⲣⲉⲧⲉⲧⲛ̅ⲓ̈ⲣⲏⲛⲏ ⲙ̅ⲧⲟⲛ ⲙ̅ⲙⲟⲥ ⲉϩⲣⲁⲓ̈ ⲉϫⲱϥ. ⲉϣⲱⲡⲉ ⲇⲉ ⲙ̅ⲙⲟⲛ. ⲉⲥⲉⲕⲟⲧⲥ̅ ⲉⲣⲱⲧⲛ̅.
7 ७ उसी घर में रहो, और जो कुछ उनसे मिले, वही खाओ-पीओ, क्योंकि मजदूर को अपनी मजदूरी मिलनी चाहिए; घर-घर न फिरना।
ⲍ̅ⲉⲧⲉⲧⲛⲉϭⲱ ⲇⲉ ϩⲛ̅ⲟⲩⲏⲓ̈ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧʾ ⲉⲧⲉⲧⲛ̅ⲟⲩⲱⲙ ⲁⲩⲱ ⲉⲧⲉⲧⲛ̅ⲥⲱ ⲛ̅ⲧⲟⲟⲧⲟⲩ. ⲡⲉⲣⲅⲁⲧⲏⲥ ⲅⲁⲣ ⲙ̅ⲡϣⲁ ⲙ̅ⲡⲉϥⲃⲉⲕⲉ. ⲙ̅ⲡⲣ̅ⲡⲱⲱⲛⲉ ⲉⲃⲟⲗ ϩⲛ̅ⲟⲩⲏⲓ̈ ⲉⲩⲏⲓ̈.
8 ८ और जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें उतारें, तो जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए वही खाओ।
ⲏ̅ⲧⲡⲟⲗⲉⲓⲥ ⲇⲉ ⲉⲧⲉⲧⲛⲁⲃⲱⲕ ⲉϩⲟⲩⲛ ⲉⲣⲟⲥ ⲛ̅ⲥⲉϣⲉⲡⲧⲏⲩⲧⲛ̅ ⲉⲣⲟⲟⲩ ⲟⲩⲱⲙ ⲛ̅ⲛⲉⲧⲟⲩⲛⲁⲕⲁⲁⲩ ϩⲁⲣⲱⲧⲛ̅
9 ९ वहाँ के बीमारों को चंगा करो: और उनसे कहो, ‘परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’
ⲑ̅ⲁⲩⲱ ⲛ̅ⲧⲉⲧⲛⲧⲁⲗϭⲉⲛⲉⲧϣⲱⲛⲉ ⲛ̅ϩⲏⲧⲥ̅. ⲛ̅ⲧⲉⲧⲛ̅ϫⲟⲟⲥ ⲛⲁⲩ ϫⲉ ⲁⲧⲙⲛ̅ⲧⲉⲣⲟ ⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ϩⲱⲛ ⲉϫⲱⲧⲛ̅.
10 १० परन्तु जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, तो उसके बाजारों में जाकर कहो,
ⲓ̅ⲧⲡⲟⲗⲉⲓⲥ ⲇⲉ ⲉⲧⲉⲧⲛⲁⲃⲱⲕ ⲉϩⲟⲩⲛ ⲉⲣⲟⲥ ⲛ̅ⲥⲉⲧⲙ̅ϣⲉⲡⲧⲏⲩⲧⲛ̅ ⲉⲣⲟⲟⲩ. ⲁⲙⲏⲓ̈ⲧⲛ̅ ⲉⲃⲟⲗ ⲉⲛⲉⲥⲡⲗⲁⲧⲓⲁ ⲛ̅ⲧⲉⲧⲛ̅ϫⲟⲟⲥ
11 ११ ‘तुम्हारे नगर की धूल भी, जो हमारे पाँवों में लगी है, हम तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं, फिर भी यह जान लो, कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’
ⲓ̅ⲁ̅ϫⲉ ⲡⲕⲉϣⲟⲓ̈ϣ ⲉⲛⲧⲁϥⲧⲱϭⲉ ⲉⲛⲉⲛⲟⲩⲉⲣⲏⲧⲉ ⲉⲃⲟⲗ ϩⲛ̅ⲧⲉⲧⲛ̅ⲡⲟⲗⲉⲓⲥ. ⲧⲛ̅ϥⲱⲧⲉ ⲙ̅ⲙⲟϥ ⲛⲏⲧⲛ̅. ⲡⲗⲏⲛ ⲉ͡ⲓⲙⲉ ⲉⲡⲁⲓ̈ ϫⲉ ⲁⲧⲙⲛ̅ⲧⲉⲣⲟ ⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ϩⲱⲛ ⲉⲣⲱⲧⲛ̅.
12 १२ मैं तुम से कहता हूँ, कि उस दिन उस नगर की दशा से सदोम की दशा अधिक सहने योग्य होगी।
ⲓ̅ⲃ̅ϯϫⲱ ⲙ̅ⲙⲟⲥ ⲛⲏⲧⲛ̅ ϫⲉ ⲥⲉⲛⲁϩⲣⲟϣ ⲛ̅ϩⲏⲧʾ ⲉϫⲛⲥⲟⲇⲟⲙⲁ ϩⲙ̅ⲡⲉϩⲟⲟⲩ ⲉⲧⲙ̅ⲙⲁⲩ ⲉϩⲟⲩⲉⲧⲡⲟⲗⲉⲓⲥ ⲉⲧⲙ̅ⲙⲁⲩ.
13 १३ “हाय खुराजीन! हाय बैतसैदा! जो सामर्थ्य के काम तुम में किए गए, यदि वे सोर और सीदोन में किए जाते, तो टाट ओढ़कर और राख में बैठकर वे कब के मन फिराते।
ⲓ̅ⲅ̅ⲟⲩⲟⲓ̈ ⲛⲉ ⲭⲟⲣⲁⲍⲉⲓⲛ. ⲟⲩⲟⲓ̈ ⲛⲉ ⲃⲏⲇⲥⲁⲓ̈ⲇⲁ. ϫⲉ ⲉⲛⲉⲛⲧⲁⲛϭⲟⲙ ⲉⲛⲧⲁⲩϣⲱⲡⲉ ⲛ̅ϩⲏⲧʾⲧⲏⲩⲧⲛ̅ ϣⲱⲡⲉ ϩⲛ̅ⲧⲩⲣⲟⲥ ⲛⲙⲥⲓⲇⲱⲛ ⲉϣϫⲡⲉ ⲁⲩϩⲙⲟⲟⲥ ϩⲛ̅ⲟⲩϭⲟⲟⲩⲛⲉ ⲛⲙ̅ⲟⲩⲕⲣ̅ⲙⲉⲥ ⲉⲩⲙⲉⲧⲁⲛⲟⲓ̈.
14 १४ परन्तु न्याय के दिन तुम्हारी दशा से सोर और सीदोन की दशा अधिक सहने योग्य होगी।
ⲓ̅ⲇ̅ⲡⲗⲏⲛ ⲥⲉⲛⲁⲁⲛⲉⲭⲉ ⲛ̅ⲧⲩⲣⲟⲥ ⲛⲙ̅ⲥⲓⲇⲱⲛ ϩⲛ̅ⲧⲉⲕⲣⲓⲥⲓⲥ ⲉϩⲟⲩⲉⲣⲱⲧⲛ̅.
15 १५ और हे कफरनहूम, क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो अधोलोक तक नीचे जाएगा। (Hadēs )
ⲓ̅ⲉ̅ⲛ̅ⲧⲟ ϩⲱⲱⲧⲉ ⲕⲁⲫⲁⲣⲛⲁⲟⲩⲙ ⲙⲏ ⲧⲉⲛⲁϫⲓⲥⲉ ϣⲁϩⲣⲁⲓ̈ ⲉⲧⲡⲉ. ⲥⲉⲛⲁⲛ̅ⲧⲉ ϣⲁⲁⲙⲛ̅ⲧⲉ. (Hadēs )
16 १६ “जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी सुनता है, और जो तुम्हें तुच्छ जानता है, वह मुझे तुच्छ जानता है; और जो मुझे तुच्छ जानता है, वह मेरे भेजनेवाले को तुच्छ जानता है।”
ⲓ̅ⲋ̅ⲡⲉⲧⲥⲱⲧⲙ̅ ⲉⲣⲱⲧⲛ̅ ⲉϥⲥⲱⲧⲙ̅ ⲉⲣⲟⲓ̈ ⲁⲩⲱ ⲡⲉⲧⲁⲑⲉⲧⲓ ⲙ̅ⲙⲱⲧⲛ̅. ⲉϥⲁⲑⲉⲧⲓ ⲙ̅ⲙⲟⲓ̈. ⲡⲉⲧⲁⲑⲉⲧⲓ ⲇⲉ ⲙ̅ⲙⲟⲓ̈ ⲉϥⲁⲑⲉⲧⲓ ⲙⲡⲉⲛⲧⲁϥⲧⲛ̅ⲛⲟⲟⲩⲧʾ·
17 १७ वे सत्तर आनन्द से फिर आकर कहने लगे, “हे प्रभु, तेरे नाम से दुष्टात्मा भी हमारे वश में है।”
ⲓ̅ⲍ̅ⲁⲩⲕⲟⲧⲟⲩ ⲇⲉ ⲛ̅ϭⲓⲡⲉϣϥⲉⲥⲛⲟⲟⲩⲥ ϩⲛⲟⲩⲣⲁϣⲉ ⲉⲩϫⲱ ⲙ̅ⲙⲟⲥ ϫⲉ ⲡϫⲟⲉⲓⲥ ⲛ̅ⲕⲉⲩⲇⲁⲓⲙⲟⲛⲓⲟⲛ ⲥⲉϩⲩⲡⲟⲧⲁⲥⲥⲉ ⲛⲁⲛ ϩⲙ̅ⲡⲉⲕⲣⲁⲛ.
18 १८ उसने उनसे कहा, “मैं शैतान को बिजली के समान स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था।
ⲓ̅ⲏ̅ⲡⲉϫⲁϥ ⲇⲉ ⲛⲁⲩ ϫⲉ ⲛⲉⲓ̈ⲛⲁⲩ ⲉⲡⲥⲁⲧⲁⲛⲁⲥ ⲉϥⲛⲏⲟⲩ ⲉⲡⲉⲥⲏⲧʾ ⲉⲃⲟⲗ ϩⲛ̅ⲧⲡⲉ ⲛⲑⲉ ⲛⲟⲩⲃⲣⲏϭⲉ.
19 १९ मैंने तुम्हेंसाँपों और बिच्छुओं को रौंदनेका, और शत्रु की सारी सामर्थ्य पर अधिकार दिया है; और किसी वस्तु से तुम्हें कुछ हानि न होगी।
ⲓ̅ⲑ̅ⲉⲓⲥϩⲏⲏⲧⲉ ⲁⲓ̈ϯ ⲛⲏⲧⲛ̅ ⲛ̅ⲧⲉⲝⲟⲩⲥⲓⲁ ⲉϩⲱⲙ ⲉϫⲛ̅ⲛ̅ϩⲟϥ ⲛⲙ̅ⲟⲩⲟⲟϩⲉ ⲁⲩⲱ ⲉϫⲛ̅ⲧϭⲟⲙ ⲧⲏⲣⲥ̅ ⲙ̅ⲡϫⲁϫⲉ ⲛ̅ⲧⲉⲧⲙ̅ⲗⲁⲁⲩ ϫⲓⲧⲏⲩⲧⲛ̅ ⲛϭⲟⲛⲥ̅.
20 २० तो भी इससे आनन्दित मत हो, कि आत्मा तुम्हारे वश में हैं, परन्तु इससे आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं।”
ⲕ̅ⲡⲗⲏⲛ ⲙ̅ⲡⲣ̅ⲣⲁϣⲉ ϩⲙ̅ⲡⲁⲓ̈ ϫⲉ ⲛⲉⲡⲛ̅ⲁ ϩⲩⲡⲟⲧⲁⲥⲥⲉ ⲛⲏⲧⲛ̅. ⲣⲁϣⲉ ⲇⲉ ⲛ̅ⲧⲟϥ ϫⲉ ⲛⲉⲧⲛ̅ⲣⲁⲛ ⲥⲏϩ ϩⲛ̅ⲙⲡⲏⲩⲉ.
21 २१ उसी घड़ी वह पवित्र आत्मा में होकर आनन्द से भर गया, और कहा, “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, कि तूने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया, हाँ, हे पिता, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा।
ⲕ̅ⲁ̅ϩⲛ̅ⲧⲉⲩⲛⲟⲩ ⲇⲉ ⲉⲧⲙ̅ⲙⲁⲩ ⲁϥⲧⲉⲗⲏⲗ ϩⲙⲡⲉⲡⲛ̅ⲁ ⲉⲧⲟⲩⲁⲁⲃ ⲡⲉϫⲁϥ ϫⲉ. ϯⲉⲝⲟⲙⲟⲗⲟⲅⲓ ⲛⲁⲕ ⲡⲁⲓ̈ⲱⲧʾ ⲡϫⲟⲉⲓⲥ ⲛ̅ⲧⲡⲉ ⲛⲙ̅ⲡⲕⲁϩ. ϫⲉ ⲁⲕϩⲉⲡⲛⲁⲓ̈ ⲉⲛⲥⲟⲫⲟⲥ ⲛⲙ̅ⲛ̅ⲥⲁⲃⲉ ⲁⲕϭⲟⲗⲡⲟⲩ ⲉⲃⲟⲗ ⲉϩⲉⲛϣⲏⲣⲉ ϣⲏⲙ. ⲁϩⲉ ⲡⲁⲓⲱⲧʾ ϫⲉ ⲧⲁⲓ̈ ⲧⲉ ⲑⲉ ⲉⲛⲧⲁⲥⲣ̅ⲁⲛⲁⲕ ⲙ̅ⲡⲉⲕⲙ̅ⲧⲟ ⲉⲃⲟⲗ.
22 २२ मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंप दिया है; और कोई नहीं जानता कि पुत्र कौन है, केवल पिता और पिता कौन है यह भी कोई नहीं जानता, केवल पुत्र के और वह जिस पर पुत्र उसे प्रकट करना चाहे।”
ⲕ̅ⲃ̅ⲁⲩϯ ⲛⲁⲓ̈ ⲛ̅ϩⲱⲃ ⲛⲓⲙ ⲉⲃⲟⲗ ϩⲓⲧⲙ̅ⲡⲁⲓ̈ⲱⲧʾ ⲁⲩⲱ ⲙ̅ⲙⲛ̅ⲗⲁⲁⲩ ⲥⲟⲟⲩⲛ ϫⲉ ⲛⲓⲙ ⲡⲉ ⲡϣⲏⲣⲉ ⲛⲥⲁⲡⲓⲱⲧʾ ⲏ ⲛⲓⲙ ⲡⲉ ⲡⲓⲱⲧʾ ⲛⲥⲁⲡϣⲏⲣⲉ. ⲁⲩⲱ ⲡⲉⲧⲉⲣⲉⲡϣⲏⲣⲉ ⲛⲁⲟⲩⲁϣϥ̅ ϣⲁϥϭⲱⲗⲡ̅ ⲛⲁϥ ⲉⲃⲟⲗ.
23 २३ और चेलों की ओर मुड़कर अकेले में कहा, “धन्य हैं वे आँखें, जो ये बातें जो तुम देखते हो देखती हैं,
ⲕ̅ⲅ̅ⲁϥⲕⲟⲧϥ̅ ⲇⲉ ⲉⲙⲙⲁⲑⲏⲧⲏⲥ ⲛ̅ⲥⲁⲟⲩⲥⲁ ⲡⲉϫⲁϥ ⲛⲁⲩ ϫⲉ. ⲛⲁⲓ̈ⲁⲧⲟⲩ ⲛ̅ⲃⲃⲁⲗ ⲉⲧⲛⲁⲩ ⲉⲛⲉⲧⲉⲧⲛ̅ⲛⲁⲩ ⲉⲣⲟⲟⲩ
24 २४ क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और राजाओं ने चाहा, कि जो बातें तुम देखते हो देखें; पर न देखीं और जो बातें तुम सुनते हो सुनें, पर न सुनीं।”
ⲕ̅ⲇ̅ϯϫⲱ ⲅⲁⲣ ⲙ̅ⲙⲟⲥ ⲛⲏⲧⲛ̅ ϫⲉ ⲁϩⲁϩ ⲙ̅ⲡⲣⲟⲫⲏⲧⲏⲥ ϩⲓⲣ̅ⲣⲟ, ⲟⲩⲉϣ ⲛⲁⲩ ⲉⲛⲉⲧⲉⲧⲛ̅ⲛⲁⲩ ⲉⲣⲟⲟⲩ ⲙ̅ⲡⲟⲩⲛⲁⲩ. ⲁⲩⲱ ⲉⲥⲱⲧⲙ̅ ⲉⲣⲟⲓ̈ ⲉⲛⲉⲧⲉⲧⲛ̅ⲥⲱⲧⲙ̅ ⲉⲣⲟⲟⲩ ⲙ̅ⲡⲟⲩⲥⲱⲧⲙ̅·
25 २५ तब एक व्यवस्थापक उठा; और यह कहकर, उसकी परीक्षा करने लगा, “हे गुरु, अनन्त जीवन का वारिस होने के लिये मैं क्या करूँ?” (aiōnios )
ⲕ̅ⲉ̅ⲉⲓⲥⲟⲩⲛⲟⲙⲓⲕⲟⲥ ⲇⲉ ⲁϥⲧⲱⲟⲩⲛ ⲉϥⲡⲓⲣⲁⲍⲉ ⲙ̅ⲙⲟϥ ⲉϥϫⲱ ⲙ̅ⲙⲟⲥ ϫⲉ ⲡⲥⲁϩ ⲉⲓ̈ⲛⲁⲣⲟⲩ ⲧⲁⲕⲗⲏⲣⲟⲛⲟⲙⲓ ⲙ̅ⲡⲱⲛϩ̅ ϣⲁⲉⲛⲉϩ. (aiōnios )
26 २६ उसने उससे कहा, “व्यवस्था में क्या लिखा है? तू कैसे पढ़ता है?”
ⲕ̅ⲋ̅ⲛ̅ⲧⲟϥ ⲇⲉ ⲡⲉϫⲁϥ ϫⲉ ⲟⲩ ⲡⲉⲧⲥⲏϩ ϩⲙ̅ⲡⲛⲟⲙⲟⲥ ⲉⲕⲱϣ ⲛ̅ⲁϣ ⲛ̅ϩⲉ.
27 २७ उसने उत्तर दिया, “तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख; और अपने पड़ोसी से अपने जैसा प्रेम रख।”
ⲕ̅ⲍ̅ⲛ̅ⲧⲟϥ ⲇⲉ ⲡⲉϫⲁϥ ϫⲉ. ⲉⲕⲉⲙⲉⲣⲉⲡϫⲟⲓ̈ⲥ ⲡⲉⲕⲛⲟⲩⲧⲉ ϩⲙ̅ⲡⲉⲕϩⲏⲧʾ ⲧⲏⲣϥ̅ ⲛⲙ̅ⲧⲉⲕⲯⲩⲭⲏ ⲧⲏⲣⲥ̅. ⲛⲙ̅ⲧⲉⲕϭⲟⲙ ⲧⲏⲣⲥ̅. ⲛⲙ̅ⲛⲉⲕⲙⲉⲉⲩⲉ ⲧⲏⲣⲟⲩ. ⲁⲩⲱ ⲡⲉⲧϩⲓⲧⲟⲩⲱⲕ ⲛ̅ⲧⲉⲕϩⲉ.
28 २८ उसने उससे कहा, “तूने ठीक उत्तर दिया, यही कर तो तू जीवित रहेगा।”
ⲕ̅ⲏ̅ⲡⲉϫⲁϥ ⲇⲉ ⲛⲁϥ ϫⲉ. ⲁⲕⲟⲩⲱϣⲃ̅ ϩⲛ̅ⲟⲩⲥⲟⲟⲩⲧⲛ̅ ⲁⲣⲓⲡⲁⲓ̈ ⲁⲩⲱ ⲕⲛⲁⲱⲛϩ̅.
29 २९ परन्तु उसने अपने आपको धर्मी ठहराने की इच्छा से यीशु से पूछा, “तो मेरा पड़ोसी कौन है?”
ⲕ̅ⲑ̅ⲛ̅ⲧⲟϥ ⲇⲉ ⲉϥⲟⲩⲉϣⲧⲙⲁⲓ̈ⲟϥ ⲡⲉϫⲁϥ ⲛ̅ⲓ̅ⲥ̅ ϫⲉ ⲛⲓⲙ ⲡⲉ ⲡⲉⲧϩⲓⲧⲟⲩⲱⲓ̈.
30 ३० यीशु ने उत्तर दिया “एक मनुष्य यरूशलेम से यरीहो को जा रहा था, कि डाकुओं ने घेरकर उसके कपड़े उतार लिए, और मारपीट कर उसे अधमरा छोड़कर चले गए।
ⲗ̅ⲁⲓ̅ⲥ̅ ⲟⲩⲱϣⲃ̅ ⲡⲉϫⲁϥ ⲛⲁϥ ϫⲉ. ⲟⲩⲣⲱⲙⲉ ⲡⲉ ⲛⲧⲁϥⲉ͡ⲓ ⲉⲃⲟⲗ ϩⲛ̅ⲑⲓⲉⲣⲟⲩⲥⲁⲗⲏⲙ ⲉⲓ̈ⲉⲣⲓⲭⲱ. ⲁϥⲉ͡ⲓ ⲉⲧⲟⲟⲧⲟⲩ ⲛ̅ϩⲉⲛⲙⲁ ⲛ̅ⲥⲟⲟⲛⲉ ⲛⲁⲓ̈ ⲇⲉ ⲁⲩⲕⲁⲁϥ ⲕⲁϩⲏⲟⲩ ⲁⲩϫϥ̅ϩⲉⲛⲥⲁϣ ⲁⲩⲃⲱⲕ ⲁⲩⲕⲁⲁϥ ⲉϥⲟ̅ ⲙ̅ⲡϣⲙⲟⲩ.
31 ३१ और ऐसा हुआ कि उसी मार्ग से एक याजक जा रहा था, परन्तु उसे देखकर कतराकर चला गया।
ⲗ̅ⲁ̅ϩⲛ̅ⲟⲩϣⲥ̅ⲛⲉ ⲇⲉ ⲁⲩⲟⲩⲏⲏⲃ ⲉ͡ⲓ ⲉⲡⲉⲥⲏⲧʾ ϩⲓⲧⲉϩⲓⲏ ⲉⲧⲙ̅ⲙⲁⲩ ⲁϥⲛⲁⲩ ⲉⲣⲟϥ ⲁϥⲥⲁⲁⲧϥ̅.
32 ३२ इसी रीति सेएक लेवीउस जगह पर आया, वह भी उसे देखकर कतराकर चला गया।
ⲗ̅ⲃ̅ϩⲟⲙⲟⲓⲱⲥ ⲟⲛ ⲟⲩⲗⲉⲩⲉⲧⲏⲥ ⲛ̅ⲧⲉⲣⲉϥⲉ͡ⲓ ⲉϫⲙ̅ⲡⲙⲁ ⲉⲧⲙ̅ⲙⲁⲩ ⲁϥⲛⲁⲩ ⲉⲣⲟϥ ⲁϥⲥⲁⲁⲧϥ̅.
33 ३३ परन्तुएक सामरीयात्री वहाँ आ निकला, और उसे देखकर तरस खाया।
ⲗ̅ⲅ̅ⲁⲩⲥⲁⲙⲁⲣⲓⲧⲏⲥ ⲇⲉ ⲉϥⲙⲟⲟϣⲉ ⲉ͡ⲓ ⲉϫⲱϥ ⲁϥⲛⲁⲩ ⲉⲣⲟϥ ⲁϥϣⲛ̅ϩⲧⲏϥ ⲉϩⲣⲁⲓ̈ ⲉϫⲱϥ.
34 ३४ और उसके पास आकर औरउसके घावों पर तेल और दाखरस डालकरपट्टियाँ बाँधी, और अपनी सवारी पर चढ़ाकर सराय में ले गया, और उसकी सेवा टहल की।
ⲗ̅ⲇ̅ⲁϥϯⲡⲉϥⲟⲩⲟⲓ̈ ⲉⲣⲟϥ ⲁϥⲙⲟⲩⲣ ⲛ̅ⲛⲉϥⲥⲁϣ ⲁϥⲡⲱϩⲧ̅ʾ ⲛ̅ⲟⲩⲛⲉϩ ⲉϫⲱⲟⲩ ⲛⲙ̅ⲟⲩⲏⲣⲡ̅ ⲁϥⲧⲁⲗⲟϥ ⲉϫⲛ̅ⲡⲉϥⲧⲃ̅ⲛⲏ ⲙ̅ⲙⲓⲛ ⲙ̅ⲙⲟϥ ⲁϥⲛ̅ⲧϥ̅ ⲉⲩⲡⲁⲛⲧⲟⲭⲓⲟⲛ ⲁϥϥⲓⲡⲉϥⲣⲟⲟⲩϣ.
35 ३५ दूसरे दिन उसने दो दीनार निकालकर सराय के मालिक को दिए, और कहा, ‘इसकी सेवा टहल करना, और जो कुछ तेरा और लगेगा, वह मैं लौटने पर तुझे दे दूँगा।’
ⲗ̅ⲉ̅ⲙ̅ⲡⲉϥⲣⲁⲥⲧⲉ ⲇⲉ ⲉϥⲛⲏⲟⲩ ⲉⲃⲟⲗ ⲁϥϯϥⲕⲏⲧⲉ ⲙⲡ̅ʾⲡⲁⲛⲧⲟⲭⲉⲩⲥ ⲡⲉϫⲁϥ ⲛⲁϥ ϫⲉ. ϥⲓⲡⲉϥⲣⲟⲟⲩϣ ⲁⲩⲱ ⲡⲉⲧⲕ̅ⲛⲁϫⲟϥ ⲉⲃⲟⲗ ⲉⲣⲟϥ. ⲉⲓ̈ϣⲁⲛⲕⲧⲟⲓ̈ ϯⲛⲁⲧⲁⲁϥ ⲛⲁⲕ.
36 ३६ अब तेरी समझ में जो डाकुओं में घिर गया था, इन तीनों में से उसका पड़ोसी कौन ठहरा?”
ⲗ̅ⲋ̅ⲛⲓⲙ ⲙ̅ⲡⲉⲓ̈ϣⲟⲙⲛ̅ⲧ ⲛ̅ⲛⲁϩⲣⲁⲕ ⲡⲉⲛⲧⲁϥⲣ̅ⲡⲉⲧϩⲓⲧⲟⲩⲱϥ ⲙ̅ⲡⲉⲛⲧⲁϥⲉ͡ⲓ ⲉⲧⲟⲟⲧⲟⲩ ⲛⲛ̅ⲥⲟⲟⲛⲉ.
37 ३७ उसने कहा, “वही जिसने उस पर तरस खाया।” यीशु ने उससे कहा, “जा, तू भी ऐसा ही कर।”
ⲗ̅ⲍ̅ⲛ̅ⲧⲟϥ ⲇⲉ ⲡⲉϫⲁϥ ⲛⲁϥ ϫⲉ ⲡⲉⲛⲧⲁϥⲣ̅ⲡⲛⲁ ⲛⲙ̅ⲙⲁϥ ⲡⲉ. ⲡⲉϫⲉⲓ̅ⲥ̅ ⲇⲉ ⲛⲁϥ ϫⲉ ⲃⲱⲕ ϩⲱⲱⲕ ⲛⲅ̅ⲉⲓⲣⲉ ϩⲓⲛⲁⲓ̈·
38 ३८ फिर जब वे जा रहे थे, तो वह एक गाँव में गया, और मार्था नाम एक स्त्री ने उसे अपने घर में स्वागत किया।
ⲗ̅ⲏ̅ϩⲙ̅ⲡⲧⲣⲉⲩⲙⲟⲟϣⲉ ⲇⲉ ⲛ̅ⲧⲟϥ ⲁϥⲃⲱⲕ ⲉϩⲟⲩⲛ ⲉⲩϯⲙⲉ ⲁⲩⲥϩⲓⲙⲉ ⲉⲡⲉⲥⲣⲁⲛ ⲡⲉ ⲙⲁⲣⲑⲁ ϣⲟⲡϥ̅ ⲉⲣⲟⲥ.
39 ३९ और मरियम नामक उसकी एक बहन थी; वह प्रभु के पाँवों के पास बैठकर उसका वचन सुनती थी।
ⲗ̅ⲑ̅ⲛⲉⲟⲩⲛⲧⲥ̅ⲟⲩⲥⲱⲛⲉ ⲇⲉ ⲡⲉ ⲉϣⲁⲩⲙⲟⲩⲧⲉ ⲉⲣⲟⲥ ϫⲉ ⲙⲁⲣⲓⲁ. ⲧⲁⲓ̈ ⲇⲉ ⲁⲥϩⲙⲟⲟⲥ ϩⲁⲧⲛ̅ⲟⲩⲉⲣⲏⲧⲉ ⲙ̅ⲡϫⲟⲉⲓⲥ ⲁⲥⲥⲱⲧⲙ̅ ⲉⲡⲉϥϣⲁϫⲉ.
40 ४० परन्तु मार्था सेवा करते-करते घबरा गई और उसके पास आकर कहने लगी, “हे प्रभु, क्या तुझे कुछ भी चिन्ता नहीं कि मेरी बहन ने मुझे सेवा करने के लिये अकेली ही छोड़ दिया है? इसलिए उससे कह, मेरी सहायता करे।”
ⲙ̅ⲙⲁⲣⲑⲁ ⲇⲉ ⲛⲉⲥⲡⲉⲣⲓⲥⲡⲁ ⲡⲉ ⲉⲩⲛⲟϭ ⲛ̅ⲇⲓⲁⲕⲟⲛⲓⲁ. ⲁⲥⲁϩⲉⲣⲁⲧⲥ̅ ⲉϫⲱϥ ⲡⲉϫⲁⲥ ⲛⲁϥ ϫⲉ ⲡϫⲟⲉⲓⲥ ⲙ̅ⲡⲉⲕⲣⲟⲟⲩϣ ⲁⲛ ⲡⲉ ϫⲉ ⲁⲧⲁⲥⲱⲛⲉ ⲕⲁⲁⲧʾ ⲙⲁⲩⲁⲁⲧʾ ⲉⲓ̈ⲇⲓⲁⲕⲟⲛⲓ. ⲁϫⲓⲥ ϭⲉ ⲛⲁⲥ ϫⲉⲕⲁⲥ ⲉⲥⲉⲡⲱϣⲛ̅ ⲉⲣⲟⲓ̈.
41 ४१ प्रभु ने उसे उत्तर दिया, “मार्था, हे मार्था; तू बहुत बातों के लिये चिन्ता करती और घबराती है।
ⲙ̅ⲁ̅ⲁⲡϫⲟⲉⲓⲥ ⲇⲉ ⲟⲩⲱϣⲃ̅ ⲛⲁⲥ ⲡⲉϫⲁϥ ϫⲉ. ⲙⲁⲣⲑⲁ ⲙⲁⲣⲑⲁ ⲧⲉϥⲓⲣⲟⲟⲩϣ ϩⲁϩⲁϩ ⲁⲩⲱ ⲧⲉϣⲧⲣ̅ⲧⲱⲣ.
42 ४२ परन्तु एक बात अवश्य है, और उस उत्तम भाग को मरियम ने चुन लिया है: जो उससे छीना न जाएगा।”
ⲙ̅ⲃ̅ⲟⲩⲁ ⲇⲉ ⲡⲉⲧⲟⲩⲣ̅ⲭⲣⲓⲁ ⲙ̅ⲙⲟϥ. ⲙⲁⲣⲓⲁ ⲅⲁⲣ ⲁⲥⲥⲉⲧⲡ̅ʾⲧ̅ʾⲧⲟ ⲛⲁⲥ ⲉⲧⲛⲁⲛⲟⲩⲥ ⲧⲁⲓ̈ ⲉⲛⲥⲉⲛⲁϥⲓⲧⲥ̅ ⲛ̅ⲧⲟⲟⲧⲥ̅ ⲁⲛ·