< अय्यूब 35 >
Elihu hob dann wieder an und sagte:
2 “क्या आप यह न्याय समझते हैं? आप कहते हैं, ‘मेरा धर्म परमेश्वर के धर्म से ऊपर है?’
»Hältst du das für recht, nennst du das ›meine Gerechtigkeit vor Gott‹,
3 क्योंकि आप तो यही कहेंगे, ‘आप पर मेरे पाप का क्या प्रभाव पड़ता है, और पाप न करने के द्वारा मैंने क्या प्राप्त किया है?’
daß du fragst: ›Was nützt sie mir?‹ und: ›Was habe ich mehr davon, als wenn ich sündigte?‹
4 “इसका उत्तर आपको मैं दूंगा, आपको तथा आपके मित्रों को.
Ich will dir darauf die Antwort geben, dir und zugleich deinen Freunden neben dir.
5 आकाश की ओर दृष्टि उठाओ; मेघों का अवलोकन करो, वे तुमसे ऊपर हैं.
Blicke zum Himmel empor und sieh ihn an und schaue zu den Wolken hinauf, die hoch über dir sind:
6 जब आप पाप कर बैठते हैं, इससे हानि परमेश्वर की कैसी होती है? यदि आपके अत्याचारों की संख्या अधिक हो जाती, क्या परमेश्वर पर इसका कोई प्रभाव होता है?
wenn du sündigst, was tust du ihm damit zuleide? Und sind deine Übertretungen zahlreich, welchen Schaden fügst du ihm damit zu?
7 यदि आप धर्मी हैं, आप परमेश्वर के लिए कौन सा उपकार कर देंगे, अथवा आपके इस कृत्य से आप उनके लिए कौन सा लाभ हासिल कर देंगे?
Und so auch: wenn du gerecht bist, welches Geschenk machst du ihm damit, oder was empfängt er aus deiner Hand?
8 आपकी दुष्चरित्रता आप जैसे व्यक्ति पर ही शोभा देती है, तथा आपकी धार्मिकता मानवता के लिए योग देती है.
Nur den Menschen, wie du einer bist, geht dein Freveln an, und nur dir, dem Menschensohn, kommt dein Gerechtsein zugute.«
9 “अत्याचारों में वृद्धि होने पर मनुष्य कराहने लगते हैं; वे बुरे काम के लिए किसी शूर की खोज करते हैं.
»Man schreit wohl über die Menge der Bedrückungen, klagt laut über die Gewalttätigkeit der Großen,
10 किंतु किसी का ध्यान इस ओर नहीं जाता ‘कहां हैं परमेश्वर, मेरा रचयिता, जो रात में गीत देते हैं,
doch keiner sagt: ›Wo ist Gott, mein Schöpfer, der Lobgesänge schenkt in der Nacht,
11 रचयिता परमेश्वर ही हैं, जिनकी शिक्षा हमें पशु पक्षियों से अधिक विद्वत्ता देती है, तथा हमें आकाश के पक्षियों से अधिक बुद्धिमान बना देती है.’
der uns Belehrung verleiht wie keinem Tiere des Feldes und uns höhere Weisheit gewinnen läßt als die Vögel des Himmels?‹
12 वहां वे सहायता की पुकार देते हैं, किंतु परमेश्वर उनकी ओर ध्यान नहीं देते, क्योंकि वे दुर्जन अपने अहंकार में डूबे हुए रहते हैं.
Da schreit man denn, ohne Erhörung bei ihm zu finden, wegen des Übermuts der Bösen.
13 यह निर्विवाद सत्य है कि परमेश्वर निरर्थक पुकार को नहीं सुनते; सर्वशक्तिमान इस ओर ध्यान देना भी उपयुक्त नहीं समझते.
Jawohl: auf eitles Klagen hört Gott nicht, sondern der Allmächtige läßt es unbeachtet.
14 महोदय अय्योब, आप कह रहे थे, आप परमेश्वर को नहीं देख सकते, अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के समय की प्रतीक्षा करें. आपका पक्ष उनके सामने रखा जा चुका है.
Nun sagst du aber gar, du sehest ihn nicht; deine Sache liege ihm vor, du wartest aber vergeblich auf seine Entscheidung!
15 इसके अतिरिक्त, परमेश्वर क्रोध कर तुम्हें दण्ड नहीं देता, और न ही वह अभिमान की ओर ध्यान देते हैं,
Und nun, da sein Zorn noch nicht gestraft und er sich um Torheit nicht sonderlich gekümmert hat,
16 महोदय अय्योब, इसलिये व्यर्थ है आपका इस प्रकार बातें करना; आप बिना किसी ज्ञान के अपने उद्गार पर उद्गार किए जा रहे हैं.”
da reißt Hiob seinen Mund zu leerem Gerede auf und ergeht sich ohne Einsicht in vermessenen Worten!«