< यशायाह 20 >

1 जिस वर्ष अश्शूर के राजा सर्गोन ने सेनापति बनाया, उस वर्ष उसने अशदोद पर हमला कर उस पर अधिकार कर लिया—
In anno, quo ingressus est Thathan in Azotum, cum misisset eum Sargon rex Assyriorum, et pugnasset contra Azotum, et cepisset eam:
2 उस समय याहवेह ने आमोज़ के पुत्र यशायाह से कहा, “जाओ, अपनी कमर से टाट खोल दो तथा अपने पांव के जूते उतार दो.” तब यशायाह वस्त्रहीन और नंगे पांव रहता था.
in tempore illo locutus est Dominus in manu Isaiae filii Amos, dicens: Vade, et solve saccum de lumbis tuis, et calceamenta tua tolle de pedibus tuis. Et fecit sic vadens nudus, et discalceatus.
3 तब याहवेह ने यह कहा, “जिस प्रकार मेरा सेवक यशायाह मिस्र और कूश के लिए एक नमूना बना वह तीन वर्ष तक वस्त्रहीन तथा नंगे पांव रहा,
Et dixit Dominus: Sicut ambulavit servus meus Isaias nudus, et discalceatus, trium annorum signum et portentum erit super Aegyptum, et super Aethiopiam,
4 उसी प्रकार अश्शूर का राजा मिस्रियों और कूश देश के लोगों को बंधक बनाकर देश से निकाल देगा, सबको चाहे वे जवान हों, बूढ़े हों सबको बंधुआ बनाकर बिना वस्त्र और नंगे पांव ले जाएगा.
sic minabit rex Assyriorum captivitatem Aegypti, et transmigrationem Aethiopiae, iuvenem et senem, nudam et discalceatam, discoopertis natibus ad ignominiam Aegypti.
5 तब कूश के कारण जिस पर उनको आशा थी और मिस्र पर वे घमंड करते थे वे विनाश और लज्जित हो जाएंगे.
Et timebunt, et confundentur ab Aethiopia spe sua, et ab Aegypto gloria sua.
6 और उस समय समुद्रतट के किनारे रहनेवाले कहेंगे कि, ‘देखो जिस पर हमारी आशा थी और अपने आपको बचाने के लिये हम अश्शूर के राजा के पास जानेवाले थे! अब उनकी ही ऐसी दशा हो गई तो अब हम कैसे बचेंगे?’”
Et dicet habitator insulae huius in die illa: Ecce haec erat spes nostra, ad quos confugimus in auxilium, ut liberarent nos a facie regis Assyriorum: et quomodo effugere poterimus nos?

< यशायाह 20 >