< भजन संहिता 28 >

1 दावीद की रचना याहवेह, मैं आपको पुकार रहा हूं; आप मेरी सुरक्षा की चट्टान हैं, मेरी अनसुनी न कीजिए. कहीं ऐसा न हो कि आपके प्रत्युत्तर न देने पर मैं उनके समान हो जाऊं, जो मृतक लोक में उतर रहे हैं.
Давидів.
2 जब मैं परम पवित्र स्थान की ओर अपने हाथ उठाऊं, जब मैं सहायता के लिए आपको पुकारूं, तो मेरी पुकार सुन लीजिए.
Почуй голос блага́ння мого, як я кли́чу до Тебе, коли руки свої я підно́шу до храму святого Твого́!
3 दुष्टों के लिए निर्धारित दंड में मुझे सम्मिलित न कीजिए, वे अधर्म करते रहते हैं, पड़ोसियों के साथ उनका वार्तालाप अत्यंत मेल-मिलाप का होता है किंतु उनके हृदय में उनके लिए बुराई की युक्तियां ही उपजती रहती हैं.
Не хапай мене з грішними й тими, хто чинить безпра́вство, хто плете́ своїм ближнім про мир, — але зло в їхнім серці!
4 उन्हें उनके आचरण के अनुकूल ही प्रतिफल दीजिए, उन्होंने जो कुछ किया है बुराई की है; उन्हें उनके सभी कार्यों के अनुरूप दंड दीजिए, उन्हें वही दंड दीजिए, जिसके वे अधिकारी हैं.
Віддай їм за їхнім учинком, і за злом їхніх учинків, згідно з ді́лом їхні́х рук Ти їм дай, верни їм заслу́жене ними,
5 क्योंकि याहवेह के महाकार्य का, याहवेह की कृतियों के लिए ही, उनकी दृष्टि में कोई महत्व नहीं! याहवेह उन्हें नष्ट कर देंगे, इस रीति से कि वे कभी उठ न पाएंगे.
бо вони не вдивля́ються в чинність Господню й діла́ Його рук, — нехай їх поруйнує, й нехай не будує Він їх!
6 याहवेह का स्तवन हो, उन्होंने सहायता के लिए मेरी पुकार सुन ली है.
Благослове́нний Господь, — бо Він почув голос блага́ння мого!
7 याहवेह मेरा बल एवं मेरी ढाल हैं; उन पर ही मेरा भरोसा है, उन्होंने मेरी सहायता की है. मेरा हृदय हर्षोल्लास में उछल रहा है, मैं अपने गीत के द्वारा उनके लिए आभार व्यक्त करूंगा.
Госпо́дь моя сила та щит мій, на нього наді́ялось серце моє, — й Він мені допоміг, і вті́шилося моє серце, і співом своїм я прославлю Його́!
8 याहवेह अपनी प्रजा का बल हैं, अपने अभिषिक्त के लिए उद्धार का दृढ़ गढ़ हैं.
Господь сила наро́ду Свого́, і за́хист спасі́ння Свого пома́занця!
9 आप अपनी मीरास को उद्धार प्रदान कीजिए और उसे आशीष दीजिए; उनके चरवाहा होकर उन्हें सदा-सर्वदा संभालते रहिए.
Спаси Свій наро́д, і поблагослови спадщину Свою, і паси їх, і підно́сь їх навіки!

< भजन संहिता 28 >